है दुनिया जिस का नाम मियाँ ये और तरह की बस्ती है। जो महँगों को तो महँगी है और सस्तों को ये सस्ती है। याँ हरदम झगड़े उठते हैं, हर...
है दुनिया जिस का नाम मियाँ ये और तरह की बस्ती है।
जो महँगों को तो महँगी है और सस्तों को ये सस्ती है।
याँ हरदम झगड़े उठते हैं, हर आन अदालत बस्ती है।
गर मस्त करे तो मस्ती है और पस्त करे तो पस्ती है।
कुछ देर नही अंधेर नहीं, इंसाफ़ और अदल परस्ती है।।
इस हाथ करो उस हाथ मिले, याँ सौदा दस्त-ब दस्ती है।।
जो और किसी का मन रक्खे, तो उसको भी अरमान मिले।
जो पान खिलावे पान मिले, जो रोटी दे तो नान मिले।
नुक़सान करे नुक़सान मिले, एहसान करे एहसान मिले।
जो जैसा जिसके साथ करे, फिर वैसा उसको आन मिले।
कुछ देर नही अंधेर नहीं, इंसाफ़ और अदल परस्ती है।।
इस हाथ करो उस हाथ मिले, याँ सौदा दस्त-ब दस्ती है।।
जो और किसी की जाँ बख़्शे तो उसकी भी हक़ जान रखे।
जो और किसी की आन रखे तो, उसकी भी हक़ आन रखे।
जो याँ का रहने वाला है, ये दिल में अपने जान रखे।
ये तुरत-फुरत का नक़्शा है, इस नक़्शे को पहचान रखे।
कुछ देर नही अंधेर नहीं, इंसाफ़ और अदलपरस्ती है।।
इस हाथ करो उस हाथ मिले, याँ सौदा दस्त-ब दस्ती है।।
जो पार उतारे औरों को, उसकी भी पार उतरनी है।
जो ग़र्क़ करे फिर उसको भी, याँ डुबकूं-डुबकूं करनी है।
शमशीर, तीर, बन्दूक़, सिना और नश्तर तीर, नहरनी है।
याँ जैसी जैसी करनी है, फिर वैसी वैसी भरनी है।
कुछ देर नही अंधेर नहीं, इंसाफ़ और अदल परस्ती है।।
इस हाथ करो उस हाथ मिले, याँ सौदा दस्त-ब दस्ती है।।
जो और का ऊँचा बोल करे तो उसका भी बोल बाला है।
और दे पटके तो उसको भी, कोई और पटकने वाला है।
बे ज़ुल्मा ख़ता जिस ज़ालिम ने मज़लूम ज़िबह कर डाला है।
उस ज़ालिम के भी लोहू का फिर बहता नद्दी नाला है।
कुछ देर नही अंधेर नहीं, इंसाफ़ और अदल परस्ती है।।
इस हाथ करो उस हाथ मिले, याँ सौदा दस्त-ब दस्ती है।।
जो और किसी को नाहक़ में कोई झूठी बात लगाता है।
और कोई ग़रीब और बेचारा हक़ नाहक़ में लुट जाता है।
वो आप भी लूटा जाता है और लाठी-पाठी खाता है।
जो जैसा जैसा करता है, वो वैसा वैसा पाता है।
कुछ देर नहीं अंधेर नहीं, इंसाफ़ और अदल परस्ती है।।
इस हाथ करो उस हाथ मिले, याँ सौदा दस्त-ब दस्ती है।।
है खटका उसके हाथ लगा, जो और किसी को दे खटका।
और ग़ैब से झटका खाता है, जो और किसी को दे झटका।
चीरे के बीच में चीरा है, और पटके बीच जो है पटका।
क्या कहिए और 'नज़ीर' आगे, है ज़ोर तमाशा झट पटका।
कुछ देर नहीं अंधेर नहीं, इंसाफ़ और अदल परस्ती है।।
इसहाथ करो उस हाथ मिले, याँ सौदा दस्त-ब बदस्ती है।।
नजीर अकबराबादी (१७४०-१८३०) उर्दू भाषा में कविता करने वाले पहले कवि माने जाते है। इनका असली नाम वली मुहम्मद था। लेकिन इन्होने 'नजीर' नाम से शायरी की और अकबराबाद के रहने के कारण नजीर अकबराबादी के नाम से प्रसिद्ध हुए। उनके साहित्य में समाज के छोटे- बड़े सभी चीजों की मौजूदगी है। नजीर ने मानव जीवन का बहुत ही गहराई से अध्ययन किया ,तभी तो वे ऐसे विषय में अपनी कलम चला देते थे, जिन पर अन्य शायरों का ध्यान ही नहीं गया।
जो महँगों को तो महँगी है और सस्तों को ये सस्ती है।
याँ हरदम झगड़े उठते हैं, हर आन अदालत बस्ती है।
गर मस्त करे तो मस्ती है और पस्त करे तो पस्ती है।
कुछ देर नही अंधेर नहीं, इंसाफ़ और अदल परस्ती है।।
इस हाथ करो उस हाथ मिले, याँ सौदा दस्त-ब दस्ती है।।
जो और किसी का मन रक्खे, तो उसको भी अरमान मिले।
जो पान खिलावे पान मिले, जो रोटी दे तो नान मिले।
नुक़सान करे नुक़सान मिले, एहसान करे एहसान मिले।
जो जैसा जिसके साथ करे, फिर वैसा उसको आन मिले।
कुछ देर नही अंधेर नहीं, इंसाफ़ और अदल परस्ती है।।
इस हाथ करो उस हाथ मिले, याँ सौदा दस्त-ब दस्ती है।।
जो और किसी की जाँ बख़्शे तो उसकी भी हक़ जान रखे।
जो और किसी की आन रखे तो, उसकी भी हक़ आन रखे।
जो याँ का रहने वाला है, ये दिल में अपने जान रखे।
ये तुरत-फुरत का नक़्शा है, इस नक़्शे को पहचान रखे।
कुछ देर नही अंधेर नहीं, इंसाफ़ और अदलपरस्ती है।।
इस हाथ करो उस हाथ मिले, याँ सौदा दस्त-ब दस्ती है।।
जो पार उतारे औरों को, उसकी भी पार उतरनी है।
जो ग़र्क़ करे फिर उसको भी, याँ डुबकूं-डुबकूं करनी है।
शमशीर, तीर, बन्दूक़, सिना और नश्तर तीर, नहरनी है।
याँ जैसी जैसी करनी है, फिर वैसी वैसी भरनी है।
कुछ देर नही अंधेर नहीं, इंसाफ़ और अदल परस्ती है।।
इस हाथ करो उस हाथ मिले, याँ सौदा दस्त-ब दस्ती है।।
जो और का ऊँचा बोल करे तो उसका भी बोल बाला है।
और दे पटके तो उसको भी, कोई और पटकने वाला है।
बे ज़ुल्मा ख़ता जिस ज़ालिम ने मज़लूम ज़िबह कर डाला है।
उस ज़ालिम के भी लोहू का फिर बहता नद्दी नाला है।
कुछ देर नही अंधेर नहीं, इंसाफ़ और अदल परस्ती है।।
इस हाथ करो उस हाथ मिले, याँ सौदा दस्त-ब दस्ती है।।
जो और किसी को नाहक़ में कोई झूठी बात लगाता है।
और कोई ग़रीब और बेचारा हक़ नाहक़ में लुट जाता है।
वो आप भी लूटा जाता है और लाठी-पाठी खाता है।
जो जैसा जैसा करता है, वो वैसा वैसा पाता है।
कुछ देर नहीं अंधेर नहीं, इंसाफ़ और अदल परस्ती है।।
इस हाथ करो उस हाथ मिले, याँ सौदा दस्त-ब दस्ती है।।
है खटका उसके हाथ लगा, जो और किसी को दे खटका।
और ग़ैब से झटका खाता है, जो और किसी को दे झटका।
चीरे के बीच में चीरा है, और पटके बीच जो है पटका।
क्या कहिए और 'नज़ीर' आगे, है ज़ोर तमाशा झट पटका।
कुछ देर नहीं अंधेर नहीं, इंसाफ़ और अदल परस्ती है।।
इसहाथ करो उस हाथ मिले, याँ सौदा दस्त-ब बदस्ती है।।
नजीर अकबराबादी (१७४०-१८३०) उर्दू भाषा में कविता करने वाले पहले कवि माने जाते है। इनका असली नाम वली मुहम्मद था। लेकिन इन्होने 'नजीर' नाम से शायरी की और अकबराबाद के रहने के कारण नजीर अकबराबादी के नाम से प्रसिद्ध हुए। उनके साहित्य में समाज के छोटे- बड़े सभी चीजों की मौजूदगी है। नजीर ने मानव जीवन का बहुत ही गहराई से अध्ययन किया ,तभी तो वे ऐसे विषय में अपनी कलम चला देते थे, जिन पर अन्य शायरों का ध्यान ही नहीं गया।
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