विनय के पद समरी विनय के पद का सारांश विनय पत्रिका हनुमान स्तुति विनय के पद सूरदास विनय के पद का उद्देश्य vinay ke pad summary vinay ke pad icse vinay ke pad meaning tulsidas poems in hindi pdf vinay ke pad explanation in hindi vinay ke pad summary in hindi
विनय के पद Vinay Ke Pad
१. ऐसो को उदार जग माहीं।
बिनु सेवा जो द्रवै दीन पर राम सरिस कोउ नाहीं॥
जो गति जोग बिराग जतन करि नहिं पावत मुनि ग्यानी।
सो गति देत गीध सबरी कहँ प्रभु न बहुत जिय जानी॥
जो संपति दस सीस अरप करि रावन सिव पहँ लीन्हीं।
सो संपदा बिभीषन कहँ अति सकुच-सहित हरि दीन्हीं॥
तुलसिदास सब भाँति सकल सुख जो चाहसि मन मेरो।
तौ भजु राम, काम सब पूरन करैं कृपानिधि तेरो॥
व्याख्या - प्रस्तुत पद में महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि इस संसार में श्रीराम के समान कोई दयावान नहीं है जो कि बिना सेवा के ही दीन दुखियों पर अपनी कृपा बरसाते हैं . कवि कहते हैं कि बड़े - बड़े ज्ञानियों और मुनियों को भी योग और तपस्या के भी भगवान् का वैसा आशीर्वाद नहीं मिलता ,जैसा की भगवान् श्रीराम के द्वारा जटायु और शबरी को मिला .जिस कृपा को पाने रावण को अपने दस सिरों को अर्पण करना पड़ा ,वहीँ प्रभु कृपा विभीषण को कुछ त्याग किये बिना ही श्रीराम से प्राप्त हो गयी .इसीलिए कवि कहते है हे मन ! अगर मेरे जीवन में सभी सुखों को प्राप्त करना हो और भगवत प्राप्ति करनी हो तो प्रभु श्रीराम को भजो . वही सबका कल्याण करते हैं .सभी की मनोकामना पूरी करते हैं .
२. जाके प्रिय न राम वैदेही
तजिए ताहि कोटि बैरी सम, जद्यपि परम सनेही ।
तज्यो पिता प्रहलाद, विभीषन बंधु, भरत महतारी ।
बलिगुरु तज्यो कंत ब्रजबनितन्हि, भये मुद मंगलकारी ।
नाते नेह राम के मनियत सुहृद सुसेव्य जहां लौं ।
अंजन कहां आंखि जेहि फूटै, बहुतक कहौं कहां लौं ।
तुलसी सो सब भांति परमहित पूज्य प्रान ते प्यारो ।
जासों हाय सनेह राम-पद, एतोमतो हमारो ।।
व्याख्या - प्रस्तुत पद में महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि जिस मनुष्य के मन में भगवान् राम के प्रति प्रेम की भावना न हो , वह मनुष्य शत्रुवों के सामान है और ऐसे मनुष्य को त्याग कर देना चाहिए चाहे वह आपका कितना ही परम स्नेही हो . कवि कहते है कि प्रहलाद ने अपने पिता को ,विभीषण ने अपने भाई को और भरत ने अपनी माता का त्याग कर दिया . राजा बलि को उनके गुरु ने और ब्रज की गोपिओं ने अपने पति का केवल इसीलिए त्याग कर दिया क्योंकि उनके मन में श्रीराम के प्रति प्रेम नहीं है . तुलसीदास जी कहते हैं जिस प्रकार काजल के प्रयोग के बिना लोचन सुन्दर नहीं दिखते हैं वैसे ही श्रीराम के प्रति के अनुराग के बिना जीवन का कल्याण असंभव है .भगवान् राम के प्रति प्रेम से ही सम्पूर्ण जीवन का कल्याण हो सकता है . अंत में महाकवि गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं कि जिस मनुष्य में मन में भगवान् राम के चरणों के प्रति स्नेह और प्रेम उसी का जीवन मंगलमय होगा और प्रभु श्रीराम उसका कल्याण करेंगे .
विनय के पद का केन्द्रीय भाव / मूल भाव
विनय के पद महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा लिखित रचना है ,जिसमें उन्होंने प्रभु श्रीराम के प्रति अपना प्रेम भाव प्रकट किया है . प्रथम पद में उन्होंने श्रीराम की उदारता का वर्णन किया है . कवि कहते हैं कि श्रीराम बिना सेवा के ही अपने भक्तों पर दया करते हैं . जो ज्ञान और प्रेम बड़े -बड़े ऋषियों और मुनियों को प्राप्त न हो सका ,वह सहज ही जटायु और शबरी को प्राप्त हो गया . अतः यदि जीवन में भगवत भक्ति प्राप्त करनी हो तो भगवान् श्रीराम को भजना होगा .
द्वितीय पद में गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं कि जिस व्यक्ति के मन भगवान् श्रीराम के प्रति प्रेम न हो उसे त्याग कर देना चाहिए चाहे वह कितना ही परम मित्र क्यों न हो . जिस प्रकार प्रहलाद ने अपने पिता को ,विभीषण ने अपने भाई को और भरत ने अपनी माता का त्याग कर दिया . राजा बलि को उनके गुरु ने और ब्रज की गोपिओं ने अपने पति का केवल इसीलिए त्याग कर दिया क्योंकि उनके मन में श्रीराम के प्रति प्रेम नहीं है .अतः जिसके मन में श्रीराम के प्रति प्रेम होगा ,उसी का कल्याण होगा .
प्रश्न उत्तर
प्र.१. कवि ने किसे उदार कहा है ?
उ. महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी ने भगवान् श्रीराम को उदार कहा है . क्योंकि वे बिना सेवा के ही गरीब और दीन -दुखियों का कल्याण करते हैं .
प्र.२. कवि ने अनुसार जीवन में सुख किस प्रकार प्राप्त हो सकता है ?
उ. कवि का कहना है कि भगवान श्रीराम की कृपा से मनुष्य को जीवन में हर प्रकार के सुख प्राप्त हो सकते हैं क्योंकि श्रीराम बड़े दयालु हैं .
प्र.३. कवि ने किसे त्यागने के लिए कहा है ?
उ. महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है कि जिस व्यक्ति के मन भगवान् श्रीराम के प्रति प्रेम न हो उसे त्याग कर देना चाहिए चाहे वह कितना ही परम मित्र क्यों न हो .
प्र.४. भगवान् श्रीराम के चरणों का गुणगान कवि ने क्यों किया है ?
उ . कवि का मानना है कि जिस मनुष्य में मन में भगवान् राम के चरणों के प्रति स्नेह और प्रेम उसी का जीवन मंगलमय होगा . और प्रभु श्रीराम उसका कल्याण करेंगे .
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जवाब देंहटाएंमाहीं का अर्थ
हटाएंशायद यहा इसका अर्थ है 'में '
हटाएंPta nahi
हटाएंOutstanding explaination
हटाएंmaja aa gya
हटाएंnahi hota hai mahi ka arth
हटाएंIn
हटाएंAditya Birla group and only print and I remember correctly in greater detail
हटाएंjag manhi means is pure sansar me Ram ke saman koi nahi
हटाएंमतो का मतलब
जवाब देंहटाएंKismat(fortune)
हटाएंVicharo
जवाब देंहटाएंVery helpful.....thank you!
जवाब देंहटाएंyeet
जवाब देंहटाएंit was so help ful thank u very much just rolly
जवाब देंहटाएंEvergreen sahitya Sagar workbook answers are not there please provide that too!
जवाब देंहटाएंEvergreen sahitya Sagar workbook answers are not there please provide that too!
जवाब देंहटाएंUddeshyakaha h
जवाब देंहटाएंjo raam ko piya nhi manega toh uska kisi ka kuch nahi ho sakhta . jisko shree raam ke charno mein prem ho , vahi bada hitkari hota hai :
हटाएंNice 😁
जवाब देंहटाएंमाहीं का अर्थ बताएंं
जवाब देंहटाएंNai
हटाएंMai
हटाएंAiso mato humaro Tulsidas kis or sanket kr rhe h
हटाएंAiso mato humaro Tulsidas ka sanket kis or h
जवाब देंहटाएंAiso mato humaro Tulsidas k sandeh kis or h
जवाब देंहटाएंTulsi das pr koi 5 question esse related?
जवाब देंहटाएंतुलसीदास किस पार्कर से ईश्वर की अविचल भक्ति पाने की बात करते हैं? मुझे इस्का जवाब चाहिए
जवाब देंहटाएंNice😃😊
जवाब देंहटाएंNice😀🙂😊
जवाब देंहटाएंHello
जवाब देंहटाएंHlo everyone
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