प्रिय मित्रों , हिन्दीकुंज में रणजीत कुमार जी के स्तम्भ मंगल ज्ञानानुभाव के अंतर्गत आज प्रस्तुत है - आनंद योग और ध्यान . यह लेख योग और ध्यान...
प्रिय मित्रों , हिन्दीकुंज में रणजीत कुमार जी के स्तम्भ मंगल ज्ञानानुभाव के अंतर्गत आज प्रस्तुत है - आनंद योग और ध्यान . यह लेख योग और ध्यान की महत्ता पर केन्द्रित है. आशा है कि आप सभी को यह लेख पसंद आएगा . इस सम्बन्ध में आप सभी के सुझाओं की प्रतीक्षा रहेगी.
आनंद योग और ध्यान
आनंद सुख और दुःख से परे अनुभव है. सुख और दुःख के पीछे कारण का होना आवश्यक है पर आनंद अकारण है आनंद का कोई विपरीत शब्द नहीं ये बस एहसास है वर्तमान में उपस्थित होने का. जीवित होना और जीवंत होने में मात्र यही अंतर है की आप वर्तमान के साथ एक हैं जब आप जीवंत हैं अन्यथा महज जी रहे हैं . आनंद कोई खोज नहीं इसके लिए पहल करने का भी कोई कारण नहीं ये तो आभिव्यक्ति मात्र है आपके होने का. विज्ञान कहता है हर जड़ और चेतन विस्तार जो हम अपने वातावरण में देखते हैं इनकी एक अपनी उर्जा है एक निजी तरंग है और वस्तुतः ये तरंग ही जड़ और चेतन होने का मुख्य कारण भी.योग इसी आनंद के सरोवर से साक्षात्कार है. योग का शाब्दिक अर्थ जोड़ है और जो विधा आपको अपने अस्तित्व उर्जा (existential energy ) से परिचय करादे वही योग है. ये अस्तित्व उर्जा से ध्यान के द्वारा तारतम्य स्थापित किया जा सकता है. ध्यान वो प्रक्रिया है जिससे योग जीवंत हो उठता है. ध्यान वो विधा है जो आप करते नहीं और ये विचार की हम ध्यान करते हैं बाधा है अंतर्मन की यात्रा में बस आप होते हैं ध्यान में. ध्यान आपको सुग्राह्य बनाता है परम उर्जा की अनुभूति के लिए. ये मनो शरीर यंत्र के परे असीम उर्जा श्रोत से अवगत करता है आपको. योग और ध्यान के माध्यम से हम अपने जीवन के उलझे मायाजाल से निकल आकाश का विस्तार पा सकते हैं आवश्यकता मात्र इतनी की हमे अपने अज्ञान का ज्ञान हो जाए और हम उसे सहजता से स्वीकार करें.योग ध्यान आनंद के रोचक यात्रा में आपका हमराही सत्यान्वेषी............
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