भिक्षुक कविता Bhikshuk Kavita

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भिक्षुक कविता Bhikshuk Kavita

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविता "भिक्षुक" हिंदी साहित्य की एक ऐसी रचना है जो पाठकों के हृदय को झकझोर कर रख देती है। इस कविता में निराला ने एक भिखारी की दयनीय स्थिति को बहुत ही मार्मिक ढंग से चित्रित किया है। कवि ने भिखारी के जीवन के उन पहलुओं को उजागर किया है जो आम तौर पर लोगों की नजरों से ओझल रह जाते हैं।

भिखारी का जीवन संघर्ष और दुःख से भरा होता है। निराला ने इस कविता में भिखारी के मन के उन जज्बातों को बयां किया है जो वह हर रोज महसूस करता है। भूख, प्यास, ठंड, अपमान और असहायता - ये सभी भावनाएं इस कविता में जीवंत हो उठती हैं। कवि ने भिखारी के जीवन को एक दर्पण की तरह रखकर समाज के सामने रख दिया है।

भिक्षुक कविता की व्याख्या भावार्थ


वह आता -
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता|
पेट-पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी-भर दाने को-भूख मिटाने को
मुँह फटी-पुरानी झोली का फैलता -
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता|


व्याख्या - प्रस्तुत पद में कवि निराला जी ने कहा है कि एक भिखारी को जब वे भीख माँगते देखते हैं तो उसकी दीन - हीन दशा को देखकर उनके कलेजे के टुकड़े - टुकड़े हो जाते हैं . वह अपनी दीन - हीन अवस्था को देखकर पश्चाताप है . वह लाठी के सहारे धीरे धीरे चलता हैं ,उसकी पीठ और पेट एक हो गए हैं यानी की वह कई दिनों से भूखा है . थोड़े से भोजन के लिए उसे दर -दर की ठोकरे खानी पड़ रही हैं . उसके हाथ में एक फटी पुरानी झोली है ,जिसे वह सबके सामने फैलाता हुआ भीख माँग रहा  है ताकि वह अपना पेट भर सके . यह देख कर कवि का ह्रदय चीर - चीर हो जाता है . यह दरिद्रता को देखकर पछताता रहता है .


२. साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाये ,
बायें से वे मलते हुए पेट को चलते,
और दाहिना दया-दृष्टि पाने की ओर बढ़ाए|
भूख से सूख ओंठ जब जाते,
दाता-भाग्य-विधाता से क्या पाते?
घूँट आँसूओं के पीकर रह जाते|

व्याख्या - सड़क पर चलते भिखारी के साथ उसके दो बच्चे भी है .वे अपने बाएँ हाथ से अपने पेट को मलते हुए चल रहे है और दाहिने हाथ से आते -जाते हुए लोगों से कुछ पाने के लिए हाथ फैलाये माँग रहे हैं . भूख से होंठ सूख गए गए है तो वे अपने अपने आंसुओं को पीकर रह जाते है . ऐसा लगता है मानों उन बच्चों की दशा को देख कर किसी को दया नहीं आती है और किसी ने उनको खाने के लिए कुछ भी नहीं मिलता . अतः कवि उनकी दशा को देखकर द्रवित हो जाता है .


३.चाट रहे जूठी पत्तल वे कभी सड़क पर खड़े हुए ,
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए|
ठहरो, अहो मेरे हृदय में है अमृत,
मैं सींच दूंगा|
अभिमन्यु जैसे हो सकोगे तुम
तुम्हारे दुःख मैं अपने हृदय में खींच लूँगा|

व्याख्या - भूख से ब्याकुल भिखारी और उसके दोनों बच्चे जब मार्ग से गुजरते है तो सड़क से किनारे झूठी पत्तलों को देखकर उनसे रहा नहीं जाता है और वे अपनी भूख को मिटाने के लिए वे सड़क पर पड़े हुए उन्ही झूठी पत्तलों को चाटते हैं . वे भी गली के कुत्ते को साथ झूठी पत्तलों को चाटने के लिए लड़ने लगते हैं .कवि यह देखकर को देखकर द्रवित हो जाता है . कवि का ह्रदय इस बात के लिए चिंतित हो जाता है कि वह उनके दुःख दर्द को बाटेंगा और इनका दर्द दूर करेगा .

भिक्षुक कविता का केंद्रीय भाव / मूल भाव सारांश

सूर्यकान्त त्रिपाठी जी ने अपनी कविता 'भिक्षुक' में एक भिक्षुक की दयनीय स्थिति का वर्णन करते हुए कहा है कि एक भिक्षुक अपने भाग्य पर दुखी होता हुआ और मन में स्वयं पर पछताता हुए मार्ग पर चला आ है। कई दिनों से भूखा होने के कारण उसका पेट सिकुड़कर पीठ से मिल गया है। कमजोरी के कारण वह लाठी टेककर चल रहा है। वह दान में दो मुट्ठी अन्न प्राप्त करके अपनी भूख शान्त करना चाहता है इसलिए एक फटी पुरानी झोली को भिक्षा पाने के लिए वह दूसरों के सामने उसे फैलाता है। वह अकेला नहीं है उसके साथ उसके दो बच्चे भी हैं। वे भी हाथ फैलाकर भीख माँग रहे हैं। वे बाएं हाथ से पेट को मलते हुए भूखा होने का संकेत दे रहे हैं और दाएं हाथ से लोगों से कुछ देने गुहार लगा रहे हैं। लेकिन कोई उन पर दया नहीं दिखा रहा है। भूख से उनके होंठ सूख गए हैं मगर किसी की कृपा दृष्टि न होने के कारण वे आँसुओं का घूँट पीकर रह जाते हैं। 

भिक्षा न मिलने पर वे सड़क के किनारे पड़ी पत्तलों से जूठन उठाकर खाने लगते हैं लेकिन कुछ कुत्ते उस जूठन को भी उनसे झपट लेना चाहतें हैं। कवि कहता है कि जब तक अभिमन्यु के समान चारों ओर से शत्रुओं से घिर जाओगे अर्थात् लगातार संघर्ष करते रहने पर भी तुम दुःख की पराकाष्ठा पर पहुँच जाओगे तब मैं दुःखों को अपना बना लूँगा। यहाँ कवि भिक्षुक को निराश न हो अपने अधिकारों के लिए संघर्षरत हरने की प्रेरणा दे रहा है। 

कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, हिंदी साहित्य के उन महान रचनाकारों में से एक हैं जिन्होंने अपनी रचनाओं से हिंदी साहित्य को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। निराला का जन्म 21 फरवरी, 1896 को बंगाल के मेदिनीपुर में हुआ था। बचपन से ही उनकी रचनात्मक प्रतिभा का परिचय मिलने लगा था।

निराला ने न केवल कविताएँ लिखीं बल्कि कहानियाँ, उपन्यास और निबंध भी लिखे। उनकी रचनाओं में प्रकृति, प्रेम, जीवन और मृत्यु जैसे गहन विषयों को बहुत ही मार्मिक ढंग से उकेरा गया है। उनकी कुछ प्रमुख रचनाएँ हैं - 'अप्सरा', 'सरोज-स्मृति', 'गीतिका', 'परिमल', 'तुलसीदास', 'राम की शक्ति पुजा आदि।

निराला की कविताएँ अपनी भावुकता और गहराई के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने अपनी कविताओं में प्रयोग किए और हिंदी कविता को एक नई दिशा दी। निराला को छायावादी कवियों में से एक माना जाता है।

निराला ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज के विभिन्न मुद्दों पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने अंधविश्वास, सामाजिक कुरीतियों और शोषण के खिलाफ आवाज उठाई। निराला की रचनाएँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी पहले थीं।

निराला का निधन 15 अक्टूबर, 1961 को हुआ। लेकिन उनकी रचनाएँ आज भी हिंदी साहित्य की धरोहर हैं। निराला ने हिंदी साहित्य को जो अमूल्य योगदान दिया है, वह सदैव याद रखा जाएगा।

भिक्षुक कविता के प्रश्न उत्तर


प्र .१.दो टूक कलेजे का क्या अर्थ हैं ?

उ .दो दो टूक कलेजे का अर्थ है कि बहुत दुखी होना है . प्रस्तुत कविता में भिक्षुक बहुत दुखी है .

प्र .पेट और पीठ मिल कर एक क्यों हो गए हैं ?

उ. भिक्षुक का पेट और पीठ मिल कर एक इसीलिए हो गए है क्योंकि उन्हें बहुत दिनों से भर पेट भोजन नहीं मिला है .वे अन्दर से भुखमरी के शिकार हो गए हैं .

प्र .भिखारी सड़क पर क्या कर रहे हैं ?

उ. भिखारी और उसके दोनों बच्चे झूठी पत्तले चाट रहे हैं .

प्र .भिखारी के हाथ से कौन पत्तल झपट लेना चाहता है ?

उ . भिखारी और उसके बच्चे अपनी भूख शांत करने के लिए रास्ते पर पड़े हुए पत्तलों को चाट रहे हैं .उनके साथ कुत्ते भी उन्ही पत्तलों को चाट रहे है ,अतः कुत्तों के साथ उनकी लडाई हो रही हैं .

प्र .किसकी दशा को देख कर किसी को दया नहीं आती है ?

उ .भिखारी और उसके दोनों बच्चों की दशा को देखर किसी को दया नहीं आती है और न ही उनकी सहायता के लिए कोई उन्हें अनाज ही दे रहा है ताकि उनकी भूख शांत हो सके . 

प्रश्न . 'वह आता' में कवि ने 'वह' किसके लिए प्रयुक्त किया है तथा वह पछता क्यों रहा है? 

उत्तर- कवि ने 'वह' मार्ग में मिले भिखारी के लिए प्रयुक्त किया । वह पछता इसलिए रहा था कि उसे अपनी भूख शान्त करने के लिए भीख माँगते हुए भटकना पड़ रहा था अतः वह अपने भाग्य पर पछताता हुआ दूसरों के आगे हाथ फैलाने के लिए विवश था।
 
प्रश्न. कवि ने भिक्षुक की दुर्बलता का वर्णन किस प्रकार किया है?
 
उत्तर- कवि ने भिक्षुक की दुर्बलता का वर्णन करते हुए कहा है कि कई दिन से भूखा रहने के कारण उसका पेट सिकुड़ गया था और पीठ से चिपक गया था। इसलिए उसका पेट और पीठ मिलकर एक हो गए थे तथा दुर्बलता के कारण वह लाठी के सहारे ही चल पा रहा था।
 
प्रश्न. वह लोगों से क्या प्रार्थना कर रहा था? और क्यों?

उत्तर- वह (भिक्षुक) लोगों से मुट्ठी भर अन्न की प्रार्थना कर रहा था, क्योंकि उसे कई दिनों से भोजन नहीं मिला था। इसलिए अपनी क्षुधा-शान्ति के लिए वह लोगों से भिक्षा पाने के लिए भटक रहा था।
 
प्रश्न. 'मुँह फटी-पुरानी झोली का फैलाता' से कवि का क्या आशय है? 

उत्तर- इस पंक्ति से कवि भिक्षुक की दयनीय स्थिति को स्पष्ट करता कहता है उसके पास भिक्षा के लिए एक फटी और बहुत पुरानी सी एक झोली थी जिसे वह कुछ पाने की आशा में दूसरों के सामने बार-बार फैला रहा था ताकि उसकी भूख मिट जाये लेकिन किसी को भी उस पर दया नहीं आ रही थी ।
 
प्रश्न. भिक्षुक के साथ कौन है और वे क्या कर रहे हैं?

उत्तर- भिक्षुक अकेला नहीं है उसके साथ उसके दो बच्चे भी हैं। वे भी अपने हाथ फैलाकर लोगों से भिक्षा माँग रहे हैं। 

प्रश्न. भिक्षुक के बच्चों की क्या विशेषता है? 

उत्तर- भिक्षुक के बच्चे बाएँ हाथ से अपने पेट को मल रहे हैं ताकि वे लोगों को अपने भूखे होने का संकेत दे सकें तथा दाएँ हाथ को लोगों के सामने भिक्षा के लिए पसार कर अपनी मदद करने की गुहार लगा रहे हैं।
 
प्रश्न. किसके होंठ सूख गए हैं और क्यों ? 

उत्तर- भिक्षुक और उसके बच्चों के होंठ सूख गए हैं क्योंकि कई दिनों से भूखे वे दर-दर भीख माँग रहे हैं लेकिन फिर भी खाने के लिए कुछ नहीं मिल पा रहा है जिससे उनके होंठ बार बार सूख जाते हैं।
 
प्रश्न. 'घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते' में कवि किसके सन्दर्भ में बात कर रहा हैं? 

उत्तर- भिक्षुक और उसके दो बच्चे आँसूओं के घूँट पीकर रह जाने को विवश हैं क्योंकि कोई भी व्यक्ति उनकी दयनीय स्थिति पर द्रवित नहीं हो रहा है अतः हर बार वे निराश हो जाते हैं (और अपनी स्थिति पर दुःखी होकर उसे सहन कर बार-बार कोशिश करते रहते हैं।
 
प्रश्न. अंत में भिक्षुक क्या करने को मजबूर हो जाता है?

उत्तर- भिक्षुक और उसके बच्चों के पास जब भूख शान्त करने के लिए कोई उपाय नहीं तब वे सड़क के किनारे पड़ी जूठी पत्तलों को उठा लेते हैं और उनमें बची खाद्य सामग्री खाने को मजबूर हो जाते हैं। ताकि उन्हें चाटकर उनका पेट भर जाये ।

प्रश्न. 'और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए।' इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर- जब सड़क किनारे पड़ी जूठी पत्तलों को चाटकर भिक्षुक अपने पेट को भरने का प्रयास करता है तो कुत्ते उनसे जूठी पत्तले भी झपट लेना चाहते हैं। क्योंकि वे उस भोजन पर अपना अधिकार समझते हैं।
 
प्रश्न. अभिमन्यु कौन था? उसके साथ कौन-सी घटना घटी ? 

उत्तर- अभिमन्यु अर्जुन का पुत्र था। महाभारत के युद्ध में सात महारथियों ने अकेले अभिमन्यु को घेर लिया और निहत्थे अभिमन्यु को अन्यायपूर्वक सबने मिलकर मार दिया था।
 
प्रश्न. भिक्षुक कविता का उद्देश्य क्या है? 

उत्तर- इस कविता का उद्देश्य भिक्षुक को प्रेरणा देना है कि वह कभी निराश न हो और अपने अधिकारों के प्रति सदैव संघर्षरत रहे। साथ ही समाज की निर्दयता, निष्ठुरता पर कटाक्ष कर उनमें मानव मात्र के प्रति संवेदना जाग्रत करना है। 



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COMMENTS

Leave a Reply: 13
  1. Bahut achhi kavita hai. Kabhi 6th class mai padhi thi. Aj Ise padhkar wo waqt yaad aa gya...

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  2. प्रस्तुत कविता की अंतिम पंक्तियों में अभिमन्यु शब्द का क्या अभिप्राय है ?

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    उत्तर
    1. जिस प्रकार अभिमन्यु चक्र को तोड़ कर अकेला घुस गया और सात सात महारथियों का सामना किया वैसे ही लेखक भीख के चक्र से भिक्षुक को निकाल कर उसे सभी विपदाओं से लडने वाला बना देना चाहता है।

      हटाएं
    2. जिस प्रकार अभिमन्यु चक्र को तोड़ कर अकेला घुस गया और सात सात महारथियों का सामना किया वैसे ही लेखक भीख के चक्र से भिक्षुक को निकाल कर उसे सभी विपदाओं से लडने वाला बना देना चाहता है।

      हटाएं
  3. Kavita mai bhikshuk abhimanyu k saman kab ho sakte hai?

    जवाब देंहटाएं
  4. How you do,do you good poem very good

    जवाब देंहटाएं
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