बगीचे का आधा हिस्सा उनका है साथ ही हमें लोगों को यह भी बताना होगा कि टेक्नोलॉजी की तरक्की की बदौलत हमें आंखों की देखभाल संबंधी सभी तरह...
बगीचे का आधा हिस्सा उनका है
साथ ही हमें लोगों को यह भी बताना होगा कि टेक्नोलॉजी की तरक्की की बदौलत हमें आंखों की देखभाल संबंधी सभी तरह के व्याप्त मिथकों को दूर करने की जरूरत है, क्योंकि शुरुआती जांच में जरा भी देरी हमें दृष्टि से वंचित कर सकती है। हमें अच्छे आईकेयर के महत्व और नेत्रदान के बारे में लोगों के बीच अधिकतम जागरूकता और सक्रियता बढ़ाने की जरूरत है। हमें लोगों को यह भी बताना होगा कि कैसे नेत्रदान से किसी की जिंदगी को रोशन किया जा सकता है। हमारे गाँव के एक लड़के के साथ बीच-बीच में स्कूल मार्ग पर भेंट हो जाया करती थी। उसका नाम था मृत्युन्जय। मेरी अपेक्षा वह बहुत बड़ा था। तीसरी क्लास में पढ़ता था। कब वह पहले-पहल तीसरी क्लास में चढ़ा, यह बात हममें से कोई नहीं जानता था-सम्भवत:वह पुरातत्वविदों की गवेषणा का विषय था, परन्तु हम लोग उसे इस तीसरे क्लास में ही बहुत दिनों से देखते आ रहे थे। उसके चौथे दर्जे में पढ़ने का इतिहास भी कभी नहीं सुना था, दूसरे दर्जे से चढ़ने की खबर भी कभी नहीं मिली थी। मृत्युन्जय के माता-पिता, भाई-बहिन कोई नहीं थे, था केवल गाँव के एक ओर एक बहुत बड़ा आम-कटहल का बगीचा और उसके बीच एक बहुत बड़ा खण्डहर-सा मकान, और थे एक दूसरे के रिस्ते के चाचा। चाचा का काम था भतीजे को अनेकों प्रकार से बदनामी करते रहना, ‘वह गाँजा पीता है’ ऐसे ही और भी क्या-क्या ! उनका एक और काम था यह कहते फिरना, ‘इस बगीचे का आधा हिस्सा उनका है, नालिश करके दखल करने भर की देर है।’ उन्होंने एक दिन दखल भी अवश्य पा लिया, परन्तु वह जिले की अदालत में नालिश करके ही, ऊपर की अदालत के हुक्म से। परन्तु वह बात पीछे होगी।
मृत्युन्जय स्वयं ही पका कर खाता एवं आमों की फसल में आम का बगीचा किसी को उठा देने पर उसका सालभर खाने-पहिनने का काम चल जाता, और अच्छी तरह ही चल जाता। जिस दिन मुलाकात हुई, उसी दिन देखा, वह छिन्न-भिन्न मैली किताबों को बगल में दबाये रास्ते के किनारे चुप-चाप चल रहा है। उसे कभी किसी के साथ अपनी ओर से बातचीत करते नहीं देखा-अपितु अपनी ओर से बात स्वयं हमीं लोग करते। उसका प्रधान कारण था कि दूकान से खाने-पीने की चीजें खरीदकर खिलाने वाला गाँव में उस जैसा कोई नहीं था। और केवल लड़के ही नहीं ! कितने ही लड़कों के बाप कितनी ही बार गुप्त रूप से अपने लड़कों को भेजकर उसके पास ‘स्कूल की फीस खो गई है’ पुस्तक चोरी चली गई’ इत्यादि कहलवा कर रुपये मँगवा लेते, इसे कहा नहीं जा सकता। परन्तु ऋण स्वीकार करने की बात तो दूर रही, उसके लड़के ने कोई बात भी की है, यह बात भी कोई बाप भद्र-समाज में कबूल नहीं करना चाहता-गाँव भर में मृत्युन्जय का ऐसा ही सुनाम था।
बहुत दिनों से मृत्युन्जय से भेंट नही हुई। एक दिन सुनाई पड़ा, वह मराऊ रक्खा है। फिर एक दिन सुना गया, मालपाड़े के एक बुड्ढ़े ने उसका इलाज करके एवं उसकी लड़की विलासी ने सेवा करके मृत्युन्जय को यमराज केमाल मुँह में जाने से बचा लिया है।
बहुत दिनों तक मैंने उसकी बहुत-सी मिठाई का सदुपयोग किया था-मन न जाने कैसा होने लगा, एक दिन शाम के अँधेरे में छिपकर उसे देखने गया- उसके खण्डर-से मकान में दीवालों की बला नहीं है। स्वच्छन्दता से भीतर
माल- बंगाल की एक जाति जो साँप के काटे का इलाज करती है।
बिना ब्रेक लिए लंबे समय तक कंप्यूटर स्क्रीन पर चिपके रहने से नजर धुंधली, सिरदर्द और ड्राई आई जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इसलिए ऐहतियातन अपने कंप्यूटर स्क्रीन को आंखों के समानांतर रेखा में रखें। इससे कंप्यूटर स्क्रीन पर आपकी नजर बहुत कम ही नीचे झुकी रहेगी। बैठने के लिए आरामदेह और पीठ को सपोर्ट देने वाली कुर्सी ही चुनें। यदि आपकी आंखें ड्राई हो जाती है तो पलकों को बार-बार झपकाएं। संभव हो तो प्रत्येक 20 मिनट पर यह प्रक्रिया दोहराएं और आंखों को आराम देने के ख्याल से 20 सेकंड तक 20 फुट दूर की चीजें देखने का अभ्यास दोहराते रहें। प्रत्येक दो घंटे पर कंप्यूटर के सामने से हट जाएं और 15 मिनट का ब्रेक लें। अपने आई स्पेशियलिस्ट या ऑप्थैल्मोलॉजिस्ट से मिलने का समय कभी न चूकें।
घुसकर देखा, घर का दरवाजा खुला है, एक बहुत तेज दीपक जल रहा है, और ठीक सामने ही तख्त के ऊपर धुले-उजले बिछौने पर मृत्युन्जय सो रहा है। उसके कंकाल जैसे शरीर को देखते ही समझ में आ गया, सचमुच ही यमराज ने प्रयत्न करने में कोई कमी नहीं रक्खी, तो भी वह अन्त तक सुविधापूर्वक उठा नहीं सका, केवल उसी लड़की के जोर से। वह सिरहाने बैठी पंखे से हवा झल रही थी। अचानक मनुष्य को देख चौंककर उठ खड़ी हुई। यह उसी बुड्ढ़े सपेरे की लड़की विलासी है। उसकी आयु अट्ठारह की है या अट्ठाईस की-सो ठीक निश्चित नहीं कर सका, परन्तु मुँह की ओर देखने भर से खूब समझ गया, आयु चाहे जो हो, मेहनत करते-करते और रात-रात भर जागते रहने से इसके शरीर में अब कुछ नहीं रहा है। ठीक जैसे फूलदानी में पानी देकर भिगो रक्खे गये बासी फूल की भाँति हाथ का थोड़ा-सा स्पर्श लगते ही, थोड़ा-सा हिलाते-डुलाते ही झड़ पड़ेगा।
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