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जाग तुझको दूर जाना Jaag Tujhko Door Jaana
चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना!
जाग तुझको दूर जाना!
अचल हिमगिरि के हॄदय में आज चाहे कम्प हो ले!
या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले;
आज पी आलोक को ड़ोले तिमिर की घोर छाया
जाग या विद्युत शिखाओं में निठुर तूफान बोले!
पर तुझे है नाश पथ पर चिन्ह अपने छोड़ आना!
जाग तुझको दूर जाना!
व्याख्या - महादेवी वर्मा प्रिय पथ की चिर साधिका है।अपने प्राणों को किंचित आलस्य में देखकर वह चिंतित हो उठती है। उसे उद्बोधन प्रदान करती हुई कहती है - हे ! जीवात्मे ! तुम्हारी आखें सर्वदा सजग रहती है।आँखे सजग रहकर प्रिय पथ की राह देखती रहती है।परन्तु इस समय ये आँखे उनींदी और अलसायी हुई क्यों है ? आज तुम्हारी वेश भूषा भी अस्त - व्यस्त है। तुम अपनी सजगता को धारण करो और क्षणिक निद्रा भंग करो। क्योंकि गंतव्य मार्ग दूर है और तुम्हे अपने लक्ष्य तक पहुंचना आवश्यक है। संभव है तुम मार्ग की कठिनाइयों से भयभीत हो रहे है ! परन्तु यह भय और आलस्य त्याग कर तुम्हे अपनी मंजिल तय करनी है। चाहे आज कभी न विचलित होने वाले हिमालय पर्वत के ह्रदय में भय से कम्पन होने लगे या चाहे आकाश थककर प्रलय अश्रु के रूप में रो उठे। या छाए आज समस्त आकाश प्रकाश को अन्धकार घर ले और सम्पूर्ण संस्कार इ अन्धकार ही शेष रह जाय. चाहे प्रकाश प्रदान करने वाले सूर्य और चन्द्रमा भी आकाश में दिखाई न पड़े. चाहे बिजली कि धमक के भयंकर तूफ़ान आ जाए। बिजली कौंधने लगे दिशाएं जल मग्न हो जाए ,संसार में भयकर प्रलय का दृश्य उपस्थित हो जाए किन्तु तुम निराश मत बनो। भले ही इस साधना में तुम्हे मिट जाना पड़े ,पर लक्ष्य तक मुझे पहुंचना है। साधना पथ में मिटकर भी तुमको अपनी स्मृति छोड़ती है। यही तुम्हारा लक्ष्य है।
२. बाँध लेंगे क्या तुझे यह मोम के बंधन सजीले?
पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रंगीले?
विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन,
क्या डुबो देंगे तुझे यह फूल दे दल ओस गीले?
तू न अपनी छाँह को अपने लिये कारा बनाना!
जाग तुझको दूर जाना!
व्याख्या - महादेवी वर्मा जीवात्मा को सांस्कारिक मोहमाया के बंधनो से दूर रहने का संकेत दे रही है। हे जीवात्मे ! क्या संसार के आकर्षण बंधन जो माँ के सामान बड़ी सरलता से पिघलने वाले है वे तुम्हे अपनी सीमा में बाँध लेने अर्थात में अग्रसर होने से रोक लेंगे। क्या तितलियों के रंगीन पंखों के सामान तुम्हारा सुन्दर कल्पना के सुख तुम्हारे साधना पथ में अवरोधक बन जाएंगे। संसार नश्वरता से पीड़ित है। क्या तुम्हारा ह्रदय इस समष्टि की व्यथा को दूर करने से लिए तड़प नहीं उठता हुई ? कवियत्री सावधान करती हुई कहती है कि संसार का समस्त आकर्षण और सुख छाया मात्र है। यदि तुम इसके बंधन में बंध गए तो तुम्हारी साधना विचलित हो जायेगी और विकास रुक जाएगा। अतः तू डर मत ,निराश भी मत बनो। तुम भूल कर अपनी छाया को विकास के मार्ग के मार्ग में कारागार मत बनना।
३. वज्र का उर एक छोटे अश्रु कण में धो गलाया,
दे किसे जीवन-सुधा दो घँट मदिरा माँग लाया!
सो गई आँधी मलय की बात का उपधान ले क्या?
विश्व का अभिशाप क्या अब नींद बनकर पास आया?
अमरता सुत चाहता क्यों मृत्यु को उर में बसाना?
जाग तुझको दूर जाना!
व्याख्या - महादेवी वर्मा जी कहती है कि हे जीवात्मे ! तुझमे अद्भुत उत्साह और साहस भाव है। तुम्हारा ह्रदय व्रज के समान कठोर रहा है जो बड़ी से बड़ी आपदाओं से भी कभी विचलित नहीं होता रहा है। वह आकर्षणों की कभी कभी चिंता नहीं करता था। परन्तु आज वही तुम्हारा ह्रदय प्रेयसी आँसुओं से गल गया है अर्थात पराजित हो गया है। तुमने जीवन का अमृत तत्व दे दिया है और जिसके बदले जीवन को नष्ट करने वाला पर्दार्थ अर्थात मदिरा माँग लाये हो। तुम्हारे ह्रदय में संसार के अत्याचार ,उत्पीड़िन के विरुद्ध भयकर तूफ़ान उठ रहा था किन्तु आज तुम काल्पनिक सुख के मलय के सदृश्य सुगन्धित तकिया रखकर सांसारिक आसक्ति में डूब रहे हो। इस प्रकार तुम निरंतर अपने जीवन लक्ष्य से दूर होते जाते रहे हो। विश्व अभिशाप की निद्रा में आज सुख भोग रहा है ,वह अभिशाप आज तुम्हे भी मोहित कर रहा है। तुम भी आलस्य तथा प्रमाद की नींद सोने लगे हो। इसी कारण कवियत्री प्रश्न करती है कि संसार की पीड़ा के शाप को देखकर तुझे या स्थायी निद्रा ही प्राप्त हुई है। ये मोहक सांसारिक बंधन तुम्हे विनाश पथ को ओर ले जा रहे हैं. संसार की व्यथा देखर भी तुम जागरण को नहीं प्राप्त कर रहे हो. इस प्रकार के विपरीत आचरण से तुम मृत्यु को अपने ह्रदय में बसाना चाहते हो। अतः अपने लक्ष्य को स्मरण कर अपनी यात्रा आरम्भ कर दो। मृत्यु से पूर्व तुम्हे अपने लक्ष्य तक पहुँचना है। प्रिय प्राप्ति के मार्ग में प्रमाद ही वास्तव में मृत्यु है।
४. कह न ठंढी साँस में अब भूल वह जलती कहानी,
आग हो उर में तभी दृग में सजेगा आज पानी;
हार भी तेरी बनेगी माननी जय की पताका,
राख क्षणिक पतंग की है अमर दीपक की निशानी!
है तुझे अंगार-शय्या पर मृदुल कलियां बिछाना!
जाग तुझको दूर जाना!
व्याख्या - महादेवी वर्मा जी जीवात्मा को उद्बोधित करती हुई कहती है कि प्राण तुम निराश होकर ठंडी साँस न भरो और विरह व्यथा की अपनी कहानी भूल आओ. अपने अतीत की प्रेम गाथा को निराशापूर्वक किसी से कहना मूर्खता है। जब ह्रदय में आग अर्थात बिरह ज्वाला होगी तो आँखों में आसुंओं का जल भी अवश्य होगा।भाव है कि तुम्हारे नेत्रों में विरह के आसूं उस वियोगनि के कारण ही है। उस प्रणय कथा में ऐसे अग्नि है जो तुम्हारे ह्रदय को शक्ति संपन्न बना रहीहै। प्रिय के वियोग की पीड़ा को लेकर जीवन के पथ पर बढ़ते जाने में यदि तुम्हारे प्राण पखेरू उड़ जाते है तो यह तुम्हारी विजय की अमर कहानी बन जायेगी। ताड़ी तुम अपनी साधना में हार भी गए और प्रिय प्राप्ति के मार्ग में मिट भी गए तो भी तुम्हारी जीत होगी क्योंकि ऐसा होना पर तू अपने प्रिय में मिल जाएगा। दीपक की लौ पर जल कर मिटने वाला पतंगा ही दीपक को सदा अमर बनाता है जबकि दीपक पर पतंगा जलकर राख हो जाता , भंगुर है परन्तु दीपक सदा अमर है। क्योंकि प्राण दीपक की तरह निरंतर जल रहे है. इस कारण वे अमर है। इस प्रकार पतंगा ही प्रेम की अमरता का सूचक है। तुम्हारा मार्ग त्याग और बलिदान का है। तुम्हारे मार्ग में दग्ध अंगारे है। तुम्हे जीवन के अनेकनेक कठिनाइयों और साधना पथ में आने वाले कष्टों को सहकर भी उन पर मधुर सुख रूपी कोमल कलियाँ प्रेम भावना को अंगारों के ऊपर बिछाना है और अपने सुखों का त्याग करना है। अतः तुम जाग जाओ। तुम्हारा गंतव्य बहुत दूर है।
जाग तुझको दूर जाना मूल भाव / केन्द्रीय भाव / saransh / summary
महादेवी वर्मा की कविता जाग तुझको दूर जाना एक जागरण गीत है। उसमे सांसारिक बाधाओं तथा विपदाओं के बीच में भी सांसारिक पथ पर निर्भर होकर विकास पथ पर आगे बढ़ने का सन्देश दिया गया है। यह गीत रहस्यवाद के आवरण से बड़ा होने के कारण विरह की साधना को भी प्रकाशित करता है। वह साधना कष्टों को स्वीकार करती हुई को निरंतर साधना में लेना रहने के लिए आग्रह करती और उत्साहित भी करती है। वह अजर - मार आत्मा को जागृत करती है कि उसे दूर जाना है। अतः किसी प्रकार का आलस्य और प्रमाद उसके लिए उचित नहीं है।उसे नश्वरता के पथ पर अपने अमिट चिह्न छोड़ने है। चाहिए की वह अपनी छाया को वास्तविकता की संज्ञा देकर अपने लिए कारागार का निर्माण न करे। वह जीवात्मा वस्तुतः अमर सूत है। अतः मृत्यु को अंगीकार करना या ह्रदय स्थान देना मूर्खता है। जीवात्मा का लक्ष्य दूरगामी और उन्नत है। यह स्वयं सिद्ध है कि उसके मार्ग में अनेक कठिनाइयों आयंगे परन्तु उसे सब पर विजय प्राप्त करके आगे बढ़ते जाना। माया के आकर्षण बंधन भी उसे पथ से विचलित करना चाहेंगे ,मृत्यु रूपी चिर निद्रा भी भयभीत करना चाहेगी परन्तु इस जीवात्मा को प्रत्येक हालत में विजियानी सिद्ध होना है।
कवयित्री का स्पष्ट विचार है कि जीवन मार्ग बाधायुक्त होने के साथ बड़ा लम्बा भी है। इस लम्बे पथिक आलस्य को त्याग लक्ष्य और संलकल्प लेकर आगे बढ़ता है। वह कहती है कि अविचल रहने वाला हिमालय पर्वत भले ही कम्पित हो जाय ,शास्वत शांत रहने वाला आकाश भले ही प्रलय वृष्टि करने लगे अन्धकार की काली छाया भले ही सूर्य निगल जाय ,चाहे भयंकर तूफ़ान विद्युतया रेखा की तरह चारों ओर फ़ैल जाय परन्तु इस विषम परिस्थितियों में भी निर्भीक ,अविचल रहकर अपनी साधना पर चलना है। अविचल आस्था के चरण को दिशाहीन करने के लिए अथवा मन संकल्प विविध आकर्षणों के जाल में पकड़ने के लिए सांसारिक आकर्षण के मधुर मार्ग में आ सकते परन्तु इसे मिथ्या मानकर मानवता के दर्शन कराऊँ, क्रंदन को दूर करना चाहिए। इसे निरंतर सजग रहना है कि कहीं वह स्वयं सुख की इच्छा को ही बंदी न बना ले। ससंसारिक सुख स्वप्न मानव पथ में बाधा उपस्थित करते है. ये सभी क्षण भंगुर होते है। अतः मिथ्या सुखों को जीवन का लक्ष्य न बना कर हमें अपन इ संकल्प पथ पर निरंतर आगे बढ़ना है।
वह अमर पुत्र है। अतः मृत्यु से कभी भयभीत नहीं होना चाहिए। उसे अपने कर्त्तव्य पथ पर इतना आगे बढ़ना है जिसके आगे मार्ग ही न हो। इस प्रकार कवयित्री का विचार है कि मनाव को निराशा ,अनास्था ,नश्वर भावना आदि को त्यागकर कर्त्तव्य पथ पर ,साधना पथ पर आगे बढ़ना चाहिए। ऐसा करने से दूर की मंजीत भी निकर की सिद्ध हो जाती है।
महादेवी वर्मा का रहस्यवाद
महादेवी वर्मा प्रियतम पथ की चिर साधिका है।इस साधना में किंचित आलस्य या प्रमाद उन्हें लक्ष्य से बहुत दूर कर सकता है। अतः अपने प्राणों को सम्बोधित कर वह कहती है कि तुम्हारी आँखें सतत सजग रहकर प्रिय की राहें निहारती रहती है परन्तु इस समय ये आँखे उनींदी और अलसायी सी क्यों हैं ? तुम अपनी सजगता धारण करो क्योंकि गंतव्य मार्ग दूर है और तुझे तक पहुँचना आवश्यक है। चाहे आज अटल हिमालय पर्वत के ह्रदय में कम्पन उत्पन्न हो उठे चाहे आकाश जल प्लावन के रूप में रो उठे आज समस्त प्रकाश को अन्धकार निगल ले ,चाहे विद्युत् चमक से तूफ़ान खड़ा हो जाय किन्तु तुम निराश मत बनो। भले ही इस साधना में मिट जाना पड़े फिर भी गंतव्य तक तुम्हे पहुँचना है। भाव है कि साधना पथ पर मिटकर भी तुम्हे अपने लक्ष्य तक पहुँचना है।
कवियत्री सासांरिक मोह माया के बंधनों से दूर रहने की प्रेरणा देती है कि संसार के समस्त मोहक बंधन तुम्हे अपनी सीमा में बाँधना चाहेंगे ,तितलियों के रंगीन पंखों के समान सुन्दर कल्पना के सुख साधना के मार्ग में अवरोध खड़ा करना चाहेंगे ,भौरों की मधुर गुनगुनाहट भी तुम्हे लक्ष्य से विचलित करना चाहेगी ,काल्पनिक सुख की तरह ओस से गीले फूल अपने आकर्षण से तुम्हारे मार्ग में बाधा उत्पन्न करना चाहेगी ,परन्तु तुम्हे सावधानी पूर्वक इन नश्वर सुखों पर विजय प्राप्त करनी है। वह सावधान करती हुई कहती है कि संसार का समस्त आकर्षण और सुख छाया मात्र है। तुम भूलकर भी अपनी छाया को विकास के मार्ग में अपने लिए कारागार मत बनने देना।
वर्मा जी प्राणों को सम्बोधित करती हुई कहती है कि मेरे प्राण व्रज के समान कठोर और न विचलित होने वाले हैं। परन्तु वही ह्रदय प्रेयसी की आँसुओं से गल गया है। इतना ही नहीं अज्ञानता में जीवन का अमृत तत्व देकर बदले में जीवन को नष्ट करने वाला पदार्थ मदिरा माँग लाया है। आज ये प्राण काल्पनिक सुख रूपी मलय पवन की सुगन्धित तकिया रखकर सांसारिक आसक्ति में डूब गए है ,विश्व अभिशाप इसे मोहित कर लिया है। वह कहती है कि ये मोहक सांसारिक बंधन प्राणों को विनाश की ओर ले जा रहे हैं। विपरीत आचरण से तुम मृत्यु को अपने ह्रदय में बसाना चाहते हो. मृत्यु से पूर्व गंतव्य तक पहुँचना आवश्यक है। प्रिय पथ की साधना में प्रमाद ही मृत्यु का सूचक है।
जाग तुझको दूर जाना कविता का सन्देश / शिक्षा
महादेवी वर्मा जी आशावादी है। उसमें संकल्प और आस्था के स्वर है।अतः वह कहती है कि हे प्राण ! तुम निराशा में ठंडी साँसें न भरो। प्रिय वियोग की पीड़ा को लेकर जीवन पथ पर बढ़ते जाने में यदि तुम्हारे प्राण पखेरू उड़ भी जाते हैं तो यह तुम्हारी विजय की अमर कहानी होगी। दीपक की लौ पर जलने वाला पतंगा ही दीपक को अमर बनाता है। पतंगा क्षण भंगुर है परन्तु दीपक अमर है। प्राण दीपक की तरह निरंतर जलकर अमर है। परन्तु पतंगा ही प्रेम की अमरता का सूचक है। वर्मा जी कहती है कि जीवन की अनेकानेक कठिनाइयों को झेलकर भी उनपर सुखरूपी कोमल कलियों को प्रेम भावना रूपी दग्ध अंगारों पर बिछाना है अर्थात अपने सुखों को त्याग करना है। इस त्याग से साधना का सुख प्रसस्त होगा।
महादेवी वर्मा ने जाग तुझको दूर जाना गीत में सन्देश दिया है। वे कहती है कि हे मानव ! तुझे विपरीत परिस्थितियों में भी विघ्न बाधाओं को नष्ट करके अपने कर्तव्य मार्ग पर आगे बढ़ते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त करना है और इस प्रकार आने वाली पीढ़ियों के लिए आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करना है।तुझे भोग विलासों में न फँसकर दीन और दुखियों के दुःख दूर करना है।तभी तो तेरी आँखें में दुखियों के प्रति आये हुए सहानुभूति के आँसू सफल होंगे।तभी तो तेरी हार भी विजय बनेगी -
"हार भी तेरी बनेगी मानिनी जय की पताका। राख क्षणिक पतंग ही है अमर दीपक की निशानी। "
जाग तुझको दूर जाना कविता के प्रश्न उत्तर
प्रश्न - कविता में कवयित्री ने अपने मन और मानव को क्या शिक्षा दी है?
उत्तर- कवयित्री ने 'जाग तुझको दूर जाना' कविता में अपने मन को सम्बोधित करते हुए मनुष्य को यह सन्देश दिया है कि आज तेरी आँखों में नींद क्यों भरी हुई है और तेरी वेशभूषा अस्त-व्यस्त क्यों है? तू जाग ! क्योंकि तुझे अभी दूर जाना है। तुझे किसी भी प्रकार की बाधाओं के कारण बीच में रुकना नहीं है। चाहे कितनी ही बड़ी मुसीबत क्यों न आये? चाहे हिमालय में कम्पन होने लगे या आकाश से प्रलय के बादल बरसें, चाहे अंधकार प्रकाश को लील ले, हमें विनाश के मार्ग पर निर्माण के चिह्न छोड़कर हमेशा आगे बढ़ना है। ऐसी प्रेरणा कवयित्री ने अपने मन के माध्यम से मनुष्य को दी है।
सांसारिक आकर्षणों में न फँसने की राय कवयित्री ने दी है क्योंकि संसार के रंगीन आकर्षणों में फँसकर लोग अपना लक्ष्य भूल जाते हैं और अपने जीवन को नष्ट कर बैठते हैं। संसार के आकर्षण बड़े मोहक होते हैं और राहगीर को अपना रास्ता भुलाकर भटका देते हैं। उनसे सावधान रहना है। भौरों की मधुर गुंजन में तू संसार में उठते करुण क्रन्दन को भूल मत जाना। तू संसार के किसी बन्धन में न पड़कर अपनी राह की तरफ अपने कदम बढ़ाता चल कि तूने क्या अपने वज्र जैसे हृदय को आँसुओं में धोकर गला तो नहीं दिया है? क्या तेरा असीम साहस दुःखों से घबराकर खो गया है ? ऐसा तो नहीं है कि अपने जीवन रूपी अमृत के बदले दो घूँट मदिरा माँग ली है? अर्थात् संसार के झूठे सुखों के लिए अपने जीवन को नष्ट कर दिया है, तेरे मन में आया आलस्य तेरे उत्साह को समाप्त कर देगा, फिर कैसे तू अपने पथ पर आगे बढ़ेगा? तू जाग और बाधाओं से लड़ता हुआ आगे बढ़।
आगे कवयित्री ने कहा कि साधना का मार्ग कष्टों से भरा हुआ है। तुझे दुःखी होकर इन कठिनाइयों का वर्णन करके हताश नहीं होना चाहिए। मन में कुछ करने की तीव्र इच्छा हो। अपने मार्ग पर चलते हुए यदि पराजय भी मिलती है तो वह भी अन्त में जय की पताका बन जाती है। अपने जीवन में आगे बढ़ते हुए कठिनाइयों को सहने पर मन में दृढ़ता और साहस प्राप्त होता है; जैसे-पतंगा जलकर भी दीपक की अमर कहानी बन जाता है। तुझको अंगारों की शैया के समान कष्टदायक साधना पथ पर भी मधुर भावना रूपी कलियाँ बिछानी हैं तभी तुम्हें लक्ष्य की प्राप्ति होगी।
कवयित्री ने कहा है कि मन को (मानव) आलस्य त्यागकर निरन्तर अपने निर्माण पथ पर आगे बढ़ना है। कोई संसार का आकर्षण तुम्हारी गति में बाधा न डाल पाये ऐसा प्रयास करना चाहिए।
प्र - महादेवी वर्मा पथिक को क्या प्रेरणा दे रही हैं और क्यों ? 'जाग तुझको दूर जाना' कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर - महादेवी वर्मा पथिक को सांसारिक बाधाओं और विपदाओं के बीच में भी संकल्प पथ पर अपना विकास करते हुए निरन्तर आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रही हैं। वह पथिक से कहती हैं कि साधना के कष्टों को स्वीकार करते हुए उसमें निरन्तर लीन रहकर अपने लक्ष्य की प्राप्ति में लगे रहो क्योंकि उसे अभी बहुत दूर जाना है । अत: उसके लिए आलस्य और प्रमाद उचित नहीं है क्योंकि ये विकास के मार्ग में बाधक हैं। महादेवी जी ने अजर-अमर जीवात्मा को पथिक की संज्ञा दी है। वह कहती हैं कि जीवात्मा अपनी छाया को वास्तविकता की संज्ञा देकर अपने लिए कारागार का निर्माण नहीं करे जीवात्मा वस्तुतः अमर पुत्र है। अतः उसे माया के आकर्षण में नहीं बाँधना है और न ही मृत्यु को अपने हृदय में स्थान देना है। ये सब तो पथिक के मार्ग की कठिनाइयाँ हैं जो उसे लक्ष्य से भटकाने का प्रयास करती हैं। पथिक को इन सब पर विजय प्राप्त करते हुए आगे बढ़ते जाना है।
कवयित्री का मानना है कि जीवन पथ बाधाओं से युक्त होने के साथ-साथ लंबा भी है। अतः पथिक को दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ना है। चाहे सदा अविचल रहने वाला हिमालय पर्वत कम्पित हो जाये, आकाश भले ही प्रलय वर्षा करने लगे, भले ही अंधकार की काली छाया प्रकाशवान सूर्य को निगल जाये और भयानक तूफान विद्युत की गति से चारों ओर फैल जाये, फिर से पथिक को निडर और अविचल रहकर अपने पथ पर अविराम चलते रहना है। इस मार्ग पर चलते हुए उसके मार्ग में अनेक आकर्षण और मधुर कठिनाइयाँ आयेंगी जो उसे मार्ग से डिगाने का प्रयास करेंगी, इन सबसे पथिक को निरन्तर सजग रहना है। सांसारिक सुख मानव के लिए सबसे बड़ी बाधा है। अतः इन मिथ्या सुखों का त्यागकर उसे अपने संकल्प-पथ पर बढ़ते जाना है। ये सभी सांसारिक सुख क्षणभंगुर होते हैं, वास्तव में इनका कोई मोल नहीं होता। अतः कवयित्री पथिक को यह प्रेरणा दे रही हैं कि उसे अपने कर्तव्य पथ पर इतना आगे बढ़ना है जिससे आगे मार्ग ही न हो ।
प्रश्न - 'जाग तुझको दूर जाना' कविता में महादेवी वर्मा जी ने प्रकृति के किन-किन रूपों का वर्णन किया है?
उत्तर- महादेवी वर्मा जी का काव्य मुख्यतः प्रकृति प्रधान है। उनके काव्य में प्रकृति-चित्रण सम्बन्धी अनेक विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हैं।
जब प्रकृति कवि के भावों का आधार बन जाती है तो वह प्रकृति का आलंबन रूप में चित्रण बन जाता है। प्रस्तुत कविता में भी कवयित्री ने प्रकृति को अपने भावों का आलंबन बनाया है। 'अंगार शैय्या' के माध्यम से साधना में निहित कठिनाई को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है-
'है तुझे अंगार शैय्या पर मृदुल कलियाँ बिछाना।'
इसी प्रकार जब प्रकृति के उपादानों के माध्यम से भावों को उद्दीप्त अथवा तीव्र करने का प्रयास किया जाता है तब वहाँ प्रकृति का उद्दीपन रूप प्रदर्शित होता है। इस कविता में प्रकृति का उद्दीपन के रूप में प्रयोग किया गया है।
'आग हो उर में तभी दृग में सजेगा आज पानी।'
यहाँ 'आग' का हृदय में होना यही भावों को जाग्रत करने का कारण है। इसलिए यहाँ प्रकृति का उद्दीपन के रूप में प्रयोग माना जा सकता है।
छायावादी कवियों ने सर्वत्र प्रकृति पर चेतनता का आरोप किया है और उसके साथ विविध प्रकार के मधुर संबंधों पर आधारित कल्पनाएँ की हैं। 'हिमगिरि ' के हृदय में कंपन और 'व्योम' का रोना मानवीकरण के उपयुक्त उदाहरण हैं-
'अचल हिमगिरि के हृदय में आज चाहे कंप हो ले,
या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले'
रहस्यवादी भावना भी छायावादी काव्य की एक प्रमुख प्रवृत्ति रही है। कवयित्री ने भी प्रस्तुत कविता में रहस्यवादी भावना की अभिव्यक्ति के लिए प्रकृति का सहारा लिया है। निम्नलिखित पंक्तियों में कवयित्री का ये उद्बोधन उनकी रहस्यवादी भावना को व्यक्त करता है-
'चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना !
जाग तुझको दूर जाना !'
इस प्रकार अंत में यह कहा जा सकता है कि महादेवी वर्मा जी ने अपने काव्य में प्रकृति का अनेक रूपों में प्रयोग किया है। उनके काव्य में प्रकृति इतनी घुल-मिल गई है कि उसे अलग करके देखना भी कठिन है। हिन्दी के वर्तमान कवियों में महादेवी वर्मा जी ने प्रकृति द्वारा अपनी भावनाओं को परिपूर्ण अभिव्यक्ति दी है और विराट कीं प्रेमानुभूति ने उनके व्यक्तित्व को विशालता तथा भव्यता दी है। यही उनके लिए प्रकृति की सबसे बड़ी देन है।
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Really its to good I easily understand.
जवाब देंहटाएंJaag tujhko door jana ke question answer in hindi
जवाब देंहटाएंJaag tujhko hai door jana mai kavyitri kiska aavhan kr rhi hai
जवाब देंहटाएंVishay
जवाब देंहटाएंVishay vishay
जवाब देंहटाएंBhi hoto