आषाढ़ का एक दिन नाटक की कथा संस्कृत के प्रसिद्ध कवि व नाटककार कालिदास मल्लिका और कालिदास के प्रेम को आधार बनाकर नाटककार मोहन राकेश जी ने यथार्थ और भावना का द्वन्द दिखाया है और यह सिद्ध किया है कि जीवन में भावना का भी स्थान है ,लेकिन यथार्थ में ही जीवन जीना पड़ता है .
आषाढ़ का एक दिन की कथावस्तु
आषाढ़ का एक दिन नाटक की कथा संस्कृत के प्रसिद्ध कवि व नाटककार कालिदास ,जो की कश्मीर के शासक के रूप में मातृगुप्त के रूप में प्रसिद्ध हुए की कथा है . मल्लिका और कालिदास के प्रेम को आधार बनाकर नाटककार मोहन राकेश जी ने यथार्थ और भावना का द्वन्द दिखाया है और यह सिद्ध किया है कि जीवन में भावना का भी स्थान है ,लेकिन यथार्थ में ही जीवन जीना पड़ता है .
कथा का आरम्भ आषाढ़ के पहले दिन की वर्षा से होता है . मल्लिका कालिदास की भावनात्मक धरातल पर
आषाढ़ का एक दिन |
समय का चक्र चलता है। मल्लिका की माँ अम्बिका की मृत्यु को जाती है। मल्लिका की विवशता उसे ग्राम पुरुष विलोम के जाल में फ़सा देती है।उसके एक पुत्री हो जाती है।सम्राट के निर्बल हो जाने पर कश्मीर में विरोधी शक्तियाँ प्रबल हो जाती है।कालिदास को कश्मीर छोड़ना पड़ता है। वे विपन्न हालत में मातृगुप्त के चोला उतार अपनी जन्मभूमि में आते है और मल्लिका के घर पहुँचते है। आज भी आषाढ़ का पहला दिल है। बर्षा हो रही है।
"सोच रहा हूँ है आषाढ़ का ऐसा ही दिन था। ऐसे ही घाटी में मेघ भरे थे और असमय अँधेरा हो होता है। मैंने घाटी में एक हरिण - शावक हो देखा था और उठाकर यहाँ ले आया है। तुमने उपचार किया था।"
कालिदास को मल्लिका की बच्ची का स्वर सुनाई पड़ता है। वे तत्काल घर से बाहर की ओर कदम बढ़ा देते हैं। मल्लिका बच्ची को ह्रदय से सटाये हुए रोती रहती है।
कथा का आरम्भ बड़ी की नाटकीय और आकर्षक है। आषाढ़ का पहला दिन है। मल्लिका भीग कर आयी है। माँ अम्बिका उसकी प्रतीक्षा कर रही है। माँ गुस्से में हैं। वह मल्लिका के विवाह का प्रसंग उठती हैं। मल्लिका कह देती हैं वह कालिदास से भावनात्मक प्रेम करती हैं। माँ समझाती हैं कि जीवन में भावना से काम नहीं चलता हैं। यहीं इस नाटक की मुख्य समस्या खड़ी होती हैं. अंत में मल्लिका आवश्यकता के कारण विलोम के साथ रहने को विवष होती हैं ,जिससे वह एक बच्ची को जन्म देती हैं।
कालिदास को राजदरबार से बुलावा आता है।वह उज्जयनी जाकर राजकवि बनते हैं।उनकी रचनाओं की प्रसिद्धि दूर - दूर तक फैलती हैं। मल्लिका प्रसन्न होती हैं और उनकी रचनाएँ पढ़ती हैं।
कालिदास का विवाह राजकन्य प्रियंगुमंजरी से होता हैं। वे कश्मीर जाते समय अपने गाँव लेकिन मल्लिका से नहीं मिलते हैं केवल उनकी पत्नी ही मल्लिका से मिलती हैं।
मल्लिका ह्रदय में भीषण अंतर्द्वंद लेकर रहती हैं। माँ की मृत्यु के बाद वह असहाय हो जाने के बाद विलोम से विवाह कर लेती हैं। उधर कालिदास विद्रोही शक्तियों का सामना न कर पाने के कारण उन्हें कश्मीर छोड़ना पड़ता है। वे मल्लिका के पास आते हैं।आज भी आषाढ़ का पहला दिन. कालिदास को मल्लिका की बच्ची का रुदन सुनाई पड़ता हैं। मल्लिका बच्ची को भीतर से लेकर आती हैं। कालिदास को इस दृश्य देखने की शक्ति नहीं हैं। वह बाहर चला जाता है।कथा का अंत बड़ा ही मार्मिक बन पड़ता हैं। वह पाठकों को झकझोर देता हैं।
इस प्रकार उपयुक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता हैं कि आषाढ़ का एक दिन रंग मंचीय सफल नाटक हैं. कथा का प्रवेश अंतर्द्वंद से होता हैं और अंतर्द्वंद में विकसित होता हुआ चरमसीमा पर पहुँचता हैं।
Nice post. Thanks for sharing
जवाब देंहटाएंमल्लिका का विलोम से विवाह नहीं होता है बल्कि मल्लिका वारांगना अर्थात वेश्या बन जाती है।
जवाब देंहटाएंAap dekhne gaye the ?
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