जब मन में सच्ची भावना के साथ हमारा संघर्ष चलता है तो कोई भी मंजिल जीती जा सकती है
मंजिल कैसे पाये
(How to Achieve Your Goals)
जब मन में सच्ची भावना के साथ हमारा संघर्ष चलता है तो कोई भी मंजिल जीती जा सकती है लेकिन हमें लगना होगा,जान छिड़कना होगा फिर देखिये मंजिल पाना कितना आसान है.सोंच जिसने जीतने का बनाया,वह हारा नहीं बल्कि एक महान उपलब्धि हासिल की.कुछ लोगों में यह धारणा बन जाती है कि हम जीतेंगें ही नहीं कौन मैदान में उतरे.इस सोंच के साथ वे पहले ही अखाड़ा में उतरने से पहले धराशायी हो जाते हैं.मंजिल ऐसे लोगों से दूर हो जाती है जिनमें नकारात्मकता भर जाती है.हमें अपने मन रूपी गुब्बारे में एक विश्वास की हवा को भरने की जरूरत है.जब ऐसी हवा भर जायेगी तो हमारी उड़ान आसमां तक होगी और हमारी मंजिल बहुत करीब होगी तब हमें किसी की जरूरत नहीं होगी और एक ऐसी मिशाल कायम करेंगें जिसका महत्व जीवन की महान उपलब्धि बन जायेगी.मंजिल पाने के लिये हमें एक खूबसूरत पल बनाना होगा.एक विशाल समृध्दशाली भावना को लेना होगा.तनाव से मुक्त होना होगा.तब कोई शक्ति आपको पराजित नहीं कर सकती है और एक ईश्वरीय शक्ति का समावेश आपके मन मस्तिष्क में पनपने लगेगी जो वीर पुरूष की भाँति मैदानी जंग में लगा रहेगा.वह इतना अपने कर्मपथ पर तल्लीन हो जायेगा कि वह स्वयं को आत्मकेन्द्रित कर लेगा और बिना मंजिल प्राप्ति किये लौटेगा नहीं.जब सच्ची भावना का आगमन होता है तो एक महान विजेता बन कर वह संघर्षशील युवक आगे निकल जाता है.यह सच्ची जीत है और मंजिल पाने का सच्चा अधिकारी होगा वह.कर्मफल की चिन्ता किये वगैर लग जाइये,हताशा व निराशा कोने में रख दीजिये.विश्वास की बात लेकर लग जाइये.हिम्मत मत हारिये.हिम्मत हारा हुआ अगर एक बार पुनः विश्वास को लेकर अपने मंजिल की ओर बढ़ता है तो खुद को एक मुक्कमल स्थान बना लेता है.
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वह व्यक्ति कभी नहीं मंजिल पा सकता है जिसमें कार्य के प्रति उदासीनता है.कोई ललक ही नहीं है.जिज्ञासा मर चुकी है.उत्साह खत्म हो गया है.इधर-उधर की बातों में मन लगाता हो.फालतू बातें करता हो.लोगों से नफरत करता हो या समाज में नफरत की भावना फैलाता हो.दया,करूणा,मानवीयता का कोई स्थान न हो तो वहां मंजिल नहीं प्राप्त की जा सकती है.नकारात्मकता सदैव घर किये रहे.मानसिक रूप से कमजोर बना रहे तो वहाँ की सोंच में मंजिल के प्रति उदासीनता बनी रहती है.आलसी मन वाला कभी भी मंजिल के करीब नहीं जाता है.वह सदैव मंजिल से दूर जाने के बारे में सोंचता रहता है.तरह-तरह की बातें करता है.खटिया पर लेटा मिलेगा.दो चार दोश्तों को लेकर गप करता मिलेगा या चुगली करता मिलेगा या अपनी तारीफ का पूल बाँधता मिल जायेगा.लम्बी-लम्बी डींग मारता मिल जायेगा.यह कहानी है उन असफल लोंगों की जिनकी चाहत मंजिल पाने से लेना देना कुछ नहीं है.ऐसा व्यक्ति स्वयं को धोखा देता ही है और उसके साथ रहने वाले भी धोखा के सिवा कुछ नहीं पाते हैं.हमें ऐसी प्रवृत्ति या ऐसे लोगों से बचकर रहना चाहिये और मंजिल कैसे पाना है उसके लिये जुगत लगाते रहना चाहिये.
मंजिल मिलने का कोई समय सीमा नहीं है.जल्दी भी मिल सकती है देर में भी.वह आपके प्रयास पर निर्भर करता है.आपका प्रयास यदि सहीं है तो अाप मंजिल को जल्दी प्राप्त कर लेगें.यदि कहीं त्रुटि है तो आपको सफलता मिलने में कठिनाई हो सकती है.जब आप सोंच रहे हैं कि हमें मंजिल प्राप्त करना है तो लग जाइये उस मंजिल को पाने में.जैसे डूबते व्यक्ति को पहली जरूरत साँस की होती है वह साँस प्राप्त करने के लिये पूरी ताकत लगा देता है वैसे मंजिल पाने के लिये हम सबको छटपटाहट होनी चाहिये.अगर आप मंजिल पाने के लिये उतावले हैं तो फिर देखिये कितनी नजदीक होगी सफलता.धैर्य बनाकर कार्य करते जायेगें तो एक मिशाल जरूर बन जायेगी...
यह रचना जयचंद प्रजापति कक्कू जी द्वारा लिखी गयी है . आप कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं . संपर्क सूत्र - कवि जयचन्द प्रजापति 'कक्कू' जैतापुर,हंडिया,इलाहाबाद ,मो.07880438226 . ब्लॉग..kavitapraja.blogspot.com
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