राहुल सांकृत्यायन : एक परिचय आधुनिक हिन्दी साहित्य में महापंडित "राहुल सांकृत्यायन" एक यात्राकार , इतिहासविद् , तत्वान्...
राहुल सांकृत्यायन : एक परिचय
आधुनिक हिन्दी साहित्य में महापंडित "राहुल सांकृत्यायन" एक यात्राकार,इतिहासविद्,तत्वान्वेषी,युगपरिवर्तनकार साहित्यकार के रूप में जाने जाते है । राहुल सांकृत्यायन का जन्म उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के पंदहा गाँव में ९ अप्रैल १८९३ को हुआ था। उनके बाल्यकाल का नाम केदारनाथ पाण्डेय था। बचपन में ही इनकी माता का देहांत हो जाने के कारण इनका पालन पोषण इनकी नानी ने किया था। १८९८ में इन्हे प्राथमिक शिक्षा के लिए गाँव के ही एक मदरसे में भेजा गया। राहुल जी का विवाह बचपन में कर दिया गया। यह विवाह राहुल जी के जीवन की एक युगांतकारी घटना थी। जिसकी प्रतिक्रिया में राहुल जी ने किशोरावस्था में ही घर छोड़ दिया। घर से भाग कर ये एक मठ में साधु हो गए। लेकिन अपनी यायावरी स्वभाव के कारण ये वहा भी टिक नही पाये। चौदह बर्ष की अवस्था में ये कलकत्ता भाग आए। इनके मन में ज्ञान प्राप्त करने के लिए गहरा असंतोष था। इसीलिए यहाँ से वहा तक सारे भारत का भ्रमण करते रहे।
१९१६ तक आते-आते इनका झुकाव बौद्ध -धर्म की ओर होता गया। बौद्ध धर्म में दीक्षा लेकर , वे राहुल सांकृत्यायन बने । बौद्ध धर्म में लगाव के कारण ही ये पाली,प्राकृत ,अपभ्रंश ,आदि भाषाओ के सीखने की ओर झुके ।१९१७ की रुसी क्रांति ने राहुल जी के मन को गहरे में प्रभावित किया। वे अखिल भारतीय किशान सभा के महासचिव भी रहे। उन्होंने तिब्बत की चार बार यात्रा की और वहा से विपुल साहित्य ले कर आए। १९३२ को राहुल जी यूरोप की यात्रा पर गए। १९३५ में जापान,कोरिया,मंचूरिया की यात्रा की। १९३७ में मास्को में यात्रा के समय भारतीय -तिब्बत विभाग की सचिव लोला येलेना से इनका प्रेम हो गया। और वे वही विवाह कर के रूस में ही रहने लगे। लेकिन किसी कारण से वे १९४८ में भारत लौट आए।
राहुल जी को हिन्दी और हिमालय से बड़ा प्रेम था। वे १९५० में नैनीताल में अपना आवास बना कर रहने लगे।यहाँ पर उनका विवाह कमला सांकृत्यायन से हुआ. इसके कुछ बर्षो बाद वे दार्जिलिंग(पश्चिम बंगाल) में जाकर रहने लगे ,लेकिन बाद में उन्हें मधुमेह से पीड़ित होने के कारण रूस में इलाज कराने के लिए भेजा गया। १९६३ में सोबियत रूस में लगभग सात महीनो के इलाज के बाद भी उनका स्वास्थ ठीक नही हुआ. १४ अप्रैल १९६३ को उनका दार्जिलिंग(पश्चिम बंगाल) में देहांत हो गया। राहुल जी वास्तव के ज्ञान के लिए गहरे असंतोष में थे,इसी असंतोष को पूरा करने के लिए वे हमेशा तत्पर रहे। उन्होंने हिन्दी साहित्य को विपुल भण्डार दिया। मात्र वे हिन्दी साहित्य के लिए ही नही बल्कि वे भारत के कई अन्य क्षेत्रों के लिए भी उन्होंने शोध कार्य किया । वे वास्तव में महापंडित थे। राहुल जी की प्रतिभा बहुमुखी थी और वे संपन्न विचारक थे। धर्म ,दर्शन ,लोकसाहित्य ,यात्रासहित्य ,इतिहास ,राजनीति,जीवनी,कोष,प्राचीन ग्रंथो का संपादन कर उन्होंने विविध क्षेत्रों में महत्वपूर्ण कार्य किया। उनकी रचनाओ में प्राचीन के प्रति आस्था,इतिहास के प्रति गौरव और वर्तमान के प्रति सधी हुई दृष्टि का समन्वय देखने को मिलता है। यह केवल राहुल जी थे,जिन्होंने प्राचीन और वर्तमान भारतीय साहित्य चिंतन को पूर्ण रूप से आत्मसात कर मौलिक दृष्टि देने का प्रयास किया। उनके उपन्यास और कहानिया बिल्कुल एक नए दृष्टिकोण को हमारे सामने रखते है। तिब्बत और चीन के यात्रा काल में उन्होंने हजारो ग्रंथो का उद्धार किया और उनके सम्पादन और प्रकाशन का मार्ग प्रशस्त किया, ये ग्रन्थ पटना संग्रहालय में है। यात्रा साहित्य में महत्वपूर्ण लेखक राहुल जी रहे है । उनके यात्रा वृतांत में यात्रा में आने वाली कठिनायियो के साथ उस जगह की प्राकृतिक सम्पदा ,उसका आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन और इतिहास अन्वेषण का तत्व समाहित होता है। "किन्नर देश की ओर" ,"कुमाऊ" ,"दार्जिलिंग परिचय" तथा "यात्रा के पन्ने" उनके ऐसे ही ग्रन्थ है।
रचना कर्म :
कहानी संग्रह : सतमी के बच्चे ,वोल्गा से गंगा तक,बहुरंगी मधुपुरी,कनैल की कथा।
उपन्यास : सिंह सेनापति ,जीने के लिए ,मधुर स्वप्न ,राजस्थान निवास ,दिवोदास, जय योधेय,भागो नही दुनिया को बदलो ,बाइसवी सदी।
जीवनी : कार्ल मार्क्स ,स्तालिन ,माओ त्से तुंगयात्रा साहित्य : लंका ,जापान ,इरान,किन्नर देश की ओर,चीन में क्या देखा ,मेरी लद्दाख यात्रा, मेरी तिब्बत यात्रा, तिब्बत में सवा बर्ष, रूस में पच्चीस मास ।
bahut acchi jaankaari..aise hi likhte rahe..
जवाब देंहटाएंBahut gayan vardhak jankari...
जवाब देंहटाएंBadhai...
राहुल जी ने आखिरी समय नैनीताल मं नही अपितु मसूरी में बिताया वहीं उन्हों ने कमला जी से विवाह किया।
जवाब देंहटाएंआप इस आलेख के कुछ तथ्यों की पुष्टि कर उन्हें सही कर सकते हैं।
bahut badiyaa gyaan vardhak jaankaari hai
जवाब देंहटाएंप्रिय दुबे साहब, राहुल जी विषय में सुन्दर लिखा आपने। पं. दिनेशराय द्विवेदी जी बजा फ़रमा रहे हैं. उनकी बात पे आप ज़रूर ध्यान दीजियेगा.
जवाब देंहटाएंदिनेशराय द्विवेदी जी का मै धन्यवाद देता हूँ कि उन्होंने सही तथ्यों की ओर मेरा ध्यान दिलाया । आप लोगो का इसी तरह स्नेह और सहयोग मिलता रहे ताकि मै इस कार्य को और अधिक उपादेय बना सकूं।
जवाब देंहटाएंAtyant gyanvardhak.....
जवाब देंहटाएंBadhai
rahul sankrityayan ke sambandh me achhi baaten batane ke liye badhaai....
जवाब देंहटाएंअच्छा प्रयास। दिनेशराय द्विवेदी जी की टिप्पणी पर गौर कीजिएगा।
जवाब देंहटाएंआपका प्रयास अच्छा और ज्ञानवर्धक है. कृपया तथ्यों की पुष्टि कर लिया करें ताकि भरोसा बना रहे.
जवाब देंहटाएंआशुतोष जी
जवाब देंहटाएंअभिवंदन
आप का महत्वपूर्ण आलेख बहुत अच्छा है ,
आपमें सहयोगी भावना भी टिप्पणी द्बारा सामने
आई जो बहुत ही अच्छी बात है.
आपको हार्दिक बधाई
- विजय तिवारी " किसलय "
Ashutoshji first of all thank you for commenting on 'idn n mam' i want to follow you but how is it done? kindly help me and instruct the steps to follow the blog. with regards
जवाब देंहटाएंभाई तुम इस छोटी उम्र में जो लिख रहे हो वो प्रशंसनीय है। कुछ गलतियाँ हो जाए तो वो समय के साथ सुधर ही जाती है। बधाई तुम्हारा लेख बहुत अच्छा लगा। द्विवेदी जी के सुझाव पर गौर करना उसका बुरा न मानना। मेरा पूरा सहयोग व शुभकामनाएं तुम्हारे साथ है
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस पर आपको भी ढेर सारी शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंकाफी अच्छा प्रयास है । लेकिन कुछ तथ्यात्मक भूले हैं । जैसे कमला जी से राहुल जी को एक नहीं दो संताने हुई। राहुल जी का देहांत सोविएत यूनियन में नहीं दार्जिलिंग में हुआ थाराहुल
जवाब देंहटाएंकाफी अच्छा प्रयास है । लेकिन कुछ तथ्यात्मक भूले हैं । जैसे कमला जी से राहुल जी को एक नहीं दो संताने हुई। राहुल जी का देहांत सोविएत यूनियन में नहीं दार्जिलिंग में हुआ । राहुल ने १९३७ में लेनिनग्राद में लोला से विवाह के कुछ ही माह के बाद हिंदुस्तान चले आए । लोला ने पुत्र इगोर को जन्म दिया उस समय राहुल हिंदुस्तान में थे। राहुल जी ने अपने इस पुत्र को सोवियतकी दूसरी यात्रा में देखा लगभग ६ वर्षो बाद । राहुल जी ने सेकंड वर्ल्ड वार के बाद सोविएत की yaatra की thi और इस यात्रा में वे वहां लगभग सवा साल रहे थे। इसके बाद वे सोविएत यूनियन अपने जीवन के आखरी चरणमें इलाज कराने गए थे.
जवाब देंहटाएंसुनील कुमार जी,मै आपका धन्यवाद देता हूँ कि आपने सही तथ्यों की ओर मेरा ध्यान दिलाया । आपका इसी तरह स्नेह और सहयोग मिलता रहे ताकि मै इस कार्य को और अधिक उपादेय बना सकूं।
जवाब देंहटाएंक्या कोई बताने का कष्ट करेगा की राहुल सांकृत्यायन का लिखा साहित्य इन्टरनेट पर कहीं उपलब्ध है.
जवाब देंहटाएंPahlee baar ru-b ru huee aapke blog se...! Badee hee achhee jaankaariyan milee...! Kitne hee naam,jo,saahityjagat se jude hain, jinkaa mujhe pata nahee tha..! Shukriya!
जवाब देंहटाएंhttp://shamasansamaran.blogspot.com
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rahul sankrityayan ki sabhi pustake mujhe bahut hi achhi lagi jitni bhi maine padhi hai, aur mai chahta hun ki aage bhi mujhe unki rachit pustako se margdarshan milta rahe
जवाब देंहटाएंrahul ji ki pustako se hame atit ke bare me achhi jankari milti hai.
जवाब देंहटाएंis lekh ki prastuti ke liye aapko sadhuvad
जवाब देंहटाएंलेख अच्छा था टिप्पणी पढ़कर भी ज्ञान की प्राप्ति हो रही है .
जवाब देंहटाएंBahut Badiya
जवाब देंहटाएंgood mene Rahul gi pr Phd ki hai
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