भेड़ें और भेड़िए श्री हतिशंकर परसाई जी द्वारा लिखी गयी प्रसिद्ध कहानी है . bhed aur bhediya ka saransh bhed aur bheriya kahani ka uddeshya bhed aur bhediya summary in english bhed aur bhediya sahitya sagar bhed aur bheriya story in english bher aur bhediya by harishankar parsai bhede aur bhediye summary
भेड़ें और भेड़िए Bhed Aur Bheriya
भेड़ें और भेड़िए श्री हरिशंकर परसाई जी द्वारा लिखी गयी प्रसिद्ध कहानी है . इन्होने व्यंगात्मक शैली में वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था का उपहास किया है ।कहानी के आरम्भ में वन के पशुओं को लगा कि अब वे प्रजातंत्र की शासन व्यवस्था संभाल सकते हैं ।उन्हें लगने लगा की उनका जीवन इतना विकसित हो गया है कि अब उन्हें लोकतंत्र की शासन व्यवस्था को अपना लेना चाहिए । जहाँ पर सभी नियम एवं कानून लागू होने चाहिए ।
भेड़ और भेड़िए कहानी का सारांश
एक बार वन के पशुओं को ऐसा लगा कि अब वे प्रजातंत्र की शासन व्यवस्था सँभाल सकते हैं। अब उन्हें लोकतंत्र की शासन व्यवस्था अपना लेनी चाहिए। सबने मिलकर यह तय किया कि चुनाव कराया जाए। जंगल में भेड़ों की संख्या बहुत अधिक थी। वे स्वभाव से निहायत ही नेक, ईमानदार, कोमल, दयालु और निर्दोष थीं। वे घास भी सोच समझकर खाती थी ।
चुनाव की बात सुनकर वे बड़ी उत्साहित थीं। दूसरी ओर जंगल में जो भेड़िए थे वे चुनाव को लेकर चिंतित थे उनकी संख्या कम थी। उन्हें यह लगता था कि बहुमत के आधार पर भेड़ों की सरकार बन गई तो उन्हें घास खाकर जीवन गुजारना पड़ेगा। एक बूढ़े सियार ने भेड़िए की चिंता का यह उपाय बताया कि रूप बदलकर वे चुनाव प्रचार करेंगे। उसने भेड़िए को संत का रूप दिया और तीन सियारों को विवान, विचारक, कवि, लेखक, नेता पत्रकार, धर्मगुरु का रूप-रंग दे दिया। भेड़ें सियार की बातों में आ गईं और उन्होंने अपना मत भेड़ियों को दे दिया ।
बहुमत पाने के बाद भेड़ियों ने भेड़ों की भलाई के लिए पहला कानून बनाया कि भेड़ियों को सवेरे नाश्ते के लिए भेड़ का एक मुलायम बच्चा, दोपहर के भोजन में एक पूरी भेड़ तथा शाम को स्वास्थ्य के ख्याल से आधी भेड़ दी जाए। इस प्रकार भेड़ों ने भक्षक को ही अपना रक्षक बनाकर अपना अहित कर लिया ।
भेड़ें और भेड़िए कहानी शीर्षक की सार्थकता
किसी भी कहानी का शीर्षक उसका सबसे महत्वपूर्ण अंग होता है .हम उसके सहारे कथा के विस्तार को जान पाते हैं . प्रस्तुत कहानी एक प्रतीकात्मक कहानी है जिसमें भेड़ों को जनता तथा सियार को भेड़ियों को चालक नेताओं का प्रतिक बना कर व्यंगात्मक शैली में प्रस्तुत किया गया है . इस कहानी में भी कहानी का मुख्य पात्र बूढ़ा सियार है जो 'भेड़' और 'भेड़िए' शीर्षक को सार्थकता प्रदान करता है। यहाँ भेड़ों का प्रतीकात्मक अर्थ आम जनता है जिन्हें निहायत नेक, कोमल, ईमानदार, दयालु और निर्दोष कहा गया है। भेड़ियों का प्रतीकात्मक अर्थ वे अत्याचारी और शोषक राजा हैं जो आम जनता पर अत्याचार करते हैं। ये भेड़िए उच्च-कोटि के बहरूपिए भी होते हैं जो अवसरवादी होने के कारण गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं। दूसरों से फरेब करते हैं।
इस कहानी में भी भेड़िए का ऐसा ही चरित्र दर्शाया गया है। संत के रूप में नाटक करते हुए इस भेड़िए की गर्दन तो अवश्य झुकी हुई है परंतु भेड़ों को देखकर उसके मुँह से लार टपकने लगती है। इस कहानी में बूढ़े सियार का तीन अन्य रंगे सियारों के साथ मिलकर भेड़िए की तारीफ़ में पुल बाँधना यह दर्शाता है कि आज भी तथाकथित चापलूसों के बल पर, अत्याचारी राजा बनावट का मुखौटा पहन लेते हैं। वे जो होते हैं वे दिखाते नहीं और जो दिखते हैं वे होते नहीं। इस कहानी में भी रंगे सियारों की सहायता से खतरनाक भेड़ियों का दबदबा वन में कायम रहता है। दुर्भाग्यवश भेड़िए को विजय दिलाने में रंगे सियारों के रूप में कवि, लेखक, पत्रकार, नेता और धर्मगुरू का सहयोग मिल जाता है। इस प्रकार सभी मिलकर निर्दोष भेड़ों को अपना शिकार बनाते हैं। इस कहानी के माध्यम से आधुनिक समाज पर करारा व्यंग्य किया गया है। इस दृष्टि से कहानी का शीर्षक उचित हैं।
भेड़ें और भेड़िये कहानी का उद्देश्य
भेड़ें और भेड़िये कहानी एक व्यंग्यात्मक और प्रतीकात्मक कहानी है। इसमें भेड़ें जनता का, सियार अवसरवादी, चापलूस, स्वार्थी लोगों का और भेड़िए चालाक नेताओं का प्रतीक हैं। इस कहानी के माध्यम से प्रजातंत्र में धोखेबाज, झूठे, ढोंगी तथा चालाक राजनेताओं की पोल खोलने का प्रयास किया गया है। वे किस प्रकार रंगें सियारों के माध्यम से चुनाव जीत जाते हैं और अपना स्वार्थ सिद्ध कर भोली-भाली जनता का शोषण करते हैं। आजकल के प्रजातंत्र का वास्तविक स्वरूप दिखाने का प्रयास किया गया है जिसमें लेखक पूर्णतः सफल हैं। इस कहानी का उद्देश्य प्रजातंत्र में मौजूद खामियों पर प्रकाश डालना है। कितनी आसानी से धोखेबाज और ढोंगी नेता सीधी-सादी जनता को बहलाकर उनका शोषण करते हैं। साथ ही विचारक, पत्रकार और धर्मगुरु जो जनता का साथ देने, उन्हें सही दिशा-निर्देश देने के लिए हैं, वे भी स्वार्थवश इन ढोंगी का साथ देते हैं। सियारों को इन्हीं के प्रतीक रूप में पेश किया गया है। इस कहानी का उद्देश्य प्रजातंत्र की पोल खोलना है।
भेड़ और भेड़िये कहानी के पात्रों का चरित्र चित्रण
भेड़ और भेड़िये कहानी सत्ता और राजनीति के दुरुपयोग पर व्यंग्य करती है। यह दर्शाता है कि कैसे नेता चुनाव जीतने के लिए झूठे वादे करते हैं और जीतने के बाद जनता का शोषण करते हैं।इसके प्रमुख पात्रों का चरित्र चित्रण निम्नलिखित है -
भेड़ और भेड़िये कहानी में बूढ़ा सियार का चरित्र चित्रण
बूढ़ा सियार उन चापलूस ,खुशामद तथा मौकापरस्त लोग का प्रतिनिधित्व करता है जो की ताकतवर नेताओं के आगे पीछे घूमकर तथा उनकी हाँ में हाँ मिलकर अपना काम निकलते रहते हैं . बूढ़ा सियार चापलूस है .वह जानता है की भेड़िये की चापलूसी में वह अपने जीवन को सुखमय बना सकता है . भेड़िये की चापलूसी करते हुए वह भेड़िये की डांट -डपट भी सजहता से सुन लेता है . पल पल में ही उसे भगवान् या परमात्मा बना लेता देता है .भेड़िये की तारीफ़ करते हुए वह हर सीमा को पार कर जात है . बूढ़ा सियार बहुत ही चालक ,बुद्धिमान ,चापलूस ,धूर्त ,स्वार्थी तथा कपटी है . वह जानता है कि भेड़ियों को चुनाव जिताने में उसकी हर संभव मदद करता है .बूढ़े सियार के चरित्र को निम्नलिखित रूप से चित्रित किया जा सकता है-
- चतुर व बुद्धिमान - बूढ़ा सियार बहुत चतुर व बुद्धिमान था और अपनी बुद्धि का प्रयोग चतुराई से करता था। जब उसने भेड़िए को तनाव में देखा तो बूढ़े सियार ने कारण जानते हुए भी कुछ न जानने का अभिनय किया। उसने बड़ी चतुरता के साथ भेड़िए को अपना रूप बदलने के लिए मना लिया। चुनाव होने से पहले ही भेड़िए के पक्ष में बहुमत की बात करना बूढ़े सियार की बुद्धि का परिचायक था।
- चापलूस- बूढ़ा सियार बहुत चापलूस था। वह जानता था कि भेड़िए की चापलूसी करके ही वह जीवन को सुखमय बना सकता है। भेड़िए की चापलूसी करते हुए वह भेड़िए की डाँट-डपट भी सहजता से सुन लेता है। पल-पल में ही उसे भगवान या परमात्मा बना देता है। भेड़िए की तारीफ करते हुए वह हर सीमा को पार कर जाता है। भेड़िए को वह सदा प्रसन्न रखता है।
- स्वार्थी - वह अत्यन्त स्वार्थी प्रवृत्ति का है। वह जानता है कि भेड़िए की जीत में ही उसका (सियार का) भला है। अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए वह बखूबी अन्य सियारों की सहायता लेता है। अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए वह भेड़ों को लुभावना भाषण देता है।
- कपटी - बूढ़ा सियार कपटी स्वभाव का प्राणी था। भेड़ियों की तरफ से प्रचार करना, भेड़ों को अपने हक में वोट डालने के लिए मना लेना, भेड़िए को संत बनाकर भेड़ों के सामने पेश करना और भेड़ों की नजरों में भेड़िए को परमात्मा का रूप देना उसके कपटी होने का प्रमाण है। बूढ़े सियार ने अपने छल प्रपंच से ही भेड़िए को जीत दिलवा दी।
भेड़िए का चरित्र चित्रण
भेड़िए ऐसे नेताओं का प्रतीक हैं, जो विभिन्न हथकंडे अपनाकर अपने चमचों के माध्यम से जनता को बेवकूफ बनाकर वोट पा लेते हैं, लेकिन पद प्राप्त करते ही अपने लाभ के लिए कानून बनाते हैं। जनता के सामने वे स्वयं का असली रूप प्रकट ही नहीं होने देते। भेड़िए के चरित्र को निम्नलिखित रूप से चित्रित किया जा सकता है-
- स्वार्थी - भेड़िया स्वार्थी प्रवृत्ति का था। वह अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए किसी भी सीमा को लाँघ सकता था। यही कारण है कि सत्ता हासिल करने के लिए उसने सियारों की मदद ली।
- अवसरवादी - भेड़िया अवसरवादी था। अवसर का लाभ उठाने में उसे महारत हासिल था। इसीलिए जब चुनाव की बात आई तो उसने सियारों का सहारा लिया। हालाँकि उनकी संख्या भेड़ों की तुलना में काफी कम थी। फिर भी उसने अवसर का लाभ उठाकर चुनाव का फैसला अपने पक्ष में किया।
- अत्याचारी- भेड़िया अत्याचारी था। वह छोटी-छोटी भेड़ों को अपना शिकार बना लेता था और उन्हें मारकर उनका भक्षण कर लेता था।
- ताकतवर- भेड़िया ताकतवर भी था। यही कारण है कि अपनी ताकत से वह जंगल में भेड़ों के ऊपर राज करता था। कपटी व झूठा-भेड़िया कपटी स्वभाव का था और बहुत अधिक झूठ बोलता था। वह किसी भी काम को अंजाम देने में कपट और झूठ का सहारा लेता था। इसीलिए चुनाव जीतने के लिए उसने अपने कपट से सियारों का उपयोग किया।
भेड़ें का चरित्र चित्रण
'भेड़ें' सीधी-सादी जनता का प्रतीक हैं। भेड़ें नेक, ईमानदार, कोमल, विनयी, दयालु, निर्दोष होती हैं। ऐसी ही जनता होती है। इन सारी विशेषताओं के बाद भी वे बहकावे में आ जाती हैं। वे सोचती हैं कि हम अपने प्रतिनिधियों को जिताकर अपने लाभ के लिए कानून बनवाएँगे, लेकिन बहकावे में आकर ढोंगी नेता को ही चुन लेती हैं और उन्हें अपने निर्णय पर पछतावा ही होता है, क्योंकि वादे के अनुसार कानून बनाए नहीं जाते हैं।
लेखक हरिशंकर परसाई का जीवन परिचय
श्री हरिशंकर परसाई का जन्म 22 अगस्त, 1922 ईस्वी में मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले में हुआ था। हरिशंकर परसाई हिंदी के ऐसे समर्थ व प्रतिनिधि कहानीकार हैं जिन्होंने कहानी में व्यंग्य को प्रमुख अस्त्र के रूप में प्रयुक्त व प्रचलित किया। ये मुख्यतः व्यंग्य लेखक हैं। इनकी कहानियों की विषय-वस्तु शिक्षा जगत, राजनीति, चिकित्सा क्षेत्र, धर्म, संस्कृति आदि से जुड़े शोषण, आडंबरों, ढोंगों व पाखंडों से संबद्ध होती है । ये छोटे से भाव अथवा घटना को लेकर उसके समरूप कई अनुभवों या कल्पनाओं को व्यंग्यात्मक रूप में प्रस्तुत कर डालते हैं । इन्होंने सामाजिक और राजनीतिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार और शोषण पर करारा एवं सटीक व्यंग्य किया है।
परसाई जी की भाषा का एक खास अंदाज है जिसके कारण वह पाठकों के मर्म को छू लेते हैं । हँसते हैं, रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, भोलाराम का जीव इनके प्रमुख कहानी संग्रह हैं; रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज, ज्वाला और जल उपन्यास हैं; तिरछी रेखाएँ संस्मरण तथा तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, सदाचार का ताबीज, विकलांग श्रद्धा का दौर निबंध संग्रह उल्लेखनीय हैं; विकलांग श्रद्धा का दौर के लिए इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ।
भेड़ और भेड़िये कहानी के प्रश्न उत्तर
प्र. वन में प्रजातंत्र की स्थापना के पीछे क्या कारण था ?
उ. वन के पशुओं को ऐसा प्रतीत हो रहा था वे अब सभ्यता के नज़दीक पहुँच गए है . वे सभ्यता के उस स्टार पर पहुच गए हैं जहाँ उन्हें एक अच्छी शासन व्यवस्था अपनानी चाहिए .अच्छी शासन व्यवस्था के लिय उन्हें प्रजातंत्र को अपना लेना चाहिये .
प्र. वन प्रदेश की भेड़ों की क्या विशेषता थी ?
उ. वन प्रदेश में भेड़ें बहुत रहती थी। वह बहुत ही निहायत नेक ,ईमानदार , कोमल ,विनम्र ,दयालु प्रवृति की थी ,जो की इतनी निर्दोष प्रवृति की थी कि घास को भी फूँक - फूँक कर खाती थी।
प्र. क्रांतिकारी परिवर्तन क्या था ?
उ. क्रांतिकारी परिवर्तन वन प्रदेश में लोकतंत्र की स्थापना का विचार था। वन प्रदेश के पशुओं को लगा कि वे सभ्यता के उस स्तर पर पहुँच गए हैं जहाँ वे सभ्यता के उस स्तर पर पहुँच गए हैं, जहाँ उन्हें एक अच्छी शासन-व्यवस्था अपनानी चाहिए और एक मत से यह तय हो गया कि वन-प्रदेश में प्रजातंत्र की स्थापना हो |
प्र. बूढ़े सियार की बातों का भेड़ों पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उ. बूढ़े सियार की बातों से प्रभाव में आकर भेड़ों बहुत प्रभावित हुई। पहले वे बहुत घबराई लेकिन बाद में उन्होंने बूढ़े सियार की बातों को पूरा सुना।उन्हें असली बातें नहीं समझ में आई। वे चुनाव प्रचार से भ्रमित होकर भेड़िये को वोट दे आई।
प्र. वन प्रदेश की भेड़ों की क्या विशेषता थी ?
उ. वन प्रदेश में भेड़ें बहुत रहती थी। वह बहुत ही निहायत नेक ,ईमानदार , कोमल ,विनम्र ,दयालु प्रवृति की थी ,जो की इतनी निर्दोष प्रवृति की थी कि घास को भी फूँक - फूँक कर खाती थी।
प्र. क्रांतिकारी परिवर्तन क्या था ?
उ. क्रांतिकारी परिवर्तन वन प्रदेश में लोकतंत्र की स्थापना का विचार था। वन प्रदेश के पशुओं को लगा कि वे सभ्यता के उस स्तर पर पहुँच गए हैं जहाँ वे सभ्यता के उस स्तर पर पहुँच गए हैं, जहाँ उन्हें एक अच्छी शासन-व्यवस्था अपनानी चाहिए और एक मत से यह तय हो गया कि वन-प्रदेश में प्रजातंत्र की स्थापना हो |
प्रश्न . सियारों को किन-किन रंगों में रंगा गया ? वे किसके प्रतीक थे ? इस कहानी से आपको क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर- बूढ़े सियार ने सियारों को पीले, नीले व हरे रंग में रंगा। पीला सियार विद्वान, विचारक, लेखक व कवि का प्रतीक था। नीला सियार नेता व पत्रकार का तथा हरा सियार धर्मगुरु का प्रतीक था। इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने मताधिकार का प्रयोग बहुत सोच समझ कर करना चाहिए। स्वार्थी, ढोंगी व चालाक राजनेताओं के शब्दजाल में नहीं फंसना चाहिए।
प्रश्न. पशु-समाज में कौन-सा क्रांन्तिकारी परिवर्तन आने वाला था?
उत्तर- पशु समाज ने एक बार अच्छी शासन व्यवस्था अपनाने की तिथि सोची। इसलिए वन प्रदेश में प्रजातन्त्र की स्थापना कर क्रान्तिकारी परिवर्तन के लिए चुनाव होने वाला था।
प्रश्न. वन प्रदेश की भेड़ों की क्या विशेषता थी ?
उत्तर- वन प्रदेश में भेड़ें बहुत थीं, वे निहायत नेक, ईमानदार, कोमल विनयी, दयालु निर्दोष पशु थी जो घास को भी फूँक-फूँककर खाती थीं ।
प्रश्न. भेड़िए का दिल क्यों बैठा जा रहा था ?
उत्तर- भेड़िए का दिल इसलिए बैठता जा रहा था कि चुनाव होने पर पंचायत में उनका बहुमत होगा क्योंकि वे संख्या में बहुत अधिक हैं। अगर उन्होंने किसी भी पशु को न मारने का कानून बना दिया हम क्या खाएँगे ?
प्रश्न. सियार भेड़िए को अपना माई बाप क्यों मानते हैं?
उत्तर- जब भेड़िया शिकार खा लेता है तब सियार शिकार की हड्डियों पर बचे माँस को कुतरकर खाते व हड्डियाँ चूसते हैं। इसलिए वे भेड़िए को अपना माई बाप मानकर उनकी सेवा करते हैं और मौके-बेमौके 'हुआँ-हुआँ' चिल्लाकर उसकी जय बोलते हैं।
प्रश्न. पंचायत में भेड़ियों के बहुमत की बात किसने सुझाई और
उत्तर- पंचायत में भेड़ियों के बहुमत की बात बूढ़े सियार ने भेड़िए को सुझाई क्योंकि ऐसा होने पर भेड़ियों की सरकार होगी। उन्हें वन-प्रदेश को छोड़ना भी नहीं पड़ेगा तथा वे मनचाहे कानून बना कर राज कर सकेंगे।
प्रश्न. अगले दिन बूढ़ा सियार अपने साथ किसे लाया ? और क्यो ?
उत्तर- अगले दिन बूढ़ा सियार तीन रंगे सियारों को अपने साथ ले भेड़िया के पास आया ताकि वे रंगे सियार भेड़िया की सेवा करें और उसका चुनाव प्रचार करें।
प्रश्न. बूढ़े सियार ने अपनी योजना के समर्थन में क्या कहा ?
उत्तर- सियार ने भेड़िया को समझाते हुए कहा कि आप बहुत भोले हैं । रंग-रूप बदलने से तो आदमी तक बदल जाते हैं फिर ये तो सियार है अतः ये आपके चुनाव जीतने में मददगार साबित को होंगे।
प्रश्न. भेड़िए का रूप परिवर्तन किसने और कैसे किया ?
उत्तर- बूढ़े सियार ने चुनाव में भेड़िए की जीत सुनिश्चित करने के लिए उसका रूप भी परिवर्तित कर दिया। उसने भेड़िए के माथे पर तिलक लगाकर गले में कंठी पहनाई और उसके मुँह में घास के तिनके खोंस कर पूरा संत बना दिया।
प्रश्न. सियार ने भेड़िए को क्या हिदायत दी ?
उत्तर- सियार ने भेड़िए को तीन बातों को ध्यान रखने की सख्त महिदायत दी पहली कि अपनी हिंसक आँखों को ऊपर न उठाकर जमीन की ओर देखना, दूसरी कुछ बोलना मत, चुप रहना तथा तीसरी सुंदर, मुलायम भेड़ों में से किसी का शिकार मत करना ।
प्रश्न. बूढ़े सियार ने भेड़िए से न डरने की क्या वजह बताई ?
उत्तर- बूढ़े सियार ने भेड़ों से भयमुक्त होने को कहा क्योंकि भेड़िया का हृदय परिवर्तित हो गया है वे हिंसा छोड़कर घास खा रहे हैं उन्होंने अपना जीवन जीवमात्र की सेवा में अर्पित कर दिया है। म भेड़ों से उन्हें विशेष प्रेम है। वे भेड़ों की सेवा कर प्रायश्चित करना चाहते हैं।
प्रश्न. सियार ने किस घटना द्वारा भेड़िए को संत प्रमाणित किया ?
उत्तर- सियार ने बताया कि एक मासूम भेड़ के बच्चे के पाँव में काँटा लग जाने पर संत बन चुके भेड़िए ने काँटा अपने दाँतों से निकाला व उसके कष्ट से मर जाने पर भेड़िए ने सम्मान पूर्वक उसकी क्रिया-कर्म भी किया। भेड़िया तो अपना सर्वस्व त्याग कर चुका है।
प्रश्न. भेड़िए के मौन रहने का सियार ने क्या कारण बताया ?
उत्तर- सियार ने कारण बताते हुए कहा संत भेड़िया को भेड़ों के प्रति असीम प्रेमवश हृदय भर आया है वे गद्गद हो गए हैं और भावातिरेक से उनका कंठ अवरुद्ध हो गया है इसलिए वे आपको प्रेम व दया का संदेश नही दे पा रहे हैं।
उ. बूढ़े सियार की बातों से प्रभाव में आकर भेड़ों बहुत प्रभावित हुई। पहले वे बहुत घबराई लेकिन बाद में उन्होंने बूढ़े सियार की बातों को पूरा सुना।उन्हें असली बातें नहीं समझ में आई। वे चुनाव प्रचार से भ्रमित होकर भेड़िये को वोट दे आई।
प्र.बूढ़े सियार ने भेड़िया को कहाँ कहाँ चले जाने के लिए कहा ?
उ. बूढ़े सियार ने भेड़िये को सलाह देते हुए कहा कि अगर प्रजातंत्र की सरकार बनती है तो सभी भेड़िये सर्कस में भरती हो जाए ताकि उन्हें भूखों न मरना पड़े. भेड़िये को बूढ़े सियार ने यह भी सलाह दी की वे जंगल छोड़कर अजायबघर चले जाएँ ताकि वहां उन्हें भोजन मिल सके और वे जीवित रह सके . अंत में बूढ़े सियार ने जंगल में ही रहकर चुनाव जीतने का ख्वाब दिखाया .
प्र.रंगीन प्राणी कौन थे ? उनके विषय में बूढ़े सियार ने क्या जानकारी दी ?
उ. रंगीन प्राणी वास्तव में तीन रंगे सियार थे जो की क्रमशः नीले ,पीले और हरे रंग में रंगे हुए थे .सबके बारे में बूढ़े सियार ने बताया की ये सभी स्वर्ग लोक के प्राणी हैं ,प्राणी नहीं बल्कि देवता हैं . ये पीले वाले विचारक हैं ,कवि और लेखक हैं .नीले वाले नेता हैं और स्वर्ग के पत्रकार हैं तथा हरे वाले धर्मगुरु हैं .
प्र. सियार और भेदियाँ के माध्यम से लेखक ने किस किस पर व्यंग किया है ?
उ. सियार के माध्यम से लेखक ने चापलूस एवं धूर्त वर्ग पर तथा भेड़िया के माध्यम से क्रूर ,हिंसक व स्वार्थी शासक वर्ग पर व्यंग किया है।
प्र. चुनाव में किसकी जीत हुई और क्यों ?
उ. चुनाव में भेड़िये पक्ष की जीत हुई। जब लोकतंत्र का चुनाव संपन्न हुआ तो भेड़ों ने अपने लाभ - हित के लिए भेड़िये को चुना।पंचायत में भेड़ों के हितों की रक्षा के लिए भेड़िये प्रतिनिधि बनकर गए |
प्र. सियार और भेदियाँ के माध्यम से लेखक ने किस किस पर व्यंग किया है ?
उ. सियार के माध्यम से लेखक ने चापलूस एवं धूर्त वर्ग पर तथा भेड़िया के माध्यम से क्रूर ,हिंसक व स्वार्थी शासक वर्ग पर व्यंग किया है।
प्र. चुनाव में किसकी जीत हुई और क्यों ?
उ. चुनाव में भेड़िये पक्ष की जीत हुई। जब लोकतंत्र का चुनाव संपन्न हुआ तो भेड़ों ने अपने लाभ - हित के लिए भेड़िये को चुना।पंचायत में भेड़ों के हितों की रक्षा के लिए भेड़िये प्रतिनिधि बनकर गए |
प्र. भेडियों ने भेड़ों की भलाई के लिए पहला कानून कौन सा बनाया ?
उ. बहुमत पाने के बाद भेदियों ने भेड़ों के भलाई ने लिए पहला कानून बनवाया . इसमें कहा गया कि हर भेड़िये को सवेरे नाश्ते के लिए भेड़ का एक मुलायम बच्चा दिया जाए , दोपहर के भोजन में एक पूरी भेड़ तथा शाम को स्वास्थ्य के ख्याल से कम खाना चाहिए, इसलिए आधी भेड़ दी जाए | इस प्रकार हरिशंकर परसाई जी ने अपनी कहानी के द्वारा आज के प्रजातन्त्रवादी व्यस्था पर करारा व्यंग किया है .
प्रश्न. इस कहानी में भेड़ और भेड़िए समाज के किस वर्ग प्रतिनिधि है?
उत्तर- इस कहानी में भेड़ें भोली-भाली, मासूम जनता का प्रतिनिधित्व करती हैं जो प्रजातन्त्र में अपने वोट के माध्यम से हिंत-चिंतक व हित-रक्षक सरकार को चुन सुख-समृद्धि व सुरक्षा चाहती हैं जबकि भेड़िए स्वार्थी, ढ़ोंगी राजनेताओं व शोषक वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं जो मासूम जनता को बहला फुसलाकर उनका शोषण करते हैं।
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हटाएंkripya waise pattern par den
Aapne bilkul sahi kaha . Yadi iss tarah ke prashnottar hume praapt honge to wo ati sahayak honge humare liye
हटाएंItni shudh hindi???
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंLots of mistakes done
जवाब देंहटाएंwel done
जवाब देंहटाएंAgar aap log saransh bhi daal dete to isse meri kaafi sahayata ho jaati
जवाब देंहटाएंYes
हटाएंअति सुन्दर कहानी और सुदूर सोच के प्रतीक
जवाब देंहटाएंSiyar ne bhediya ki madad kyu ki ?
जवाब देंहटाएंक्यूंकि भेड़ियों के खाने के बाद जो खाना बच जाता वह सियार खाता जैसे हड्डियों मेँ लगे कुछ मास अगर भेड़िया नहीं जीतता तो सियार को भी कुछ खाने न मिलता
हटाएंPrajatantra kise kehte hai?inke aadhar stambh ka varnan kijiye?
जवाब देंहटाएं