पुत्र प्रेम प्रेमचंद

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पुत्र प्रेम प्रेमचंद
Putra Prem by Munshi Premchand

पुत्र - प्रेम कहानी का सार putra prem kahani ka saransh summary- मुंशी प्रेमचंद जी ने  पुत्र - प्रेम कहानी में बाबू चैतन्य की मन की कमजोरियों को दिखाया गया है।  वे वकिल थे ,दो तीन गाँव में उनकी जमींदारी थी।  धनी होने के बावजूद वे फिजूलखर्ची में विश्वास नहीं रखते थे।  किसी भी खर्च को वे सोच समझ पर ही करते थे।

उनके दो बेटे थे - प्रभुदास और शिवदास।बड़े बेटे पर उनका स्नेह अधिक था। उन्हें प्रभुदास से बड़ी - बड़ी आशाएँ  थी। प्रभुदास को वे इंग्लैंड भेजना चाहते थे।लेकिन संयोगवस से बी.ए  करने के बाद प्रभुदास बीमार रहने लगा।डॉक्टरों की दवा होने लगी।एक महीने तक नित्य डॉक्टर साहब आते ,लेकिन ज्वर में कुछ कमी नहीं आती।अतः कई डॉक्टररों को दिखाने के बाद एक डॉक्टर ने सलाह दी कि सायेद प्रभुदास को टी.बी (तपेदिक )हो गया है। यह अभी फेफड़ों तक नहीं पहुंचा।  अतः इसे किसी अच्छे सेनेटोरियम में भेजना ही उचित होगा।साथ ही डॉक्टर ने मानसिक परिश्रम से बचने की सलाह दी।यह सुन कर चैतन्यदास बहुत दुखी हो गए।

कई महीनों के बीतने के बाद प्रभुदास की दशा दिनों -दिन बिगड़ती चली गयी। वह अपने जीवन के प्रति उदासीन हो गया।अतः चिक्तिसक ने उसे इटली के किसी अच्छे सेनेटोरियम में जाने की सलाह दी। इस पर तीन हज़ार का खर्चा का सकता है। इस पर घर में चैतन्यदास जी द्वारा विवाद हुआ।

माँ द्वारा प्रभुदास का पक्ष लिया गया लेकिन चैतन्यदास अपनी अर्थशाष्त्री बुध्दि द्वारा ऐसे किसी कार्य में खर्च नहीं करना चाहते थे जिसमें लाभ होने की शंका हो। अतः उन्होंने प्रभुदास को इटली नहीं भेजा।

समय बीतता गया। ६ मॉस बाद शिवदास बी. ए।  पास हो गया।  अतः चैतन्यदास जी ने जमींदारी बंधक रखकर शिवदास को पढ़ाई के लिए इंग्लैंड भेज दिया और एक सप्ताह बाद ही प्रभुदास की मृत्यु हो जाती है।





अंतिम संस्कार  के लिए  मणिकर्णिका घात पर अपने सम्बन्धियों के साथ जाते हैं। उस समाय वह बहुत दुखी थे।  उनके अर्थशास्त्र पर उनका पुत्र प्रेम हावी हो रहा था।  वे बार - बार सोच रहे थे कि यदि वे ३ हज़ार रुपये खर्च कर दिए होते तो संभव है ,प्रभुदास स्वस्थ हो जाता। अतः वे ग्लानि ,शोक और पस्चताप से संतप्त हो गए।

अकस्मात् उनके कानों में शहनाइयों की आवाज सुनाई आयी।  उन्होंने देखा की मनुष्यों को एक समूह गाते ,बजाते हुए पुष्प की वर्षा करते हुए आ रहे हैं।वे घाट  पर पहुँच कर अर्थी उतारी और चिता  सजाने लगे।  चैतीनदास ने एक युवक से पूछा तो उसने उसने बताया कि यह हमारे पिता जी है। अंतिम इच्छा के अनुसार उन्हें हम मणिकर्णिका घाट पर ले आये हैं। यहाँ तक आने पर सैकड़ों रुपये खर्च हो गए ,लेकिन बूढ़े पिता की मुक्ति हो गयी।धन किसलिए होता है।युवक ने बताया कि तीन साल तक इलाज़ चला।जमीन तक बेंच देनी पड़ी ,लेकिन चित्रकूट ,हरिद्वार ,प्रयाग सभी स्थानों के बैद्यों को दिखाया कोई कोई कसार नहीं छोड़ी।  युवक ने कहा कि पैसा हाथ का मेल है ,फिर कमा लूंगा लेकिन मनुष्य के जाने पर वापस नहीं आता है। धन से ज्यादा प्यारा इंसान है।

इन सब बातों का चैत्यन्य दास पर गहरा प्रभाव पड़ा. वे अपनी हृदयहीनता ,आत्म हीनता और भौतिकता के कारण दबे जा रहे थे।  .अतः वे इतने परिवर्तित हो गए कि प्रभुदास की अंत्येष्टि में हज़ारों रुपये खर्च कर डाले।  अब उनके संतप्त ह्रदय की शान्ति के लिए अब एक मात्र यही उपाय रह गया।


पुत्र प्रेम कहानी का उद्देश्य

मुंशी प्रेमचंद जी द्वारा लिखित पुत्र प्रेम प्रसिद्ध कहानी है। लेखक ने एक पिता चैतन्यदास की मनोभावना का वर्णन किया है। चैतन्य दास वकील है ,अच्छी खासी जमींदारी और बैंक में रुपये है। हर बात को अर्थशास्त्र की नज़र से देखते हैं ,बिना फायदे के कोई कार्य नहीं करते हैं।  उन्हें अपने बड़े पुत्र प्रभुदास से बड़ा प्रेम है। उससे वे बड़ी - बड़ी आशाएँ पाल रहे हैं।दैव इच्छा से वह बीमार पड़ जाता है।डॉक्टर  उसे इटली के किसी अच्छे सेनेटेरियम में भेजने के सलाह देते हैं। लेकिन ३००० रुपये के खर्चे तथा किसी गारंटी न होने के कारण वे पीछे हट  जाते हैं।  ६ मास बाद प्रभुदास की मृत्यु हो जाती है।  

मणिकर्णिका घाट पर युवक की बात सुनकर आत्म -ग्लानि से भर जाते है कि ३००० रुपये के लालच में पुत्र को खो दिया। अतः उनका  हृदयपरिवर्तन होता है। प्रभुदास की अंतयोःती में वे हज़ारों रुपये खर्च  कर डालते हैं। लेखक कहानी के माध्यम से यही सन्देश देना चाहते हैं कि हमें धन का लालच नहीं करना चाहिए।  स्वार्थ को पर हित की बात सोचना कर चाहिए।जान है तो जहान है ,मर जाने के बाद कोई लौट कर नहीं आता है।बाद में केवल पशाताप ही बचता है। अतः मानवता वादी दृष्टिकोण अपनाना ही उचित है।  


पुत्र प्रेम कहानी शीर्षक की सार्थकता 

मुंशी प्रेमचंद जी ने प्रस्तुत कहानी पुत्र प्रेम में बाबू चैतन्यदास की मन की कमजोरियों को दिखाया गया है।  वे वकिलथे ,दो तीन गाँव में उनकी जमींदारी थी।धनी होने के बावजूद वे फिजूलखर्ची में विश्वास नहीं रखते थे।  किसी भी खर्च को वे सोच समझ पर ही करते थे।

कहानी पुत्र प्रेम में लेखक ने आरम्भ से लेकर अंत तक चैतन्यदास के पुत्र प्रेम को दर्शाया है।  प्रभुदास के बीमार होने और ३००० रुपये खर्च की बात सुनकर पिता चैतन्यदास पर अर्थशास्त्र की बात सोचते हैं।  वे छोटे बेटे को जमींदारी बंधक रखकर इंग्लैंड भेज देते हैं। अतः मणिकर्णिका घाट उनका ह्रदय परिवर्तन होता है। उनकी कृपणता -उदारता में बदल जाती है। अतः पुत्र प्रेम शीर्षक उचित व सार्थक है।

पुत्र प्रेम कहानी में बाबू चैतन्यदास का चरित्र चित्रण

मुंशी प्रेमचन्द रचित 'पुत्र- प्रेम' कहानी में प्रमुख पात्र बाबू चैतन्यदास हैं जिनके परिवार में उनकी पत्नी और दो पुत्र प्रभुदास और शिवदास हैं। बाबू चैतन्यदास अर्थशास्त्र के ज्ञानी थे। वे अपने अर्थशास्त्र का उपयोग अपने लोक व्यवहार में बड़ी कुशलता से किया करते थे। पेशे से वकील थे, उनकी दो-तीन गाँवों में जमींदारी थी और बैंक में भी कुछ रुपये जमा थे। वे बहुत सोच-समझकर खर्च किया करते थे। जिस खर्च में किसी तरह का लाभ न हो, ऐसे खर्च से दूर ही रहते थे ।
 
प्रेमचन्द ने अपनी कहानी की विषय-वस्तु के प्रभाव को व्यक्त करने के लिए ऐसे चरित्रों की रचना की जो उनके विचारों को व्यक्त कर सकें।इस कहानी में कहानीकार ने बाबू चैतन्यदास के चरित्र के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया है कि शिक्षित, व्यक्ति भी किस प्रकार हानि-लाभ के चक्कर में पड़कर अपने प्रिय-पुत्र को खो देता है।इस कहानी के प्रमुख पात्र में अनेक विशेषताएँ समृद्ध और बुद्धिमान और दुर्बलताएँ हैं जो कहानी की विषय-वस्तु को प्रभावी बनाती हैं - 

  1. महत्वकांक्षी पिता के रूप में - बाबू चैतन्यदास एक महत्वाकांक्षी पिता थे इसलिए अपने दोनों पुत्रों को अधिक से अधिक पढ़ाना चाहते थे। वे प्रभुदास को इंग्लैण्ड भेजकर बैरिस्टर बनाना चाहते थे। जब प्रभुदास बीमार हो गया तो उन्होंने शिवदास को कानून पढ़ने के निमित्त इंग्लैण्ड भेजा। उनके मन में सदिच्छाओं से परिमित लाभ होने की आशा थी।
  2. शिक्षित एवं समृद्ध - बाबू चैतन्यदास पढ़े-लिखे व्यक्ति थे और पेशे से वकील थे। वे शिक्षा के महत्व को जानते थे। वे समृद्धिशाली थे। दो-तीन गाँवों की जमींदारी उनके पास थी जो उनकी आर्थिक सुदृढ़ता का प्रमाण थी। इस प्रकार बाबू चैतन्यदास आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न थे और अगर चाहते तो अपने पुत्र का इलाज विदेश में करवा सकते थे।
  3. धन के लोभी- वे धन को अधिक महत्व देते थे । अर्थशास्त्र का उन्हें ज्ञान था। उनकी समृद्धिता उनके अर्थशास्त्र के ज्ञान का ही परिणाम थी। वे व्यर्थ खर्च करने के पक्ष में नहीं थे। अपने पुत्र के विदेश में भी ठीक होने की कोई आशा न होने के कारण उन्होंने पुत्र को विदेश भेजना धन का अपव्यय माना। उनके जीवन में अर्थ के सिद्धान्त को बताने के लिए मुंशी प्रेमचन्द ने लिखा है- "अर्थशास्त्र के सिद्धान्त उनके जीवन के स्तम्भ हो गये थे।" 
  4. हृदयहीन और भौतिकवादी - बाबू चैतन्यदास के जीवन में हृदयहीनता और भौतिकवाद विद्यमान था। उनकी पत्नी ने बार-बार उन्हें समझाया कि बीमार प्रभुदास को ठीक होने के लिए इटली भेज दें, पर उन्होंने एक नहीं सुनी। इसको हम उनकी हृदयहीनता ही कहेंगे। वे अनिश्चित हित की आशा पर अपने धन का अपव्यय नहीं करना चाहते थे। उनके द्वारा कहा हुआ यह कथन उनकी हृदयहीनता और भौतिकवाद के प्रेम को उद्घाटित करता है- “मैं भावुकता के फेर में पड़कर धन का ह्रास नहीं कर सकता।'

इस प्रकार बाबू चैतन्यदास के ये गुण-अवगुण कहानी के सन्देश को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने में सहायक होते हैं।


पुत्र प्रेम कहानी के प्रश्न उत्तर

प्रश्न. बाबू चैतन्यदास के साथ मणिकार्णिका घाट पर कौन-सी घटना हुई जिसने उन्हें उनकी हृदयहीनता का आभास कराया? 

उत्तर- पुत्र-प्रेम कहानी में जिस महत्वपूर्ण बिन्दु को उद्घाटित करने का प्रयास किया गया है वह यह है कि मनुष्य की लोलुपता किस प्रकार उसकी हृदयहीनता बनकर उसके अपने नाश का कारण बन जाती है। बाबू चैतन्यदास का यह विचार कि पुरखों की संचित जायदाद और रुके हुए रुपये किसी अनिश्चित हित की आशा पर बलिदान नहीं कर सकता। इसी के परिणामस्वरूप प्रभुदास की मृत्यु हो गई। यदि वह खर्च करके प्रभुदास को इटली इलाज के लिए भेज देते तो शायद वह ठीक होकर लौट आता । यह आशा तो बनी रहती कि वह एक दिन स्वस्थ होकर घर आ जायेगा । 

चैतन्यदास अपने पुत्र की मृत्यु के पश्चात् जब मणिकर्णिका घाट पर बैठे अपने पुत्र की चिता -ज्वाला को देख रहे थे तो उस क्षण उनके हृदय में पुत्र-प्रेम जाग्रत हुआ। वह अपनी गलती स्वीकार करते हैं। उन्होंने तीन हजार रुपये का मोह करके अपने पुत्र को खो दिया। उनके हृदय में ग्लानि, शोक और पश्चाताप था।

तभी धूमधाम से आती हुई एक अर्थी उतारी गई। बाबू चैतन्यदास विस्मित होकर एक युवक से उस अर्थी के बारे में पूछते हैं। युवक बताता है कि यह उसके पिता (दादा) की अर्थी है। वे बीमार थे और उनका बहुत इलाज कराया। घर की सारी पूँजी उनके इलाज पर खर्च कर दी। थोड़ी-सी जमीन भी बेच दी, पर दादा ठीक न हो सके।इन सब बातों को सुनकर एक युवक कहता है कि रुपया-पैसा तो हाथ का मैल है। कम-से-कम मन में यह लालसा तो न रही कि इलाज न कराया। 'धन से प्यारी जान, और जान से प्यारा ईमान।' 

युवक के द्वारा कही गई इन बातों और इस घटना से बाबू चैतन्यदास को अपनी हृदयहीनता दिखाई दे रही थी। उनके अन्दर की ज्वाला उस चिता की ज्वाला से अधिक दग्धकारी थी। उनके चित्त पर इस घटना का इतना प्रभाव पड़ा कि प्रभुदास के अन्त्येष्टि संस्कार में हजारों रुपये खर्च कर डाले। उनके सन्तप्त हृदय की शान्ति के लिए अब एकमात्र यही उपाय रह गया था।

प्रश्न. 'कालबली के सामने मनुष्य का कोई बस नहीं चलता' 'पुत्र-प्रेम' कहानी के आधार पर बताइए। पिता द्वारा पुत्र को बचाने का उपाय और पुत्र द्वारा पिता को बचाने के उपायों में किसका त्याग बड़ा था? किसके मन में शांति थी और किसलिए ? समझाकर लिखिए। 

उत्तर- चैतन्यदास मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई कहानी 'पुत्र-प्रेम' के नायक हैं, जो कि एक वकील हैं तथा अर्थशास्त्र अर्थात् धन को महत्त्व देने वाले व्यक्ति हैं।
 
चैतन्यदास का बड़ा बेटा तपेदिक के भयंकर रोग से पीड़ित था। उसका संक्रमण इतना भयानक व गंभीर था कि डॉक्टरों की चिकित्सा और औषधियों का कोई भी अनुकूल प्रभाव दिखाई नहीं दे रहा था। अंततः डॉक्टर ने प्रस्ताव रखा कि प्रभुदास को यदि इटली के सेनेटोरियम में भेजा जाए तो संभवतः उसके प्राणों की रक्षा हो जाए। डॉक्टर के इस प्रस्ताव पर धन के लोभी और व्यापार बुद्धि वाले चैतन्यदास सोच में पड़ जाते हैं। उनका तर्क था कि यदि इटली जाकर और तीन हज़ार रुपए खर्च करके भी प्रभुदास के स्वास्थ्य में लाभ नहीं हुआ तो यह धन का अपव्यय ही होगा। उनके मस्तिष्क में विचार आता है कि-"एक संदिग्ध फल के लिए तीन हज़ार का खर्च उठाना बुद्धिमत्ता के प्रतिकूल है।"

अंततः प्रभुदास का देहान्त हो जाता है। उसकी अंत्येष्टि मणिकर्णिका घाट पर की गई। अंत्येष्टि के बाद चैतन्यदास अपना आत्म विश्लेषण करते हुए बैठे थे। घाट पर उनके संबंधी भी उनके साथ बैठे थे तभी एक युवक अपने संबंधियों के साथ उसी घाट पर अपने पिता की अंत्येष्टि के लिए आया।
 
उस युवक ने चैतन्यदास को बताया कि 'हमारा घर देहात में है। कल शाम को हम चले थे। ये हमारे बाप हैं। हम लोग यहाँ कम आते हैं, पर दादा की अंतिम इच्छा थी कि हमें मणिकर्णिका घाट पर ले जाना'।
 
वह युवक अपने पिता की अंतिम इच्छा पूर्ण करने के लिए कई सौ आदमियों को साथ लेकर देहात से इस घाट पर आया है। घाट पर आने और पिता की इच्छा को पूर्ण करने के लिए उसने सैकड़ों रुपए खर्च कर दिए थे। उस युवक के चरित्र को इस कथन से समझ सकते हैं- "बूढ़े पिता की मुक्ति तो बन गई। धन और है ही किसलिए "?
 
चैतन्यदास को जब पता चला कि युवक के पिता को भी प्रभुदास की तरह ही तपेदिक का रोग था। बहुत चिकित्सा करवाई गई। तीन वर्ष तो खाट पर पड़े रहे। हरिद्वार, चित्रकूट, प्रयाग आदि स्थानों पर ले-लेकर घूमे। वैद्यों ने जो भी कहा उसमें कोई कसर नहीं छोड़ी।यह सब ज्ञात होने पर चैतन्यदास को और भी अधिक ग्लानि हुई। तभी उसे एक टिप्पणी सुनाई दी- 'नारायण लड़का दे तो ऐसा दे। इसने रुपयों को ठीकरे समझा। घर की सारी पूँजी पिता की दवा-दारू में स्वाहा कर दी, थोड़ी-सी ज़मीन तक बेच दी, पर काल बली के सामने आदमी का क्या बस है ?"
 
अन्त में यह कहा जा सकता है कि एक ओर पिता द्वारा पुत्र को बचाने का उपाय अर्थात् चैतन्यदास द्वारा प्रभुदास को बचाने के उपाय हैं तथा दूसरी ओर पुत्र द्वारा अपने पिता को बचाने का उपाय अर्थात् युवक द्वारा अपने पिता को बचाने के उपाय हैं जिनमें युवक द्वारा किए गए उपायों में जो भी उसने त्याग किया वो बड़ा था, क्योंकि उसके मन में शांति थी। वह युवक सोचता था कि- "पैसा हाथ का मैल है। कहाँ आता है, कहाँ जाता है, मनुष्य नहीं मिलता। ज़िन्दगानी है तो कमाऊँगा। पर मन में यह लालसा तो नहीं रहेगी कि हाय ! यह नहीं किया, उस वैद्य के पास नहीं गया, नहीं तो बच जाते।"

MCQ Questions with Answers Putra Prem Kahani 



बहुविकल्प प्रश्न उत्तर 

1. प्रेमचंद का वास्तविक नाम क्या था ?

A. नवाब राय 
B. कलम का सिपाही 
C. धनपत राय 
D. कथा सम्राट 

उ. C. धनपत राय 

2. पुत्र प्रेम किस प्रकार की कहानी है ?

A. धारावाहिक 
B. रोमांटिक 
C. पारिवारिक - सामाजिक 
D. आदर्शवादी 

उ. C. पारिवारिक आदर्शवादी 

3. बाबू चैतन्यदास क्या थे ?

A. जमींदार 
B. वकील 
C. तहसीलदार 
D. नेता 

उ. B . वकील 

4. बाबू चैतन्यदास की पत्नी का क्या नाम था ?

A. राजेश्वरी 
B. कमला 
C. गौरी 
D. तपेश्वरी 

उ. D . तपेश्वरी 


5. प्रभुदास को क्या हो गया था ?

A. मोटापा 
B. टीबी 
C. मधुमेह 
D. सर्दी खाँसी 

उ. B. टीबी 

6. परिवार वाले प्रभुदास को कहाँ भेजना चाहते थे ?

A. कोल्कता 
B. मुम्बई 
C. इटली 
D. अमेरिका 

उ. C.इटली 

7. चैतन्यदास मणिकर्णिका घाट पर क्या कर रहे थे ?

A . बेटे की जलती हुई चिता देख रहे थे . 
B. टहल रहे थे . 
C. दोस्तों के साथ बात कर रहे थे . 
D. नदी में तैर रहे थे . 

उ. A. बेटे की जलती चिता देख रहे थे . 

8. बाबू चैतन्यदास क्या पढ़े थे . 

A. वकालत 
B. कला 
C. अर्थशास्त्र 
D. जीवन दर्शन 

उ. C. अर्थशास्त्र 


9. चैतन्यदास किस तरह के व्यक्ति थे ?

A. धन प्रेमी व्यक्ति 
B. उदार व्यक्ति 
C. फ़िज़ूल खर्च करने वाला 
D. परोपकारी 

उ. A.धन प्रेमी व्यक्ति 

11. बाबू चैतन्यदास ने क्या खो दिया ?

A. धन . 
B. पत्नी 
C. पुत्र 
C. मानसिक संतुलन 

उ. C .पुत्र 

11. सेनोटेरियम क्या है ?

A. खेलकूद का मैदान 
B. पुस्तक का नाम 
C. चिकित्सा स्थल 
D. अजायबघर. 

उ.  C.चिकित्सा स्थल 

12. मणिकर्णिका घाट पर कौन किसे लेके आया था ?

A. युवक अपने पिताजी का  दाह संस्कार करने आया था . 
B. शिवदास घूमने आये थे .
C. गाँव के लोग दर्शन करने आये थे . 
D. बाबू चैतन्यदास स्वयं आये थे .

उ. A. युवक अपने पिताजी का  दाह संस्कार करने आया था . 

13. बाबू चैतन्यदास के छोटे बेटे का क्या नाम था ?

A. रामकुमार 
B. दिलीपदास 
C. शिवदास 
D. अर्जुन 

उ. C शिवदास 

14. पुत्र प्रेम कहानी का मुख्य नायक कौन था ?

A. चैतन्यदास 
B. शिवदास 
C. रामदास 
D. तपेश्वरी 

उ. A. चैतन्यदास 

15. बाबू चैतन्यदास पढ़ने के लिए किसे कहाँ भेजना चाहते थे ?

A. प्रभुदास को इंग्लैंड 
B. शिवदास को अमेरिका 
C. तपेश्वरी को तीर्थयात्रा 
D. रामदास को गाँव 

उ. A. प्रभुदास को इंग्लैंड

16. प्रभुदास को किस परीक्षा के बाद ज्वर आने लगा ?

A. इंटर की परीक्षा 
B. एम. ए. की परीक्षा 
C. बी.ए. की परीक्षा 
D. दसवीं की परीक्षा 

उ. C. बी.ए. की परीक्षा 

17. "महीने भर हो गए अभी तक दवा का असर नहीं हुआ ' किसने कहा ?

A. चैतन्यदास 
B. शिवदास 
C. तपेश्वरी 
D. प्रभुदास 

उ. B. चैतन्यदास 

18. "तपेदिक हो गया है ' यह कथन किसने विश्वास के साथ कहा ?

A. डॉक्टर ने . 
B. चैतन्यदास 
C. प्रभुदास 
D. रामदास 

उ. B चैतन्यदास 

19. यह रोग बहुत ही गुप्त रीति से शरीर में प्रवेश करता है ." क्या कथन किसका है ?

A. प्रभुदास 
B. शिवदास 
C. चैतन्यदास
D. डॉक्टर साहब 

उ. D. डॉक्टर साहब 

20  "अच्छे हो जाने पर यह पढने में परिश्रम कर सकेंगे ."  यह कथन किसने किससे  कहा ?

A. डॉक्टर ने प्रभुदास से 
B. प्रभुदास ने  डॉक्टर से 
C. चैतन्यदास ने  डॉक्टर से 
D. शिवदास ने माँ से 

उ. C. चैतन्यदास ने डॉक्टर से 

21. इस उदारता के प्रकाश में चैतन्यदास को अपनी ...... अत्यंत भयंकर दिखाई देती थी . 

A. हृदयहीनता 
B. भौतिकता 
C. आत्मशून्यता 
D. उपयुक्त सभी 

उ. A. हृदयहीनता 


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  1. Is me full story nahi hai is k important point hi hai...ap ek hi bat bar bar dohrate hai...is me chetnay das ki patni ka ullekh bhi aap n nahi kiya hai ...us ki vyatha ko is me leni chahiye...

    जवाब देंहटाएं
  2. This story very helpful for me and my life.. I'm very inspired to read..so I'm very happy today..bcoz get more knowledge... Thanks.. And one more thing I want to ask about blogging.. Plz reply me how to start better blogging..

    जवाब देंहटाएं
  3. Loved ur initiative of providing free explanation and honestly it is very helpful too thanks a lot

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  4. thank you for providing MCQ question as it is very important for me and for others
    As we have exam 2021-2022 isc thank you🙂🙂

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पुत्र प्रेम प्रेमचंद
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