महाभारत की एक साँझ एकांकी में एकांकीकार भारत भूषण अग्रवाल जी द्वारा एक पौराणिक कथा -वस्तु को एक नवीन रूप दिया गया है . लेखक ने यह भी समझाने का प्रयास किया है की महाभारत के विनाशकारी युध्य के लिए केवल दुर्योधन ही जिम्मेदार नहीं था ,बल्कि पांडव की महत्वकांक्षी प्रवृति भी किसी न किसी रूप में जिम्मेदार थी .
महाभारत की एक सांझ
महाभारत की एक साँझ ,भारतभूषण अग्रवाल द्वारा रचित एक प्रभावी एवं महत्त्वपूर्ण एकांकी है। नाटक के क्षेत्र में यह एकांकी अपना विशेष स्थान रखता है। संवादात्मक शैली के द्वारा लेखक ने महाभारत के इतने बड़े कलेवर को अत्यन्त सूक्ष्म रूप में प्रस्तुत किया है जो अपने आप में सराहनीय है। लेखक ने संवादों के द्वारा पाठक के सम्मुख दुर्योधन के पक्ष को सामने रखा है। लेखक ने युधिष्ठिर और दुर्योधन में संवाद कराकर यह दर्शाने का प्रयत्न किया है कि पाण्डव भी कौरवों से कम महत्त्वाकांक्षी न थे। दुर्योधन घायल होकर युद्धभूमि से भाग खड़ा हुआ था और द्वैतवन के सरोवर में जाकर छिप गया था । तब पांडव उसे युद्ध करने के लिए सामने आने को कहते हैं ।
महाभारत की एक सांझ एकांकी का सारांश
महाभारत की साँझ एकांकी आधुनिककालीन परिप्रेक्ष्य में लिखा गया है। इसमें महाभारत के युद्ध को दुर्योधन के दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया गया है। धृतराष्ट्र के सभी पुत्रों की मृत्यु हो जाती है बस दुर्योधन एक सरोवर में छिप जाता है।
शक्ति प्राप्त थी कि वह जल स्तम्भन कर सके। इसीलिए वह जलाशय में छिप जाता है। महाराज धृतराष्ट्र अपने पुत्रों की मृत्यु पर शोक करते हैं। संजय उन्हें समझाता है। वह महाराज से संयम रखने की बात कहता है। पांडव द्वैत वन में जहाँ दुर्योधन छिपा था पहुँच जाते हैं और दुर्योधन को बाहर निकालने का प्रयास करते हैं। पांडव दुर्योधन को ललकारते हैं। दुर्योधन पांडवों से कहता है कि वह कायर नहीं है न ही उसने पराजय स्वीकार की है। भीम दुर्योधन से कहता है कि जिस काल की अग्नि को तूने प्रज्वलित किया है वह तेरी आहुति से ही शान्त होगी। दुर्योधन युधिष्ठिर से समय माँगता है। दुर्योधन युधिष्ठिर से धर्म की बात करता है तो युधिष्ठिर उससे कहते हैं कि जब तुमने एक बालक को मारा था तब तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था। भीम और दुर्योधन के युद्ध में दुर्योधन धराशायी होता है।
मरणासन्न दुर्योधन से युधिष्ठिर मिलने आते हैं। दुर्योधन उनसे कहता है कि क्या मेरी मृत्यु पर पर्व मनाने आये हो। युधिष्ठिर कहते हैं कि मैं तुम्हें शान्ति देने आया था। मैंने सोचा कि शायद तुम्हें पश्चाताप हो रहा होगा तो मैं तुम्हारी व्यथा हल्की कर सकूँगा । दुर्योधन कहता है कि तुम विजेता हो और अपनी सुविधा के अनुसार इतिहास का निर्माण करवाओगे और जिसमें मुझे बुरा सिद्ध कर दोगे। युधिष्ठिर कहता है कि दुर्योधन यह तुम्हारा मिथ्या कथन है। युधिष्ठिर कहता है कि यह राज्य मेरे पिता का था। इस पर दुर्योध् न कहता है कि यदि मेरे पिता अन्धे न होते तो तुम्हारे पिता को यह राज्य न मिलता। मूल रूप से तो यह राज्य मेरे पिता धृतराष्ट्र का ही था। आगे वह व्यवस्था के लिए इसे किसी को भी दे सकते थे। युधिष्ठिर दुर्योधन से कहते हैं कि वह केवल उसे सान्त्वना देने आये थे और किसी तरह का विवाद नहीं करना चाहते थे। दुर्योधन और युधिष्ठिर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते हैं। अन्त समय में दुर्योधन यह कहता है कि मेरे मन में कोई पश्चाताप नहीं है। मैंने कोई भूल नहीं की और न ही भय से पाण्डवों की शरण माँगी। अन्त तक पाण्डवों से टक्कर ली और मात्र एक दुःख था कि उसके पिता अन्धे क्यों हुए। अगर वह अन्धे न होते तो राज्य का अधिकार स्वाभाविक रूप से दुर्योधन को मिल जाता।
महाभारत की एक सांझ का संदेश / उद्देश्य Mahabharat ki ek saanjh uddeshya
महाभारत की एक साँझ ,भारत भूषण अग्रवाल जी द्वारा लिखित प्रसिद्ध एकांकी है . यह पौराणिक पृष्ठभूमि पर आधारित एकांकी है .यह कौरवों और पांडवों के बीच हुए युध्य पर आधारित है .धृतराष्ट्र जन्म से अंधे थे . उनके सौ पुत्र तथा एक पुत्री थे .उनके छोटे भाई का नाम पांडु था .जन्मांध होने के कारण वह राजा नहीं बन सकते है इसलिए पांडु राजा बने .उनके पाँच पुत्र थे ,जो की युधिष्ठिर,भीम,अर्जुन,नकुल और सहदेव थे . कुछ समय बाद पांडु धृतराष्ट्र को राज्य सौंप कर वन चले गए और वहां उनकी मृत्यु हो गयी है . कालांतर में जब युधिष्ठिर ने राज्य पर अपना अधिकार माँगा तो दुर्योधन बौखला गया .सदाचारी पांडव पाँच ग्राम लेकर संतुष्ट थे ,पर दुर्योधन उन्हें सुई की नोक के बराबर भूमि देने के लिए तैयार नहीं हुआ .इसी बात पर महाभारत का विनाशकारी युध्य हुआ . युध्य के अंत में कौरवों की हार हुई और पांडवो की जीत हुई ।
इस प्रकार अन्याय पर न्याय की ,असत्य पर सत्य की ,दुराचरण पर अच्छे आचरण की जीत हुई । मनुष्य को हमेशा अच्छे मूल्यों के साथ जीना चाहिए तथा सद्कर्म ,परोपकार की भावना रखनी चाहिए .इसी महत्व को प्रस्तुत एकांकी में एकांकीकार ने समझाया है।
महाभारत की एक सांझ शीर्षक की सार्थकता shirshak ki sarthakta
महाभारत की एक साँझ एकांकी में एकांकीकार भारत भूषण अग्रवाल जी द्वारा एक पौराणिक कथा -वस्तु को एक नवीन रूप दिया गया है . लेखक ने यह भी समझाने का प्रयास किया है की महाभारत के विनाशकारी युध्य के लिए केवल दुर्योधन ही जिम्मेदार नहीं था ,बल्कि पांडव की महत्वकांक्षी प्रवृति भी किसी न किसी रूप में जिम्मेदार थी ।
एकांकी में महाभारत का युध्य समाप्त हो चुका था .कौरव पक्ष की ओर से अकेला जीवित दुर्योधन द्द्वैतवन के एक सरोवर में छिपा हुआ था . पांडवों के ललकारने पर वह विबस होकर बाहर आया .भीम के साथ गदा युध्य हुआ .दोनों महारथी भिड़े हुए थे कि तभी श्रीकृष्ण ने भीम को संकेत किया कि वह दुर्योधन की जंघा पर प्रकार करे .भीम के ऐसा करने पर दुर्योधन चीत्कार करता हुआ बुरी तरह आहत होकर गिर पड़ा और पांडव जयघोष करते हुए चले गए ।
सब्ध्य के समय जब युधिष्ठिर उसे सांत्वना देने आये तो दुर्योधन ने उन्हें ही विनाशकारी युध्य के लिए दोषी ठहराया .उसने यह भी कहा इस युध्य के लिए पांडवों की महत्वाकांक्षा की पूरी तरह से जिम्मेदार है .इसी प्रकार संध्या के समय ही प्रलाल करते करते दुर्योधन ने अपने प्राण त्याग दिए।
महाभारत की एक साँझ पाठकों को झकझोर देती है तथा कुछ अलग हट कर सोचने के लिए मजबूर कर देती है ,की क्या युध्य के लिए कौरव ही जिम्मदार थे ,पांडव नहीं .इसी प्रकार एकांकी का शीर्षक सार्थक एवं उचित है।
Mahabharat ki ek saanjh charitra chitran
लोभ, ईर्ष्या, द्वेष, महत्वाकांक्षा आदि के कारण ही महाभारत का युद्ध हुआ और कौरवों का विनाश हुआ। इसके साथ ही एकांकीकार ने महाभारत के युद्ध के दुर्योधन के साथ युधिष्ठिर की महत्वाकांक्षा को भी जिम्मेदार ठहराया है। लेखक महाभारत के युद्ध के प्रति नया व अछूता पहलू पाठकों के सामने उपस्थित करने में सफल रहा है। इसके प्रमुख पात्रों का चरित्र चित्रण निम्नलिखित है -
दुर्योधन का चरित्र चित्रण
महाभारत की एक साँझ एकांकी में दुर्योधन एक प्रमुख पात्र बन कर उभरता है . वह धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों में सबसे बड़ा था .उसका मूल नाम सुयोधन था पर अपने दुराचरण के कारन दुर्योधन के रूप में जाना जाने लगा . वह अत्यंत वीर ,पराक्रमी तथा युध्य विद्या में कुशल था . वह सोचता था की यदि उसके पिता अंधे नहीं होते तो वही हस्तिनापुर का राजा बनता . उसके पिता धृतराष्ट्र ने उसके पुत्र मोह में अंधे होकर उसे निरंकुश और स्वेच्छाचारी बना दिया . वह पांडवों को सुई की नोक के बराबर भी भूमि देने के लिए तैयार नहीं था .इसी जिद के कारण महाभारत का युध्य हुआ .लेकिन कौरवों के सभी पक्षकार मारे गए .घायल होकर दुर्योधन स्वयं भी एक सरोवर में जा छिपा ,लेकिन पांडवों ने उसे वहाँ भी नहीं छोड़ा .भीम के साथ दुर्योधन का भीषण गदा युध्य हुआ .श्रीकृष्ण के कहने पर भीम ने उसकी जंघा पर प्रहार किया जिससे उसकी मृत्यु हो गयी .
दुर्योधन ने अंत समय में भी महाभारत के युद्ध के लिए पांडवों को दोषी ठहराया .उसे इस बात का दुःख था कि उसके पिता यदि अंधे न होते तो वह इस प्रकार न मारा जाता ,वह आज हस्तिनापुर का राजा होता .
युधिष्ठिर का चरित्र चित्रण
महाभारत एक ऐतिहासिक धार्मिक ग्रन्थ है, समय-समय पर साहित्यकारों ने इस पर टिप्पणियाँ लिखी हैं एवं नाटककारों ने इसका मंचन भी किया है। यह ग्रन्थ धर्म एवं राजनीति से ओतप्रोत है । इस ग्रंथ में पात्रों की भरमार है, फिर भी प्रमुख पात्रों में कृष्ण, भीम, धृतराष्ट्र, दुर्योधन, विदुर, संजय, युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल, सहदेव आदि हैं।
महाभारत की कथा इन पात्रों के इर्द-गिर्द घूमती है। इसमें दुर्योधन एवं युधिष्ठिर ही मुख्य पात्रों में गिने जाते हैं युधिष्ठिर राजनीति एवं धर्मप्रधान पात्र है । अपनी विनम्रता और धर्मपरायणता के कारण ही स्वयं उसे एवं उसके भाइयों को बहुत कष्ट उठाने पड़े, जैसे जुए में हार, राज्य सम्मान के कारण द्रौपदी को दाँव पर लगा देना आदि ।उन्हें वन का कष्ट भी भोगना पड़ता है । युधिष्ठिर पाण्डव परिवार के ज्येष्ठ पुत्र थे, उनके स्वभाव एवं सद्गुणों के कारण परिवार के बड़े लोग उनसे बहुत स्नेह करते थे । दुर्योधन जब युधिष्ठिर के साथ अनुचित व्यवहार करता है तो दूसरे भाइयों को उसका व्यवहार सहन नहीं होता । तब भी अपने सहनशील और शान्त स्वभाव के कारण वह भाइयों को समझा-बुझाकर शांत कर देते हैं । किसी-किसी संदर्भ में तो युधिष्ठिर के चरित्र में श्रीराम के गुणों का आभास होता है। इस एकांकी में युधिष्ठिर एवं दुर्योधन के बीच कटु वार्तालाप होता है । दुर्योधन द्वैत वन के सरोवर में छिप कर जलस्तम्भ में बैठ जाता है। जब पाण्डवों को इस बात की जानकारी होती है तब युधिष्ठिर तथा भीम सरोवर के समीप जाते हैं।वहाँ जाकर युधिष्ठिर उसे युद्ध के लिए ललकारते हैं। वे उसे स्त्री, कायर आदि कहकर पुकारते हैं क्योंकि दुर्योधन के प्रति पाण्डवों के हृदय में विष ज्वाला भड़क रही है।द्रौपदी का भरी सभा में अपमानित होना तथा अभिमन्यु की मृत्यु आदि अनेकों प्रसंग हैं जो पाण्डवों को व्यथित कर रहे हैं ।
ऐसे समय में भी युधिष्ठिर अपने संयम को नहीं टूटने देते किन्तु दुर्योधन को जब युधिष्ठिर के द्वारा कहे हुए शब्द सहन नहीं होते तब दुर्योधन युधिष्ठिर से युद्ध करने को कहता है किन्तु युधिष्ठिर उसके निहत्था होने के कारण उससे कहते हैं कि वह जिस अस्त्र से लड़ना चाहे बता दे तथा केवल एक व्यक्ति ही उससे युद्ध करेगा। यहाँ पर युधिष्ठिर की धार्मिक तथा मानवीय भावनाओं का ज्ञान होता है। यह सब देखते हुए युधिष्ठिर पराक्रमी, निश्छल, सहृदयी, नीतिनिपुण तथा धर्मनिष्ठ पात्र हैं।
धृतराष्ट्र का चरित्र चित्रण
धृतराष्ट्र महाभारत के समय हस्तिनापुर के राजा और कौरवों के पिता थे। वे जन्म से अंधे थे अतः उनके छोटे भाई पांडु को पहले राजा बनाया गया। पांडव इन्हीं के पुत्र थे। लेकिन पांडु की असमय मृत्यु के पश्चात् ये राजा बने। यद्यपि धृतराष्ट्र नेक, समझदार व बड़ों का आदर करने वाले थे लेकिन पुत्र मोह के कारण वे कौरवों के किसी अनुचित कार्य पर उन्हें रोक न सके। धृतराष्ट्र कौरवों के षड़यन्त्रों के बारे में जानने पर भी एक राजा व पिता के कर्तव्यों का निर्वाह न कर सके। जिससे कौरव निरंकुश हो गए और अंत को प्राप्त हुए।
भीम का चरित्र चित्रण
भीम, कुंती के दूसरे पुत्र थे। वे भी एक पांडव थे। भीम गदा युद्ध में निपुण व बहुत बलशाली और उग्र स्वभाव वाले थे। कौरव सदैव भीम से भयभीत रहते थे तथा उन्होंने बचपन में भी भीम को मारने के कई प्रयास किए। भीम दृढ़-प्रतिज्ञ थे। भरी सभा में द्रोपदी का अपमान होते देख दुशासन को मारने की जो प्रतिज्ञा ली वह पूरी करके दिखायी। जरासंध व दुर्योधन जैसे वीर योद्धाओं को भीम ने ही यमलोक पहुँचाया।
महाभारत की एक साँझ एकांकी की समीक्षा
महाभारत की एक साँझ ,एकांकी एकांकीकार भारत भूषण अग्रवाल जी द्वारा लिखी गयी है . प्रस्तुत एकांकी में महाभारत के युध्य की एक विशेष संध्या का सजीव चिर्त्रण किया गया है . महाभारत का युध्य कौरव और पांडवों के मध्य हुआ था .न्याय और अन्याय के पक्ष को लेकर इस पौराणिक युध्य में कौरवों की हार हुई और पांडव विजयी हुए . इस युध्य में कौरव पक्ष के सभी प्रमुख सैनिक मारे गए परन्तु पक्ष के प्रमुख सुयोधन बच गया था .वह अपनी जान बचाने के लिए द्वैत वन के सरोवर के जल स्तम्भ में चिप गया परन्तु न जाने पांडवों को कैसे इसकी खबर लग गयी . वे सरोवर के पास गए .पांडवों ने दुर्योधन को ललकारा .
दुर्योधन ने अंततः गदा लेकर युध्य करने का निश्चय किया . पांडवों की ओर भीम गदा लेकर उतरे .दोनों में भयकर युध्य हुआ तभी श्रीकृष्ण के ईशारे पर भीम ने उसकी जंघा पर गदा प्रहार किया और दुर्योधन चीत्कार कर गिर पड़ा .पांडव जयघोष करते हुए चले गए. संध्या समय सबसे पहले अश्वत्थामा आया और पांडवों से बदला लेने की बात कहकर चला गया . इसके बाद युधिष्ठिर आये .उनके बीच आरोप -प्रत्यारोप चलता रहा .अंत में दुर्योधन ने कहा कि उसे युध्य के लिए कोई ग्लानी नहीं है .केवल एक ही दुःख उसके साथ जाएगा .वह यह की उसके पिता अंधे क्यों हुए ? नहीं तो वह ही राजा बनता ....इस प्रकार एकांकी का अंत होता है .
भारत भूषण अग्रवाल जी द्वारा रचित एकांकी 'महाभारत की एक साँझ' महत्वपूर्ण एकांकी है। इस एकांकी में महाभारत के विभिन्न सन्दर्भों में दुर्योधन के पक्ष को समझने का प्रयास किया गया है। दुर्योधन और युधिष्ठिर के मध्य हुआ संवाद इस एकांकी के सम्पूर्ण कथ्य को रेखांकित करता है। दुर्योधन एक तर्कशील, अपराजेय योद्धा के रूप में प्रस्तुत हुआ है। एकांकी के छोटे कलेवर में महाभारत के बड़े परिदृश्य को समेटकर अग्रवालजी ने सराहनीय कार्य किया है। एकांकी का स्थानक रोचक एवं तर्कपूर्ण संवादों युक्त है। एकांकी में युधिष्ठिर एवं दुर्योधन के चरित्र पूर्ण रूप से उद्घाटित हुए हैं। दुर्योधन एवं युधिष्ठिर एक-दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाते हैं। एकांकी का देशकाल महाभारतकालीन है। इसका कथानक दुर्योधन की मृत्यु वाले दिन और उसकी संध्या के आसपास घूमती रहती है। इसलिए इसके संवादों में देशकाल एवं परिस्थितियों का ध्यान रखा गया है। एकांकी के संवाद कथ्य को आगे बढ़ाने वाले एवं रोचक हैं।
एकांकी की भाषा संस्कृतनिष्ठ है। कुछ कठिन शब्दों के प्रयोग के बावजूद भी इसमें प्रवाह विद्यमान है। वार्तालाप शैली का प्रयोग है। इसमें दोनों प्रमुख पात्र अपनी-अपनी बात को तर्क सहित रखते हैं। इस एकांकी का शीर्षक सर्वथा उपयुक्त है। एकांकी का उद्देश्य महाभारत में दुर्योधन के पक्ष को भी समझना रहा है। एकांकी पूर्णतया सफल रही है। यह इतिहास को नवीन दृष्टिकोण से देखने का प्रयास भी करती है। एकांकी कला के सभी तत्त्वों का निर्वाह पूर्णतया एकांकी में हुआ है।
महाभारत की एक सांझ प्रश्न उत्तर
प्र. धृतराष्ट्र कौन है ?
उ. धृतराष्ट्र महाभारत काल में हस्तिनापुर के राजा थे . वे जन्मांध थे .उनके सौ पुत्र थे . उनमे पुत्र दुर्योधन अत्याचारी ,निरंकुश और कुशल योध्या था .उनकी पत्नी का नाम गांधारी था .उनके पुत्र मोह के कारण ही दुर्योधन पर अंकुश नहीं लगा सके और जो युध्य का कारण बना .
प्र. दुर्योधन कौन था ,वह कहाँ छिपा बैठा था ?
उ. दुर्योधन ,धृतराष्ट्र का पुत्र था .महाभारत के युध्य में हार के बाद वह अपनी आत्म रक्षा के लिए द्वैत वन के सरोबर में जल स्तम्भ में छिप कर बैठा था .
प्रश्न . 'ईर्ष्या के रथ' से क्या अभिप्राय है? ईर्ष्या किसे होती है? यहाँ इसका उल्लेख क्यों किया जा रहा है?
उत्तर- जब कोई व्यक्ति अपनी ईर्ष्या पर नियंत्रण न रख उसके विशीभूत हो जाता है उसे 'ईर्ष्या के रथ पर सवार होना कहते हैं। दूसरों की उन्नति, सुखों से परेशान अकर्मण्य व्यक्ति को ईर्ष्या होती है । बाल्यावस्था में ही शकुनि ने दुर्योधन के मन में अपने चचेरे भाइयों के प्रति ईर्ष्या के बीज बो दिए जिसके परिणामस्वरूप उसकी ऐसी दुर्दशा हुई।
प्रश्न . दुर्योधन ने क्या कूटनीतिक चाल चली?
उत्तर- दुर्योधन ने कहा कि मुझे नर हत्याकांड से अब विरक्ति हो गई है। राज्य करने की मेरे कोई इच्छा नहीं मैं तो वन में जाकर प्रभु की भक्ति में अपना जीवन समर्पित करना चाहता हूँ।दुर्योधन इस कूटनीतिक चाल से अपने प्राणों की रक्षा करना चाहता था।
प्रश्न . दुर्योधन से किसने कहाँ से बाहर आने को कहा?
उत्तर- दुर्योधन पाण्डवों के भय से द्वैत वन के सरोवर के जल स्तम्भ में छिप गया था तथा बाहर नहीं निकल रहा था। अतः भीम उससे सरोवर से बाहर निकलकर युद्ध करने के लिए कहता है।
प्रश्न . भीम ने युद्ध को अन्तिम मार्ग क्यों बताया ?
उत्तर- भीम ने दुर्योधन से अन्तिम मार्ग के रूप में युद्ध करने के लिए इसलिए कहा कि वीरों का धर्म होता है युद्ध करना। कायरों की भाँति छिपकर अपने प्राणों की रक्षा करना उन्हें शोभा नहीं देता। इससे उनकी कीर्ति कलंकित होती है।
प्रश्न . भीम ने दुर्योधन को कायर क्यों कहा?
उत्तर- भीम ने दुर्योधन को कायर इसलिए कहा क्योंकि दुर्योधन की व्यर्थ की जिद और अहंकार कारण ही महाभारत का युद्ध हुआ जिसमें कौरव वंश का नाश होने के साथ पुण्य भारत भूमि असंख्य वीरों के रक्त से लाल हो गयी और अब वह स्वयं अपने प्राण बचाने के लिए छिपता फिर रहा है तथा दया की भीख माँग रहा है।
प्रश्न. दुर्योधन ने अधर्म से किसकी हत्या की और कैसे?
उत्तर- दुर्योधन ने अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की अधर्म से हत्या की। चक्रव्यूह में अभिमन्यु जब कौरव सेना से लड़ते समय निहत्था और अकेला था तब अनेक महारथियों ने मिलकर उस पर शस्त्र चलाकर उसकी हत्या कर दी जो युद्ध के नियमों के विरुद्ध था।
प्रश्न. युधिष्ठिर ने दुर्योधन से युद्ध के लिए धर्म की क्या बात कही ?
उत्तर- युधिष्ठिर ने दुर्योधन को कवच के साथ पसंद का हथियार देने की बात कही। दुर्योधन से कहा कि हम पाण्डवों में से केवल एक व्यक्ति ही तुमसे लड़ेगा और यदि तुम जीते तो सारा राज्य तुम्हारा होगा क्योंकि हम तुम्हारी तरह अधर्म का सहारा लेकर तुम्हारी हत्या नहीं करना चाहते वरन् युद्ध करना चाहते हैं।
प्रश्न . उन्होंने किस न्याय और सत्य का बलिदान दे दिया? और क्यों ?
उत्तर- दुर्योधन ने कहा कि धृतराष्ट पांडु से बड़े थे यह सत्य है तथा बड़ा बेटा ही सिंहासन का उत्तराधिकारी बने और उसके बाद उसका बेटा, यही न्याय है लेकिन उन्होंने सत्य व न्याय का बलिदान देकर तुम्हें राजा बनाने का समर्थन किया जो गलत था क्योंकि वे तुम्हारी वीरता से डरते थे अत: कायरों की तरह रक्तपात से बचने के लिए उन्होंने ऐसा किया।
प्रश्न . दुर्योधन ने अपनी बात के समर्थन में कौन से तर्क दिये ?
उत्तर- दुर्योधन ने न्याय को अपने पक्ष में बताते हुए तर्क दिया कि यदि ऐसा न होता तो सभी धार्मिक व न्यायी व्यक्ति युद्ध में मेरा साथ नहीं देते। यहाँ तक कि तुम्हारे परममित्र कृष्ण ने भी मेरी सहायता के लिए अपनी सेना दी। तुम्हें क्या लगता है वे जानबूझ कर अन्याय का साथ दे रहे थे कदापि ऐसा नहीं था।
प्र. जब भीम दुर्योधन को ललकारता है तो युधिष्ठिर भीम से क्या कहते हैं ?
उ. भीम जब दुर्योधन को ललकारते हैं कि तू अपने आप को बचाता फिर रहा है तेरे सारे सहयोगी मारे जा चुके हैं तब युधिष्ठिर भीम से कहते हैं कि दुर्योधन से लज्जा की कामना नहीं करनी चाहिए क्योंकि वह बड़ा ही पापी है .
प्र. दुर्योधन की सामान्य इच्छा क्या है ? उसे किस बात की ग्लानी थी ?
उ. दुर्योधन की सामान्य इच्छा थी कि वह अब शान्ति और मेल से रहे और सामान्य जीवन यापन करे. उसे इस बात की ग्लानी हो रही थी कि वह युध्य में पांडवों को पराजित नहीं कर सका ,जीवन भर का संघर्ष व्यर्थ ही गया .
प्र. पांडव किस प्रकार दुर्योधन को पराजित कर पाए ?
उ. किसी प्रकार से प्राण न बचते देख दुर्योधन ने गदा युध्य करने की माँग की . पांडवों की ओर से भीम गदा लेकर उतरे . दोनों में भयकर युध्य हुआ ,तभी श्री कृष्ण के इशारे पर भीम ने उसकी जंघा पर प्रहार कर हरा दिया और दुर्योधन गिर पड़ा. पांडव जयघोष करते चले गए.
प्र. युधिष्ठिर, अंत समय में दुर्योधन के पास क्यों गए थे ?
उ. युधिष्ठिर दुर्योधन को अंतिम समय में सांत्वना देने आये थे . वह यह चाहते थे कि यदि दुर्योधन अंत समय में पश्चाताप कर रहा होगा तो वह दुर्योधन को आत्म बल देंगे.
प्र. दुर्योधन ने युधिष्ठिर पर क्या - क्या आरोप लागाये ?
उ. अंत समय में दुर्योधन ने युधिष्ठिर पर पर महाभारत के युध्य में हुए जनसंहार के लिए ठहराया . मरते समय भी उसे एक ही बात का दुःख था कि यदि उसके पिता अंधे न होते तो उसे यूँ न मरना पड़ता .वह हस्तिनापुर का राजा होता और उसे पांडवों से किसी तरह का विरोध का सामना न करना पड़ता .
वीडियो के रूप में देखें -
Prastut ekanki ke antargat pratyek patra kaa charitra chitran apekhit Hai,board ke drishtikon seesabhi matavpurna hain
जवाब देंहटाएंVery helpful
जवाब देंहटाएंपोष्टर नामक एक नाटक डॉक्टर शंकर शेष व्दारा लिखित, का प्रकाशक कौन है?
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा।
जवाब देंहटाएंDuryodhon k charter KO adhunik dristi se rupayit kijiye
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