मजबूरी कहानी मन्नू भंडारी Majboori by Mannu Bhandari मजबूरी कहानी का सार majboori summary by mannu bhandari मजबूरी कहानी मन्नू भंडारी का उद्देश्यमजबूरी कहानी ,मन्नू भंडारी जी द्वारा लिखित एक पारिवारिक कहानी है जिसमें बूढ़ी अम्मा की अपने पोते बेटू के प्रति प्रेम को दिखाया गया है।
मजबूरी कहानी मन्नू भंडारी
Majboori by Mannu Bhandari
मजबूरी कहानी का सार majboori summary by mannu bhandari - मजबूरी कहानी ,मन्नू भंडारी जी द्वारा लिखित एक पारिवारिक कहानी है जिसमें बूढ़ी अम्मा की अपने पोते बेटू के प्रति प्रेम को दिखाया गया है। कहानी के प्रारम्भ में बूढ़ी अम्मा का लोरी गायन होता है ,जोकि अपने पोते बेटू के लिए गए रही है। वह अपने घर को साफ़ - सफाई कर रही है ,उनके पैरों में दर्द भी है लेकिन बेटे रामहहवर और बहू तथा पोते में आगमन की ख़ुशी में सारा दर्द भूल जाती है। उनका बेटा रामेश्वर बम्बई में काम करता है। बूढ़ी अम्मा को अपने बेटे को बचपन की बाते याद आने लगती है कि वह लोरी सुने बिना सोता ही नहीं था। अब पोता बेटू भी ऐसा ही होगा। अम्मा कल्पनाओं में ही खोयी थी कि तभी एक ताँगा आकर अम्मा के घर के सामने रुका। अम्मा ने दौड़कर रामेश्वर की गोद से बच्चे को झपटकर ऐसे छीना जैसे किसी चोर उच्चके के हाथ से वे अपने बच्चे को छीन रही है। बेटू को अम्मा ने सीने से लगा लिया।
चाय पानी के बाद रामेश्वर ने बताया कि बहू को बच्चा होने वाला है। इसीलिए वह बेटू को अम्मा के पास ही छोड़ कर जाएंगे। यह सुनकर अम्मा ख़ुशी से फूली न समायी। उन्होंने नर्मदा तथा गाँव वालों को सभी को ख़ुशी - ख़ुशी यह समाचार सुनाया। अब अम्मा बेटू के साथ दिन भर खेलने लगी। वे पुरे दिन दूध को शीशी साफ़ करती और समय समय पर बेटू को दूध पिलाती। उन्होंने घड़ी देखना भी सीख लिया ,बीस दिन बाद जब बहू अपने मायके जाने लगी ,तो बेटू ने न तो जिद की और न ही रोया। जाते समय रामेश्वर ने माता - पिता के लिए कपड़े बनावा दिया। बेटू इसी बीच गली के गंदे बच्चों के साथ खेलता और हर फेरी वाले से कुछ न कुछ खरीदता।दूसरे साल बहू रमा बेटू देखकर परेशान हो गयी। वह जिद बहुत करता था। अम्मा समझाती है कि बच्चे जिद करते है. बड़े होने पर सब ठीक हो जाएगा। रमा बेटू को अपने साथ ले जाना चाहती थी ,लेकिन अम्मा के कारण नहीं ले जा पायी। दो साल बाद रामेश्वर और रमा अपने तीन साल के बेटे पप्पू का लेकर आये। पप्पू अंग्रेजी स्कूल भर्ती होने के कारण अंग्रेजी की छोटी - छोटी कविताएँ बोलता था ,वहीँ बेटू गँवारों की भाँती रहता था इसीलिए रामेश्वर जिद करके बेटू को लेकर रमा अपने मायके में लेकर चली जाती है लेकिन वहां बेटू का रो - रोरोकर बुरा हाल था ,इसीलिए रमा बेटू को अम्मा के पास वापस कर गयी।
एक साल बाद रमा फिर आयी ,लेकिन बेटू में कोई परिवर्तन न देखकर बहु उसे बम्बई ले गयी। अम्मा भी पैसे खर्च करके शिब्बू को साथ भेज दिया। एक सप्ताह बाद शिब्बू लौट आया ,लेकिन बेटू नहीं आया।अब अम्मा की आशा ,निराशा में बदल गयी।उसे लगा कि बेटू अम्मा को भूल गया होगा।बेटू का मन लग गया होगा ,वहां उसके बहुत सारे दोस्त होंगे। इसी ख़ुशी में अम्मा ने सवा रुपये शिब्बू को देकर पेड़े मंगवाये और लोगों को बाटें। अम्मा अब खुश थी।
मजबूरी कहानी मन्नू भंडारी का उद्देश्य
मन्नू भंडारी ने मजबूरी कहानी में बूढी अम्मा के रूप में एक दादी को अपने पोते बेटू के प्रति प्रेम व स्नेह को व्यक्त किया है। कहानी अत्यंत मार्मिक व ह्रदय स्पर्शी बन पड़ी है। कहानी में मज़बूरी दिखाई गयी है। बूढ़ी अम्मा अकेली है। वे अपने बेटे बहु और पोते से मिलने के लिए बेचैन रहती है।उनके आने पर बहु ,बेटे को अम्मा जी के पास ही रखने के लिए प्रस्ताव रखती है ,इस पर अम्मा जी बहुत खुश हो जाती है। उनका जीवन बदल जाता है ,लेकिन बेटू जिद्दी और गंदे बच्चों के साथ दोस्ती रखता है। बिगड़ते बच्चे को देखकर बहु रमा अपने मायके ले जाती है ,लेकिन अपनी दादी के लिए रो - रो कर बुरा हाल हो जाती है ,इसीलिए रमा बेटू को दादी के पास छोड़ जाती है। तीन साल बाद रमा के छोटे बेटे पप्पू और बेटू में बहुत अंतर आ जाता है जाता है। बेटू भविष्य न बिगड़े इसीलिए रमा अपने साथ बेटू को लेकर बम्बई चली जाती है। पीछे - पीछे अम्मा जी शिब्बू को बम्बई भेजती है। इस बार बेटू का मन बम्बई लग जाता है।वह अब रोटा नहीं है। इधर बूढ़ी अम्मा का जीवन फिर से एकाकी हो जाता है। अम्मा के अकेलेपन ,उनके मन की व्यथा तथा बच्चों के माँ - बाप के प्रति कर्तव्य को दिखाना ,लेखिका का उद्देश्य रहा है।अम्मा के मन का अन्तर्द्वन्द व उनके एकाकीपन की मार्मिकता बहुत ही हृदयस्पर्शी बन पड़ी है।
मजबूरी कहानी मन्नू भंडारी शीर्षक की सार्थकता
मजबूरी कहानी ,मन्नू भंडारी जी द्वारा लिखित एक पारिवारिक कहानी है जिसमें बूढ़ी अम्मा की अपने पोते बेटू के प्रति प्रेम को दिखाया गया है। कहानी का शीर्षक मजबूरी बहुत ही सार्थक व उचित बन पड़े है।पूरी कहानी में दादी माँ का एकाकीपन आरम्भ से लेकर अंत तक दर्शाया गया है। बीच में बेटू बहु और पोते बेट के आने पर उनका एकाकीपन दूर होता है। रमा ,दूसरी संतान होने के कारण बेटू को कुछ समय के लिए दादी के पास छोड़कर जाती है। इस कारण अम्मा के जीवन में ख़ुशी आ जाती है।वह अपना बुढ़ापा भूल जाती है ,लेकिन उनके लाड़ - प्यार में बेटू बिगड़ जाता है।वह सारा - दिन खाता रहता है।गंदे बच्चों के साथ खेला करता था।रमा ,अपने बेटू के भविष्य की चिंता करती है ,इसीलिए वह बेटू को लेकर चली जाती है। वहाँ बेटू का मन भी लग जाती है ,इसी कारन अम्मा सबसे ऊपर -ऊपर ख़ुशी व्यक्त करती है ,पर भीतर -भीतर ही वह बहुत दुःखी होती है।लेखिका ने इसीलिए दादी माँ के माध्यम से नारी के एकाकीपन का चित्रण किया है। अतः लेखिका के उद्देश्य को दर्शाने मज़बूरी शीर्षक सार्थक व सफल है। मजबूरी के कारण ही हर पात्र ,में परिवर्तन होता रहता है।
दादी अम्मा का चरित्र चित्रण
दादी अम्मा कहानी की मुख्य पात्र है। दादी अम्मा का चरित्र उसके अंतर्द्वंद तथा कहानी में आई घटनाओं के आधार पर दर्शाया गया है। बूढी अम्मा गाँव में सूना और एकाकी जीवन बिता रही है। बेटा रामेश्वर नौकरी के कारण बाहर रहता है। दो तीन साल में एक बार माँ के पास आ जाता है। माँ के लिए उनके साथ बिताये क्षण ही ख़ुशी प्रदान करते हैं। माँ ममता की मूर्ति है जो बेटे के दूर रहने का कारण धन मानती है। जब नर्मदा रामेश्वर के लिए कठोर शब्दों का प्रयोग करती है तो वह सुनना नहीं चाहती है। पति का व्यवहार उपेक्षित है। पति गाँव में वैद्य हैं ,अपने काम में व्यस्त रहते हैं। नर्मदा नौकरानी ही अम्मा की एकमात्र साथी है।
अम्मा बूढी ,पुराने ज़माने की नारी है। मातृत्व को प्रधानता देती है। जब बेटा - बहू ,बेटू को छोड़कर जाते हैं तो सूने आँगन में खुशियाँ लौट आती है। उसमें नया उत्साह ,नयी शक्ति आ जाती है। वह बेटू पर पूरा अधिकार दर्शाती है। उसे पालने के लिए शीशी से दूध पिलाना ,घडी से समय देखना ,आदि सभी नयी चीजें सीख लेती है। वह तो अपना सारा लाड प्यार बेटू पर न्योछावर कर देती है। ममता के कारण यह भी नहीं जान पाती है कि बेटा बहू अपने स्वार्थ के कारण उसे उसके पास छोड़ गए हैं। दादी अम्मा के लाड प्यार से बेटू की आदतें बिगड़ जाती है पर वह इसे प्यार कहती है।
दादी अम्मा के मन का अंतर्द्वंद तब दिखाई पड़ता है जब आधुनिक जीवन की कठोरता से दादी अम्मा के मन की कोमलता टकराती है। रमा बेटू के पालन पोषण के तरीके से दुखी है। वह बेटू को साथ ले जाना चाहती है ,अम्मा भेज तो देती है पर उसके मन में उथल पुथल मच जाती है। उसकी भावनाओं की कोई कीमत नहीं है। उसकी ममता का कोई मूल्य नहीं है। बेटू पहली बार लौट कर आ जाता है तो अम्मा खुश हो जाती है। पर रमा फिर उसे साथ ले जाना चाहती है क्योंकि पप्पू भी बड़ा हो गया था। अब रमा को अम्मा की सेवाओं की जरुरत नहीं थी क्योंकि अब वह दोनों बच्चों को संभाल सकती है।
अम्मा को विश्वास था कि बेटू रमा के पास नहीं रहेगा। वह मनौती मानती है कि बेटू उसे भूल जाए। जब शिब्बू उसे बताता है कि बेटू का मन बम्बई में लग गया है तो वह निराश हो जाती है परन्तु ख़ुशी प्रकट करती हुई कहती है - चलो अच्छा हुआ बेटू उसे भूल गया।
इस प्रकार दादी अम्मा ,एकाकी ,भावुक ,ममतामयी पुराने ज़माने की नारी है। आधुनिक जीवन में मूल्य उसकी भावनाओं पर हावी हो जाते हैं।
मजबूरी कहानी के प्रश्न उत्तर
प्रश्न. दादी अम्मा बेटू के पालन-पोषण के लिए क्या-क्या यत्न करती हैं? बेटू को अपने पास रखने में वह सफल क्यों नहीं हो पाईं ?
उत्तर- बेटू के आने से अम्मा का तो जीवन ही बदल गया। उसका एकाकीपन बेटू के आने से दूर हो गया और उसका खाली समय बेटू के पालन-पोषण में लग गया।
निश्चित समय पर बेटू को दूध पिलाना, शीशी में दूध भरना, बाद में उसकी सफाई करना आदि सब काम अम्मा के लिए बिल्कुल नये थे। अम्मा ने तो रामेश्वर को, अपने ढंग से पाला था। जब बच्चा रोया, झट दूध पिला दिया। दूध के लिए भी समय देखना पड़ता है, यह बात उनके लिए बिल्कुल नई थी। दो साल तक तो उन्होंने रामेश्वर को अपना दूध पिलाया था, उसके बाद गिलास से पिलाती थीं। शीशी का नखरा उस जमाने में नहीं था, पर रमा से बड़ी लगन और तत्परता से यह सब अम्मा ने सीखा। पति से जिद करके औषधालय की दीवार घड़ी, जो बीस वर्षों से वहीं लगी थी, उतरवा कर अपने घर में लगवाई और घड़ी देखना सीखा ताकि समय से बेटू को दूध पिलाया जाये। वैसे तो उनकी याद्दाश्त कमजोर थी, पर बेटू को कितने बजे दूध पिलाना है, यह बात याद रहती। शुरू-शुरू में उन्हें बड़ा अटपटा-सा लगा, लेकिन बाद में सारा काम बड़ी सतर्कता से करती थीं। शीशी में दूध भरते समय उनका बूढ़ा हाथ अक्सर काँप जाया करता था और दूध बाहर को गिर जाता था। उस समय वह सफाई पेश करत - "बहुत जल्दी सीख लूँगी, बहू ! जरा-सा हाथ काँप गया था। फिर शीशी का मुँह भी तो कितना छोटा है।" उनका कहने का भाव ऐसा होता मानो वे कह रही हों कि इस छोटी-सी गलती के कारण ही कहीं बेटू को मत ले जाना।
बीस दिन बाद जब बहू ने अपनी माँ के घर प्रयाण किया तो बेटू ने न जिद की, न वह रोया ही। माँ के कड़े नियन्त्रण के बाद दादी के असीम दुलार में रहना, जहाँ कोई बन्धन नहीं, अंकुश नहीं, बेटू को बड़ा अच्छा लगा।
बहुत कोशिश करने के बाद भी अम्मा बेटू को अपने साथ गाँव में न रख सकी क्योंकि वहाँ उसके पढ़ने का कोई इन्तज़ाम नहीं था। दूसरे, अम्मा के असीम लाड़-प्यार से वह जिद्दी हो गया था। फिर गाँव में उसके दोस्त भी अच्छे लड़के नहीं थे। गाँव का जीवन शहर से बिल्कुल अलग था। रमा को यह सब पसन्द नहीं आया उसने रामेश्वर से कहा- “अम्मा के दुःख की बात मैं मानती हूँ पर जब उन्हें लिखा कि बेटू को स्कूल में डाल दो, तो उनसे नहीं हुआ। जैसे बताती हूँ, वैसे वो रखती नहीं। अब उनके दो दिन के सुख के लिए बच्चे का सारा भविष्य बिगाड़कर रख दूँ?"
अन्त में अम्मा की समझ में भी यह बात आ गई कि बच्चे के भविष्य के लिए उसका माता-पिता के साथ जाना ही ठीक है। इसलिए वह बेटू को अपने पास रखने में सफल नहीं हो पाई।
प्रश्न. 'मजबूरी' कहानी के शीर्षक के औचित्य पर प्रकाश डालते हुए बताइए कि लेखिका मन्नू भण्डारी इस कहानी के माध्यम से पाठकों को कौन-सा सन्देश देना चाहती हैं?
उत्तर- प्रस्तुत कहानी में प्रत्येक पात्र किसी-न-किसी कारण से मजबूर है। कहानी के प्रारम्भ में ही रामेश्वर का तीन साल बाद माँ से मिलने आना और अम्मा का यह कथन रामेश्वर की मजबूरी को प्रकट करता है-“देख नर्बदा मेरे रामेश्वर के लिए कुछ मत कहना। यह तो मैं ही जानती हूँ कि तीन-तीन बरस मुझसे दूर रहकर उसके दिन कैसे बीतते हैं, पर क्या करें, नौकरी तो आखिर नौकरी है।"
इसी प्रकार रमा का दूसरा बच्चा होने को है उस समय रमा की मजबूरी है कि पहले पुत्र बेटू को सँभाल न सकेगी। इसलिए वह मजबूरी में बेटू को माँ के पास छोड़ने का निर्णय लेती है, लेकिन अधिक दिनों तक वह बेटू को अम्मा के पास नहीं छोड़ पाई क्योंकि उसकी शिक्षा का सवाल था । इसलिए बेटू को शहर ले जाना उसकी मजबूरी बन गई।
प्रस्तुत कहानी में अम्मा की विवशता (मजबूरी) प्रमुख है। कहानी की अधिकांश घटनाएँ अम्मा की विवशता पर आधारित हैं। अम्मा की मजबूरी कहानी का एक महत्वपूर्ण बिन्दु है, कहानी में बेटू का आगमन और बेटू के जाने तक की बात कथानक को एक प्रवाह देती है। इन मजबूरियों के बीच अम्मा का अकेलापन, बेटू से उनका प्रेम, उनकी भी मजबूरी है।
इस प्रकार से इस कहानी में उसके कथानक और विषयवस्तु के देखने से पता चलता है कि सभी की मजबूरियाँ परिस्थितियों के अधीन हैं। इस आधार पर कहा जा सकता है कि कहानी का शीर्षक कहानी की मूल संवेदना को प्रकट करता है इसलिए यह उचित शीर्षक है। इस कहानी के माध्यम से पता चलता है कि आजकल माता-पिता और बच्चों के बीच में इतना फासला आ गया है कि एक-दूसरे को समझ तक नहीं पाते हैं। इस कहानी में बच्चे के अध्ययन की समस्या को लेकर रमा परेशान होती है और बेटे को अपने साथ ले जाने का निर्णय लेती है। रमा के सामने दोनों बच्चों को सँभालने की समस्या, अम्मा का बेटू के प्रति प्रेम और अन्त में अम्मा की मानसिक स्थिति को समझ नहीं पाना, ये सारी समस्याएँ समाज की मूलभूत समस्याएँ हैं । यहाँ अम्मा और रमा के माध्यम से इन समस्याओं को पाठकों के सामने प्रस्तुत करना ही इस कहानी का उद्देश्य प्रतीत होता है। इन मजबूरियों का निराकरण भी लेखिका ने कहानी में ही प्रस्तुत कर दिया है।
प्रश्न. अम्मा ने बेटू को अपने पास रखने वाली बात का प्रचार मोहल्ले भर में क्यों किया ?
उत्तर- अम्मा से उसकी बहू रमा ने जैसे ही यह बात कही कि अब बेटू को अम्माजी के पास ही छोड़ना पड़ेगा, तो अम्मा तो मारे खुशी के झूम उठी। उसे बड़ा अच्छा लगा यह जानकर कि बेटू के रहने से उसका एकाकीपन दूर हो जायेगा और उसका मन भी लगने लगेगा। अम्मा ने अपने पुत्र रामेश्वर से भी यह बात पक्की कर ली। उसने कहा- "देख, आज बहू ने कह दिया है कि बेटू अब मेरे पास रहेगा। तू कहीं टाल मत जाना, बात पक्की हो गई। आज से बेटू मेरा हुआ। "
दोपहर को नर्बदा से भी अम्मा ने कहा- "बहू के तो फिर बच्चा होने वाला है, बेचारी दो-दो को कैसे सँभालेगी, सो मुझसे कहने लगी- 'अम्मा बेटू को तो तुम्हें ही रखना होगा।' उसे कहने में बड़ा संकोच हो रहा था कि मुझे बुढ़ापे में तकलीफ होगी, पर तू ही बता, घर के बच्चे को रखने में कैसी तकलीफ ? ऐसे समय में घर के ही लोग काम न आयेंगे तो कौन आयेंगे भला ?"
इसके बाद घर में जो भी आया, उसे यही खबर सुनाई गई। अम्मा इस बात का इतना प्रचार कर देना चाहती थी कि यदि फिर किसी कारण से बहू का मन फिर भी जाये तो शरम के मारे वह अपना इरादा न बदल पाये। अम्मा का सारा दिन बेटू को खिलाने में और उसकी नौन-राई करने में बीतता। जाने कैसी-कैसी औरतें घर में आती हैं। तदुपरान्त सुन्दर बच्चे को कड़ी नजर से देख जायें तो लेने के देने पड़ जायें। बेटू को लेकर उनके शिथिल और नीरस जीवन में नया उत्साह आ गया था। घुटनों के दर्द के मारे कहाँ तो वे अपने शरीर का बोझ ही नहीं ढो पाती थीं, और कहाँ अब वे बेटू को लादे फिरतीं। शाम को उसके साथ आँख-मिचौली खेलतीं। बेटू का घोड़ा बनकर आँगन में दौड़ती फिरतीं। बेटू के साथ-साथ उनका भी जैसे बचपन लौट आया हो। निश्चित समय पर बच्चे को दूध पिलाना भी उन्होंने सीख लिया था। वह नहीं चाहती थीं कि किसी भी कारण से रमा बेटू को अपने साथ ले जाये। सभी औरतों से बेटू के बारे में यह बताना कि बेटू अब उनके पास ही रहेगा, यह प्रदर्शित करता है कि औरतें रमा से कह सकें कि बेटू को अम्मा के पास ही रहने दो।
वह बेटू का बहुत ख्याल रखती थीं। वे उसे बेहद प्यार करती थीं। वे शिकायत का कोई मौका नहीं आने देना चाहती थीं। आखिर में अम्मा की कामना पूरी हुई और रमा बेटू को उनके पास ही छोड़ गई।
प्रश्न. “अम्मा, आपने तो इसे बिगाड़कर धूल कर रखा है, इस तरह कैसे चलेगा ?" यह कथन किसका है और अम्मा से क्यों कहा है ? कहानी के आधार पर बताइए।
उत्तर- 'मजबूरी' कहानी मन्नू भण्डारी की श्रेष्ठ कहानी है। इसमें अलग-अलग मजबूरियाँ दिखाई गई हैं। दूसरे साल रामेश्वर नहीं आया, केवल रमा आई, शायद बेटू को देखने जिसे अम्मा के पास गाँव में छोड़ गई थी। जिस बेटू को वह छोड़ गई थी, और जिसे वह देख रही है, दोनों में कोई सामंजस्य ही नहीं था। बात-बात पर उसकी जिद देखकर रमा को बहुत दुःख हुआ। सारे दिन अम्मा की धोती पकड़कर घूमता रहता और शाम को गली-मुहल्ले के गन्दे बच्चों के साथ खेलता। उसे देखकर कोई नहीं कह सकता कि वह एक पढ़ी-लिखी सभ्य लड़की का बच्चा है। घर के सामने से कोई फेरीवाला निकल जाता, उससे बेटू कुछ-न-कुछ खरीदता, न दिलवाने पर जमीन आसमान एक कर देता।
यह सब देखकर ही रमा ने अम्मा से ऐसा कहा। दादी माँ ने हँसते हुए बड़े सहज भाव से कहा, “अरे बचपन में कौन जिद नहीं करता, बहू ! रामेश्वर भी तो ऐसे ही करता था। यह तो बस हूबहू उसी पर पड़ा है। समय आने पर सब अपने आप छूट जायेगा। यही तो उमर होती है जिद करने की, साल-दो साल और कर ले फिर अपने आप सब कुछ छूट जायेगा।"
रमा चली गई। वह अम्मा को खत लिखती रहती कि बेटू को वहाँ के नर्सरी स्कूल में दाखिल करा दें, कुछ तो सीखेगा। चिट्ठियाँ पढ़ती तो अम्मा को लगता, बहू का दिमाग बौरा गया है। भला चार साल का दूध पीता बच्चा कहीं स्कूल जा सकता है ? रमा के पत्र आते रहे और अम्मा का ढर्रा अपने ढंग से चलता रहा।
दो साल बाद रमा और रामेश्वर अपने तीन साल के पप्पू को लेकर आये जो अंग्रेजी की कुछ कविताएँ सुना देता था। रमा तो बेटू को लेने ही आई थी। पहले तो उसने बेटू को ताँगे में बाहर घुमाकर हिलाया । रामेश्वर तो वापस चला गया, लेकिन रमा कुछ दिन के लिए रुक गई। वह जानती थी कि अम्माजी को बेटू के जाने से बड़ा दुःख होगा, लेकिन बेटू की जिन्दगी सँवारने के लिए उसका बम्बई ले जाना ही एक मार्ग था। उसने अम्माजी को बहुत समझाया और एक दिन बेटू को लेकर चली गई।
प्रश्न. 'मजबूरी' कहानी में घर के बड़े बुजुर्गों के एकाकीपन तथा मनोविज्ञान का स्वाभाविक चित्रण हुआ है। कैसे? स्पष्ट कीजिए
उत्तर - हिन्दी साहित्य में एक मनोवैज्ञानिक तथा भावात्मक कहानीकार के रूप में मन्नू भंडारी का नाम आदर से लिया जाता है। ये नारी मन के संसार में बड़ी सरलता में विचरण कर सूक्ष्मता से चित्रण करने में सिद्धहस्त है। प्रस्तुत मजबूरी कहानी 'मजबूरी' में उन्होंने परिस्थितिजन्य मजबूरी को दर्शाया है। एक वृद्धा स्त्री गाँव में अपने पति के साथ रहती है। पति अपने कार्य में व्यस्त रहते हैं। वह घर पर अकेली रहने के कारण बहुत से रोगों की शिकार हो जाती है। वहीं अचानक बेटे के आने की खबर से वह अपनी शारीरिक पीड़ा भूलकर काम में लग जाती है। अम्मा को कमरा लीपते देख नर्बदा कहती है- 'अम्मा, यह क्या हो रहा है? कल तो गठिया में जुड़ी पड़ी थीं दरद के मारे तन-बदन की सुध नहीं थी और आज ऐसी सरदी में आँगन लीपने बैठ गई।
अम्मा कहती है-तीन बरस बाद उसका बेटा घर आ रहा है। वह आँगन भी न लीपे।" नर्बदा अम्मा से कहती है- “उसे तो मोह माया नहीं है। तुम यों ही मरी जाती हो उसके पीछे।"
अम्मा कहती है- "देख नर्बदा, मेरे रामेश्वर के लिए कुछ न कहना।" अम्मा सच्चाई को सुनना नहीं चाहती। वह नर्बदा से नाराज हो जाती है। कहती है "यह तो मैं जानती हूँ तीन-तीन बरस मुझसे दूर रहकर उसके दिन कैसे बीतते हैं पर क्या करे। नौकरी तो आखिर नौकरी है।" माँ के हृदय का दुख इन शब्दों में दिखाई पड़ता है। जब वह कहती है- “मेरे पास आज लाखों का धन होता तो बेटे को यों नौकरी करने परदेस नहीं भेज देती, पर ....." । यह कहते हुए उसकी आँखें डबडबा आईं।
माँ के घुटने का दर्द मन के उत्साह में खो गया। बेटे और पोते से मिलने की उमंग में मौसम की ठंडक भी जाती रही। माँ ने इस ठिठुरती ठंड में बेटे-बहू को गरम करने के सारे आयोजन कर डाले। जैसे ही ताँगा घर के सामने रुका अम्मा पागलों की तरह दरवाजे की ओर दौड़ पड़ी। बेटू को रामेश्वर की गोद से छीनकर उसे सीने से चिपका लिया। जब अम्मा को पता चला कि बेटू अब उसके पास रहेगा तो वह बहू को आशीर्वाद देते हुए बोली-"तुम्हारी सब साध पूरी हो। तुम बड़भागी होओ। मेरे इस सूने घर में एक बच्चा रहेगा मेरा तो जन्म सफल हो जाएगा।" यह कहकर वह रो पड़ी।
दोपहर को अम्मा ने नर्बदा से व घर पर आने वालों से अपने मन की खुशी व्यक्त की। अब अम्मा का पूरा समय बच्चे के साथ बीतता। वह उसे खिलातीं, पिलात व पूरे दिन लादे फिरतीं। बीस दिन बाद जब बेटू को छोड़कर रमा चली गई तब दादी के मन का संशय भी निकल गया। वह खुश थी कि बेटू अब पूरी तरह उसी का है और उसी के पास रहेगा।
जब रामेश्वर के शहर जाने का समय आया तो उन्होंने रो-रोकर घर भर दिया और बोली - "साल में तो एक बार आ ही जाया कर, मेरे लाल नौकरी की जगह नौकरी है और माँ-बाप की जगह माँ-बाप ।" यह कहकर वह फूट-फूटकर रोने लगीं।
दो साल बाद रमा ने देखा कि बेटू स्कूल भी नहीं जाता। पूरा दिन धूल में खेलता रहता है तो उसने उसे शहर ले जाने का प्रस्ताव रखा तो अम्मा के तो जैसे पैरों के तले से जमीन सरक गई। वह बहू से बोली- "मैं इसे खूब पढ़ाऊँगी, तू चिन्ता मत कर, बहू, इसे ले जाने की बात मत कर।" और वह फफक कर रो पड़ी ।
शिब्बू ने बताया कि बच्चे का रो-रोकर बुरा हाल है। वह बीमार हो गया है। तो अम्मा तीसरे ही दिन उसे वापस ले आईं। एक साल वह अम्मा के साथ ही रहा। एक साल बाद रमा ने देखा बच्चे की वही हालत है तो वह सोचने लगी। वह उसे सीधे मुम्बई ले जाती तो यह कांड नहीं होता। सो एक बार फिर दादी को रुलाकर वह बेटू को लेकर मुम्बई चली गई।
अकेला व्यक्ति कितना स्वार्थी हो जाता है कि उसे अकेला न रहना पड़े। पर इस बार अम्मा ने उदारता दिखाई। वह बच्चे के बिना अकेले मन लगाने का प्रयत्न करती है। लोगों को दिखावे के लिए प्रसाद भी पढ़ाती है लेकिन मन ही मन टूट जाती है, बड़बड़ाती है। आँसू पोंछती हुई, आँसू छिपाती हुई हँस पड़ती है।
बहुत सरहानीय कार्य है
जवाब देंहटाएंMukti kahani ki summary
जवाब देंहटाएंMukti Mannu Bhandari saransh
जवाब देंहटाएंNice
जवाब देंहटाएंsabassh bahut badhiyaaa
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