हिन्दी साहित्य के सूफी काव्य धारा के सर्वाधिक प्रसिद्ध कवि मलिक मुहम्मद जायसी है। इनका जन्म गाजीपुर में जायस नामक स्थान ...
हिन्दी साहित्य के सूफी काव्य धारा के सर्वाधिक प्रसिद्ध कवि मलिक मुहम्मद जायसी है। इनका जन्म गाजीपुर में जायस नामक स्थान पर बतलाया जाता है -
जायस नगर मोर अस्थानू ,
तहाँ आई कवि कीन्ह बखानू ।
तहाँ आई कवि कीन्ह बखानू ।
जायसी ने अपने आखिरी कलाम में अपना जन्म स्वयं ९०० हिज़री बताया है। "भौ अवतार मोर नौ सदी । तीस बरस ऊपर कवि वदी।" ये सुप्रसिद्ध संत शेख मोहिदी के शिष्य थे। शेख साहब चिस्तिया संप्रदाय से सम्बद्ध थे। जायसी बचपन में ही माता -पिता की मृत्तु के कारण अनाथ हो गए थे। ये चेचक के प्रकोप के कारण एक आँख से अंधे भी हो गए थे। कह्ते है कि शेरशाह सूरी ने इनकी कुरूपता को देख कर इनका माज़क उडाया था। जायसी ने शेरशाह से पूछा था -
"मोहि का हंससि,के कोहरिहं ?"
यह सुनकर शेरशाह लज्जित हुए थे। अमेठी के राजदरबार में जायसी का बहुत सम्मान था। जायसी के नागमती के बारहमासे दोहे से अमेठी नरेश बहुत प्रभावित हुए थे :-
कँवल जो विगसा मानसर बिन जल गएउ सुखाय।
रुखी बेलि फिर पलुहै जो पिऊ सींचै आय॥
रुखी बेलि फिर पलुहै जो पिऊ सींचै आय॥
इनका देहांत अमेठी के आसपास के जंगलो में हुआ था। अमेठी के राजा ने इनकी समाधी बनवा दी,जो अभी भी है।
जायसी कि अब तक तीन रचनाएं प्राप्त हुई है - १.आखिरी कलाम २.पद्मावत ३.अखरावट । अखरावट तथा आखिरी कलाम का सांप्रदायिक दृष्टि से महत्व है,साहित्यिक दृष्टि से उतना महत्व नही है।
जायसी भक्तिकाल के अन्य कृतिकारों कि तरह भक्त पहले है ,कवि बाद में । उनका प्रमुख उदेश्य प्रेमतत्व का प्रचार -प्रसार करना था। पद्मावत इनका ख्याति का स्थायी स्तम्भ है। पद्मावत मसनवी शैली में रचित एक प्रबंध काव्य है। यह महाकाव्य ५७ खंडो में लिखा है । इसमे पद्मावती एवं रत्नसेन कि लौकिक प्रेम कहानी द्वारा अलौकिक प्रेम की व्यंजना हुई है। इसकी शुरुवात काल्पनिक है एवं अंत इतिहास के आधार पर हुई है। जायसी ने दोनों का मिश्रण किया है। इसकी कथा कुछ इस प्रकार है - हीरामन तोते से जब राजा रत्नसेन सिंहलदीप की राजकुमारी पद्मावती के सौन्दर्य की प्रशंसा सुनता है,तो राजा उसे पाने को व्याकुल हो जाता है। राजा रत्नसेन ,रानी नागमती एवं अपना राजपाट को छोड़ कर योगी के रूप में सिंहलदीप के लिए रवाना होते है। वहाँ पहुँचने पर हीरामन के माध्यम से एक शिव मन्दिर में पद्मावती एवं रत्नसेन की भेंट होती है। कालांतर में शिवजी की कृपा से पद्मावती के पिता गंधर्वसेन ,दोनों का विवाह कर देते है। चित्तौड़ लौटने पर रत्नसेन अपने दरबार में ,राघवचेतन से क्रोधित होकर ,उसे देशनिकाले की सजा देता है। राघवचेतन, अलाउदीन से मिलकर वह पद्मावती के रूप की प्रशंसा करके ,उसे चित्तौड़ पर आक्रामण करने को भड़काता है। युद्ध में रत्नसेन मारा जाता है,राजा का शव चित्तौड़ आता है,दोनों रानीं नागमती और पद्मावती ,पति के शव के साथ चिता में कूद पड़ती है। अलाउदीन ,चित्तौड़ पहुँचता है, परन्तु उसे वहा राख की ढेर ही मिलती है।
पद्मावत की भाषा अवधी है। चौपाई नामक छंद का प्रयोग इसमे मिलता है। इनकी प्रबंध कुशलता कमाल की है। जायसी के महत्व के सम्बन्ध में बाबू गुलाबराय लिखते है -
"जायसी महान कवि है ,उनमें कवि के समस्त सहज गुण विद्मान है। उन्होंने सामयिक समस्या के लिए प्रेम की पीर की देन दी। उस पीर को उन्होंने शक्तिशाली महाकाव्य के द्वारा उपस्थित किया । वे अमर कवि है।"
apne jaysi ke sambadh me bataya ki inka janm ghazipur me hua tha yah janker mujhhe bahut khushi hui. aapki lekan saili bhi achhi hai. likhate rahen aur nikhar ayega.
जवाब देंहटाएं... प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!!
जवाब देंहटाएंठीक ठाक जानकारियां हैं...
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं
समन्वय का मार्ग।
जवाब देंहटाएंव्यक्तिगत स्तर के विरोध हों तो ठीक।
परंतु सामाजिक स्तर पर विचारों, दृष्टिकोणों के मतभेदों में समन्वय...उफ़ बुरी खिचडी...दिशाहीन य़ात्रा।
स्वागत है।
narayan narayan
जवाब देंहटाएंजब भी कोई बात डंके पे कही जाती है
जवाब देंहटाएंन जाने क्यों ज़माने को अख़र जाती है ।
झूठ कहते हैं तो मुज़रिम करार देते हैं
सच कहते हैं तो बगा़वत कि बू आती है ।
फर्क कुछ भी नहीं अमीरी और ग़रीबी में
अमीरी रोती है ग़रीबी मुस्कुराती है ।
अम्मा ! मुझे चाँद नही बस एक रोटी चाहिऐ
बिटिया ग़रीब की रह – रहकर बुदबुदाती है
‘दीपक’ सो गई फुटपाथ पर थककर मेहनत
इधर नींद कि खा़तिर हवेली छ्टपटाती है ।
@Kavi Deepak Sharma
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bahut badia prayaas hai is jankari ke liye dhanyvad agli post kaa intzar rahega aabhaar
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंAapka blog dekha bahut achha kary shuru kiya hai aapne
जवाब देंहटाएंis sarthak pryaas ke liye hardik subhkamanye
हिन्दी साहित्य के इतिहास में जायसी का नाम अमर है.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा इस महान कवि को पढ कर आभार्
जवाब देंहटाएंस्थापित कवियों के विषय में पढना काफी रुचिकर रहा,पर क्या इन स्तंभों को ही आपने अपने ब्लॉग में रखा है......
जवाब देंहटाएंउभरते , बनते आयामों की भी एक सुदृढ़ छवि होती है, कृपया उन्हें भी इस कैनवास पर उद्धरित करें
Good job.
जवाब देंहटाएंजानकारी के लिये शुक्रिया,आखरी कलाम और अखरावट की भी कुछ जानकारी दीजिये
जवाब देंहटाएंजानकारी के लिये शुक्रिया
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