भारत हम सबका परिवार त्याग समर्पण का आधार हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई। सबको देता है आकार। ऊंच नीच को हम न मानें सबको हम अपना ही जानें मिलजुल कर हम रहते घर में। मानवता को हम पहचानें।
अडिग रहो उसूलों पर
माना कि बहुत थपेड़े है।माना कि गहन अंधेरे हैं।
माना कि सब कुछ ठीक नही।
माना कि सब विपरीत सही।
उठ अडिग रहो उसूलों पर
उठ भारी पड़ उन प्रतिकूलों पर
सुख दुख क्षण भर के मेले हैं
इस दुनिया मे कुछ कड़वे करेले हैं।
मत रोक कलम की धार कमल
मत आहत कर अपना हृदय विमल।
मेरा अपना
मेरा कोई अपनाजिसे मैं अपना मानता हूं।
मुझे जन्मदिन की बधाई
देने में भी हिचकता हैं।
वो नही सोचता कि
कि मेरी कोमल भावनाओं
का क्या होगा।
उसके लिए मैं सिर्फ एक
दूसरे व्यक्तियों जैसा व्यक्ति हूँ
जो सिर्फ परिचित है
उसकी भावनाओं से
उसे कोई लेना देना नही।
संबंधों की टूटन
कितनी कष्टदायक होती है
किसी से अपनेपन की अपेक्षा
हमेशा दुख देती है
जब वो तुम्हारे जज्बातों को
रौंद देता है एक अजनबीपन से।
और मुस्कुराता हुआ निकल जाता है।
संबंधों के बिखरे हुए टुकड़ों पर से।
और मैं निस्तब्ध पुनः
मुस्कुराने की कोशिश करता हूँ।
और आंसू भरी आंखों से उसे
भेज देता हूँ प्रेम का संदेश।
क्या करूँ दिल ने उसे अपनाया है।
मेरा परिवार
(मुक्तक)
भारत हम सबका परिवारत्याग समर्पण का आधार
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई।
सबको देता है आकार।
ऊंच नीच को हम न मानें
सबको हम अपना ही जानें
मिलजुल कर हम रहते घर में।
मानवता को हम पहचानें।
हम भी लड़ते हैं आपस में।
फिर भी हम रहते हैं बस में।
परिवार हमारा हिन्दोस्तां है।
डूबे मस्ती मौज के रस में।
सुखमय हो परिवार हमारा।
ईद दिवाली क्रिसमस प्यारा।
सबसे ऊंचा सबसे सुंदर।
विजयी विश्व तिरंगा न्यारा।
कुछ तो है
कुछ तो जो तुम्हें मुझ से बांधे है।मेरे पास आकर घबड़ाना।
मुझे से अनगिनत बातें करना
मुझ पर अधिकार जताना
मुझे आंखे दिखाना
मुझे अपनी हरबात मानने को मजबूर करना
मेरे साथ बैठ कर अपनी धड़कनें बढ़ाना
फूल की पंखुड़ियों को
टू बी आर नॉट टू बी
कहकर तोड़ना
हरी घास पर सरपट दौड़ना
मेरा इंतजार करना फिर
मुझे सताना।
मेरे दुख में आंसू बहाना।
मेरी सफलता पर कुलांचे मारना।
मुझे गैर कहकर अपनापन जताना।
कुछ तो है जो तुम्हे मुझ से बांधे है।
संवेदनाओं का व्यापार
आओ इस दीवाली में
संवेदनाओं का व्यापार करें
भूख को बेंचे
गरीबी को सींचे
उनके अधिकारों के लिए
चिल्लाएं छाती पीटें।
सरकारों को कोसें
मीडिया को पोसें
और चुपके से
दीवाली के घने अंधेरों में
उनके शोचलयों के निर्माण से
उनके मकानों के निर्माण से।
उनके अनाजों से
उनकी गरीबी रेखा से
कुछ पैसे कमाएं
उनकी झोपड़ियों को तोड़ कर
वहां आलीशान मॉल बना कर।
और फिर चीनी मोबाइलों से
बटन दबा दबा कर चिल्लाएं
की कुम्हार की बेटी के दिये
आज इस दीपावली पर जलाएं।
आओ दीवाली(पिरामिड )
आजाओ
दीवाली
इस कोने
जहां पर है
गहन तमस
टूटी हुई वेदनाएं
बैठी हैं मन के कोने
टूटे सपने बिखरे है
गड़ते हैं कांच जैसे
सुनो दीप मालाओं
फैलाओ प्रकाश
उस झोपड़ी
जहां पर
तमस
बैठा
है।
ये रोशनी किस के पास है?
उजालों का अनुबंध देखोरोशनी पर प्रतिबन्ध है।
हर जगह दरका हुआ
ये जीवन का सम्बन्ध है।
अंतस में अँधेरे का कुहासा
क्यों झिझकता है उजेरा।
झोपड़ी झुकती ही जाती
कहाँ ठहरा है ये सबेरा।
औरों की क्या बात करें हम
जब अपने दिल ही काले हों।
आशाओं के दीप ही जब
घर को आग लगाने वाले हों।
मावस की ये काली रातें
नहीं हारने का हैं विकल्प।
नहीं टूटने देना मन को
अंतिम सांस का ये संकल्प।
नेह के सारे दिए बुझ रहे
सुन अंधियारों के कहकहे।
तिमिरपाश में बंधा उजाला।
किसकी किसकी बात सहे ।
बाती विरहन सी खड़ी है
दीप का अब वनबास है।
तिमिर दस्तक दे रहा है ।
ये रोशनी किसके पास है।
- सुशील शर्मा
सुन्दर कविताएँ
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