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हरिशंकर परसाई जीवन परिचय
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आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध व्यंग लेखक श्री हरिशंकर परसाई का जन्म २२ अगस्त सन १९२२ को मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले में जामानी नामक गाँव में हुआ था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में ही हुई। उसके बाद इन्होने नागपुर विश्वविद्यालय से एम.ए.किया। कुछ बर्षो तक अध्यापन का कार्य करने के बाद इन्होने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और १९५७ से स्वतंत्र लेखन आरम्भ कर दिया। परसाई जी मुख्य रूप से व्यंग लेखक है। हिन्दी में व्यंग लेखन कम हुआ है पर परसाई जी ने इस अभाव की पूर्ति की है और उनका यह कार्य अनुपम और अनूठा है। १० अगस्त सन १९९५ को जबलपुर में इनका देहांत हो गया।
हरिशंकर परसाई के व्यंग्य
परसाई मुख्यतः व्यंग -लेखक है,पर उनका व्यंग केवल मनोरजन के लिए नही है। उन्होंने अपने व्यंग के द्वारा बार-बार पाठको का ध्यान व्यक्ति और समाज की उन कमजोरियों और विसंगतियो की ओर आकृष्ट किया है जो हमारे जीवन को दूभर बना रही है। उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार एवं शोषण पर करारा व्यंग किया है जो हिन्दी व्यंग -साहित्य में अनूठा है। परसाई जी अपने लेखन को एक सामाजिक कर्म के रूप में परिभाषित करते है। उनकी मान्यता है कि सामाजिक अनुभव के बिना सच्चा और वास्तविक साहित्य लिखा ही नही जा सकता । साहित्यकार और सामाजिक अनुभव के संबंधो के बारे में वे लिखते है - "साहित्यकार का समाज से दोहरा सम्बन्ध है। वह समाज से अनुभव लेता है,अनुभवों में भागीदार होता है। बिना सामाजिक अनुभव के कोई सच्चा साहित्य नही लिखा जा सकता ,लफ्फाजी की जा सकती है। साहित्यकार सामाजिक अन्वेषण भी करता है। उन छिपे अंधेरे कोनों का अन्वेषण करता है जो सामान्य चेतना के दायरे में नही आते । वह इन सामाजिक अनुभवों का विश्लेषण करता है ,कारण और अर्थ खोजता है,उन्हें संवेदना के स्तर तक ले जाता है और उन्हें ,रचनात्मक चेतना का अंग बना कर रचना करता है । फिर समाज से पाई इस वास्तु को रचनात्मक रूप देकर फिर समाज को लौटा देता है। इस तरह साहित्य एक सामाजिक कर्म हो जाता है ।"
हरिशंकर परसाई का हिंदी साहित्य में स्थान
परसाई जी मूलतः एक व्यंगकार है । सामाजिक विसंगतियो के प्रति गहरा सरोकार रखने वाला ही लेखक सच्चा व्यंगकार हो सकता है। परसाई जी सामायिक समय का रचनात्मक उपयोग करते है। उनका समूचा साहित्य वर्तमान से मुठभेड़ करता हुआ दिखाई देता है। परसाई जी हिन्दी साहित्य में व्यंग विधा को एक नई पहचान दी और उसे एक अलग रूप प्रदान किया ,इसके लिए हिन्दी साहित्य उनका हमेशा ऋणी रहेगा ।
हरिशंकर परसाई की रचनाएँ
हरिशंकर परसाई की निम्नलिखित रचनाएँ हैं -
कहानी संग्रह - जैसे उनके दिन फिरे।
उपन्यास - रानी नागफनी की कहानी ,तट की खोज ।
निबंध संग्रह - तब की बात और थी,भूत के पाँव पीछे ,बेईमानी की परत ,पगडंडियो का जमाना ,सदाचार की ताबीज ,शिकायत मुझे भी है ,और अंत में ।
व्यंग -निबंध संग्रह - तिरछी रेखायें ,ठिठुरता हुआ गणतंत्र ,विकलांग श्रद्धा का दौर ,वैष्णव की फिसलन ।
1982 में विकलांग श्रद्धा का दौर व्यंग्य-संग्रह पर उन्हें साहित्य अकादमी सम्मान प्राप्त हुआ। व्यंग्य के क्षेत्र में इस सम्मान को पाने वाले हरिशंकर परसाई हिन्दी के एकमात्र व्यंग्यकार हैं।
विडियो के रूप मे देखें -
आशुतोष जी , नमस्कार
जवाब देंहटाएंदेरी से जबाब देने लिए खेद है ! कई दिनों से इन्टरनेट से दूर था इसलिए आपके सवाल का जबाब समय पर नहीं दे पाया | अपने ब्लॉग को कस्टम डोमेन पर ले जाने के लिए सिर्फ १० डॉलर का खर्च आता है और यह कैसे किया जाय इसके लिए आप हिंदी ब्लॉग टिप्स की यह पोस्ट पढ़े
http://tips-hindi.blogspot.com/2008/11/video-tutorial_6608.html
ऐसे गुणी जनों के बारे में जानकार अच्छा लगता है
जवाब देंहटाएंशुक्रिया जानकारी के लिए
आपको और आपके परिवार को होली मुबारक
Yes aapne sahi kaha
हटाएंbahut ahchcee jankari mili.
जवाब देंहटाएंkuchh dino pahle taau ji ke blog ke thru in ke baare mein padha tha.
abhaar sahit
Nice one..Keep it up.
जवाब देंहटाएंमहिला दिवस पर युवा ब्लॉग पर प्रकाशित आलेख पढें और अपनी राय दें- "२१वी सदी में स्त्री समाज के बदलते सरोकार" ! महिला दिवस की शुभकामनाओं सहित...... !!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा काम कर रहे हो भाई। लेख को थोड़ा और विस्तार दो तो और भी अच्छा हो!
जवाब देंहटाएंdhanyawad mere guru ko yaad karne ke liye .... please visit my blog www.rangparsai.blogspot.com
जवाब देंहटाएंआज ही आपके ब्लाग पर आया हूं। सुंदर ही नहीं, साहित्य-प्रेमियों के लिए तो अमृत समान है। इतने महान साहित्यकारों के विषय में जानकर हृदय अभिभूत हो गया।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद और बधाई भी।
महावीर शी्मा
होली की हार्दिक शुभकामनाये आप इसी तरह से होसला बढाते रहेगे इसी आशा और विश्वाश के साथ
जवाब देंहटाएंपरसाई और शरद जोशी व्यंग्य लेखन के लिए सदैव याद किये जाते रहेंगे.
जवाब देंहटाएंदुबे जी
जवाब देंहटाएंहरिशंकर परसाई जी ने व्यंग्य को हिंदी साहित्य में एक विधा का स्वरूप प्रदान िकिया। मैं उनके जनम ग्राम जमानीके पास इटारसी म.प्र. में ही रहता हूं। परसाई जी से मिलने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ है। जबलपुर से इटारसी आने पर वे हमारे घर पर भी आया करते थे। ऐसे प्रगतिशील विचारधार युक्त लेखक पर उनके जीवन परिचय के अलावा उनके साहित्य पर भी कुछ लिखिये।
अखिलेश शुक्ल
please visit us--
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वाह भई वाह...सुन्दर अति सुन्दर...ये पहला ऐसा ब्लाग है जो हिन्दी पर सच में समर्पित है..इतने अच्छे ब्लाग के लिये कोटिशः धन्यवाद.........
जवाब देंहटाएंपरसाई जी पर लिखा आलेख बहुत अच्छा लगा . अगस्त में ही उनक जन्म दिन है इसलिए हम भी आपके आभारी हैं.
जवाब देंहटाएंमैं उनके गृह नगर जबलपुर का ही मूल निवासी हूँ , इस लिए मैं व्यंग्य पुरोधा श्री परसाई जी के महत्त्व को समझता हूँ, और उनसे सम्बंधित प्रकाशन मेरे लिए कहीं भी हो बड़े गर्व की बात होती है.
- विजय
परसाई जी के बारे मे जानकर बहुत अच्छा लगा धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंपरसाई जी के बारे में तथ्यात्मक जानकारी परोसने के लिए आप साधुवाद के पात्र हैं.
जवाब देंहटाएंa very helpful blog..thanks a lot
जवाब देंहटाएंजानकारी के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंराजेश सिंह
नवी मुंबई
nice
जवाब देंहटाएंParsai Ji Ke Bare Me Pdhakar Bahut Hi Achchha Lga.
जवाब देंहटाएंkhoj thi ki hindi kahaniya mile............yaha to ak sath....bahut
जवाब देंहटाएं...mila he...dhanyawad........
Aaj sare din ki daud bhag ke baad, net par kuchh search kar raha tha thabhi mughe HINDI KUNJ aise prapt ho gai jaise tapte unhale me bhatkate hua rahgir ko sheetal jal mil jaaye. Bahut varsho se jindagi ki aapa dhapi me hindi sahitya se sampark vichhed sa ho gaya tha. Ummid hai Hindi Kunj ke madhyam se mai punah ek baar hindi sahitya ki rasdhara me bhig kar aatmik aanand prapt kar sakunga. Dhanyavvad Hindi Kunj:
जवाब देंहटाएंManu Manoj
mast h baba............ 1 dam rapchick.... bole to taktk
जवाब देंहटाएंहरि शंकर परसाई जी का व्यंग्य लेख 'ठिठुरता हुआ गणतंत्र'अपने b.a. के पाठ्यक्रम में पढ़ा था। प्रभावित हुआ था। बाद में वह लेख किंचित संशोधन के साथ 'नवभारत टाइम्स' हिंदी दैनिक ,पटना संस्करण में पढ़ने को मिला। उन्हीं दिनों मैंनै '22 वीं सदी' नामक एक पत्रिका निकालने की योजना बनाई। उक्त लेख को अपनी पत्रिका में छापने के लिए मैंने तत्काल हरिशंकर परसाई जी को एक पत्र लिखा था। पत्र के जवाब में श्री प्रकाश दुबे जी नामक उनके एक सहयोगी का पत्र मिला। जिसमें परसाई जी के बीमार होने की सूचना और लेख को छापने की स्वीकृति थी।
जवाब देंहटाएंपत्रिका जब छपी तो वह लेख भी छपा। दुबे जी का वह पत्र आज भी मेरे पास सुरक्षित है। हरिशंकर परसाई जी को नमन करता हूं।- मैं कला कौशल, बेगूसराय,बिहार, ह्. 8051 944495
हरिशंकर परसाई जी का वह व्यंगय कौन सा है जिसमें एक गांव को आधार बनाकर धर्म कला और संस्कृति राजनीति पर लिखा है
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