भक्तिन महादेवी वर्मा

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भक्तिन महादेवी वर्मा
Bhaktin Story by Mahadevi Verma


भक्तिन पाठ का सारांश bhaktin story summary in hindi - भक्तिन महादेवी वर्मा जी द्वारा लिखित एक संस्मरणत्मक रेखाचित्र है ,जो की उन्होंने अपनी सेविका के बारे में लिखा है।  भक्तिन छोटे कद व दुबले शरीर वाली वृद्ध महिला है। लेखिका ने उसकी तुलना अंजनीपुत्र हनुमान से ही है ,जो की बिना थके दिन रात काम करने वाली है।  वह लेखिका के पास जब पहली बार नौकरी के लिए तो अपना नाम लक्ष्मी बताया ,लेकिन यह भी कहा कि वह नाम से न पुकारी जाय।लक्ष्मी के गले में कंठी माला देखकर लेखिका ने उसका नाम भक्तिन रख दिया ,जिसे सुनकर वह गदगद हो गयी।
  
महादेवी वर्मा जी ने भक्तिन के जीवन को चार भागों में बाटा है ,जिसमें पहले भाग में माता -पिता व विवाह का वर्णन है।  वह इलाहाबाद के झूंसी में एक सूरमा की एकलौती बेटी थी।  पाँच वर्ष की आयु में उसका विवाह हंडियां ग्राम के एक संपन्न गोपालक की पुत्र वधु बानी। विमाता ने उसका गौना नौ वर्ष की आयु में करवा दिया। लक्ष्मी के पिता की मृत्यु का समाचार ,विमाता ने पहुँचने न दिया और सास भी रोने धोने के अपशकुन के डर से लक्ष्मी को नहीं बताई। तो बाद में मायके जाने पर लक्ष्मी वापस लौट आयी।वापस लौटने पर सास को खरी खोटी सुनाई।  पति के ऊपर गहने फेंक -फेंक कर अपने दुःख को व्यक्त किया।
  
भक्तिन के जीवन का दूसरा भाग भी दुखद है। उसके एक एक के बाद एक तीन कन्याओं को जन्म दिया ,तो सास और जेठानियों ने उपेक्षा की क्यों कि दोनों जेठानियाँ ने काले - कलूटे बेटों को जन्म दिया था। उनके पुत्रों को दूध मलाई खाने को मिलती ,वहीँ भक्तिन की बेटियां काला गुड़ ,मट्ठा चना ,बाजरा जैसे मोटा अनाज खाती।  लक्ष्मी का पति ,उसे बहुत प्यार करता था।  वाह गाय ,भैस ,खेत ,खलिहान ,फलों के पेड़ों की देखभाल करती थी।बड़ी बेटी का विवाह पति ने धूम धाम से किया।  लेकिन २९ साल की उम्र में ही दोनों बेटियों का भार डालकर पति स्वर्गवासी हो गया।  किसी प्रकार भक्तिन ने दोनों बेटियों के हाथ पीले किये तथा बड़े -दामाद को घर जमाई बनाकर रखा।
  
भक्तिन के जीवन के तीसरे भाग में भी दुःख काम नहीं हुआ।  बड़ी बेटी विधवा ह गयी। जेठ के बड़े बेटे ने अपने साले का विवाह ,अपनी बहिन से करवाना चाहा ,तो उसने नापसंद कर दिया।  उस समय तो बात टल ,  दिन बाद भक्तिन के घर में न रहने पर वह तीतरबाज बेटी के घर में घुस गया ,जबकि उसके सर्मथक गाँव वालों को बुला लाये। पंचायत ने कलियुग का हवाला देते हुए विवाह कराने का आदेश दिया।  दामाद दिन भर तीतर लड़ाता। पारिवारिक द्वेष में गाय -ढोर ,खेती बाड़ी सब झुलस गए।  एक बार लगान न देने पाने के कारण जमींदार ने उसे दिन भर कड़ी धुप  रखा। भक्तिन अपमान के कलंक कमाई के लिए लेखिका के घर में सेविका बन गयी।
  
भक्तिन के जीवन में चौथे भाग में घुटी हुई चाँद की मोती मैली धोती से धनकेँ हुए लेखिका के घर  प्रस्तुत हुई। उसकी वेश -भूषा में वैरागी और गृहस्थ मिश्रण था।  वह तड़के उठकर नहा धोकर लेखिका की धूलि हुई धोती जल के छींटें से पवित्र कर पहनने लगी।भोजन के समय वह एक थाली में मोती और चित्तीदार रोटी तथा गाधी दाल लेखिका को परोस दिया।  भक्तिन बड़ी मेहनती ,ईमानदार और सच्ची स्वामिभक्त थी। लेखिका की सेवा करना उसका धर्म बन गया था।  भक्तिन का स्वभाव ऐसा बन गया था कि वह दूसरों को अपने मन के अनुसार बना लेती थी ,लेकिन स्वयं परिवर्तित नहीं होती थी। यही कारण है कि वह लेखिका के उत्तर पुस्तकिआ को बाँधना ,अधूरे चित्रों को कोने में रखना ,लेखिका के लिए दही का शरबत और तुलसी की चाय बनाकर लाना ,यह बड़ी खुसी ख़ुशी करती थी।
  
युध्य के समय भक्तिन के बेटी दामाद जब लेने आये तो वह लेखिका को अकेले छोड़कर जाने को तैयार न हुई।  उसका कहना था कि जहाँ मालिकन रहेगी ,वहां मैं रहूंगी ,चाहे वह काल कोठरी ही क्यों न हो। लेखिका के साहित्यिक मित्रों का भी भक्तिन बहुत समन्ना करती थी।  लेखिका ऐसी स्वामी भक्त सेविका को खोना नहीं चाहती है।  


भक्तिन पाठ का उद्देश्य bhaktin story by mahadevi verma 

भक्तिन पात्र का मानसिक द्वन्द ,अंतर्द्वंद व पीड़ा का लेखिका महादेवी वर्मा जी ने प्रस्तुत किया है।  भक्तिन संस्मरण में लेखिका ने एक ऐसी देहाती वृद्धा का चित्रण किया है ,जिसके अतीत व व्रतमान का चित्रण किया है। लेखिका ने भक्तिन की तुलना हनुमान जी से की है।  भक्तिन का वास्तविक नाम लक्ष्मी था।पाँच वर्ष की आयु में विवाह ९ वर्ष की आयु में गौना हो गया।पिता ने मृत्यु का समाचार विमाता व सास ने नहीं पहुँचने दिया।  बड़ी बेटी के विवाह के उपरान्त पति भी स्वर्ग सिधार गए।  किसी प्रकार दो बेटियों के हाथ पीले किये ,लेकिन दैव कृपा से घर - जमाई बड़ा दामाद भी स्वर्ग सिधार्म गया।पारिवारिक द्वेष में जीवन झुलस गया।गाय भैस ,खेत ,खलिहान सब खतम हो गए।  भक्तिन जैसी साहसी महिला जीवन में संघर्ष ही करती रहती है।वह हिम्मत नहीं हारती। वह अंत में लेखिका की सेवा में उपस्थित हुई।  वह हनुमान जी की तरह लेखिका की सेवा करती रहती है।  वह हिम्मत नहीं हारती।पढ़ी लिखी न होने पर भी वह लेखिका की सहायता करती थी।लेखिका पर स्वयं भक्तिन का इतना प्रभाव पड़ा कि वह स्वयं देहातिन हो गयी। वह बेटी - दामाद के बुलावा आने पर भी लेखिका का साथ छोड़ कर जाने को तैयार न हुई।
  
इस प्रकार हम देखते हैं कि भक्तिन के रूप में आदर्श सेविका का रूप प्रस्तुत किया गया है।  वह अपने चरित्र व स्वभाव से सभी को अपना बना लेती है।  

भक्तिन पाठ शीर्षक की सार्थकता 

भक्तिन शीर्षक बहुत ही सरल व संक्षिप्त है।पाठ का शीर्षक पढ़ते ही पाठकों के मन में यह विचार उठता है कि वह भक्तिन कौन है ? क्या कोई वैरागी औरत है।  लेखिका ने स्वयं कहा कि भक्तिन के वेश भूषा में गृहस्थ व सन्यासी का समिश्र है। वह एक ग्वाला की कन्या थी। भक्तिन का वास्तविक नाम लक्ष्मी था।पाँच वर्ष की आयु में विवाह ९ वर्ष की आयु में गौना हो गया।पिता ने मृत्यु का समाचार विमाता व सास ने नहीं पहुँचने दिया।  बड़ी बेटी के विवाह के उपरान्त पति भी स्वर्ग सिधार गए।  किसी प्रकार दो बेटियों के हाथ पीले किये ,लेकिन दैव कृपा से घर - जमाई बड़ा दामाद भी स्वर्ग सिधार्म गया।पारिवारिक द्वेष में जीवन झुलस गया।गाय भैस ,खेत ,खलिहान सब खतम हो गए।  भक्तिन जैसी साहसी महिला जीवन में संघर्ष ही करती रहती है।वह हिम्मत नहीं हारती। वह अंत में लेखिका की सेवा में उपस्थित हुई।  वह हनुमान जी की तरह लेखिका की सेवा करती रहती है।  वह हिम्मत नहीं हारती।पढ़ी लिखी न होने पर भी वह लेखिका की सहायता करती थी।लेखिका पर स्वयं भक्तिन का इतना प्रभाव पड़ा कि वह स्वयं देहातिन हो गयी। वह बेटी - दामाद के बुलावा आने पर भी लेखिका का साथ छोड़ कर जाने को तैयार न हुई।  उसमें स्वामिभक्ति के सभी गुण है।वह लेखिका की सेवा करना व उन्हें खुश रखना अपने जीवन का परम धर्म समझती है।  अतः लेखिका ने भक्तिन के रूप में एक आदर्श सेविका का चित्रण किया है । 
 
कहानी के प्रारम्भ से लेकर अंत तक भक्तिन के ही इर्द -गिर्द घूमती है। भक्तिन के जीवन के संघर्षमय पक्ष का चित्रण करना लेखिका का उद्देश्य रहा है। अतः भक्तिन शीर्षक सार्थक व सफल है।

भक्तिन पाठ में भक्तिन का चरित्र चित्रण

प्रस्तुत कहानी में भक्तिन ही कहानी का प्रमुख पात्र है। महादेवी वर्मा ने भक्तिन की जीवन यात्रा के माध्यम से अनेक सामाजिक कुरीतियों और विसंगतियों को प्रस्तुत किया है। इस कहानी में भक्तिन के द्वारा ही कहानी की मूल संवेदना को आगे बढ़ाने का प्रयास किया गया है। लेखिका ने भक्तिन का शाब्दिक चित्र इस प्रकार खींचा है, “घुटी हुई चाँद को मैली धोती से ढाँके और मानो सब प्रकार की आहट सुनने के लिए कान कपड़े से बाहर निकालते हुए है भक्तिन मेरे यहाँ सेवक धर्म में दीक्षित हुई।" उसका नाम है-लछमिन अर्थात् लक्ष्मी । लेखिका ने उसका नाम ' भक्तिन' रख दिया है। कहानी के आधार पर भक्तिन के चरित्र मे निम्नलिखित विशेषताएँ प्राप्त होती हैं - 

  1. पिता से प्रेम करने वाली - वह ऐतिहासिक झूसी में गाँव के प्रसिद्ध एक सूरमा की इकलौटी बेटी ही नहीं, विमाता के हाथों से पली है। पिता उसे बहुत प्रेम करते थे। वह भी अपने पिता को अत्यधिक प्रेम करती थी, इसीलिए उसकी विमाता ने पाँच वर्ष की उम्र में ही उसे हँडिया गाँव के एक सम्पन्न गोपालक की सबसे छोटी पुत्रवधू बनाकर पिता के प्रेम से अलग कर दिया। घर में विमाता की ही चलती थी अत: पिता विरोध भी नहीं कर पाये। विमाता ने पिता के मरने के बाद ही उसकी ससुराल में समाचार भेजा। वह अपने बीमार पिता को देख भी नहीं पाई। 
  2. पति के प्रेम की पात्र - भक्तिन अपने पति की प्रिय थी। वह भी अपने पति से खूब प्रेम करती थी। जिस घर में उसकी जिठानियाँ बात-बात पर धमाधम पीटी-कूटी जाती थीं, वहीं दूसरी ओर लछमिन के पति ने उसे कभी उँगली भी नहीं छुआई। इसका कारण परस्पर प्रेम और लछमिन का सद्भाव रहा होगा। पति बड़े बाप की बड़ी बात वाली बेटी को पहचानता था। इसके अतिरिक्त परिश्रमी, तेजस्विनी और पति के प्रति रोम-रोम से सच्ची पत्नी को वह चाहता भी बहुत था। काम वही करती थी, इसलिए गाय-भैंस, खेत-खलियान, अमराई के पेड़ आदि के सम्बन्ध में उसी का ज्ञान बहुत बढ़ा-चढ़ा था। साथ ही परिश्रमी दम्पति के निरन्तर प्रयास से उसका सोना (उत्तम) बन जाना भी स्वाभाविक हो गया । 
  3. कर्मठ व्यक्तित्व वाली-भक्तिन बहुत ही कर्मठ थी। उसने अपने पति और दामाद की मृत्यु के बाद भी अपनी बेटी के साथ मिलकर अपनी सम्पत्ति की देखभाल की। उसकी कर्मठता पर तब ठेस लगी जब वह नये दामाद के व्यवहार के कारण लगान न दे सकी और इस कारण उसे दिनभर धूप में खड़ा रहना पड़ा। यह अपमान तो उसकी कर्मठता में सबसे बड़ा कलंक बन गया अतः दूसरे ही दिन भक्तिन कमाई के विचार से शहर आ पहुँची। 
  4. आत्मविश्वास से परिपूर्ण- भक्तिन में आत्मविश्वास कूट-कूटकर भरा है। इस सम्बन्ध में लेखिका ने कहा कि वह दूसरों को अपने मन के अनुसार बना लेना चाहती है, पर अपने सम्बन्ध में किसी प्रकार के परिवर्तन की कल्पना तक सम्भव नहीं। इसी से आज लेखिका अधिक देहाती है, पर उसे शहर की हवा नहीं लग पाई। जब वह लेखिका के पास काम माँगने आई तो लेखिका ने उससे पूछा कि क्या खाना बनाना जानती हो, तो वह बोली- “ई कउन बड़ी बात आय। रोटी बनाय जानित है दाल राँध लइत है, साग भाजी छँउक सकित है, अउर बाकी का रहा।" यह कथन उसके हर काम में आत्मविश्वास को प्रदर्शित करता है।
इसके अलावा उसके चरित्र में अन्ध-विश्वास, संवेदनशीलता आदि अनेक विशेषताएँ हैं जो उसके चरित्र को प्रभावशाली बना देती हैं। इस प्रकार भक्तिन का चरित्र पूरी तरह से लेखिका के उद्देश्य की पूर्ति में सहायक है। भक्तिन इस कहानी की सशक्त पात्र है। कहानी उसी के चारों ओर घूमती है और उसके चरित्र को उजागर करती है। 

भक्तिन पाठ के प्रश्न उत्तर


प्रश्न. लेखिका भक्तिन के बारे में ऐसा क्यों कहती है कि उसके जीवन का परम कर्त्तव्य उसे प्रसन्न रखना है। हर प्रश्न को भक्तिन अपनी सुविधा के अनुसार सुलझा लेती है। कहानी के आधार पर बताइए ।
 
उत्तर- भक्तिन अच्छी है यह कहना कठिन होगा क्योंकि उसमें दुर्गुणों का अभाव नहीं है। वह हरिश्चन्द्र नहीं बन सकती, पर 'नरो वा कुंजरो वा' कहने में भी विश्वास नहीं करती। लेखिका के इधर-उधर पड़े पैसों को किसी मटके में डाल देती है क्योंकि वह उस घर को अपना घर मानती है। उसका परम कर्त्तव्य लेखिका को प्रसन्न रखना है-जिस बात से लेखिका को क्रोध आ सकता है उसे बदलकर इधर-उधर बताना वह झूठ नहीं मानती। वह कहती है कि इतना झूठ तो धर्मराज में भी होगा, नहीं तो वे भगवान जी को कैसे प्रसन्न रख सकते और संसार को कैसे चला सकते। 

शास्त्र के प्रश्न को भी भक्तिन अपनी सुविधा के अनुसार सुलझा लेती है। जब लेखिका ने उसे सिर घुटाने से रोकना चाहा तो वह बोली - "तीरथ गये मुँड़ाय सिद्ध।" पर वह मूर्ख है या विद्या-बुद्धि का महत्व नहीं जानती, यह कहना असत्य होगा। अपने विद्या के अभाव को वह लेखिका की पढ़ाई-लिखाई पर अभिमान करके भर लेती है। वह कहती-"हमारे मलकिन तौ रात-दिन कितबियन माँ गड़ी रहती हैं। अब हमहूँ पढ़े लागब तौ घर-गिरिस्ती कउन देखी-सुनी।" वह अपने तर्क ही नहीं तर्कहीनता के लिए भी प्रमाण खोज लेने में पटु है। अपने आपको महत्व देने के लिए ही वह अपनी मालकिन को असाधारणता देती है।
 
एक बार जब लेखिका उत्तर-पुस्तकों और चित्रों को लेकर व्यस्त थी तब भक्तिन सबसे कहती घूमी "ऊ बिचरिअउ तौ रात-दिन काम माँ झुकी रहती है, अउर तुम पचै घूमती फिरती हौ । चलौ तनिक हाथ बटाय लेउ ।" सब जानते थे कि ऐसे कामों में हाथ नहीं बटाया जा सकता, अत: औरतें कोई बहाना करके भक्तिन से पिंड छुड़ातीं और भक्तिन यह सोचने लगती कि उसकी मालकिन जैसा काम कोई जानता ही नहीं, इसी से तो बुलाने पर भी कोई हाथ बँटाने की हिम्मत नहीं करता ।
 
वह द्वार पर बैठकर कुछ काम बातने का आग्रह करती। कभी उत्तर-पुस्तकों को बाँध देती, कभी अधूरे चित्र को कोने में रख देती, कभी रंग की प्याली धो देती और कभी चटाई को आँचल से झाड़ देती। ये सब काम भक्तिन लेखिका का प्रसन्न रखने के लिए करती । 

प्रश्न. 'भक्तिन का जीवन संघर्ष एवं कर्मठता का जीवन्त उदाहरण है'-उसके जीवन के विभिन्न अध्यायों का वर्णन करते हुए इस कथन की पुष्टि कीजिए। 

उत्तर- भक्तिन का वास्तविक नाम लछमिन था। अपनी माँ का साया बचपन में उठ जाने के कारण उसका जीवन संघर्षपूर्ण रहा। पाँच वर्ष की आयु में ही उसका विवाह हो गया था और नौ वर्ष की आयु में उसका गौना हो गया था। तीन कन्याओं की माँ बनने के कारण वह ससुराल में उपेक्षा का पात्र बनी, पर उसका पति उसे बहुत प्यार करता था। बड़ी बेटी का विवाह होने के बाद छत्तीस वर्ष की अवस्था में उसके पति की मृत्यु हो गई। उसके जीवन की कर्मठता और संघर्ष को हम इस प्रकार समझ सकते हैं- 
  • छोटी बहू होने के कारण वह गृहस्थी के सारे बोझ उठाती थी और खेती-बाड़ी की देखभाल भी करती थी उसका जीवन संघर्षों का दूसरा नाम था। सौतेली माँ के कटु व्यवहार से लेकर ससुराल वालों की उपेक्षा तक, पति की मृत्यु के बाद अकेले ही पारिवारिक विवाद का सामना करना तथा गाँव से शहर आकर लेखिका के यहाँ नौकरी करने तक उसने सदा ही विषम परिस्थिति का सामना किया ।
  • वह बहुत स्वाभिमानी थी। लगान न चुका पाने के कारण जमींदार ने उसे धूप में खड़ा कर दिया इसलिए अपमानित होकर वह शहर चली आती है और नौकरी करने लगती है। अपने पति से अत्यधिक प्रेम के कारण वह दूसरा विवाह भी नहीं करती है और स्वयं ही सारे कार्य करती है। 
  • लेखिका का मन दया भाव से परिपूर्ण था। वह लेखिका का पूरा ध्यान रखती थी। खाना बनाने से लेकर कपड़े धोना और उनकी कलम दवात को सही स्थान पर रखना आदि कार्य वह स्वयं ही करती थी। वह लेखिका के जेल जाने पर लड़ने को तैयार थी। 
  • वह मजबूत व्यक्तित्व वाली महिला थी और सबको अपने अनुरूप ढाल लेती थी। उसे किसी का भी रसोईघर में प्रवेश पसंद नहीं था। वह छुआछूत को बहुत मानती थी। वह एक सांसारिक महिला थी उसका व्यक्तित्व विलक्षण था। 

प्रश्न . नाम का विरोधाभास लेकर जीने से लेखिका का क्या आशय है? लक्ष्मी को भक्तिन नाम किसने दिया और क्यों ? भक्तिन को लेखिका ने कवित्वहीन क्यों कहा है ? 

उत्तर - हिन्दी साहित्य की मूर्धन्य साहित्यकार व बहुमुखी प्रतिभा की धनी श्रीमती महादेवी वर्मा 'छायावाद' की प्रमुख स्तम्भ रही हैं। प्रकृति-चित्रण छायावादी कविता की प्रमुख पहचान है। ये सभी विशेषताएँ उनकी रचनाओं में दिखाई देती हैं। महादेवी वर्मा के रेखाचित्र भी बहुत चर्चित रहे हैं, 'भक्तिन' महादेवी वर्मा का प्रसिद्ध संस्मरणात्मक रेखाचित्र है जो 'स्मृति की रेखाएँ' में संकलित है। इसमें महादेवी जी ने अपनी सेविका भक्तिन के अतीत और वर्तमान का परिचय देते हुए उसके व्यक्तित्व का बड़ा ही सुन्दर चित्र खींचा है।
 
भक्तिन' का वास्तविक नाम लछमिन (लक्ष्मी) है। वह अपने गाँव से काम ढूँढ़ने की लालसा में शहर आई और एक अनन्य भक्त की तरह लेखिका की सेविका बन गई। लछमिन ने लेखिका को अपने नाम का प्रयोग न करने और न किसी को बताने का आग्रह पहली बार की भेंट में ही कर दिया था इसलिए लेखिका को उसका उपनाम रखना पड़ा। लेखिका कहती है- "जब मैंने कंठी माला देखकर उसका नया नामकरण किया तब वह 'भक्तिन' जैसे कवित्वहीन नाम को पाकर गद्गद हो उठी।" भक्तिन सचमुच भक्तिन है। उसकी भक्ति हनुमान जी की कोटि की है। वह रात-दिन लेखिका की छाया बनकर घूमती है। लेखिका कहती है कि भक्तिन का वास्तविक नाम लछमिन उसके कर्म से मेल नहीं खाता। भक्तिन भी इस बात को अच्छी तरह से जानती है, तभी तो उसने लेखिका से इस नाम को न लेने का आग्रह किया था क्योंकि समृद्धिसूचक उसका नाम नौकरी के लिए भटकने वाली भक्तिन के साथ संगत नहीं बैठता। 

नाम का विरोधाभास लेकर जीने से लेखिका का आशय यह है कि नाम के अनुरूप किसी में भी गुण दिखाई नहीं देते। वे स्वयं अपने नाम से विरोधाभास दिखाते हुए कहती है- "जैसे नाम की विशालता मेरे लिए दुर्वह है वैसे ही लक्ष्मी की समृद्धि भक्तिन के कपाल की कुंचित रेखाओं में नहीं बंध सकीं।" लेखिका ने स्वयं के लिए कहा कि-जैसे वह कभी 'महादेवी' न बन सकीं वैसे ही लक्ष्मी का नाम ही केवल लक्ष्मी है। उसके पास वास्तविक लक्ष्मी नहीं है। उसके नाम और भाग्य में विरोधाभास था। लक्ष्मी का अर्थ समृद्धि से है किन्तु वह बिचारी जीविका के लिए नौकरी कर रही है अतः यथा नाम तथा गुण होना असम्भव है।
 
लेखिका ने कहा- वैसे तो प्रायः सभी लोगों को अपने-अपने जीवन में नाम का विरोधाभास लेकर जीना पड़ता है। भक्तिन अपने सेविका के कार्य को पहचानती थी अतः किसी को भी अपना नाम नहीं बताती थी। तब लेखिका ने ही उसके गले की कंठी तथा मुँड़े हुए सिर को देखकर उसका छोटा नाम रखने का सुझाव दिया- 'भक्तिन', क्योंकि वह अपने स्वरूप के कारण भक्तिन ही लग रही थी अतः लेखिका ने उसके भक्तों जैसे चिन्ह व लक्षणों को देखकर उसका नाम 'भक्तिन' रख दिया।
 
भक्तिन नाम व भक्तिन शब्द शान्ति व वैराग्य का प्रतीक है। इसका अर्थ है, भगवान की भक्ति करने वाली और संसार से विरक्ति रखने वाली। भक्तिन शब्द में लालित्य या सौन्दर्य नहीं झलकता जो किसी अन्य कवित्वपूर्ण शब्द से झलकता है। हमारे यहाँ यह नाम किसी तपस्विनी या संन्यासी के रखे जाते हैं सामान्य गृहस्थियों के नहीं।
 
भक्तिन में लेखिका के प्रति इतना श्रद्धाभाव था कि वह इस कवित्वहीन व वैराग्यसूचक नाम पाकर भी गद्गद हो गई।


प्रश्न. "जब उसने गेहुँए रंग और बटिया जैसे मुखवाली पहली कन्या के दो संस्करण और कर डाले तब सास और जिठानियों ने ओंठ बिचकाकर उपेक्षा की।" प्रस्तुत कथन के आधार पर भक्तिन पाठ का आलोचनात्मक अध्ययन कीजिए। 

उत्तर - महादेवी वर्मा द्वारा लिखित 'भक्तिन' एक प्रसिद्ध संस्मरणात्मक रेखाचित्र है जो उनकी रचना 'स्मृति की रेखाएँ' संकलन से लिया गया है। इसमें उन्होंने अपनी सेविका भक्तिन का परिचय दिया है। अतीत में वह किन परिस्थितियों में रही। महादेवी के घर में काम करने से पहले उसने कैसे एक संघर्षशील व स्वाभिमानी जीवन जिया तथा महादेवी के घर में उसका व्यक्तित्व कैसा रहा, लेखिका ने इसका बड़ा हृदयस्पर्शी चित्र खींचा है।
 
भक्तिन छोटे कद और दुबले शरीरवाली थी। पर वह दृढ़ इच्छाशक्ति व संकल्प वाली थी। वह अपना समृद्धिसूचक नाम किसी को बताती नहीं। लेखिका उसका परिचय देते हुए कहती है-"भक्तिन किसी अंजना की पुत्री न होकर एक अनाम धन्या गोपालिका की कन्या है-नाम है लछमिन अर्थात् लक्ष्मी। जब वह लेखिका के पास नौकरी के लिए आई थी तो उसने ईमानदारी का परिचय देते हुए यह भी बता दिया था कि वह कभी उसके नाम का उपयोग न करे, तब लेखिका द्वारा दिए गए 'भक्तिन' नाम को पाकर वह गद्गद् हो गई।
 
महादेवी वर्मा ने अपने घर में काम करने वाली सेविका के अतीत का संघर्ष दिखाते हुए बताया कि कैसे पितृसत्तात्मक मान्यताओं वाले समाज में वह अपने और अपनी बेटियों की हक की लड़ाई लड़ती रही। तीन-तीन बेटियों को जन्म देने के कारण उसे ससुराल में सास व जेठानियों के ताने सुनने पड़ते। लेखिका के शब्दों में- "जब उसने गेहुँए रंग और बटिया जैसे मुख वाली पहली कन्या के दो संस्करण और कर डाले तब सास और जिठानियों ने ओंठ बिचकाकर उपेक्षा की।" 

इस प्रकार लेखिका ने अतीत से चली आ रही इस समस्या को उठाया है। भक्तिन इस पाठ की प्रमुख पात्रा है। वह साहसी व संघर्षशील स्त्री के रूप में दिखाई गई है। जब उसका पति इस संसार से विदा लेता है तो उसके जेठ-जिठौतों के मन में उसकी जमीन जायदाद हरे भरे खेत देखकर लालच आ गया लेकिन इनकी प्राप्ति तभी सम्भव थी जब लछमिन दूसरा विवाह कर लेती लेकिन वह इन लोगों के चकमे में नहीं आई। वह क्रोध में पाँव पटकते हुए बोली- "हम कुकरी बिलारी न होय, हमार मन पुसाई तौ हम दूसरा के जाब नाहिं त तुम्हार पचै की छाती पै होरहा भूँजब और राज करब, समुझे रहौ।" जीवन में कठिन परिस्थितियों का सामना कैसे किया जाता है। जिन्दगी से हार कर भी जीवन कैसे जिया जाता है। लेखिका ने लछमिन के माध्यम से नारी समाज के लिए उदाहरण प्रस्तुत किया है।
 
जब भक्तिन लेखिका के घर सेविका का काम करने लगती है तो वह अपने व्यवहार व स्वभाव से लेखिका के खान-पान, बोल-चाल में परिवर्तन ले आती है । पर स्वयं उसे शहर की हवा नहीं लग पाई। भक्तिन के माध्यम से लेखिका ने गाँव-देहात के खान-पान व सरलता का यथार्थ चित्रण किया है-मकई का दलिया, बाजरे के पुए, ज्वार की खिचड़ी, सफेद महुए की लस्सी आदि चीजें हमें ग्रामीण परिवेश में ले जाती हैं। लेखिका भक्तिन की सरलता से प्रभावित होकर कहती हैं- "इस देहाती वृद्धा ने जीवन की सरलता के प्रति मुझे इतना जाग्रत कर दिया था कि मैं अपनी असुविधाएँ छिपाने लगी, सुविधाओं की चिंता करना तो दूर की बात ।"
 
भक्तिन महादेवी जी के जीवन में आकर छा गई है। उसके माध्यम से हमें उनके जीवन के, व्यक्तित्व के कई आयाम देखने को मिलते हैं। ग्रामीण परिवेश, ग्रामीण बोली व ग्रामीण पात्र का जो खाका लेखिका ने खींचा है वह पाठ को जीवन्त कर देता है। भक्तिन के रूप में स्त्री अस्मिता की संघर्षपूर्ण आवाज को भी बुलंद किया गया है। 

 
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COMMENTS

Leave a Reply: 25
  1. Yudh ka bhay badhaane par bhaktin nah mahadevi se Kya prathna ki

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    1. Bhakton ne lekhika se prarthana ki ki veh uske sath unke gaon chle. Bhakton lakhika ka sath nhi chodna chahti thi. Usne ek sacchi sevika ka dharm nibhaya

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  2. Thanks for this. It is very useful for me. Thanks ones again

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  3. Bhaye shabd ko Lekar Kavi ke Man sthiti Aur apni Man sthiti Ki tulna kijiye

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  4. This is very helpful but plss content may should be less word more explanation 💯

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  5. Mhadevi ne bhaktin ke jivan ko kitne prichedu me banta hai naam btaiye

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  6. Bhagtin ka Rekhachitr k kasy ka vislasan stri bimsga btao
    Please answer fast

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  7. Bhagtin ne 1st time khana prostye time thali me kitni roti rakhi

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  8. बहुत ही बढ़िया
    और धन्यवाद

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  9. बहुत ही बढ़िया है और धन्यवाद

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  10. भक्ति का जीवन परिचय

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  11. बेनामीमई 23, 2023 9:43 pm

    संस्मरणों के तत्व के आधार पर भक्तिन का मूल्यांकन कीजिए ।

    जवाब देंहटाएं
  12. बेनामीमई 23, 2023 9:44 pm

    संस्मरण के तत्व के आधार पर भक्तिन का मूल्यांकन कीजिए।

    जवाब देंहटाएं
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भक्तिन महादेवी वर्मा
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