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बहू की विदा Bahu Ki Vida
बहू की विदा नामक एकांकी विनोद रस्तोगी जी द्वारा लिखी गयी है . प्रस्तुत एकांकी में एक्कंकिकार ने समाज में व्याप्त दहेज़ की समस्या का सजीव चित्रण किया है .बहू की विदा हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण एकांकी है। यह दहेज प्रथा की कुप्रथा पर एक शक्तिशाली व्यंग्य है, और यह स्त्री-पुरुष संबंधों, पारिवारिक मूल्यों और सामाजिक रीति-रिवाजों पर भी सवाल उठाता है। रस्तोगी का लेखन तीखा और प्रभावशाली है, और उनके पात्र सजीव और विश्वसनीय हैं। यह एकांकी आज भी प्रासंगिक है और सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ाई में प्रेरणा का स्रोत हो सकता है।
बहू की विदा एकांकी का सारांश
बहू की विदा एकांकी भावना-प्रधान सामाजिक एकांकी है। इस एकांकी में दहेज समस्या को उठाया गया है एवं बेटी और बहू में अन्तर समझने वालों पर तीव्र व्यंग्य किया गया है। जीवनलाल की बेटी भी किसी की बहू है, उसके प्रति भी उसके ससुराल वाले वैसा ही बर्ताव करते हैं जैसा जीवनलाल अपनी बहू के प्रति करते हैं, तब वे ठीक रास्ते पर आ जाते हैं।
प्रमोद कमला का भाई है जिसकी बहन का विवाह जीवनलाल के पुत्र रमेश के साथ हुआ है। जब प्रमोद बहन की ससुराल पहुँचता है तो जीवनलाल से उसकी विदा के लिए कहता है, क्योंकि पहले सावन पर बहन का मायके होना जरूरी है। जीवनलाल 5 हजार रुपए दहेज के रूप में माँगते हैं और कहते हैं कि कम दहेज देकर तुमने मेरे हृदय में जो घाव किया है उसका मरहम ये रुपए ही हैं। यह मरहम लेकर आओगे तभी विदा होगी। इस प्रकार जीवनलाल प्रमोद का अपमान करते हैं। जीवनलाल यद्यपि सभ्य एवं उच्च वर्ग के व्यक्ति हैं फिर भी लोभी होने के कारण निम्न कोटि के स्वभाव के हो गए हैं। प्रमोद अपमान से तिलमिलाकर अन्दर ही अन्दर घुटकर रह जाता है।
प्रमोद घर वापस लौटने से पूर्व अपनी बहन कमला से मिलने की इजाजत माँगता है। जीवनलाल अनुमति दे देते हैं। बहन से मिलकर प्रमोद उसे बताता है कि वह घर जाकर पुन: लौटकर आएगा और अपना मकान बेचकर जीवनलाल के घाव पर मरहम लगाएगा। कमला इस पर उसे अपने सुहाग सुख की सौगन्ध देकर कहती है कि भैया घर मत बेचना। मैं सावन में घर नहीं आऊँगी। यही ठीक हूँ। प्रमोद कहता है कि पहले सावन में यह कैसे हो सकता है। माँ को कितना दुःख होगा । कमला अपनी सास राजेश्वरी की प्रशंसा करती है और ससुर साहब को जिद्दी बताती है। प्रमोद सास के प्यार को भी दिखावा बता देता है जिसे उसकी सास सुन लेती है। वह पूछती है कि भाई-बहन में क्या बातें हो रही हैं ?
राजेश्वरी कमला की संवेदनशील सास है। वह भाई बहन की बातों को सुन लेती है। वह अत्यधिक द्रवित होकर प्रमोद से कहती है कि वह प्रमोद को रुपए दे देगी। प्रमोद उन रुपयों को जीवनलाल के हवाले कर अपनी बहन को ले जा सकता है।
जीवनलाल का बेटा रमेश जो कमला का पति भी है अपनी बहन गौरी को लेने के लिए उसकी ससुराल गया है। वह गौरी को अपने साथ लाए बिना लौट आता है। वह बताता है कि गौरी के ससुराल वालों ने और दहेज की माँग की है, वे गौरी को तभी भेजेंगे जब उनकी माँग पूरी हो जाएगी। इस पर जीवनलाल आश्चर्य से भर जाते हैं और गौरी के ससुराल वालों को उल्टा-सीधा कहने लगते हैं।
जब राजेश्वरी कहती है कि आप भी तो प्रमोद के साथ उसी प्रकार का व्यवहार कर रहे हैं जो गौरी के ससुराल वालों ने रमेश के साथ किया है। इस पर जीवनलाल बहू और बेटी में भेद करते हुए कहते हैं कि बहू और बेटी बराबर कैसे हो सकती हैं, बहू बहू है और बेटी बेटी। तब राजेश्वरी उनसे कहती हैं कि जो व्यवहार तुम दूसरों से अपनी बेटी के लिए चाहते हो वही व्यवहार दूसरे की बेटी के साथ भी करो।
जब जीवनलाल की बेटी के साथ वह व्यवहार हुआ जो जीवनलाल ने अपनी के साथ किया था तब जीवनलाल की आँखें खुल गयीं। वह राजेश्वरी के समझाने पर सही रास्ते पर आते हैं और बहू को विदा की अनुमति देते हुए कहते हैं कि मेरी चोट का इलाज बेटी के ससुराल वालों ने दूसरी चोट से कर दिया है। वह राजेश्वरी को बहू की विदा की तैयारी करने के लिए कहते हैं। तभी एकांकी पूर्ण हो जाता है।
बहू की विदा एकांकी की समीक्षा
बहू की विदा एकांकी एक सामाजिक एकांकी है। इसमें दहेज प्रथा की आलोचना की गई है। इस एकांकी में यह भी बताया गया है कि बहू और बेटी में किसी प्रकार का अन्तर नहीं करना चाहिए। इस एकांकी का कथानक संक्षिप्त, रोचक, सुसम्बद्ध एवं उद्देश्यपूर्ण है। इसके कथानक में प्रारम्भ, उत्कर्ष एवं समापन साफ दिखाई देता है। कथानक में रोचकता विद्यमान है। प्रमोद अपनी बहन कमला को उसके ससुराल से विदा कराने जाता है किन्तु कमला के ससुर उसे कम दहेज मिलने के कारण प्रमोद के साथ भेजते नहीं हैं। कमला के ससुर जीवनलाल का बेटा भी अपनी बहन को विदा करने के लिए गया हुआ है। जीवनलाल की बेटी के ससुराल वाले उसे नहीं भेजते हैं। तब जीवनलाल को अपनी त्रुटि का असाहस होता है। वह अपनी बहू कमला को उसके भाई प्रमोद के साथ भेज देते हैं। एकांकी का कथानक उद्देश्यपूर्ण एवं रोचक है।
'बहू की विदा' एकांकी में पात्रों की संख्या सीमित है। कुल पाँच पात्र इस एकांकी में हैं— जीवनलाल, उनकी पत्नी राजेश्वरी, उनका पुत्र रमेश, रमेश की पत्नी कमला और कमला का भाई प्रमोद । इनके अतिरिक्त गौरी का उल्लेख मात्र है। वह जीवनलाल की बेटी है। जीवनलाल एक धनी व्यक्ति हैं वह दहेज लोभी हैं। उन्हें अपनी सम्पत्ति का अहंकार है । वह बहू-बेटी में अन्तर करते हैं। दूसरी ओर उनकी पत्नी राजेश्वरी देवी एक संवेदनशील एवं नेक स्वभाव की महिला हैं। वह अपनी बहू कमला की प्रशंसा करती हैं। वह प्रमोद से कहती हैं कि वह उनसे पाँच हजार रुपये लेकर जीवनलाल की दहेज के लिए दे दे। राजेश्वरी संवेदनशील हैं वह जीवनलाल को बहू और बेटी में अन्तर न करने की बात कहती हैं। जीवनलाल के हृदय परिवर्तन में उनका योगदान भी महत्वपूर्ण है।
प्रमोद एक भाई के रूप में संवेदनशील है। वह कमला से स्नेह करता है और उसकी विदा के लिए अपना घर बेचकर पाँच हजार रुपये देने का प्रण करता है। प्रमोद स्वाभिमानी भी है। वह जीवनलाल द्वारा अपमानित किए जाने पर दुःखी हो जाता है।
चरित्रांकन की दृष्टि से बहू की विदा एकांकी उत्कृष्ट है।एकांकी के संवाद सरल, संक्षिप्त एवं सहज हैं। चरित्रांकन करने में संवादों की भूमिका महत्वपूर्ण है। बहू की विदा एकांकी में वर्तमान समय की समस्या दहेज-प्रथा का चित्रण है। वर्तमान देशकाल का चित्रण सफलतापूर्वक किया गया है। एकांकी की भाषा सरल, सहज, प्रवाहपूर्ण एवं सुस्पष्ट है। इसमें क्लिष्टता नहीं है। मुहावरों का सफल प्रयोग भी एकांकी में हुआ है। एकांकी की शैली यथार्थवादी है। भाषा में सूक्तियों का प्रयोग भाषा की अभिव्यक्ति क्षमता बढ़ा देता है।
साहित्यकार की रचना उद्देश्यपूर्ण होती है। 'बहू की विदा' एकांकी सर्वथा उद्देश्यपूर्ण है। इसमें लेखक ने समाज में व्याप्त दहेज प्रथा एवं धन लोलुपता की निन्दा की है तथा यह संदेश दिया है कि हमें बहू और बेटी में कोई फर्क नहीं करना चाहिए तथा दूसरों के साथ वह व्यवहार कदापि नहीं करना चाहिए जो हम अपने साथ किया जाना पसन्द नहीं करते हैं।
'बहू की विदा' एकांकी का कथानक संक्षिप्त है, दृश्य केवल एक है। स्थान, कार्य एवं काल की एकता का निर्वाह किया गया है। भाषा सरल, सहज एवं पात्रानुकूल है, संवाद छोटे-छोटे हैं तथा रंग-संकेत उसके प्रारम्भ में दिए गए हैं। रंगमंच एवं अभिनेयता की दृष्टि से एकांकी सफल एकांकी है।एकांकी कला के तत्वों के आधार पर बहू की विदा एकांकी पूर्णतः सफल एकांकी है।
एकांकीकार विनोद रस्तोगी का जीवन परिचय
विनोद रस्तोगी का जन्म सन् 1923 ई. में उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले के शमसाबाद नामक गाँव में हुआ। रस्तोगी जी की आरम्भिक शिक्षा फर्रुखाबाद में तथा स्नातक स्तर की शिक्षा कानपुर में हुई। हिन्दी विषय में एम. ए. के बाद रस्तोगी जी आकाशवाणी के इलाहाबाद केन्द्र में नाट्य निर्देशक के पद पर कार्य करने लगे। रस्तोगी जी की अनेक रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं।
सामाजिक स्तर पर चारित्रिक पतन इतना अधिक हो चुका है कि उसे उठाने की पुनः प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता अनिवार्य है। रस्तोगी जी के नाटक और एकांकी इसी आवश्यकता को रेखांकित करते हैं। उनके एकांकियों में बौद्धिकता की रेखाएँ प्रखर हैं। रस्तोगी जी के एकांकी समस्या प्रधान हैं। वे दैनिक जीवन के सवालों को बहुत गम्भीरता से उठाते हैं और कभी-कभी उनका समाधान भी देते हैं। उनकी जीवन दृष्टि प्रगतिशील और मानवीय है। रूढ़ियों और विसंगतियों पर रस्तोगी जी कठोर प्रहार करते हैं। उनके एकांकियों के विषय बहुत व्यापक हैं। दहेज समस्या से लेकर विधवा विवाह, नारी स्वतंत्रता और छात्र समस्या तक उनके एकांकियों में मिल जाएंगे। उनके कुछ एकांकी रंगमंच को ध्यान में रखकर और कुछ रेडियो के लिए रचित हैं। 'अँधेरा', 'बहू की विदा', 'फैसला', 'चट्टान' की परतें, आदि रस्तोगी जी की उल्लेखनीय एकांकी हैं। हिन्दी साहित्य के इतिहास में विनोद रस्तोगी का अप्रतिम स्थान है। अपने उद्देश्यपरक साहित्य के माध्यम से उन्होंने हिन्दी साहित्य की अनुपम सेवा की है।
बहू की विदा एकांकी शीर्षक की सार्थकता
बहू की विदा नामक एकांकी विनोद रस्तोगी जी द्वारा लिखी गयी एक प्रसिद्ध रचना है. यह एक पारिवारिक व सामाजिक पृष्ठभूमि पर लिखी गयी है . इस एकांकी के माध्यम से दहेज़ प्रथा की बुराई का चित्रण किया गया है . एकांकी के केंद्र में बहु की विदाई है जिसे जीवनलाल कम दहेज़ मिलने के कारण बहू की विदाई नहीं करर्ते हैं .कमला के घर वाले ने अपनी सामर्थ्य के अनुसार दहेज़ दिया दिया ,लेकिन वे जीवनलाल को खुश नहीं कर पाए .कमला का भाई प्रमोद अपनी बहन पर जीवनलाल के आगे उनकी चलती है .जीवनलाल के बेटी की भी शादी हो चुकि है ,उनका पुत्र रमेश भी अपनी बहन को विदा कराने गया है . जब रमेश अपनी बहन को विदा नहीं करा पाया ,तब जीवनलाल की आँखें खुलती हैं .उन्हें अपनी गलती का एहसास होता है .वे कमला की विदाई के लिए तैयार हो जाते हैं .
अतः बहू की विदा से ही एकांकी का आरंभ एवं अंत होता है ,इसीलिए यह शीर्षक सार्थक एवं उचित है . किसी भी एकांकी का शीर्षक सरल, संक्षिप्त, सारगर्भित एवं कथानक से सुसम्बद्ध होना चाहिए। वह कुतूहल पैदा करने वाला भी होना चाहिए। 'बहू की विदा' एकांकी का शीर्षक इन सभी विशेषताओं से युक्त है। पूरा दहेज न पाने के कारण एक प्रसिद्ध व्यापारी जीवनलाल अपनी पुत्रवधू को विदा नहीं करते हैं। इसी घटना के आधार पर एकांकी का ताना बाना बुना गया है। एकांकी का शीर्षक सार्थक एवं उपयुक्त है। वह मूल-संवेदना को संकेतित करता है।
रस्तोगी जी ने एकांकी में दो बहुओं की विदा की समस्या को प्रस्तुत किया है। इस दृष्टि से कथावस्तु बहू की विदा घटना पर आधारित है। अतः यह शीर्षक पूर्णत: सार्थक है।
बहू की विदा एकांकी में चरित्र चित्रण
बहू की विदा हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण एकांकी है। यह न केवल दहेज प्रथा की कुप्रथा पर प्रकाश डालता है, बल्कि स्त्री-पुरुष संबंधों, पारिवारिक मूल्यों और सामाजिक रीति-रिवाजों पर भी सवाल उठाता है। रस्तोगी का व्यंग्य तीखा और प्रभावशाली है, और उनके पात्र सजीव और विश्वसनीय हैं।एकांकी के प्रमुख पात्रों का चरित्र चित्रण निम्नलिखित है -
जीवनलाल का चरित्र चित्रण
जीवनलाल बहू की विदा नामक एकांकी के प्रमुख पात्र बन कर उभरते हैं . उनकी उम्र लगभग ५० वर्ष है . वह एक धनी व्यापारी है .वह परिवार के मुखिया है .उनके कड़क स्वभाव के कारण घर में सभी उनसे डरते हैं .उन्हें हर काम में अपनी मनमानी करने की आदत है .जीवनलाल एक जिद्दी ,हठी ,संवेदनहीन .लालची ,स्वार्थी ,घमंडी तथा निर्मम व्यक्ति है . जीवनलाल धन का बहुत लालची है। वह 5 हजार रुपए लिए बिना बहू को विदा करने के लिए तैयार नहीं होता है। उसे अपने धनवान होने का बहुत अभिमान है। वह प्रमोद से कहता है कि झोंपड़ी में रहकर महल से नाता क्यों जोड़ा ? जीवनलाल हठी व स्वार्थी है वह रुपए लिए बिना बहू को विदा नहीं करना चाहता । जीवनलाल कठोर हृदय है। वह माँ की ममता और भाई के प्यार को धन के सम्मुख तुच्छ समझता है। वह प्रमोद से 5 हजार रुपए ही नहीं माँगता बल्कि उसका अपमान भी करता है। जीवनलाल प्रमोद से कमला को लिए बिना ही घर वापस लौट जाने को कहता है, इससे वह अपनी अव्यावहारिकता और प्रमोद का अपमान करके अशिष्टता का परिचय देता है। जीवनलाल सम्बन्धों के प्रति अनुदार है। धन के सम्मुख सम्बन्धों का गौरव उसके लिए तुच्छ है। वह अपनी बहू और बेटी में भी भेद करता है। वह बेटी को अपना तथा बहू को पराया मानता है। सभी बुराइयों के साथ-साथ उसमें गतिशीलता भी है। बेटी की विदा न होने पर वह दुःखी हो जाता है। राजेश्वरी के कहने पर उसका हृदय परिवर्तित हो जाता है और वह बहू को विदा कर देता है।
कमला का चरित्र चित्रण
कमला जीवनलाल की पुत्रवधू व प्रमोद की बहन है . उसकी उम्र उन्नीस बर्ष है . उसका विवाह अभी कुछ महीने पहले ही हुआ है . जीवनलाल दहेज़ की कमी को लेकर उसे पहले सावन पर मायके भेजने से इनकार कर देते हैं . उनका भाई उसको लेने आता है लेकिन जीवनलाल पाँच हज़ार की माँग करते हैं तथा कमला को मायके भेजने से इनकार कर देते हैं पर अंत में जीवनलाल का ह्रदय परिवर्तन हो जाने पर वह सहर्ष कमला को भेजने के लिए तैयार हो जाते हैं . अतः कमला एक सुन्दर ,सुशील,विनम्र ,धैर्यवान और समझदार विवाहिता युवती है . कमला अत्यन्त व्यवहारकुशल है। वह अपनी सास राजेश्वरी देवी तथा ननद गौरी की प्रशंसा करती है और जीवनलाल को भी बुरा भला नहीं कहती। वह राजेश्वरी द्वारा चाबी सौंप देने पर भी तिजोरी से रुपए नहीं निकालती। वस्तुतः कमला एक विवेकशील, सहनशील और व्यवहारकुशल बहू है।
बहू की विदा एकांकी में राजेश्वरी का चरित्र चित्रण
राजेश्वरी एकांकी की सम्पूर्ण संवेदना का केन्द्र बिन्दु हैं वे जीवनलाल की पत्नी, कमला की सास एवं रमेश की माँ हैं। वे एक ममतामयी माँ हैं जो कमला की विदा के लिए अपनी तिजोरी तक से रुपए देने को तैयार हो जाती हैं। जब वे देखती हैं कि उनके पति दहेज के 5 हजार रुपए बिना कमला को पहले सावन में भी भेजने के लिए तैयार नहीं हैं तो वे अपनी तिजोरी से रुपए देना चाहती हैं। राजेश्वरी निर्लोभ माँ हैं। उन्हें नोट कागज के रंग-बिरंगे टुकड़े मात्र लगते हैं। उनका स्वभाव सामान्य नारी स्वभाव से उच्च भावभूमि का है। उनके विचारों में दार्शनिकता झलकती है, वह तर्कपूर्ण और सत्य बात कहने में संकोच नहीं करती हैं। राजेश्वरी दहेज प्रथा के विरुद्ध हैं। राजेश्वरी मानवीय संवेदना से युक्त हैं। वह प्रमोद और कमला के दुःख से दुःखी हो जाती हैं। एकांकी की सबसे संवेदनशील पात्र राजेश्वरी ही हैं।
प्रमोद का चरित्र चित्रण
प्रमोद अपनी बहन को प्रेम करने वाला कर्त्तव्यनिष्ठ भाई था । जब जीवनलाल कम दहेज देने के लिए उसे अपमानित करते हैं तब वह उन्हें अपनी माँ की ममता का हवाला देकर अपनी बहन को विदा करने के लिए कहता है। प्रमोद अपनी बहन की प्रसन्नता के लिए कुछ भी करने को तत्पर है। वह कमला से कहता है कि मैं अपना घर बेच दूँगा और पाँच हजार का इन्तजाम कर तुम्हें (कमला को) ले जाऊँगा । प्रमोद मर्यादित एवं बहन को प्यार करने वाला भाई हैं।
बहू की विदा एकांकी का उद्देश्य / संदेश
बहू ही विदा एकांकी दहेज़ प्रथा की बुराईयों को दर्शाती एकांकी है .इस एकांकी के माध्यम से लेखक ने दहेज़ प्रथा का विरोध किया है . एकांकी में प्रमुख कथा बहू की विदाई है ,जिसमे ससुर जीवनलाल अपनी बहु की विदाई के लिए पाँच हज़ार की माँग करते हैं ,जिसे बहु के भाई प्रमोद द्वारा नहीं दे पाने के कारण वह विदा करने के इनकार कर देते हैं . अंत में स्वयं उनकी बेटी जब दहेज़ के कारण ही विदा करने से इनकार कर दी जाती है तो जीवनलाल आखें खुल जाती हैं ,वह कहते हैं की चाहे जीवन भर की कमाई दे दो ,पर लड़की वालों की माँग पूरी नहीं होती है .अतः उनका ह्रदय परिवर्तन हो जाता है . लेखक ने दहेज़ प्रथा को समाज के लिए अभिशाप माना है .लेखक का यह भी मानना है कि बहु और बेटी को समान मानना चाहिए,तभी पारिवारिक गृहस्थी शांतिपूर्ण व सुखदायी होगी .अतः एकांकीकार विनोद रस्तोगी अपनी एकांकी बहू की विदाई के माध्यम से दहेज़ प्रथा की समस्या के प्रति पाठकों को जागरूक किया है .
साहित्यकार मात्र मनोरंजन नहीं करता अपितु वह अपनी रचना के माध्यम से कोई संदेश अवश्य देता है। इसी संदेश को रचना का उद्देश्य कहा जाता है। बहू की विदा एकांकी के द्वारा लेखक ने समाज में व्याप्त दहेज प्रथा एवं धन लोलुपता की निन्दा की है तथा यह संदेश दिया है कि हमें बहू और बेटी में कोई फर्क नहीं करना चाहिए तथा दूसरों के साथ वह व्यवहार कदापि नहीं करना चाहिए जो हम अपने साथ किया जाना पसन्द नहीं करते। दहेज की समस्या को मौलिक एवं कलात्मक ढंग से प्रस्तुत करने में रस्तोगी जी को पूर्णतः सफलता मिली है।
यह एकांकी दहेज प्रथा जैसी सामाजिक बुराई पर कुठाराघात करता है। दहेज हमारे समाज का कोढ़ है। बेटे के विवाह में दहेज लेने वालों को यह संदेश दिया गया है कि आप यह न भूलें कि आपकी बेटी भी है। अगर आप दहेज के लिए बहू को प्रताड़ित करेंगे तो आपकी बेटी के ससुराल वाले भी ऐसा कर सकते हैं। दहेज लोभी व्यक्तियों का वही हाल होता है जो जीवनलाल का हुआ। दूसरे की बेटी को भी उतना ही स्नेह मिलना चाहिए जितने स्नेह की कामना स्वयं की बेटी के लिए की जाती है।
परिवार में सभी सदस्यों की समान भूमिका होती है तथ्य की समीक्षा | Hindi Project Work
समाज में परिवार को सभी संस्थानों का मूल और महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। परिवार समाज का एक मूलभूत इकाई होता है जिसमें पिता, माता, बच्चे और बड़े परिवार के सदस्य होते हैं। परिवार संबंधों के नेटवर्क की तरह काम करता है और सदस्यों के बीच सच्चे प्रेम, सम्मान, और सहयोग की भावना को विकसित करता है। एक समान भूमिका वाले परिवार में, सभी सदस्यों को समानता का अधिकार होता है। समानता का अधिकार होना यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी सदस्य को न्यायपूर्वक सुना जाता है और उनके विचारों, रुचियों और अभिरुचियों का भी सम्मान किया जाता है। एक समान भूमिका वाले परिवार में, स्त्री और पुरुष सदस्यों के बीच कोई भेदभाव नहीं होता है। यहां परिवार के सदस्यों को समान शिक्षा, समान संस्कार, और समान अधिकार मिलते हैं। समाज में स्त्रियों को भी पुरुषों के साथ समानता का अधिकार होना चाहिए जिससे उन्हें भी समाज में समान दर्जे और सम्मान का अधिकार मिले।
दहेज़ प्रथा की समस्या
बहू की विदा, विनोद रस्तोगी द्वारा लिखा गया एक प्रभावी एवं महत्त्वपूर्ण एकांकी है। विनोद रस्तोगी ने अपनी सुन्दर शैली में समाज की एक अति गम्भीर समस्या को सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है। समाज को चलाने वाला मध्यमवर्गीय वर्ग आज बहुत सी समस्याओं में स्वयं को उलझा हुआ पाता है। 'बहू की विदा’ दहेज प्रथा को लेकर लिखा गया ऐसा ही एकांकी है। सदियों से पीड़ित और प्रताड़ित स्त्री की दशा अब भी शोचनीय बनी हुई है। दहेज रूपी दानव आज भी असंख्य ललनाओं को अपना ग्रास बना रहा है ।
बहू की विदा, एकांकी ऐसे ही एक सत्य को उभारने का एक सफल प्रयास है जो बदलते हुए मूल्यों के साथ स्त्री की बदली हुई मानसिकता को भी दर्शाता है। प्रमोद अपनी बहन कमला को विवाह के बाद पहले सावन पर घर ले जाने के लिए आया है परन्तु उसके ससुर जीवनलाल जी उसे भेजने को तैयार नहीं हैं क्योंकि वह पर्याप्त दहेज नहीं लाई है। जीवनलाल जी और दहेज की माँग का संकेत देते हैं। प्रमोद की स्थिति करुणाजनक और दयनीय है। एकांकी के संवाद बिल्कुल सटीक और सारगर्भित हैं जो वरपक्ष के प्रभुत्व को दिखाते हैं ।
वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिक
परिस्थितियाँ किस प्रकार बदलती हैं यह तब पता चलता है जब जीवनलाल की अपनी पुत्री गौरी को भी उसकी ससुराल से विदा नहीं किया जाता क्योंकि उनके अनुसार वह भी पर्याप्त दहेज नहीं लाई थी। वर्तमान संदर्भ में यह एकांकी समय की माँग को लेकर लिखा गया एक अनूठा प्रयास है। कमला की सास का अपनी बहू के प्रति सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार सास के प्रति जनसाधारण की धारणा को बदल देता है । प्रत्येक पात्र अपनी अभिव्यक्ति को प्रभावी बनाता है। सास में माँ का हृदय भी है। सास के व्यवहार से यह स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है । बेटी के जन्म के साथ ही माता-पिता उसके सुखी भविष्य के लिए धन एकत्रित करना प्रारम्भ कर देते हैं क्योंकि वे अपनी पुत्री को किसी भी प्रकार दुःखी नहीं देखना चाहते हैं। जहाँ माता-पिता दहेज नहीं जुटा पाते वहाँ बेटियाँ प्रताड़ित की जाती हैं और यातनाएँ सहती हैं। प्रस्तुत एकांकी उन लोगों पर भी कटाक्ष है जो पराई बेटी पर दहेज न लाने पर अत्याचार करते हैं परन्तु जब इनकी बेटी विवाहोपरान्त दूसरे घर (ससुराल जाती है तो यही लोग अपेक्षा करते हैं कि उनकी बेटी से दहेज की माँग न की जाय। यदि बेटे और बेटी वाले दोनों ही पक्ष एक दूसरे की पीड़ा को समझेंगे तो दहेज़ रूपी समस्या का निवारण हो सकेगा .
इस प्रकार यदि हम उपरोक्त बातों का ध्यान रखेंगे तो परिवार में उन्नति व खुशहाली बनी रहेगी ।
बहू की विदा प्रश्न उत्तर
उ . जीवनलाल अपने बेटे की शादी में अधिक दहेज़ पाने की कामना करते थे ,कितुं उन्हें कम दहेज़ मिला इससे जीवनलाल को बहुत ठेस लगी . जीवनलाल अपने बेटे की शादी में कम दहेज़ मिलने से नाराज़ भी थे .
प्र. प्रमोद कमला को विदा करने क्यों आया था ?
उ . कमला का विवाह रमेश से इसी वर्ष हुआ था . ऐसी वहाँ परंपरा थी की बेटी के विवाह के बाद उसका पहला सावन मायके में ही हो . इसीकारण प्रमोद अपनी बहन कमला को उसकी ससुराल से विदा कराने आया था .
प्र . बहु को विदा करने के लिए जीवनलाल ने क्या शर्त रखी थी और क्यों ?
उ . बहु को विदा कराने के लिए जीवनलाल ने कमला के भाई प्रमोद के सामने यह शर्त रखी की जब वह उन्हें पाँच हज़ार रुपये दे दे तो वह कमला को उसके साथ जाने देंगे ,
प्र. राजेश्वरी देवी कौन है ? उनका स्वभाव कैसा है ?
उ. राजेश्वरी देवी जीवनलाल की पत्नी है ,कमला की सास एवं एवं रमेश की माँ है . वह एक संवेदनशील महिला हैं . वह प्रमोद की समस्या पर विचार पर उनसे पैसे लेकर जीवनलाल को देने के लिए कहती है . वह कमला को माँ के समान व्यवहार करती हैं . वे अपने पति को भी समझाती रहती है कि उन्हें किसी प्रकार का लोभ नहीं करना चाहिए और अपनी बहु कमला को अपनी बेटी गौरी के समान समझना चाहिए . इस प्रकार वह एक समझदार व्यवहार कुशल , ममतामयी तथा उदार ह्रदय महिला हैं .
प्र. बेटी और बहू के सम्बन्ध में जीवनलाल के क्या विचार हैं ?
उ. जीवनलाल लोभी होने के साथ - साथ संवेदनहीन एवं संकीर्ण विचारों के भी है . वह बहू को बेटी के समान नहीं समझते . जीवनलाल बेटी को तो बहुत प्यार करते हैं , लेकिन अपनी बहु को पर्याप्त दहेज़ न मिलने के कारण मायके भेजने से मना कर देते हैं . बेटी के स्वागत के लिए वह मन लगा कर तैयारियाँ कर रहे हैं लेकिन अपनी ही बहु को मायके नहीं भेज रहे हैं . इस प्रकार जीवनलाल बेटी और बहू में अंतर करते हैं .
MCQ Questions with Answers Bahu Ki Vida
बहु विकल्पीय प्रश्न उत्तर
प्र. १. बहु की विदा एकांकी के लेखक है ?
a. विष्णु प्रभाकर
b. विनोद रस्तोगी
c. प्रेमचंद
d. वृन्दावनलाल वर्मा
उ. b. विनोद रस्तोगी
प्र. २. विनोद रस्तोगी का जन्म कहाँ हुआ था ?
a. फरुखाबाद
b. भोपाल
c. इंदौर
d. दिल्ली
उ.a. फरुखाबाद
प्र. ३. 'बहू की की विदा ' एकांकी में चित्रित मुख्य समस्या है ?
a. दहेज़ प्रभा
b. बाल मजदूरी
c. भ्रष्टाचार
d. विद्यालय प्रबंधन
उ. a. दहेज़ प्रभा
प्र. ४. एकांकी में पर्दा उठने पर जीवनलाल कहाँ खड़े दिखाई पड़ते हैं ?
a. दरवाजे पर
b. सोफे पर
c. मैदान में
d. खिड़की के पास
उ. d. खिड़की के पास
प्र. ५. जीवन लाल कौन है ?
a. एक दुकानदार
b. शिक्षक
c. एक प्रसिद्ध व्यापारी
d. अधिकारी
उ. c. एक प्रसिद्ध व्यापारी
प्र. ६. प्रमोद किसे विदा कराने गया था ?
a. अपनी पत्नी को
b. राजेश्वरी को
c. अपनी बहन कमला को
d. उपरोक्त में से कोई नहीं
उ. c. अपनी बहन कमला को
प्र. ७. रमेश कौन है ?
a. प्रमोद का मित्र
b. कमला का भाई
c. जीवन लाल का बेटा
d. घर का नौकर
उ. c. जीवन लाल का बेटा
प्र. 8. एकांकी में 'मरहम' शब्द का प्रयोग किस सन्दर्भ में किया गया है ?
a. चोट की दवा के लिए
b. दर्द के इलाज के लिए
c. दहेज़ के रुपये के लिए
d. मानसिक शान्ति के लिए
उ. c. दहेज़ के रुपये के लिए
प्र. ९. कमला कौन है ?
a. प्रमोद की बहन
b. जीवनलाल की बहू
c. रमेश की पत्नी
d. उपरोक्त सभी
उ. d. उपरोक्त सभी
प्र. १०. रमेश किसे विदा कराने गया था ?
a. अपनी पत्नी को
b. अपनी भाभी को
c. अपनी बहन गौरी को
d. उपरोक्त में कोई नहीं
उ. c. अपनी बहन गौरी को
प्र. 11. 'पानी से पत्थर नहीं पिघल सकता है ' शब्द का प्रयोग किसके लिए किया गया है ?
a. पत्थर के लिए
b. जीवनलाल के लिए
c. रमेश के लिए
d. कमला के लिए
उ. b. जीवनलाल के लिए
प्र. १२. राजेश्वरी कौन है ?
a. रमेश की माँ
b. कमला की सास
c. जीवनलाल की पत्नी
d. उपरोक्त सभी
उ. d. उपरोक्त सभी
प्र. १३. ' अब भी आँखे नहीं खुली ?' शब्द किसके लिए कहा गया है ?
a. जीवनलाल के लिए
b. कमला के लिए
c. प्रमोद के लिए
d.रमेश के लिए
उ. a. जीवनलाल के लिए
प्र. १४. ' तुम भी तो किसी की बेटी की विदा न करके अपमान कर रहे हो किसी का ." यह कथन किसने कहा ?
a. प्रमोद ने
b. राजेश्वरी ने
c. कमला ने
d. उपरोक्त में से कोई नहीं
उ. c. कमला ने
प्र. १५. एकांकी के अंत में जीवनलाल क्या फैसला लेते हैं ?
a. कमला को विदा करने का
b. दहेज़ की रकम लेने का
c. दहेज़ की रकम बढ़ा देने का
d. कमला को न विदा करने का
उ. a. कमला को विदा करने का
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bahut badhiya lekh.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा प्रयास पर अन्य एकांकियों के बारे में भी बताएं
जवाब देंहटाएंकदम कदम पर लड़ना सीखो ,नारी तू बढना सीखो |
जवाब देंहटाएंउत्तम जन संग रहना सीखो ,खलजनको गढ़ना सीखो||
सुजन संत सा चलना सीखो ,प्रकृति प्रेम को गहना सीखो |
प्रेमसत्य बंधन -बधना सीखो ,नीक नियम सम्हलना सीखो ||
bahut badiya
जवाब देंहटाएंआदरणीयA Karunan Ji आपने अपने उपरोक्त आलेख के माध्यम से समाज में व्यापक व्याप्त
जवाब देंहटाएंदहेज रूपी राक्षस के माध्यम से समाज में जनमानस को आईना दिखाने का कार्य किया। राजेश्वरी देवी माँ है।वह भी कभी बेटी थी उसे बेटी space-बहू के दर्द का भान है। नारी महान है। बधाई आपको!
Kya aapko मंमारी ka arth pata hai
जवाब देंहटाएंAap Google par search kar ligiye
हटाएंAap Google par search kar lijiye
हटाएंमन मर्ज़ी
जवाब देंहटाएंZindagi Ki feet poem of Vinod rastogi
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर तरीकें से प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं . धन्यवाद
जवाब देंहटाएंthank you
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