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विनय के पद Vinay Ke Pad
तुलसीदास जी के विनय के पद हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं। इन पदों में भक्ति, विनम्रता और ईश्वर के प्रति समर्पण की भावना स्पष्ट झलकती है। तुलसीदास जी ने अपने पदों के माध्यम से मनुष्य को अहंकार त्यागने और ईश्वर की शरण में जाने का संदेश दिया है। उनके विनय के पदों में भक्ति के साथ-साथ जीवन के गहन सत्यों को भी उजागर किया गया है। तुलसीदास जी ने रामभक्ति को अपने साहित्य का केंद्र बनाया और उनके विनय के पदों में श्रीराम के प्रति अटूट प्रेम और भक्ति का वर्णन मिलता है।
विनय के पद की व्याख्या
ऐसो को उदार जग माहीं।
बिनु सेवा जो द्रवै दीन पर राम सरिस कोउ नाहीं॥
जो गति जोग बिराग जतन करि नहिं पावत मुनि ग्यानी।
सो गति देत गीध सबरी कहँ प्रभु न बहुत जिय जानी॥
जो संपति दस सीस अरप करि रावन सिव पहँ लीन्हीं।
सो संपदा बिभीषन कहँ अति सकुच-सहित हरि दीन्हीं॥
तुलसिदास सब भाँति सकल सुख जो चाहसि मन मेरो।
तौ भजु राम, काम सब पूरन करैं कृपानिधि तेरो॥
व्याख्या - प्रस्तुत पद में महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि इस संसार में श्रीराम के समान कोई दयावान नहीं है जो कि बिना सेवा के ही दीन दुखियों पर अपनी कृपा बरसाते हैं . कवि कहते हैं कि बड़े - बड़े ज्ञानियों और मुनियों को भी योग और तपस्या के भी भगवान् का वैसा आशीर्वाद नहीं मिलता ,जैसा की भगवान् श्रीराम के द्वारा जटायु और शबरी को मिला .जिस कृपा को पाने रावण को अपने दस सिरों को अर्पण करना पड़ा ,वहीँ प्रभु कृपा विभीषण को कुछ त्याग किये बिना ही श्रीराम से प्राप्त हो गयी .इसीलिए कवि कहते है हे मन ! अगर मेरे जीवन में सभी सुखों को प्राप्त करना हो और भगवत प्राप्ति करनी हो तो प्रभु श्रीराम को भजो . वही सबका कल्याण करते हैं .सभी की मनोकामना पूरी करते हैं .
जाके प्रिय न राम वैदेही
तजिए ताहि कोटि बैरी सम, जद्यपि परम सनेही ।
तज्यो पिता प्रहलाद, विभीषन बंधु, भरत महतारी ।
बलिगुरु तज्यो कंत ब्रजबनितन्हि, भये मुद मंगलकारी ।
नाते नेह राम के मनियत सुहृद सुसेव्य जहां लौं ।
अंजन कहां आंखि जेहि फूटै, बहुतक कहौं कहां लौं ।
तुलसी सो सब भांति परमहित पूज्य प्रान ते प्यारो ।
जासों हाय सनेह राम-पद, एतोमतो हमारो ।।
व्याख्या - प्रस्तुत पद में महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि जिस मनुष्य के मन में भगवान् राम के प्रति प्रेम की भावना न हो , वह मनुष्य शत्रुवों के सामान है और ऐसे मनुष्य को त्याग कर देना चाहिए चाहे वह आपका कितना ही परम स्नेही हो . कवि कहते है कि प्रहलाद ने अपने पिता को ,विभीषण ने अपने भाई को और भरत ने अपनी माता का त्याग कर दिया . राजा बलि को उनके गुरु ने और ब्रज की गोपिओं ने अपने पति का केवल इसीलिए त्याग कर दिया क्योंकि उनके मन में श्रीराम के प्रति प्रेम नहीं है . तुलसीदास जी कहते हैं जिस प्रकार काजल के प्रयोग के बिना लोचन सुन्दर नहीं दिखते हैं वैसे ही श्रीराम के प्रति के अनुराग के बिना जीवन का कल्याण असंभव है .भगवान् राम के प्रति प्रेम से ही सम्पूर्ण जीवन का कल्याण हो सकता है . अंत में महाकवि गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं कि जिस मनुष्य में मन में भगवान् राम के चरणों के प्रति स्नेह और प्रेम उसी का जीवन मंगलमय होगा और प्रभु श्रीराम उसका कल्याण करेंगे .
विनय के पद का केन्द्रीय भाव / मूल भाव
विनय के पद महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा लिखित रचना है ,जिसमें उन्होंने प्रभु श्रीराम के प्रति अपना प्रेम भाव प्रकट किया है । प्रथम पद में कवि तुलसीदास ने परमपिता परमेश्वर श्रीराम की उदारता का वर्णन किया है। कवि के अनुसार, भगवान श्रीराम अत्यंत दयालु हैं जो बिना सेवा किये ही दीनों पर अपनी दया करते हैं। तुलसीदास जी ने मुनियों और ज्ञानियों का उदाहरण देते हुए कहा है कि बड़े से बड़े ज्ञानियों और मुनियों को भी योग और तपस्या के बावजूद ईश्वर का वैसा आशीर्वाद नहीं मिला जैसा भगवान श्री राम के द्वारा जटायु और शबरी को मिला। जिस शिव कृपा को पाने के लिए रावण को अपने दसों सिर का अर्पण करना पड़ा, वही प्रभु कृपा विभीषण को बिना कुछ जतन किए श्री राम से मिल गई। इसलिए तुलसीदास जी ने कहा है कि अगर जीवन के सम्पूर्ण सुखों को प्राप्त करना हो, और कल्याण पाना हो तो कृपानिधि राम ही अपने भक्तों का कल्याण कर सकते हैं।
यहाँ कवि तुलसीदास जी ने राम के साथ-साथ सीता माता के गुणों पर भी प्रकाश डाला है। उनका कहना है कि जिसके मन में भगवान श्रीराम और सीता के प्रति स्नेह नहीं है, वे यद्यपि प्रिय हों तो भी करोड़ों शत्रुओं के समान त्याज्य हैं अर्थात् त्यागने योग्य हैं। जिस प्रकार प्रभु से प्रेम न होने के कारण प्रह्लाद ने अपने पिता का, विभीषण ने अपने भाई का और भरत ने अपनी माता तक का त्याग कर दिया था, राजा बलि को उनके गुरु ने, ब्रज की स्त्रियों ने अपने पतियों का त्याग कर दिया था, उसी प्रकार श्री राम व सीता से जो प्रेम नहीं करते उनका त्याग कर देना चाहिए; क्योंकि जिसके मन में श्रीराम के प्रति प्रेम होगा, उसी का हर प्रकार से कल्याण होगा।
तुलसीदास का जीवन परिचय
तुलसीदास का जन्म उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के राजापुर नामक गाँव में सन् 1532 में हुआ था। उनके पिता का नाम आत्माराम दुबे और माता का नाम हुलसी था। गुरु नरहरिदास ने उन्हें शिक्षा-दीक्षा दी और उनका विवाह रत्नावली नाम की कन्या से करवा दिया। उनके विषय में यह प्रसिद्ध है कि अपनी पत्नी रत्नावली की फटकार से ही उन्हें वैराग्य हुआ और उनका मन राम भक्ति में लीन हो गया। उनकी मृत्यु सन् 1623 में काशी में हुई।
तुलसीदास रचित " रामचरितमानस' की गणना विश्व के प्रसिद्ध ग्रंथों में की जाती है। इसमें मर्यादा पुरुषोत्तम राम के चरित्र का वर्णन किया गया है। श्रीराम के चरित्र में शक्ति, शील और सौंदर्य तीनों गुणों का सामंजस्य मिलता है।परिवार, समाज और राष्ट्र के उन्नयन के लिए तुलसीदास ने रामराज्य की रूपरेखा 'रामचरितमानस' में प्रस्तुत की है।
रचनाएँ
'रामचरितमानस', 'विनयपत्रिका', 'कवितावली', 'हनुमान बाहुक', 'दोहावली', 'गीतावली', 'जानकी मंगल', 'पार्वती मंगल', ‘रामाज्ञा प्रश्न', 'रामलला नहछू', 'बरवै-रामायण' आदि। तुलसीदास जी की भाषा अवधी और ब्रज है। इनकी रचनाओं में दोहा, चौपाई, कविता, सवैया आदि छंदों का प्रयोग मिलता
विनय के पद प्रश्न उत्तर
प्र.कवि ने किसे उदार कहा है ?
उ. महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी ने भगवान् श्रीराम को उदार कहा है . क्योंकि वे बिना सेवा के ही गरीब और दीन -दुखियों का कल्याण करते हैं .
प्र.कवि ने अनुसार जीवन में सुख किस प्रकार प्राप्त हो सकता है ?
उ. कवि का कहना है कि भगवान श्रीराम की कृपा से मनुष्य को जीवन में हर प्रकार के सुख प्राप्त हो सकते हैं क्योंकि श्रीराम बड़े दयालु हैं .
प्र.कवि ने किसे त्यागने के लिए कहा है ?
उ. महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है कि जिस व्यक्ति के मन भगवान् श्रीराम के प्रति प्रेम न हो उसे त्याग कर देना चाहिए चाहे वह कितना ही परम मित्र क्यों न हो .
प्र.भगवान् श्रीराम के चरणों का गुणगान कवि ने क्यों किया है ?
उ . कवि का मानना है कि जिस मनुष्य में मन में भगवान् राम के चरणों के प्रति स्नेह और प्रेम उसी का जीवन मंगलमय होगा . और प्रभु श्रीराम उसका कल्याण करेंगे .
प्रश्न .श्रीराम के बारे में तुलसीदास का क्या मत है?
उत्तर- श्रीराम के बारे में तुलसीदास जी का मत है कि प्रभु श्री राम बहुत ही उदार स्वभाव वाले हैं। वे कृपा के सागर हैं, वे दीन-दुखियों पर बिना सेवा के ही प्रसन्न हो जाने वाले हैं।
प्रश्न .राम के समान दूसरा कोई क्यों नहीं है?
उत्तर- राम के समान कोई दूसरा इसलिए नहीं है क्योंकि राम बिना सेवा के ही दीन दुखियों पर कृपा कर देते हैं और उनका उद्धार करने वाले हैं। अतः कवि को प्रभु राम के समान दयालु व कृपालु कोई नहीं लगता।
प्रश्न. "जो गति जोग विराग जतन करि नहि पावन मुनि ज्ञानी ।" से कवि का क्या अभिप्राय है।
उत्तर- इस पंक्ति के माध्यम से कवि तुलसीदास जी अपने आराध्य श्रीराम की महिमा का गुणगान करते कहते हैं कि जो गति अर्थात् प्रभु का सानिध्य और मोक्ष ज्ञानी मुनियों को योग, वैराग्य आदि अनेक उपायों से प्राप्त नहीं होती वह रामनाम का जाप करने मात्र से सहज ही प्राप्त हो जाती है
प्रश्न. श्री राम ने कौन सी परम गति किसको प्रदान की?
उत्तर- श्रीराम ने जटायु नाम के गिद्ध और शबरी नाम की भीलनी को स्वयं दर्शन दिए और उन्हें मुक्ति प्रदान की। माता सीताको की रावण से रक्षा करते समय जटायु घायल हो गया था सिंह तब राम को सीता जी के बारे में बता कर उसने प्राण त्याग दिए। स्वयं प्रभु ने उसका अंतिम संस्कार कर उसे मुक्ति प्रदान की। शबरी के द्वारा बेर की मिठास देखने के लिए उसे चखकर प्रभु को खिलाए जाने पर प्रभु ने प्रसन्न हो उसे मुक्ति प्रदान की।
प्रश्न. रावण ने कौन-सी संपत्ति, किससे, किस प्रकार प्राप्त की?
उत्तर- रावण ने लंका की संपत्ति, शिवजी की कठोर तपस्या करते हुए अपने दस सिरों का अर्पण करके प्राप्त की थी। रावण अथक प्रयास के बाद ही शिवजी को प्रसन्न करने में सफल हो पाया था।
प्रश्न. विभीषण ने प्रभु राम की कृपा पाने के लिए क्या-क्या किया ?
उत्तर- प्रभु राम की कृपा पाने के लिए विभीषण ने कठोर तप आदि कुछ नहीं किया। वह तो केवल अपने प्रभु की शरण में गया और राम नाम का जाप किया। इतने पर प्रभु की कृपा के पात्र बन गए।
प्रश्न. कवि के अनुसार श्रीराम का भजन क्यों आवश्यक है?
उत्तर- कवि तुलसीदास जी के अनुसार भगवान श्रीराम के नाम का भजन, स्मरण इसलिए आवश्यक है क्योंकि यह सब प्रकार की मनोकामनाओं का पूर्ण कराने वाला है। प्रभु बहुत कृपालु हैं वे सच्चे मन से नाम लेने मात्र से ही कृपा कर देते हैं।
प्रश्न. किस व्यक्ति को बैरी के समान मानना चाहिए?
उत्तर- कवि कहता है कि जिन व्यक्तियों के हृदय में ईश्वर के प्रति भक्ति भाव नहीं अर्थात् प्रभु श्रीराम व माता सीता के प्रति आदर व प्रेम नहीं ऐसे परम प्रिय व्यक्ति का भी करोड़ों शत्रुओं के समान त्याग कर देना चाहिए।
प्रश्न. प्रहलाद ने किसका त्याग किया और क्यों ?
उत्तर- प्रहलाद भगवान विष्णु का भक्त था लेकिन उसका पिता हिरण्यकश्यप स्वयं को ही भगवान मानता था । प्रहलाद ने अपने पिता को अनेक बार समझाने व भगवान की शरण जाने का कहा लेकिन हिरण्यकश्यप के न मानने पर प्रहलाद ने उन्हें त्याग दिया।
प्रश्न. भरत की माता कौन थी? उसने अपनी माता को क्यों त्याग दिया?
उत्तर- भरत की माता कैकेयी थीं। उन्होंने अपनी दासी मंथरा की बातों में आकर प्रभु श्रीराम को चौदह वर्ष का वनवास दिलवाया। माता सीता और लक्ष्मण भी उनके साथ गये। अपनी माता के द्वारा राम के प्रति दुर्भाव रखने के कारण भरत ने उन्हें त्याग दिया।
प्रश्न. बलि ने गुरु की बात क्यों नहीं मानी ?
उत्तर- भगवान विष्णु बलि का अहंकार दूर करने वामन के रूप में उसके पास गए और दान में तीन पग भूमि माँगी । बलि के गुरु शुक्राचार्य अपने तपोबल से जान गए कि ये भगवान हैं। उन्होंने इसलिये बलि को सच्चाई बता दान देने से रोका। लेकिन भगवान के मार्ग में गुरु के आने पर उन्होंने गुरु की बात न मान उन्हें इच्छित दान दिया।
प्रश्न. “नति नेह राम के मनियत, सुहृद, सुसेव्य जहाँ लौ” से कवि का क्या आशय है ?
उत्तर- कवि तुलसीदास जी का इस पंक्ति से यह आशय कि कोई हमारा कितना भी प्यारा मित्र हो, हर प्रकार से हमारी सेवा करने वाला ही क्यों न हो अगर वह श्रीराम का भक्त नहीं है तो हमें उससे प्रेम नहीं करना चाहिए।
प्रश्न. 'अंजन' का अर्थ है? किस प्रकार का अंजन लगाना व्यर्थ है?
उत्तर- 'अंजन' का अर्थ होता है 'काजल'। जिसके प्रयोग से नेत्र सुन्दर लगने लगते हैं। कवि ने ऐसा काजल लगाना व्यर्थ कहा है जिससे आँखों के फूट जाने का भय हो अर्थात् ऐसी वस्तु किस काम की जो हमारे लिए अहितकारी हो।
प्रश्न. कवि के मतानुसार कौन हमारा परम हितैषी है?
उत्तर- कवि का मत है कि जो हमें प्रभु श्री राम की भक्ति के मार्ग पर अग्रसर होने में सहायक हो। जिसके मन में प्रभु के प्रति प्रेम हो वही व्यक्ति हमारे लिए हर प्रकार से परम हितैषी, पूजनीय और प्राणों से भी अधिक प्रिय होता है। क्योंकि प्रभु अपने भक्तों का सदैव उद्धार करते हैं।
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:-t
जवाब देंहटाएंमाहीं का अर्थ
हटाएंशायद यहा इसका अर्थ है 'में '
हटाएंPta nahi
हटाएंOutstanding explaination
हटाएंmaja aa gya
हटाएंnahi hota hai mahi ka arth
हटाएंIn
हटाएंAditya Birla group and only print and I remember correctly in greater detail
हटाएंjag manhi means is pure sansar me Ram ke saman koi nahi
हटाएंमतो का मतलब
जवाब देंहटाएंKismat(fortune)
हटाएंVicharo
जवाब देंहटाएंVery helpful.....thank you!
जवाब देंहटाएंyeet
जवाब देंहटाएंit was so help ful thank u very much just rolly
जवाब देंहटाएंEvergreen sahitya Sagar workbook answers are not there please provide that too!
जवाब देंहटाएंEvergreen sahitya Sagar workbook answers are not there please provide that too!
जवाब देंहटाएंUddeshyakaha h
जवाब देंहटाएंjo raam ko piya nhi manega toh uska kisi ka kuch nahi ho sakhta . jisko shree raam ke charno mein prem ho , vahi bada hitkari hota hai :
हटाएंNice 😁
जवाब देंहटाएंमाहीं का अर्थ बताएंं
जवाब देंहटाएंNai
हटाएंMai
हटाएंAiso mato humaro Tulsidas kis or sanket kr rhe h
हटाएंAiso mato humaro Tulsidas ka sanket kis or h
जवाब देंहटाएंAiso mato humaro Tulsidas k sandeh kis or h
जवाब देंहटाएंTulsi das pr koi 5 question esse related?
जवाब देंहटाएंतुलसीदास किस पार्कर से ईश्वर की अविचल भक्ति पाने की बात करते हैं? मुझे इस्का जवाब चाहिए
जवाब देंहटाएंNice😃😊
जवाब देंहटाएंNice😀🙂😊
जवाब देंहटाएंHello
जवाब देंहटाएंHlo everyone
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