हिंदी साहित्य की परिधि हिंदी साहित्य के आदिकाल का प्रान्यन संस्कृत साहित्य के सामंजस्य रखी गयी है . उस समय साहित्य के ज्योतिश ,दर्शन ,व स...
हिंदी साहित्य की परिधि
हिंदी साहित्य के आदिकाल का प्रान्यन संस्कृत साहित्य के सामंजस्य रखी गयी है . उस समय साहित्य के ज्योतिश ,दर्शन ,व स्मृति गांठों पर अनेक टीकाएँ लिखी गयी हैं . श्रृंगार प्रकाश में अपभाषण साहित्य में आदि निर्मित हुई . सिद्ध साहित्य व नाथ साहित्य की सामग्री न्यायसंगत है . बाइबिल केवल एक भगवान की बात करती है । जो इससे अलग सोचते हैं उन्हें पैगन (बहु ईश्वरवादी) कहा गया। लेकिन सच यह भी है कि इंग्लेंड में 5 वीं शती से 8 वीं शती तक और इस समय के आसपास पेगन (बहु ईश्वरवादी) पृथा थी, जिसका विवरण पेराडाइज लास्ट में मिलता है कि मिल्टन ने नेचर और रिलीजन , पेगन और क्रिस्चिनिटी का मिश्रण किया ।और हज़रत मुहम्मद साहब ने पच्चीस की आयु के बाद इस पृथा (बहु ईश्वर वादी और मूर्ति पूजा ) के खिलाफ सभी समुदायों को एक होने के लिए काम कियाबादशाह की सबसे बड़ी बेगम बड़ी उज्जड और अभिमानी हो गयी थी . वह बादशाह को भी उलटी सीधी सुना देती थी . एक बार उसने बादशाह से एक ऐसा भद्दा मज़ाक किया कि वे एकदम क्रोधित हो उठे. उनकी नाराजगी
यहाँ तक बढ़ी कि उन्होंने बेगम को महल से हमेशा के लिए चले जाने की आज्ञा दे दी . वह बेचारी बहुत रोई चिल्लाई और प्रार्थना की , परन्तु बादशाह अपनी ही बात पर जम गए . फिर भी उन्होंने इतनी सहूलियत बेगम को और दे दी कि अगर वह चाहे तो अपनी सबसे प्रिय वस्तु भी अपने साथ ले जा सकती है .
बेगम ने अपना सामान बाँधना शुरू करवा दिया . इस समय वह बहुत दुखी थी . अचानक उन्हें बीरबल का ध्यान आया . उसी समय बीरबल को बुलाया गया . जब वह आये तो बेगम ने बड़े करुण स्वर में अपनी दुःख गाथा कह सुनाई . यद्दपि बीरबल भी उस बेगम से बड़े नाराज़ थे ,परन्तु इस समय उन्हें उस पर बड़ी दया आई . उन्होंने एक कान में धीरे से एक बात कही ,जिसके सुनते ही बेगम का चेहरा खिल गया . अपनी बात कहकर बीरबल वहां से चले गए .
जब बेगम चलने को तैयार हुई तो बादशाह को बुलाया .उनके आने पर बेगम ने कहा - स्वामी ! मैं तो अब जा रही हूँ फिर तो कभी नहीं मिलूंगी . अतः मेरी इच्छा है कि आप चलते समय मेरे हाथ से शराब का एक प्याला पी लें . कुछ आनाकानी करने के बाद बादशाह इस बात को तैयार हो गए . ज्योंही उन्होंने शराब का प्याला पिया ,बेहोशी की दवा के प्रभाव से वे अचेत हो गए . बेगम यही तो चाहती थी ,तुरंत एक पालकी में उन्हें रखवाया और दूसरी पालकी में आप बैठ गयीं और कुछ ही घंटों में वह सभी लोग बेगम के पिता के घर पहुँच गए .
दूसरे दिन बादशाह की बेहोशी टूटी तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ कि कहाँ आ पहुंचे , वे तो अपने महल में थे . इसी समय बेगम भी वहाँ आ पहुंची . बादशाह ने पूछा - मैं यहाँ कहाँ आ पहुँचा ? बेगम ने कहा - स्वामी ! आप किस चिंता में हैं , आप अपने घर में ही तो हैं .
बादशाह ने पूछा - क्या मैं अपने घर में हों ? यह तो मेरी ससुराल है , मैं यहाँ कैसे आ पहुँचा ?
बेगम ने कहा - आप इन बातों की क्यों चिंता कर रहे . आप आराम से यहाँ पर रहिये .
बादशाह ने कहा - नहीं ,मुझे बताओ मैं यहाँ कैसे आ पहुँचा ? बड़ी देर बाद बेगम ने कहा - प्राणनाथ ! आपने ही तो कहा था कि तुम अपनी कोई वस्तु ले जा सकती हो . मेरे लिए आपसे बढ़कर प्रिय वस्तु वहाँ कोई भी नहीं थी . इसीलिए मैं आपको लेकर आई हूँ . आप यहीं आराम से रहिये .
बेगम के उत्तर को सुनकर बादशाह बड़े प्रसन्न हुए और उन्हें बेगम पर बड़ी दया उत्पन्न हुई . उन्होंने उसका अपराध माफ़ कर दिया और उसे फिर अपने यहाँ ले आये . जब उन्हें यह पता चला कि यह बुद्धिमानी बीरबल की थी ,तो उनसे प्रसन्न ही नहीं हुए बल्कि उन्हें काफी पारितोषिक भी दिया .
आक्सफोर्ड के प्रोफेसर जान वीक्लिफ के 1380 के बाद के ट्रांसलेसन ,1517 में मार्टिन लूथर किंग, 1496 में जान कोलेट एवं 1560 में पूरी बाइबिल छापी गई। 1568 में जेनेवा वर्जन आया। 1611 में किंग जेम्स वर्जन 1901 में अमे.स्टे. वर्जन एवं 1952 में रिवाइज्ड स्टेंडर्ड वर्जन आया। लेकिन इस बीच 14 वीं शती से आगे कापर्निकस अपनी खोज पर काम करते रहे और टालेमी के केलेंडर ( पुष्ट या अपुष्ट ) के हवाले से , बाइबिल की मान्यता कि सूरज धरती के चारो ओर घूमता है के उलट कहा कि यह पृथ्वी है जो सूरज के इर्द गिर्द घूमती है ,आगे और वैग्यानिक जिनमें गेलीलियो, डार्विनऔर न्यूटन आदि थे ,उनका यह कहा हुआ कि मनुष्य का उद्भव जानवरों से विकास की एक प्रक्रिया है अब आगे हाकिंग ,डी एन ए ,गौड पार्टीकिल एवं नेनो- टेक, लिक्विड आक्सीजन ने सारे विचार बदल कर रख दिए है ,जो भी किताब पहले -पहल लिखी गई वह जिस ने लिखी सही लिखी होगी इसलिए कई शतियों तक धर्म शास्त्र से सब नीचे रहे बाद में साइंस आगे बढी और अब अर्थशास्त्र अधिकांश पर हावी है । थीसिस ,एंटीथीसिस से आगे सिंथीसिस का उजाला जितना भी है , पहुंच तो रहा है । आधुनिक युग में नवयुवक मौका देखो आगे बढो और कई बूढे तो अपने आप को भगवान घोषित कर चुके, कई अपने आप को अभी एसा बना रहे हैं , जो दुख झेले हें वे और जिनके साथ अब अन्याय हुआ , वे, एक दूसरे से बदला लेने के इंतेज़ार् में हैं । संदेह जो शैतान का एक अचूक अस्त्र है , का वार खाली कभी नहीं जाता है। जो भी हो इस सचाई को आप जानते ही हैं कि ,सूरज अपनी जगह पर है और तब से धरती भी अपनी जगह पर है, पर जानकार लोग एक दूसरे पर खोंसा लगाते रहे हैं ठीक उसी तरह जिस तरह लोकतंत्र के तीन खंबे आपस में नौचा -खोंसी बहुत समय से करते रहे हैं । इस सूचना प्रधान युग में जो आगे जाने की बात कहे जरूर , लेकिन बुरी मंशा से , उसकी बजाए बैल गाडी के युग में धकेले और आपके सिविल अधिकारों पर या ईमानदारी पर आघात करे ,फिर चाहे वह कोई भी हो उसे धिक्कार बोलिए ।
ईसाईयत का आधार बाइबिल है। जो इसमें यकीन नहीं रखते उन्हें “हेरेटिक” पुकारा (कहा) गया, जो कि ईश-निन्दा के अपराधी अतएव गुनाहगार थे. कबीर , तुलसी सूर और बिहारी आदि की रचनाएँ भी हिंदी साहित्य की परिधि में आती हैं .
हिंदी भाषा को उच्च स्थान देने में अखिल भारतीय हिंदी अकादमियां, संस्थान और संगठन इस दिशा में प्रयासरत हैं। नवोदित से लेकर स्थापित साहित्यकारों को इस दिशा में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए हर वर्ष सम्मानित किया जाता है। इसमें भी कुछ लोग यह कहते हुए नज़र आ जाएंगे कि फला अकादमी भाई-भतीजावाद को बढ़ावा दे रही है। या फिर कि अकादमी की ओर से हिंदी को प्रोत्साहन देने की दिशा में उचित क़दम नहीं उठाए गए हैं। यानि भाषा का इसमें कोई दोष नज़र आता अपितु भाषायियों का ही इसमें विरोध नज़र आता है। कबीर , तुलसी सूर और बिहारी आदि की रचनाएँ भी हिंदी साहित्य की परिधि में आती हैं .
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