आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय साहित्यिक परिचय आचार्य रामचंद्र शुक्ल की आलोचना पद्धति भाषा शैली Acharya Ramchandra shukla ka jeevan parichay
आचार्य रामचंद्र शुक्ल का साहित्यिक परिचय
आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय आचार्य रामचंद्र शुक्ल का साहित्यिक परिचय आचार्य रामचंद्र शुक्ल का लेखक परिचय आचार्य रामचंद्र शुक्ल की रचनाएँ आचार्य रामचंद्र शुक्ल की आलोचना पद्धति आचार्य रामचंद्र शुक्ल की भाषा शैली आचार्य रामचंद्र शुक्ल की आलोचना दृष्टि Acharya Ramchandra shukla ka jeevan parichay Biography of Acharya Ramchandra shukla jivan Parichay acharya ramchandra Shukla jeevan Parichay acharya ramchandra Shukla Achar Ramchandra Shukla ki Pramukh rachnaen - आचार्य रामचंद्र शुक्ल ,आधुनिक हिन्दी साहित्य के एक उच्चकोटि के निबंधकार और आलोचक के रूप में जाने जाते है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का जन्म उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के अगोना नामक ग्राम के हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा उर्दू -अंग्रेजी में हुई। उनकी शिक्षा मात्र इंटरमीडीएट तक हुई। कुछ समय तक उन्होंने मिर्जापुर के मिशन स्कूल में अध्यापन का कार्य किया। मिर्जापुर के बद्रीनारायण चौधरी "प्रेमधन" के संपर्क में शुक्ल जी का हिन्दी की ओर विशेष झुकाव हुआ। इसके बाद १९०९ -१० में जब नागरी प्रचारणी सभा(बनारस) की ओर से हिन्दी शब्दकोष बनाने का कार्य आरम्भ हुआ तब उन्हें सहायक संपादक का कार्य मिला। इसके बाद वे काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिन्दी अध्यापक के पद पर आसीन हुए और श्यामसुंदर दास जी अवकाश ग्रहण करने पर हिन्दी -विभाग के अध्यक्ष बने । इसी पद पर कार्य करते हुए उनका निधन हो गया।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल का व्यक्तित्व
आचार्य रामचंद्र शुक्ल संस्कृत ,अंग्रेजी ,बंगला और हिंदी के विद्वान थे। प्राचीन साहित्य का अध्ययन उन्होंने गंभीरतापूर्वक किया था। उनके पास एक वैज्ञानिक की निष्पक्ष दृष्टि तथा एक कवि का भावुक ह्रदय था। गहन पांडित्य ने उन्हें भारतीय साहित्य एवं संस्कृति का भक्त बना दिया था। आचार्य शुक्ल जी का लेखन गंभीर है परन्तु उनके व्यक्तित्व में हास्य विनोद का पुट भी है। तेरह वर्ष की अवस्था में आपने ने हास्य विनोद शीर्षक से एक नाटक लिखा था। आपकी प्रथम प्रकाशित रचना एक कविता थे जोकि सरस्वती पत्रिका में संवत १८९६ में प्रकाशित हुई थी। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल को अपने देश ,अपनी संस्कृति तथा परम्पराओं से अथाह प्रेम था। प्रकृति प्रेमी होने के कारण वे प्रायः वनों में भ्रमण करते थे। आचार्य शुक्ल की मित्र मंडली में काशी प्रसाद जायसवाल ,भगवानदास ,बद्रीनाथ गौड़ एवं लक्ष्मी शंकर द्विवेदी विद्वान थे। चापलूसी और दीनता उनके स्वभाव में नहीं थी। अलवर नरेश की नौकरी उन्होंने इसीलिए छोड़ दी क्योंकि वहां पर स्वाभिमानपूर्वक रहना उन्हें मुश्किल लगा था।
आचार्य शुक्ल जी स्वाध्याय द्वारा संस्कृत ,अंग्रेजी ,बंगला और हिन्दी के प्राचीन साहित्य का गंभीर अध्ययन किया। हिन्दी साहित्य में उनका प्रवेश कवि और निबंधकार के रूप में हुआ और उन्होंने बंगला तथा अंग्रेजी साहित्य का हिन्दी में सफल अनुवाद किया। आगे चल कर आलोचना उनका मुख्य विषय बन गया। एक चिंतनशील स्वाध्यायी साहित्यकार के नाते उनकी लेखनी से साहित्य का कोई अंग अछुता नही रहा। उन्होंने निबंध ,इतिहास,कहानी, समालोचना ,अनुवाद और काव्य आदि सभी को अपनी मौलिक प्रतिभा से छुकर नवीन स्वरुप प्रदान किया। निबंध "चिंतामणि" तीन भाग में प्रकाशित हुए है ,जो मनोवैज्ञानिक एवं समालोचनात्मक है। इनमे इनके व्यक्तित्व की स्पष्ट झाकी उपलब्ध होती है और अध्ययन की गरिमा तो सभी जगह है ही। आलोचना की दृष्टि से जायसी ग्रंथावली की भूमिका और भ्रमरगीत सार की भूमिका महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। "हिन्दी साहित्य का इतिहास" तो साहित्य की इतिहास की दृष्टि से ,सर्वप्रथम प्रयास है। इनके अतिरिक्त अंग्रेजी में आनंद,बुद्धचरित तथा आदर्श जीवन आदि प्रसिद्ध पुस्तके है। "काव्य में रहस्यवाद" निबंध पर आपको हिन्दुस्तानी अकादमी से ५०० रुपये का तथा चिंतामणि पर हिन्दी साहित्य सम्मलेन ,प्रयाग द्वारा १२०० रुपये का मंगला प्रशाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल की आलोचना पद्धति
हिन्दी में गद्य -शैली के सर्वश्रेष्ठ प्रस्थापकों में आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का नाम सर्वोपरि है। उन्होंने अपने दृष्टिकोण से भाव ,विभाव,रस आदि की पुनव्याख्या की, साथ ही साथ विभिन्न भावों की व्याख्या में उनका पांडित्य ,मौलिकता और सूक्ष्म पर्यवेक्षण पग -पग पर दिखाई देता है। हिन्दी की सैधांतिक आलोचना को परिचय और सामान्य विवेचन के धरातल से ऊपर उठाकर गंभीर स्वरुप प्रदान करने का श्रेय शुक्ल जी को ही है। उनकी शैली के सम्बन्ध में डॉ.गणपतिचन्द्र गुप्त लिखते है : निबंधकार शुक्ल जी शैली में भी निजी विशिष्टता मिलती है। भारतेंदु -युग की सी मौलिकता उसमे है किंतु वे उसके छिछलेपन से दूर है,द्विवेदी युग की विचारात्मकता उसमे है ,किंतु वैसी शुष्कता का अभाव है । विचारो की गंभीर घाटियो के बीच -बीच में उतरी हास्य -व्यंग से ओत -प्रोत उक्तिया किसी साफ़ -शीतल निर्झर के कोमल कल-कल स्वर की तरह सुनाई पड़ती है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल की रचनाएँ
आलोचना साहित्य : तुलसीदास,जायसी ग्रंथावली की भूमिका ,सूरदास ,चिंतामणि (तीन भाग) ,हिन्दी साहित्य का इतिहास और रसमीमांसा।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी हिन्दी साहित्य जगत के प्रखर आलोचक और अच्छे कहानीकार थे . इसमे कोई संदेह नही है . मैंने उनके बारे में काफी कुछ पढ़ा और सुना है . आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी के बारे में अच्छी पोस्ट के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंप्रिय मित्र
जवाब देंहटाएंशुक्ल् जी पर आपने जो कुछ लिखा है वह केवल सतही ही है। उनपर आपको विशद अध्ययन करके लिखना चाहिए। यह एक ऐसा व्यक्तित्व हैै जिसकी जितनी व्याख्या की जाए उतने ही नए आयाम मिलतके है।
अखिलेश शुक्ल्
संपादक कथा चक्र
pl visit--
http;//katha-chakra.blogspot.com
सर, मै अपने ब्लॉग पर अभी मात्र साहित्यकारों का सामान्य परिचय ही अभी दे रहा हूँ,साथ ही उन साहित्यकारों को भी इंगित कर रहा हूँ जिससे हिन्दी साहित्य की दिशा व धारा बदलती है। अतः मै उनके साहित्य ,विचारधारा ,शैली की कुछ समय बाद आलोचना व समीक्षा करूँगा । मै मानता हूँ कि आचार्य शुक्ल जी पर बहुत ही विषद समीक्षा करने की जरुरत है,जो मै कुछ समय बाद अपने ब्लॉग पर हिन्दी साहित्य का इतिहास, कड़ी में करूँगा। अतः इस सन्दर्भ में आपके स्नेह और सहयोग की मुझे जरुरत है, ताकि मै इस कार्य को और अधिक उपादेय बना सकूं।
जवाब देंहटाएंAASHUTOSH JI, sabki vichardhara alag-alag hoti hai mera mamna hai ki aap satat prayas se hindi ko aage badhane ki koshish kar rahe hai wo kabiletareef hai,,,,
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रयास...सक्रियता बनाये रखें !!
जवाब देंहटाएंआचार्य रामचंद्र शुक्ल के सन्दर्भ में
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ प्राप्त किया है. आपने जिस तरह से
उनके जीवन का परिचय दिया वो अति उत्तम है.
मेरा मानना है की आज जरुरत
है उन साहित्यकारों के बारे में
जानने समझने की जो इतिहास में कद होने लगे है.
आपका प्रयास सराहनीय है.
धन्यवाद
...प्रभावशाली प्रस्तुतिकरण है, प्रसंशनीय है।
जवाब देंहटाएंaapke maadhyam se hindi sahitya ke baare me bahut kuchh janne ko mil raha hai dhanyvaad
जवाब देंहटाएंmene pratham bar ye web site open ki or isme ram chandra sukla par lekh achha de rakha he jo kisi bhi mayne me kam nahi anka ja sakta.
जवाब देंहटाएंहिंदी कुंज
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ जान कारी मिलती है
थोडा थोडा याद आ रहा है
धन्यवाद
likhan achi hai
जवाब देंहटाएंyah likha achi hai
जवाब देंहटाएंmujhe yah jankar badi khushi hui ki aapne hindi rachanakaro avam unaki rachanao ko jinda rakhne kae liye is site ko madhyam banaya. Vastav me kai aise kathakar huve hai ki kisi ko khoj kabar tak nahi hai. aise rachanakaro ke liye yah site ak vardan sabit hogo. is prashanshniy karya ke liye apka bahut bahut dhanyavad.
जवाब देंहटाएंजीवन परिचय का बहुत महत्व होता किसी महान व्यक्ति के व्यक्तिव से आने वाली अनेक पीढ़ियों को प्रेरणा मिलती है .
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