प्रिय मित्रों , आज हिंदी दिवस है . हिंदी दिवस यानि हिंदी का दिवस . एक साधारण अर्थ तो यही होगा . आज बहुत स्थानों पर हिंदी दिवस के लिए कार...
प्रिय मित्रों , आज हिंदी दिवस है . हिंदी दिवस यानि हिंदी का दिवस . एक साधारण अर्थ तो यही होगा . आज बहुत स्थानों पर हिंदी दिवस के लिए कार्यक्रम आयोजित हुए होंगे . लोग इस कार्यक्रमों में हिंदी के विकास के लिए बड़ी बड़ी बातें करेंगे और कल सारी बातें भूल जायेंगे . यह एक तल्ख़ सच्चाई है ,जिन पर रोज भरोसा करना पड़ता हैं . भारत जैसे एक देश में सरकारी कार्य के लिए एक मात्र भाषा उपयुक्त मानी जानी जाती है - वह है अंग्रेजी .अंग्रेजी ही उपयुक्त भाषा है ,ऐसा जनसामान्य को विश्वास कराया जाता है . लेकिन जिन लोगों को अंग्रेजी नहीं आती ,वे अनपढ़ माने जाते है . चाहे वह कितना ही योग्य क्यों न हो ? यह बात एक नियम बनती जा रही हैं .
मुझे एक बात समझ में नहीं आती कि हम क्यों एक विदेशी भाषा को भारत में इतना महत्वपूर्ण स्थान दिए हैं ,इसीलिए क्योंकि हम गुलाम थे अंग्रेजों के . इसके पहले हम फारसी भाषा का प्रयोग करते थे , आज अंगेजी कर रहे हैं , कल यदि चीन भारत पर अधिकार कर लेता है तो हम चीनी भाषा बोलेंगे , हर हालत में हम गुलाम बनना पसंद करते हैं , यह हमारी हालत है. हम भले ही अपने झगडे में व्यस्त रहे ,चाहे वह गोरखालैंड की बात हो ,वह महाराष्ट्र हो, आमार सोनार बंगला ,तेलंगाना ,कश्मीरी ,बिहारी या असमिया की बात हो ,हम हर स्थिति में अपने आप को बड़ा ही संस्कृतिवादी घोषित करना पसंद करते हैं ,अपनी जातीय अस्मिता की बात करते हैं ,किन्तु जब बात भाषा के प्रश्न पर आती हैं ,तब हम सभी अंग्रेजी का प्रयोग करना बेहतर समझते हैं . क्या यह बात सच नहीं हैं ? तब हमारी जातीय अस्मिता झूठी साबित होती है . हम झूठ से लोगों को बेवकूफ बना कर सत्ता हासिल करना चाहते हैं . हमने कभी भी ठीक तरह से भाषा के प्रश्न पर बात नहीं की ,हम केवल अपनी भारतीय भाषाओँ को लेकर लड़ते रहे ,जब की असल लडाई भारतीय भाषाओँ और अंग्रेजी के बीच में हैं . हम कब इस पर विचार करेंगे ?
इस सम्बन्ध में एक बात और , यह प्रश्न राजनीतिक है अतः राजनीति द्वारा ही इसका हल होगा ,जब भारतीय भाषाओँ के उद्धार के राजनीतिक आन्दोलन होंगे ,तब ही इसका उत्तर आ सकेगा . हिंदी की स्थिति तब सुधरेगी जब भारत की भाषाओं की स्थिति सुधरेगी .
मुझे एक बात समझ में नहीं आती कि हम क्यों एक विदेशी भाषा को भारत में इतना महत्वपूर्ण स्थान दिए हैं ,इसीलिए क्योंकि हम गुलाम थे अंग्रेजों के . इसके पहले हम फारसी भाषा का प्रयोग करते थे , आज अंगेजी कर रहे हैं , कल यदि चीन भारत पर अधिकार कर लेता है तो हम चीनी भाषा बोलेंगे , हर हालत में हम गुलाम बनना पसंद करते हैं , यह हमारी हालत है. हम भले ही अपने झगडे में व्यस्त रहे ,चाहे वह गोरखालैंड की बात हो ,वह महाराष्ट्र हो, आमार सोनार बंगला ,तेलंगाना ,कश्मीरी ,बिहारी या असमिया की बात हो ,हम हर स्थिति में अपने आप को बड़ा ही संस्कृतिवादी घोषित करना पसंद करते हैं ,अपनी जातीय अस्मिता की बात करते हैं ,किन्तु जब बात भाषा के प्रश्न पर आती हैं ,तब हम सभी अंग्रेजी का प्रयोग करना बेहतर समझते हैं . क्या यह बात सच नहीं हैं ? तब हमारी जातीय अस्मिता झूठी साबित होती है . हम झूठ से लोगों को बेवकूफ बना कर सत्ता हासिल करना चाहते हैं . हमने कभी भी ठीक तरह से भाषा के प्रश्न पर बात नहीं की ,हम केवल अपनी भारतीय भाषाओँ को लेकर लड़ते रहे ,जब की असल लडाई भारतीय भाषाओँ और अंग्रेजी के बीच में हैं . हम कब इस पर विचार करेंगे ?
इस सम्बन्ध में एक बात और , यह प्रश्न राजनीतिक है अतः राजनीति द्वारा ही इसका हल होगा ,जब भारतीय भाषाओँ के उद्धार के राजनीतिक आन्दोलन होंगे ,तब ही इसका उत्तर आ सकेगा . हिंदी की स्थिति तब सुधरेगी जब भारत की भाषाओं की स्थिति सुधरेगी .
आशुतोष दूबे
संपादक (हिंदीकुंज.कॉम)
आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज के ब्लॉग बुलेटिन - हिंदी को प्रणाम पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |
जवाब देंहटाएंhttp://www.nirantarajmer.com/2013/09/blog-post_2643.html
जवाब देंहटाएंहिंदी दिवस पर
छात्र ने कविता में
मन की भावनाएं
प्रकट करी
जी भर के
हिंदी की प्रशंसा करी
उसे मात्र भाषा
राष्ट्र भाषा कहा
सब भाषाओं में
श्रेष्ठ बताया
कविता पढ़ कर
छात्र ने गुरूजी से
पूछ लिया
सर आपको हिंदी पर
मेरी पोयम कैसी लगी
गुरूजी बोले
पोयम तो अच्छी है
पर थोड़ी सी शोर्ट है
कुछ लाइन्स और लिखते
तो एक्सीलेंट पोयम
कहलाती
33-277-14-09-2013
भाषा ,हिंदी ,व्यंग्य
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
Hindi ham Hihaan haindutaniyon ki Pehchan hai, aur hamri sankruti aur sabhuata ka prateek. Jai Hindi, Jay Hind
जवाब देंहटाएंसही कहा. भारतीय भाषाओँ की हम खुद उपेक्षा कर रहे हैं.
जवाब देंहटाएंHindustan ki asli pahchan hindi hi hai iska niradar karna desh ke sath dhokha dene ke barabar hai.
जवाब देंहटाएंDesh ke rajnetao ko is baat par gour karna chahiye ki, hindustan ko hindi ki hi avyasakta hai kisi or bhasha ki hame jarorat nahi hai.
Jai hind... Jai bharat... Jai hindi.
एक अच्छा विचारोत्तेजक लेख। असल मेँ यह समस्या सभी भारतीय भाषाओँ की है। केरल मेँ मलयालम भाषा को श्रेष्ठ भाषा की पदवी हाल ही मेँ हासिल हुई। मलयालम विश्वविद्यालय की स्थापना भी कुछ महीनोँ पहले हुई। केरल के मलयाला मनोरमा दैनिक ने पिछले सप्ताह मलयालम भाषा के प्रचुर उपयोग को बढावा देने के उद्देश्य से इस विषय पर पाँच लेखोँ की श्रृँखला भी प्रकाशित की जो कि प्रस्तुत लेख के विचारोँ से मिलती जुलती है। हमेँ अपनी संस्कृति पर अभिमान करते हुए हमारी भाषा को पुष्ट और जीवंत बनाए रखने के लिए उसका हर क्षेत्र मेँ उपयोग करना होगा। विकीपीडिया जैसे वेबसाइट इस विषय मेँ काफी सहायक सिद्ध हो रहे हैँ।
जवाब देंहटाएंdhanyawad ,ashutosh dubey ji,hindi diwas par itney sunder alekh prastut karney key liye.....
जवाब देंहटाएंहिन्दी एक पूर्ण और समृद्ध भाषा है और हमें इस पर गर्व है । बहुत अच्छा लेख !
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