हिंदी भाषा अपने आप में बहुत शक्तिशाली है और विश्व की कई भाषाओं से अग्रणी है. हालाँकि इसपर कई वाद-विवाद हैं किंतु मनीषियों की मानें तो आज हिंदी विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है, इंटरनेट, संप्रेषण का मायाजाल है.
इंटरनेट से हिंदी प्रगति
हिंदी भाषा अपने आप में बहुत शक्तिशाली है और विश्व की कई भाषाओं से अग्रणी है. हालाँकि इसपर कई वाद-विवाद हैं किंतु मनीषियों की मानें तो आज हिंदी विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है, इंटरनेट, संप्रेषण का मायाजाल है. इससे संप्रेषण में हजारों - लाखों गुना वृद्धि हुई है. हाथ से लिखने की जगह से उठकर आज हम ऐसे दौर पर आ गए हैं जहाँ किसी की कही हुई बात दुनियाँ के दूसरे कोने में वहाँ की भाषा में सुनी जा सकती है और शायद देखी भी जा सकती है, छापा जा सकता है.
लिखने पर गलतियाँ सुधारने के लिए काट छाँट करनी पड़ती थी जो रिकार्ड को गंदा करता था, अब तो उतना ही मिटा कर पुनः टाइप कर लीजिए. हो गया नया दस्तावेज तैयार. इलेक्ट्रानिक हस्ताक्षर भी उपलब्ध हो रहे हैं. सो हो सकता है कुछ बाद की पीढ़ियों को लिखने की जरूरत नहीं होगी. शायद लिखने की कला, अब ओझल हो जाएगी.
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एम.आर.अयंगर |
इंटरनेट के चलते हर वह काम जो अंग्रेजी में हुआ करता था / है, अब हिंदी में भी हो सकेगा. यानी टायपिंग, सुधार, ईमेल, फाईल का आदान प्रदान इत्यादि. ऑडियो वीडियो चेट तो हो ही रहे हैं. लेकिन इन पर हमें संतोष नहीं करना है. हमें अपनी भाषा में प्रोग्रामिंग भी बनानी है. ताकि बिना किसी अन्य भाषा का सहारा लिए भी हम वे सभी काम कंप्यूटर पर हिंदी में कर सकें. आज भी हमारे पास मंगल के अलावा अनुमोदित यूनीकोड लिपि नहीं है. हिंदी डॉक्यूमेंट के स्पेल चेक की उचित सुविधा नहीं है.
हर विषय के विस्तृत हिंदी शब्दकोश आज भी हमारे पास उपलब्ध नहीं है. यदि इन विषयों पर कार्य किया जाए और कमियों को मिटा दिया जाए तो आज के इंटरनेटी युग का हम भी सही प्रयोग कर पाएंगे. एक बार इंरनेट की दुनियाँ में पूरी तरह आ जाएं, तो प्रगति की गति अपने आप ही बढ़ जाएगी.
आज तो सोचा ही जा सकता है कि एक हिंदी में लिखा पत्र विदेश में अपनी भाषा में पढ़ा जा सके वैसे ही विदेशी भाषा में लिखकर प्रषित पत्र को हम यहाँ हिंदी में पढ़ सकें. ऐसे में विश्व में भाषा का दायरा समाप्त हो जाएगा. भाषाएं एक दूसरे के संपर्क में आते हुए विकसित होंगी और एक दिन विश्व में एक ही भाषा रह जाएगी – विश्वभाषा. स्वाभाविकतः प्रत्येक शख्स चाहेगा कि उसकी भाषा ही विश्व भाषा बने.
हिंदी भाषा के लोग हिंदी में अन्य भाषाओं के शब्दों को आत्मसात् करने के मामले में बहुत ढ़ीले हैं या कहें बहुत पीछे हैं. उनको इसमे रफ्तार लानी होगी. हिंदी को विश्व भाषा बनाने की ओर अग्रसर होने से पहले हमें अपने देश की भाषाओं के उत्कृष्टताओं को अपनी हिंदी में समेटना होगा. आज भी दक्षिणी भाषाओं के ए ऐ व ओ – औ के बीच के उच्चारण हिंदी में पूरी तरह नहीं आए हैं वैसे ही गुरुमुखी का द्वयत्व भी हिंदी में नहीं आया है. कहीं कहीं यह दिख जाते हैं किंतु वर्णमाला का भाग तो अब भी नहीं बन पाया है. पता नहीं क्यों. किस बात का या वक्त का इंतजार है. हम यदि ऐसे ही ढ़ीले रहे तो सोचना ही बेकार है कि हिंदी की प्रगति होगी. जो गति है वही रह जाए तो भी ठीक है.
इसी तरह इंटरनेट पर व्याप्त होने पर वैश्विक भाषाओं के ज्ञान को भी हिंदी में उपलब्ध कराया जा सकता है. इससे हिंदी की भी प्रगति होगी और हिंदी विश्वभाषा बनने के करीब पहुँचेगी.
यह सब तो ठीक है. लेकिन दुर्भाग्यवश हमारे यहाँ हिंदी के लिए क्या करना है कहने, बोलने व लिखने वाले तो बहुत हैं लेकिन करने वालों की बहुत ही कमी है. यानी आम जन की मानसिकता सलाहकार बनने की है, कलाकार बनने की नहीं. जब तक यह मानसिकता की दीवार ढह नहीं जाती हम अपने जगह पर ही बने रहेंगे.
यह रचना माड़भूषि रंगराज अयंगर जी द्वारा लिखी गयी है . आप इंडियन ऑइल कार्पोरेशन में कार्यरत है . आप स्वतंत्र रूप से लेखन कार्य में रत है . आप की विभिन्न रचनाओं का प्रकाशन पत्र -पत्रिकाओं में होता रहता है . संपर्क सूत्र - एम.आर.अयंगर. , इंडियन ऑयल कार्पोरेशन लिमिटेड,जमनीपाली, कोरबा. मों. 08462021340
आपकी बात से सहमत हूँ। हिंदी को सशक्त करना है, और हम लोगों को ही करना है। हिंदी एक उत्कृष्ट भाषा है, बस अपनी ही धरती में अवहेलना की शिकार है जो हमारे लिए बहुत शर्म और खेद की बात है।
जवाब देंहटाएंआपकी सहमति से शक्ति मिलती है. चुप रहने वालों का बोलना मायने रखता है. हमें भी हिंदी के लिए काम तकरने को तत्पर होना चाहिए.
हटाएंसादर,
अयंगर.
सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुंदर आलेख अयंगर जी को साधुवाद ।
जवाब देंहटाएंसुशील कुमार जोशी जी,
हटाएंआलेख पर आपके सुंदर विचारों का अभिनंदन,
नमस्कार,
अयंगर.
हर्षवर्धन जी ,
जवाब देंहटाएंआपने अपनी बुलेटिन के लिए चुनकर सही में हर्षवर्धन किया.
सादर धन्यवाद,
अयंगर.
ओंकार जी ,
जवाब देंहटाएंआपका सदा साथ रहा .
आपने मेरे लेखों को पढ़ा और अपनी राय दी.
विनम्रता प्रकट करता हूँ.
आभार,
अयंगर.
बेहतरीन पोस्ट, हिन्दी को कोने कोने तक हमे ही पहुचाना है. मै आपके बातसे सहमत हु.
जवाब देंहटाएंज्ञानीजी,
हटाएंचलिए हम - आप मिलकर ही कुछ करें.
प्रोत्साहन हेतु शुक्रिया,
सादर,
अयंगर.
रोचक और महत्वपूर्ण जानकारी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसुखमंगल सिंह जी,
हटाएंआपकी खूबसूरत व स्नेहमयी टिप्पणी हेतु आभार.
हार्दिक बधाई सर आपका प्रेम सदा याद रखने योग्य | आप मेरा नमन-वन्दन स्वीकार करें !
हटाएंसुखमंगल सिंह जी,
हटाएंआभार.
इस बीच मेरे हिंदी लेखों व कविताओं की एक पुस्तक प्रकाशित हुई है. दशा और दिशा. "ISBN 978-93-85818-63-9" को गूगल सर्च कर देखा जा सकता है. बाधा होने पर मुझे 8462021340 पर फोन कर लें.
बधाई सर ! M.Rangraj Iyengar ji
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