संस्कार और भावना Sanskaar aur Bhavna

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संस्कार और भावना Sanskaar aur Bhavna संस्कार और भावना समरी - संस्कार और भावना , विष्णु प्रभाकर जी द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध एकांकी है . प्रस्तुत एकांकी में उन्होंने एक परिवार का बड़े ही मार्मिक ढंग से वर्णन किया है .

संस्कार और भावना Sanskaar aur Bhavna


संस्कार और भावना , विष्णु प्रभाकर जी द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध एकांकी है। प्रस्तुत एकांकी में उन्होंने एक परिवार का बड़े ही मार्मिक ढंग से वर्णन किया है। संस्कारों की गहराई के साथ - साथ भावनाओं के आवेग तथा उसके कारण उत्पन्न अंतर्द्वंद्व को प्रस्तुत किया है। विष्णु प्रभाकर द्वारा लिखित यह एकांकी, मानवीय स्वभाव के दो पक्षों - परंपरागत संस्कारों और हृदय की मूल भावनाओं के द्वंद्व को प्रस्तुत करता है।
 

संस्कार और भावना एकांकी का सारांश

प्रस्तुत एकांकी 'संस्कार और भावना' में एक मध्यमवर्गीय परिवार का चित्रण है, माँ, संस्कारों से बँधी संक्रांति काल की नारी है, बड़े पुत्र का नाम अविनाश है जिसने विजातीय स्त्री से विवाह किया है वह उसी के साथ रहता है, छोटा बेटा अतुल और उसकी पत्नी उमा है। माँ अपने बड़े बेटे को प्रेम विवाह करने पर अलग कर देती है। माँ की छोटी बहू उमा यह सोचती है कि जिन बातों का विरोध प्राणों को देकर भी करने को तैयार मनुष्य एक समय आने पर उन्हीं बातों को स्वीकर कर लेता है। माँ को यह पता चलता है कि उनका बड़ा बेटा बीमार रहा है और उन्हें पता ही नहीं चला। इस बात से माँ अत्यन्त विचलित हो जाती हैं कि उनके बेटे की बीमारी का उन्हें पता ही नहीं चला।
 
मिसरानी माँ को बताती है कि उनकी बंगाली बहू ने अपने पति की बहुत सेवा की। वह बहू स्वाभिमानी है बस दो-एक बार मिसरानी से दवा मँगवा ली थी। माँ को इस बात का अत्यन्त दुःख होता है कि उन्हें अपने बेटे के खराब स्वास्थ्य का पता ही न चला। वह उमा से कहती हैं कि इसका दोष बेटे की बहू को जाता है। उसी ने बेटे के बीमार होने का समाचार माँ तक नहीं पहुँचने दिया ।
 
माँ को उमा बताती है कि एक बार वह भाभी से मिलने गई थी। तब माँ पूछती हैं कि वह क्यों गई थी ? उमा बताती है कि वह भाभी से यह झगड़ा करने गई थी कि भाभी के कारण माँ-बेटा अलग हो गए हैं। यह अच्छी बात नहीं है। उमा की बात सुनकर भाभी ने कहा कि माँ बेटे को अलग करना उनका उद्देश्य नहीं था किन्तु वह भी अपने पति से अटूट प्रेम करती हैं उन्हें छोड़ नहीं सकती थीं। माँ अपने बड़े बेटे अविनाश से अलग हो जाने का सारा दोष अपनी बड़ी बहू पर ही लगाती है।
 
अतुल के घर आने पर माँ अतुल से भी यही बात पूछती है। अतुल बताता है कि भाई को हैजा हो गया था। अतुल से यह भी पता चलता है कि अपने पति की देखभाल करके उन्हें स्वस्थ करने वाली भाभी स्वयं बहुत बीमार हो गयी हैं। भाभी की बीमारी का समाचार अतुल से मिलने पर माँ और उमा व्याकुल हो जाती हैं। माँ यह जानती हैं कि भाभी को यदि कुछ हो गया तो भाभी का पति उनका बेटा अविनाश भी जीवित नहीं रहेगा। यह बात सोचकर माँ का हृदय वेदना से भर जाता है।
 
माँ अतुल से अविनाश के घर जाने की बात कहती है। अतुल यह बात सुनकर अपनी माँ से कहता है कि यदि आप भाभी को अपने घर ले आओ तभी आपका जाना सार्थक होगा। अपने बेटे के लिए माँ अपनी मान्यताओं को बदलती है और अपनी बहू को अपने घर लाने के लिए प्रस्तुत होती है। उमा, अतुल और माँ अविनाश के घर चले जाते हैं। 

संस्कार और भावना शीर्षक की सार्थकता

संस्कार और भावना ,विष्णु प्रभाकर जी द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध एकांकी है . इस एकांकी में माँ प्रमुख पात्र बन कर आती है . वह अपने पुराने संस्कारों के कारण नयी बातों को अपना नहीं पाती है . उसका बड़ा बेटा अविनाश एक बंगाली युवती से विवाह कर लेता है . अतः माँ ने उसे घर से अलग कर दिया है .वह एक बार बहुत बीमार पड़ जाता है तो उसकी पत्नी ने अपनी जान की बाज़ी लगाकर उसकी जान बचाती है . कुछ समय बाद अविनाश की पत्नी  भी बीमार पड़ जाती है. जब इस बात की खबर माँ को लगती है तो वह बहुत चिंतित हो जाती है . पुत्र प्रेम की ममता में वह अविनाश के घर चली जाती है . एक प्रकार माँ पुत्र प्रेम में अपनी पुरानी संस्कारों  व परम्पराओं को त्याग कर भावनाओं में बह जाती है . इस प्रकार संस्कारों पर भावनाओं की जीत होती है . 

अतः कहा जा सकता है कि संस्कार और भावना एकांकी का शीर्षक आरंभ से लेकर अंत तक सार्थक एवं उचित है . 

संस्कार और भावना एकांकी का उद्देश्य

संस्कार और भावना एक पारिवारिक एकांकी है . इसके माध्यम से एकांकीकार विष्णु प्रभाकर जी ने पारिवारिक संबंधों का गहराई से मार्मिक व सजीव चित्रण किया है .एकांकी का मुख्य उद्देश्य यह दिखाना है कि आपसी रिश्तों व संबंधों में प्रेम व स्नेह से बढ़कर और कुछ नहीं होता है . अपने जीवन में आदर्शों व सिधान्तो को लेकर चलना अच्छी बात है लेकिन उन सिधान्तों व आदर्शों को ढ़ोना सही नहीं है . 




एकांकीकार ने संस्कार और भावना एकांकी में यह दिखाया है कि यदि रिश्तों को बचाने के लिए हमें अपने संस्कारों व परंपरा से समझौता भी करना पड़े तो अवश्य करना चाहिए .लेखक ने बताया है कि सभी संस्कार व परम्पराएँ मनुष्य के सुख व शांतिपूर्ण जीवन के होते है ,यदि इनके कारण मनुष्य के जीवन में बाधा पड़ने लगे तो उन्हें हमें त्याग देना चाहिए ।
 
इस एकांकी से यह शिक्षा मिलती है कि मनुष्य को अपने उन पुराने संस्कारों, जिनकी उपयोगिता न रह गई हो, से मुक्ति पा लेनी चाहिए और नए संस्कारों को अपने जीवन में जगह देनी चाहिए। इस एकांकी से यह भी शिक्षा मिलती है कि माँ का हृदय सदैव अपने बच्चे के प्रति ममता से भरा रहता है। माँ सदैव अपने बच्चे की मंगल कामना करती है। 

संस्कार और भावना एकांकी की समीक्षा

विष्णु प्रभाकर द्वारा रचित एकांकी 'संस्कार और भावना' में संस्कारों और मानवीय भावनाओं के मध्य का द्वन्द्व चित्रित हुआ है। एकांकी की कथावस्तु संक्षिप्त एवं सुसंगठित है। उसमें रोचकता विद्यमान है। विष्णु प्रभाकर जी ने एकांकी में सीमित पात्र योजना की है। उमा, माँ और अतुल मुख्य पात्र हैं वहीं भाभी, अविनाश एवं मिसरानी का उल्लेख हुआ है। एकांकी एक संक्षिप्त विधा है फिर भी इस एकांकी में पात्रों का चारित्रिक विकास अपनी पूर्णता को प्राप्त कर सका है। विष्णु जी ने मानव की मनोवृत्ति का मनोवैज्ञानिक चित्रण किया है। मध्यमवर्गीय परिवार की माँ अपने पुराने संस्कारों से बँधी हुई है। इसीलिए वह अपने बड़े बेटे की विजातीय बहू को स्वीकार नहीं करती है। उसके संस्कार उसे ऐसा नहीं करने देते। वह अपने बड़े बेटे को घर से अलग कर देती है। जब बड़ा बेटा अत्यधिक बीमार पड़ता है तथा उसके बाद उसकी पत्नी बीमार पड़ जाती है तब माँ की ममता विचलित हो उठती है। वह अपने संस्कारों और ममता के मध्य अन्तर्द्वन्द्व में घिर जाती है। अंत में उसकी ममता अर्थात् भावना की जीत होती है और वह अपने बड़े बेटे और बहू से मिलने चल देती है। उसके मन में यह निश्चय भी रहता है कि वह अपनी विजातीय बहू को स्वीकार कर लेगी।
 
एकांकी में संक्षिप्त कथानक के साथ-साथ सटीक मंच सज्जा भी होनी चाहिए। संस्कार और भावना एकांकी अभिनेयता की दृष्टि से पूर्णतः सफल है। इसका मंचन आसानी से किया जा सकता है। एकांकी की भाषा सरल, सुबोध एवं मुहावरों से युक्त है। यह एकांकी रूढिग्रस्त मान्यताओं से ऊपर उठकर मानवीय संवेदना को महत्त्व देती है। 

इस एकांकी के केन्द्र में 'संस्कारों' एवं 'भावनाओं' का अन्तर्द्वन्द्व विद्यमान है इसलिए इसका शीर्षक संस्कार और भावना' सर्वथा उपयुक्त शीर्षक है। संयुक्त परिवार के महत्व को रेखांकित करता एकांकी सर्वथा सार्थक एकांकी है। यह अपने उद्देश्य में पूर्णत: सफल रहा है।
 

संस्कार और भावना एकांकी पात्रों का चरित्र चित्रण

संस्कार और भावना एक शक्तिशाली और भावनात्मक एकांकी है जो मानवीय अनुभवों की गहराई को दर्शाता है। यह पाठकों को सोचने और प्रश्न करने के लिए प्रेरित करता है।एकांकी के प्रमुख पात्रों का चरित्र चित्रण निम्नलिखित है - 

संस्कार और भावना एकांकी में माँ का चरित्र चित्रण

संस्कार और भावना एकांकी में माँ सबसे महत्वपूर्ण पात्र बन कर उभरती है . माँ एक रुढ़िवादी महिला है ,जिसके सस्कार में जातिवाद इतनी गहराई से समाया है जिसके कारण वह अपने बेटे के प्रति भी निर्मम हो जाती है और अपनी विजातीय बहू को अपना नहीं पाती है .माँ को पता है कि उसके बेटे को हैजा हो जाता है ,इस खबर से वह दुखी तो होती है ,लेकिन अपने बेटे के पास जाने का साहस नहीं कर पाती है . अंत में जब उसे पता चलता है कि अविनाश की पत्नी भी बीमार पड़ गयी है ,तो वह अपने आप को रोक नहीं पाती है .उसमें एक परिवर्तन दिखाई पड़ता है और वह अपनी भावनाओं के आगे झुक जाती है और अपने बेटे और बहू को स्वीकार कर लेती है ।
 
'माँ' एकांकी की केन्द्रीय पात्र है। वह रीति-रिवाजों से बँधी हुई परम्परागत नारी है। वह पतिपरायण नारी है। माँ रूढ़ियों, जातिवाद एवं धार्मिक परम्पराओं में विश्वास रखती है। वह पुरानी परम्पराओं और नवीन मान्यताओं के टकराव को स्वीकार करती है। माँ अपनी पुरानी मान्यताओं के कारण अपनी विजातीय बहू को स्वीकार नहीं करती है। वह अपने बड़े बेटे को घर से निकाल देती है क्योंकि उसने दूसरी जाति की लड़की से विवाह किया है। बड़े बेटे को अपने से दूर करने के बाद वह उससे प्रेम करने के कारण दुःखी रहती है। वह धर्म भीरु है। वह भावुक होते हुए भी प्राचीन परम्पराओं का ही पालन करती हैं।
 
माँ अपनी छोटी बहू और बेटे के साथ स्नेहमयी व्यवहार करती हैं। वह ममतामयी माँ हैं। अपने बड़े बेटे अविनाश के बीमार होने की बात सुनकर वह व्याकुल हो जाती हैं। वह अपनी छोटी बहू एवं लड़के से बार-बार पूछती हैं कि वे दोनों अविनाश के घर गए या नहीं। वह स्वयं उसके घर नहीं जाती। माँ अपने विचारों पर दृढ़ हैं किन्तु जब उन्हें पता चलता है कि उनके बेटे की बीमारी के समय उनकी बड़ी बहू ने उसकी खूब सेवा की और उसे मृत्यु से बचा लिया तब वह बड़ी बहू के प्रति उतनी कठोर नहीं रह पाती हैं जितनी पहले रहती थीं। बड़े लड़के की बीमारी के बाद जब उस लड़के की बहू की तबीयत खराब हो जाती है तब माँ उस बहू से मिलना चाहती है। बड़ी बहू से मिलने की माँ की इच्छा पर छोटा बेटा अतुल माँ से कहता है कि तुम्हारा जाना तभी ठीक होगा जब तुम अपनी विजातीय बहू को अपने साथ ले आओ। पुत्र-प्रेम में विह्वल होकर माँ अपने संस्कारों से मुक्त होकर अपनी बहू को लाने चल देती है। माँ का परिवर्तनशील चरित्र एकांकी के सुखद समापन में महत्वपूर्ण रहा है।

संस्कार और भावना अतुल का चरित्र चित्रण

अतुल एकांकी का महत्त्वपूर्ण पात्र है। वह माँ का छोटा पुत्र है। वह रूढ़िग्रस्त पुरानी मान्यताओं को महत्त्व न देते हुए आधुनिक मान्यताओं में विश्वास रखता है। वह प्रगतिशील विचारों से युक्त है। वह पुराने संस्कारों के कारण भविष्य को दाँव पर नहीं लगाना चाहता। अतुल अपनी माँ की आज्ञा का पालन सदैव करता है। वह विवेकशील है। यदि उसे लगता है कि कहीं माँ के विचार उपयुक्त नहीं हैं तब वह माँ के गलत विचारों को भी स्वीकार नहीं करता है। अपनी माँ द्वारा अपने बड़े भाई को घर से निकाले जाने के निर्णय से अतुल सहमत नहीं है। वह अपने बड़े भाई का सम्मान करता है। जब माँ अपने बेटे के घर जाना चाहती है तब अतुल माँ से कहता है कि-"अभी चलो माँ, पर चलने से पहले एक बात सोच लो। यदि तुम उस नीच कुल की विजातीय भाभी को इस घर में नहीं ला सर्की तो जाने से कुछ लाभ नहीं होगा।" अतुल के व्यावहारिक चरित्र का पता इस बात से सहज ही लग जाता है।
 
अतुल संयुक्त परिवार में विश्वास रखता है। वह अपने टूटे परिवार को जोड़ना चाहता है। वह अपने बड़े भाई के परिवार से अलग रहने पर प्रसन्न नहीं है। वह अत्यन्त भावुक है। जब माँ अतुल से भाई की बीमारी न बताने की बात कहती है तब वह माँ से कहता है कि, "माँ मैं जानता था, तुम वहाँ नहीं जा सकोगी और जाने से भी क्या होता।जब तक तुम उस नीच कुल की विजातीय भाभी को घर नहीं ला सकर्ती तब तक प्रेम और ममता की दुहाई व्यर्थ है। 

अतुल अपने भाई से बहुत प्रेम करता है। वह अपने भाई के स्वभाव को भली-भाँति जानता है। जब उमा अतुल से बड़े भाई साहब को देखने जाने के लिए कहती है तब अतुल उमा से बड़े भाई साहब के स्वाभिमानी एवं दृढ़ निश्चयी स्वभाव की बात कहता है— "कोई लाभ नहीं होगा उमा ! भइया में एक दोष है। वे जो कहते हैं, करना जानते हैं। उनके पास पैसा नहीं है किन्तु वे उसके लिए किसी के आगे हाथ नहीं पसारेंगे। वे फौलाद के समान हैं जो टूट जाता है पर झुकता नहीं।'

अतुल अपनी माँ से भी आधुनिक विचारों के अनुरूप आचरण करने की अपेक्षा करता है। वह एकांकी का महत्वपूर्ण पात्र है। 

संस्कार और भावना उमा का चरित्र चित्रण 

उमा इस एकांकी की दूसरी प्रमुख स्त्री पात्र है। वह अतुल की पत्नी एवं माँ की छोटी बहू है। उमा आधुनिक विचारों से युक्त होने पर भी अपनी सास की पक्की अनुयायी है। वह सदैव अपनी सास की आज्ञा का पालन करती है और सदैव उनका ध्यान रखती है। उमा अपनी सास के दुःखी होने पर उनका पक्ष लेने के लिए बड़ी भाभी के पास चली जाती है। वह बड़ी भाभी से माँ का पक्ष लेती है।
 
उमा बड़ी भाभी के बीमार होने पर उन्हें देखने जाने का आग्रह भी करती है। उमा संवेदनशील होने के कारण अपने पति और सास से बड़ी भाभी के लिए कहती है। उमा संयुक्त परिवार में विश्वास रखती है। वह यह चाहती है कि उसका पूरा परिवार एक साथ रहे। उमा तर्कशील महिला है वह अपनी बड़ी भाभी के समक्ष माँ के पक्ष में तर्क रखती है। उमा पतिव्रता नारी है। जब भाभी उमा से पूछती हैं कि क्या तुम समाज के लिए अपने पति को छोड़ दोगी तो उमा इस बात से मना कर देती है। उमा तर्कशील, संवेदना से युक्त, सम्मान देने वाली, पतिव्रता, आधुनिक विचारों वाली नारी है। वह बड़ी भाभी की सुन्दरता पर मुग्ध भी हो जाती है । मुग्ध हो जाने के कारण उमा उनसे अधिक वार्तालाप नहीं कर पाती। अतः कह सकते हैं कि वह एक आदर्श भारतीय नारी है। 


संस्कार और भावना प्रश्न उत्तर 


प्र.१.  माँ ने मिसरानी की बात सुनकर क्या विचार किया ?

उ. माँ, मिसरानी की बात सुनकर बहुत शर्मिंदा हुई। उन्होंने सोचा कि यह कितनी लज्जा की बात है कि उनका बेटा बीमार रहे और उन्हें पता भी न चले।

प्र.२. मिसरानी ने किस बात की तारीफ़ की ?

उ. मिसरानी ने माँ से बड़ी भाभी की बहुत तारीफ़ की।  उन्होंने माँ से कहा कि बड़ी बहु बहुत मेहनती एवं स्वाभिमानी है।  उसने अपने आप ही अपने पति को स्वास्थ्य कर लिया और जीवन में सभी समस्यों को स्वयं ही सामना किया।

प्र.३. भाभी कौन है ? पाठ के आधार पर परिचय दीजिये ?

उ. भाभी अविनाश की पत्नी है ,वह बंगाली मूल की हैं।  वह बहुत सुन्दर दिखती है ,उनकी आँखें बड़ी बड़ी हैं। उनके मुँह पर हमेशा हँसी रहती थी। उमा भी उनके सौन्दर्य पर मुग्ध है।

प्र.४. उमा एवं अतुल द्वारा अविनाश के घर आने जाने की बात पर माँ क्या सोचती हैं ?

उ. उमा एवं अतुल द्वारा अविनाश के घर आने जाने की बात पर माँ हैरान हो जाति है।  वह सोचती हैं कि सब अविनाश से मिलने जाते हैं वह ही क्यों अपनी रूढ़ीवादी सोच के कारण अपने आपको रोक के रखी है।

प्र.५. माँ किन संस्कारों में पली - बढ़ी हुई हैं ? उनका जीवन कैसा है ?

उ. माँ पुराने विचारों में पली - बढ़ी महिला हैं।वह जाति प्रथा को मानने वाली हैं तथा विजातीय विवाह को स्वीकार नहीं कर पाती हैं।  कोई भी उनके धर्म के नियम को तोड़ नहीं सकता हैं।  यही कारण है कि वह बंगाली बहू को अपना नहीं सकी और अपने बेटे बहू को अलग कर दिया।

प्र.६. अतुल के अपनी माँ के प्रति के क्या विचार हैं ?

उ. अतुल अपनी माँ को पुराने संस्कारों की महिला मानता है। यही कारण है कि माँ अपनी विजातीय बहू को स्वीकार नहीं किया और बेटे बहू को घर से अलग कर दिया।  अतुल के अनुसार माँ,निर्मम ,कायर व कमज़ोर व्यक्तित्व की महिला हैं।

प्र.७. अविनाश की पत्नी की बिमारी की खबर सुनकर माँ के मन पर क्या प्रभाव पड़ा ?

उ. अविनाश की पत्नी की बिमारी की खबर सुनकर माँ के मन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। वे सोचने लगी कि अविनाश अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करता है। बहू के मरने पर बेटा भी जिन्दा  नहीं रह पायेगा।  उनकी ममतामयी भावनाएँ जाग जाती है और वह बहू को अपनाने के लिए तैयार हो जाती है।



MCQ Questions with Answers Sanskar Aur Bhavna


बहुविकल्पीय प्रश्न उत्तर
प्र. १. संस्कार और भावना एकांकी के लेखक है ?

a. विष्णु प्रभाकर 
b. प्रेमचंद 
c. महादेवी वर्मा 
d. मोहन राकेश 

उ. a विष्णु प्रभाकर 

प्र. २. विष्णु प्रभाकर का जन्म कहाँ हुआ था ?

a. भोपाल 
b. नैनीताल 
c. मुजफ्फरनगर 
d. इंदौर 

उ. c. मुजफ्फरनगर 

प्र. ३ विष्णु प्रभाकर की प्रसिद्ध रचना है ?

a. आवारा मसीहा 
b. गोदान 
c. कर्मभूमि 
d. चित्रलेखा 

उ. a. आवारा मसीहा 

प्र. ४. संस्कार और भावना एकांकी का मुख्य पात्र है ?

a. अतुल 
b. उमा 
c. माँ 
d. मिसरानी 

उ. c. माँ  

प्र. ५. कुमार के घर कौन गया गया था ?

a. अतुल 
b. माँ 
c. उमा 
d. अविनाश 

उ. b. माँ 

प्र. ६. किसके बचपन में खाँसी हो जाने पर भी माँ परेशान हो जाती थी ?

a. अतुल के 
b. उमा के 
c. अविनाश के 
d. राहुल के 

उ. c. अविनाश के 

प्र. ७. अविनाश अलग क्यों रहता था ?

a. वह अपने भाई से नाराज़ था . 
b. वह अपने माँ से नाराज़ था . 
c. उसने बंगाली लड़की से शादी कर ली थी . 
d. सास - बहु की आपस में बनती नहीं थी . 

उ. c. उसने बंगाली लड़की से शादी कर ली थी . 

प्र. 8. अविनाश ने किस जाती की लड़की से शादी की थी ?

a. दलित 
b. मुसलमान 
c. बंगाली 
d. पंजाबी 

उ. c. बंगाली 

प्र. ९. बहु ने अविनाश को किस बीमारी से प्राण देकर बचा लिया था ?

a. हैजे की बीमारी से 
b. शुगर की बीमारी 
c. हार्ट अटेक 
d. मलेरिया 

उ. a. हैजे की बीमारी से 

प्र. १०. उमा किससे लड़ने गयी थी ?

a. माँ से 
b. मिसरानी से 
c. अतुल से 
d. अविनाश की पत्नी से 

उ. d. अविनाश की पत्नी से 

प्र. 11. अविनाश . बीमारी के कारण कितने दिनों तक दफ्तर नहीं जा पाया था ?

a. पाँच दिन 
b. एक महीने 
c. दस दिन 
d. उपरोक्त में से कोई नहीं 

उ. d. दस दिन 

प्र. १२ . ' उसके बचने की कोई आशा नहीं है ' . इस वाक्य में उसके शब्द का प्रयोग किसके लिए किया था ?

a. अविनाश के लिए 
b. माँ के लिए .
c. अविनाश की पत्नी के लिए 
d. मिसरानी के लिए 

उ. c. अविनाश की पत्नी के लिए 

प्र. १३. एकांकी में 'डायन' शब्द का प्रयोग किसके लिए किया गया है ?

a. मिसरानी के लिए 
b. माँ के लिए 
c. उमा के लिए 
d. अविनाश की पत्नी के लिए 

उ. d. अविनाश की पत्नी के लिए 

प्र. १४. 'संस्कारों की दासता सबसे भयंकर शत्रु है .' कथन किसने कहा था ?

a. माँ ने 
b. अतुल ने 
c. मिसरानी ने 
d. अविनाश ने 

उ. d. अविनाश ने 

प्र. १५. अविनाश की पत्नी दिखने में कैसी है ?

a. बहुत ही सुन्दर 
b. कुरूप 
c. मोटी 
d. साँवली 

उ. a. बहुत ही सुन्दर  


COMMENTS

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  1. Please do give the character sketch of all the characters in this part of drama

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  2. काल में सबसे अच्छा पात्र कौन सा है

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    1. Kal me sabse acha patra atul ka jo apne bhai ke prati prem ke karan unse milne jata tha

      हटाएं
  3. Very nice but mention the charactersketch of the characters

    जवाब देंहटाएं
  4. सभी कार्य बहुत अच्छा है | विद्यार्थियों को यहाँ से काफी हद तक मदद मिल सकती है | एक प्रार्थना करना चाहूंगी कि कुछ मात्राओं की गलतियाँ हुई है |

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हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: संस्कार और भावना Sanskaar aur Bhavna
संस्कार और भावना Sanskaar aur Bhavna
संस्कार और भावना Sanskaar aur Bhavna संस्कार और भावना समरी - संस्कार और भावना , विष्णु प्रभाकर जी द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध एकांकी है . प्रस्तुत एकांकी में उन्होंने एक परिवार का बड़े ही मार्मिक ढंग से वर्णन किया है .
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