आनन्दमठ (भाग ३ ) - बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय

SHARE:

ब्रह्मचारी की आज्ञा पाकर भवानंद धीरे-धीरे हरिकी‌र्त्तन करते हुए उस बस्ती की तरफ चले, जहां महेंद्र का कन्या-पत्‍‌नी से वियोग हुआ था। उन्हों...

ब्रह्मचारी की आज्ञा पाकर भवानंद धीरे-धीरे हरिकी‌र्त्तन करते हुए उस बस्ती की तरफ चले, जहां महेंद्र का कन्या-पत्‍‌नी से वियोग हुआ था। उन्होंने विवेचन किया कि महेंद्र का पता वहीं से लगना संभव है।

उस समय अंग्रेजों की बनवायी हुई आधुनिक राहें न थी। किसी भी नगर से कलकत्ते जाने के लिए मुगल-सम्राटों की बनायी राह से ही जाना पड़ता था। महेंद्र भी पदचिह्न से नगर जाने के लिए दक्षिण से उत्तर जा रहे थे। भवानंद ताल-पहाड़ से जिस बस्ती की तरफ आगे बढ़े, वह भी दक्षिण से उत्तर पड़ती थी। जाते-जाते उनका भी उन धन-रक्षक सिपाहियों से साक्षात हो गया। भवानंद भी सिपाहियों की बगल से निकले। एक तो सिपाहियों का विश्वास था कि इस खजाने को लूटने के लिए डाकू अवश्य कोशिश करेंगे, उस पर राह में एक डाकू- महेंद्र को गिरफ्तार कर चुके थे, अत: भवानंद को भी राह में पाकर उनका विश्वास हो गया कि यह भी डाकू है। अतएव तुरंत उन सबने भवानंद को भी पकड़ लिया।

भवननंद ने मुस्करा कर कहा-ऐसा क्यों भाई?

सिपाही बोला-तुम साले डाकू हो!

भवानंद-देख तो रहे तो, गेरुआ कपड़ा पहने मैं ब्रह्मचारी हूं…. डाकू क्या मेरे जैसे होते हैं?

सिपाही-बहुतेरे साले ब्रह्मचारी-संन्यासी डकैत रहते हैं।

यह कहते हुए सिपाही भवानंद के गले पर धक्का दे खींच लाए। अंधकार में भवानंद की आंखों से आग निकलने लगी, लेकिन उन्होंने और कुछ न कर विनीत भाव से कहा-हुजूर! आज्ञा करो, क्या करना होगा?

भवानंद की वाणी से संतुष्ट होकर सिपाही ने कहा-लो साले! सिर पर यह बोझ लादकर चलो। यह कहकर सिपाही ने भवानंद के सिर पर एक गठरी लाद दी। यह देख एक दूसरा सिपाही बोला-नहीं-नहीं भाग जाएगा। इस साले को भी वहां पहलेवाले की तरह बांधकर गाड़ी पर बैठा दो। इस पर भवानंद को और उत्कंठा हुई कि पहले किसे बांधा है, देखना चाहिए। यह विचार कर भवानंद ने गठरी फेंक दी और पहले सिपाही को एक थप्पड़ जमाया। अत: अब सिपाहियों ने उन्हें भी बांधकर गाड़ी पर महेंद्र की बगल में डाल दिया। भवानंद पहचान गए कि यही महेंद्रसिंह है।

सिपाही फिर निश्चिंत हो कोलाहल मचाते हुए आगे बढ़े। गाड़ी का पहिया घड़-घड़ शब्द करता हुआ घूमने लगा। भवानंद ने अतीव धीमे स्वर में, ताकि महेंद्र ही सुन सकें, कहा-महेंद्रसिंह! मैं तुम्हें पहचानता हूं। तुम्हारी सहायता करने के लिए ही यहां आया हूं। मैं कौन हूं यह भी तुम्हें सुनने की जरूरत नहीं। मैं जो कहता हूं, सावधान होकर वही करो! तुम अपने हाथ के बंधन गाड़ी के पहिये के ऊपर रखो।

महेंद्र विस्मित हुए, फिर भी उन्होंने बिना कहे-सुने भवानंद के मतानुसार कार्य किया- अंधकार में गाड़ी के चक्कों की तरफ जरा खिसककर उन्होंने अपने हाथ के बंधनों को पहिये के ऊपर लगाया। थोड़ी ही देर में उनके हाथ के बंधन कटकर खुल गए। इस तरह बंधन से मुक्त होकर वे चुपचाप गाड़ी पर लेट रहे। भवानंद ने भी उसी तरह अपने को बंधनों से मुक्त किया। दोनों ही चुपचाप लेटे रहे।

महेंद्र ने देखा दस्यु गाते-गाते रोने लगा। तब महेंद्र ने विस्मय से पूछा- तुमलोग कौन हो?

भवानंद ने उत्तर दिया -हमलोग संतान हैं।

महेंद्र -संतान क्या? किसकी संतान हैं?

भवानंद -माता की संतान!

महेंद्र -ठीक ! तो क्या संतान लोग चोरी-डकैती करके मां की पूजा करते हैं? यह कैसी मातृभक्ति?

भवानंद -हम लोग चोरी-डकैती नहीं करते….

महेंद्र -अभी तो गाड़ी लूटी है…?

भवानंद -यह क्या चोरी-डकैती है! किसके रुपये लुटे हैं?

महेंद्र -क्यों ? राजा के !

भवानंद -राजा के! वह क्यों इन रुपयों को लेगा- इन रुपयों पर उसका क्या अधिकार है?

महेंद्र -राजा का राज-भाग।

भवानंद-जो राजा राज्य प्रबंध न करे, जनता-जनार्दन की सेवा न करे, वह राजा कैसे हुआ?

महेंद्र-देखता हूं, तुम लोग किसी दिन फौजी की तोपों के मुंह पर उड़ जाओगे।

भवानंद -अनेक साले सिपाहियों को देख चुका हूं, अभी आज भी तो देखा है!

महेंद्र -अच्छी तरह नहीं देखा, एक दिन देखोगे!

भवानंद -सब देख चुका हूं। एक बार से दो बार तो मनुष्य मर नहीं सकता।

महेंद्र -जान-बूझकर मरने की क्या जरूरत है?

भवानंद -महेंद्र सिंह! मेरा ख्याल था कि तुम मनुष्यों के समान मनुष्य होगे। लेकिन देखा- जैसे सब है, वैसे तुम भी हो- घी-दूध खाकर भी दम नहीं। देखो, सांप मिट्टी में अपने पेट को घसीटता हुआ चलता है- उससे बढ़कर तो शायद हीन कोई न होगा; लेकिन उसके शरीर पर भी पैर रख देने पर वह फन काढ़ लेता है। तुम लोगों का धैर्य क्या किसी तरह भी नष्ट नहीं होता? देखो, कितने देशी शहर है- मगध, मिथिला, काशी, कराची, दिल्ली, काश्मीर- उन जगहों की ऐसी दुर्दशा है? किस देश के मनुष्य भोजन के अभाव में घास खा रहे हैं? किस देश की जनता कांटें खाती है, लता-पत्ता खाती है? किस देश के मनुष्य स्यार, कुत्ते और मुर्दे खाते है? आदमी अपने संदूक में धन रखकर भी निश्चित नहीं है- सिंहासन पर शालिग्राम बैठाकर निश्चित नहीं है- घर में बहू-नौकर-मजदूरनी रखकर निश्चित नहीं है! हर देश का राजा अपनी प्रजा की दशा का, भरण-पोषण का ख्याल रखता है; हमारे देश का मुसलमान राजा क्या हमारी रक्षा कर रहा है? धर्म गया, जाति गई, मन गया- अब तो प्राणों पर बाजी आ गई है। इन नशेबाज दाड़ीवालों को बिना भगाए क्या हिंदू हिंदू रह जाएंगे?

महेंद्र- कैसे भगाओगे?

भवानंद -मारकर!

महेंद्र-तुम अकेले भगाओगे- एक थप्पड़ मारकर क्या?

भवानंद ने फिर गाया-

सप्तकोटि कण्ठ कलकल निनादकराले,
द्विसप्तकोटिभुजैर्घृत खरकरवाले,
अबला केनो मां एतो बले।

जिस जगह जंगल के समीप राज-पथ पर खड़े होकर ब्रह्मचारी ने चारों ओर देखा था उसी राह से इन लोगों को गुजरना था। उस पहाड़ी के निकट पहुंचने पर सिपाहियों ने देखा कि एक शिलाखंड पर जंगल के किनारे एक पुरुष खड़ा है। हलकी चांदनी में उस पुरुष का काला शरीर चमकता हुआ देखकर सिपाही बोला–देखो एक साला और यहां खड़ा है। इस पर उसे पकड़ने के लिए एक आदमी दौड़ा, लेकिन वह आदमी वहीं खड़ा रहा, भागा नहीं- पकड़कर हवलदार के पास ले आने पर भी वह व्यक्ति कुछ न बोला। हवलदार ने कहा-इस साले के सिर पर गठरी लादो! सिपाहियों के एक भारी गठरी देने पर उसने भी सिर पर ले ली। तब हवलदार पीछे पलटकर गाड़ी के साथ चला। इसी समय एकाएक पिस्तौल चलने की आवाज हुई- हवलदार माथे में गोली खाकर गिर पड़ा।

इसी साले ने हवलदार को मारा है! कहकर एक सिपाही ने उस मोटिया का हाथ पकड़ लिया। मोटिये के हाथ में तब तक पिस्तौल थी। मोटिये ने अपने सिर का बोझ फेंककर और तुरंत पलटकर उस सिपाही के माथे पर आघात किया, सिपाही का माथा फट गया और जमीन पर गिर पड़ा। इसी समय हरि! हरि! हरि! पुकारता दो सौ व्यक्तियों ने आकर सिपाहियों को घेर लिया। सिपाही गोरे साहब के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। साहब भी डाका पड़ा है- विचार कर तुरंत गाड़ी के पास पहुंचा और सिपाहियों को चौकोर खड़े होने की आज्ञा दी। अंग्रेजों का नशा विपद् के समय नहीं रहता। सिपाहियों के उस तरह खड़े होते ही दूसरी आज्ञा से उन्होंने अपनी-अपनी बंदूकें संभाली। इसी समय एकाएक साहब की कमर की तलवार किसी ने छीन ली और फौरन उसने एक बार में साहब का सिर भुट्टे की तरह उड़ा दिया- साहब का धड़ घोड़े से गिरा। फायर करने का हुक्म वह दे न सका। तब लोगों ने देखा कि एक व्यक्ति गाड़ी पर हाथ में नंगी तलवार लिए हुए ललकार रहा है-मारो, सिपाहियों को मारो…..मारो! साथ ही हरि हरि! का जय नाद भी करता जाता है। वह व्यक्ति और कोई नहीं भवानंद था।

एकाएक अपने साहब को मरा हुआ देख और अपनी रक्षा के लिए किसी को आज्ञा देते न देखकर सरकारी सिपाही डटकर भी निश्चेष्ट हो गए। इस अवसर पर तेजस्वी डाकुओं ने अपने सिपाहियों को हताहत कर आगे बढ़, गाड़ी पर रखे हुए खजाने पर अधिकार जमा लिया। सरकारी फौजी टुकड़ी भयभीत होकर भागी।

अंत में वह व्यक्ति सामने आया जो दल का नेतृत्व करता था और पहाड़ी पर खड़ा था। उसने आकर भवानंद को गले लगा लिया। भवानंद ने कहा-भाई जीवानंद! तुम्हारा नाम सार्थक हो?

इसके बाद अपहृत धन को यथास्थान भेजने का भार जीवानंद पर रहा। वह अपने अनुचरों के साथ खजाना लेकर शीघ्र ही किसी अन्य स्थान में चले गए। भवानंद अकेले खड़े रह गए।

बैलगाड़ी पर से कूदकर एक सिपाही की तलवार छीनकर महेंद्र सिंह ने भी चाहा कि युद्ध में योग दें। लेकिन इसी समय उन्हें प्रत्यक्ष दिखाई दिया कि युद्ध में लगा हुआ दल और कुछ नहीं, डाकुओं का दल है-धन छीनने के लिए इन लोगों ने सिपाहियों पर आक्रमण किया है। यह विचार कर महेंद्र युद्ध से विरत हो दूर जा खड़े हुए। उन्होंने सोचा कि डाकुओं का साथ देने से उन्हें भी दुराचार का भागी बनना पड़ेगा। वे तलवार फेंककर धीरे-धीरे वह स्थान त्यागकर जा रहे थे, इसी समय भवानंद उसके पास आकर खड़े हो गए। महेंद्र ने पूछा-महाशय! आप कौन हैं?

भवानंद ने कहा-इससे तुम्हें क्या प्रयोजन है?

महेंद्र-मेरा कुछ प्रयोजन है- आज आपके द्वारा मैं विशेष उपकृत हुआ हूं।

भवानन्द-मुझे ऐसा नहीं था कि तुम्हें इतना ज्ञान है। हाथों में हथियार रहते हुए भी तुम युद्ध से विरत रहे… जमींदारों के लड़के घी-दूध का श्राद्ध करना तो जानते है, लेकिन काम के समय बंदर बन जाते हैं!

भवानंद की बात समाप्त होते-न-होते महेंद्र घृणा के साथ कहा-यह तो अपराध है, डकैती है

भवानंद ने कहा- हां डकैती! हम लोगों के द्वारा तुम्हारा कुछ उपकार हुआ था, साथ ही और भी कुछ उपकार कर देने की इच्छा है!

महेंद्र-तुमने मेरा कुछ उपकार अवश्य किया है लेकिन और क्या उपकार करोगे? फिर डाकुओं द्वारा उपकृत होने के बदले अनुपकृत होना ही अच्छा है।

भवानंद-उपकार ग्रहण न करो, यह तुम्हारी इच्छा है। यदि इच्छा हो तो मेरे साथ आओ, तुम्हारी स्त्री-कन्या से मुलाकात करा दूंगा!

महेंद्र पलटकर खड़े हो गए, बोले-क्या कहा?

भवानंद ने इसका कोई जवाब न देकर पैर बढ़ाया।

अंत में महेंद्र भी साथ-साथ आने लगे, साथ ही मन-ही-मन सोचते जाते थे-यह सब कैसे डाकू हैं?….

जिस जगह जंगल के समीप राज-पथ पर खड़े होकर ब्रह्मचारी ने चारों ओर देखा था उसी राह से इन लोगों को गुजरना था। उस पहाड़ी के निकट पहुंचने पर सिपाहियों ने देखा कि एक शिलाखंड पर जंगल के किनारे एक पुरुष खड़ा है। हलकी चांदनी में उस पुरुष का काला शरीर चमकता हुआ देखकर सिपाही बोला–देखो एक साला और यहां खड़ा है। इस पर उसे पकड़ने के लिए एक आदमी दौड़ा, लेकिन वह आदमी वहीं खड़ा रहा, भागा नहीं- पकड़कर हवलदार के पास ले आने पर भी वह व्यक्ति कुछ न बोला। हवलदार ने कहा-इस साले के सिर पर गठरी लादो! सिपाहियों के एक भारी गठरी देने पर उसने भी सिर पर ले ली। तब हवलदार पीछे पलटकर गाड़ी के साथ चला। इसी समय एकाएक पिस्तौल चलने की आवाज हुई- हवलदार माथे में गोली खाकर गिर पड़ा।

इसी साले ने हवलदार को मारा है! कहकर एक सिपाही ने उस मोटिया का हाथ पकड़ लिया। मोटिये के हाथ में तब तक पिस्तौल थी। मोटिये ने अपने सिर का बोझ फेंककर और तुरंत पलटकर उस सिपाही के माथे पर आघात किया, सिपाही का माथा फट गया और जमीन पर गिर पड़ा। इसी समय हरि! हरि! हरि! पुकारता दो सौ व्यक्तियों ने आकर सिपाहियों को घेर लिया। सिपाही गोरे साहब के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। साहब भी डाका पड़ा है- विचार कर तुरंत गाड़ी के पास पहुंचा और सिपाहियों को चौकोर खड़े होने की आज्ञा दी। अंग्रेजों का नशा विपद् के समय नहीं रहता। सिपाहियों के उस तरह खड़े होते ही दूसरी आज्ञा से उन्होंने अपनी-अपनी बंदूकें संभाली। इसी समय एकाएक साहब की कमर की तलवार किसी ने छीन ली और फौरन उसने एक बार में साहब का सिर भुट्टे की तरह उड़ा दिया- साहब का धड़ घोड़े से गिरा। फायर करने का हुक्म वह दे न सका। तब लोगों ने देखा कि एक व्यक्ति गाड़ी पर हाथ में नंगी तलवार लिए हुए ललकार रहा है-मारो, सिपाहियों को मारो…..मारो! साथ ही हरि हरि! का जय नाद भी करता जाता है। वह व्यक्ति और कोई नहीं भवानंद था।

एकाएक अपने साहब को मरा हुआ देख और अपनी रक्षा के लिए किसी को आज्ञा देते न देखकर सरकारी सिपाही डटकर भी निश्चेष्ट हो गए। इस अवसर पर तेजस्वी डाकुओं ने अपने सिपाहियों को हताहत कर आगे बढ़, गाड़ी पर रखे हुए खजाने पर अधिकार जमा लिया। सरकारी फौजी टुकड़ी भयभीत होकर भागी।

अंत में वह व्यक्ति सामने आया जो दल का नेतृत्व करता था और पहाड़ी पर खड़ा था। उसने आकर भवानंद को गले लगा लिया। भवानंद ने कहा-भाई जीवानंद! तुम्हारा नाम सार्थक हो?

इसके बाद अपहृत धन को यथास्थान भेजने का भार जीवानंद पर रहा। वह अपने अनुचरों के साथ खजाना लेकर शीघ्र ही किसी अन्य स्थान में चले गए। भवानंद अकेले खड़े रह गए।

बैलगाड़ी पर से कूदकर एक सिपाही की तलवार छीनकर महेंद्र सिंह ने भी चाहा कि युद्ध में योग दें। लेकिन इसी समय उन्हें प्रत्यक्ष दिखाई दिया कि युद्ध में लगा हुआ दल और कुछ नहीं, डाकुओं का दल है-धन छीनने के लिए इन लोगों ने सिपाहियों पर आक्रमण किया है। यह विचार कर महेंद्र युद्ध से विरत हो दूर जा खड़े हुए। उन्होंने सोचा कि डाकुओं का साथ देने से उन्हें भी दुराचार का भागी बनना पड़ेगा। वे तलवार फेंककर धीरे-धीरे वह स्थान त्यागकर जा रहे थे, इसी समय भवानंद उसके पास आकर खड़े हो गए। महेंद्र ने पूछा-महाशय! आप कौन हैं?

भवानंद ने कहा-इससे तुम्हें क्या प्रयोजन है?

महेंद्र-मेरा कुछ प्रयोजन है- आज आपके द्वारा मैं विशेष उपकृत हुआ हूं।

भवानन्द-मुझे ऐसा नहीं था कि तुम्हें इतना ज्ञान है। हाथों में हथियार रहते हुए भी तुम युद्ध से विरत रहे… जमींदारों के लड़के घी-दूध का श्राद्ध करना तो जानते है, लेकिन काम के समय बंदर बन जाते हैं!

भवानंद की बात समाप्त होते-न-होते महेंद्र घृणा के साथ कहा-यह तो अपराध है, डकैती है

भवानंद ने कहा- हां डकैती! हम लोगों के द्वारा तुम्हारा कुछ उपकार हुआ था, साथ ही और भी कुछ उपकार कर देने की इच्छा है!

महेंद्र-तुमने मेरा कुछ उपकार अवश्य किया है लेकिन और क्या उपकार करोगे? फिर डाकुओं द्वारा उपकृत होने के बदले अनुपकृत होना ही अच्छा है।

भवानंद-उपकार ग्रहण न करो, यह तुम्हारी इच्छा है। यदि इच्छा हो तो मेरे साथ आओ, तुम्हारी स्त्री-कन्या से मुलाकात करा दूंगा!

महेंद्र पलटकर खड़े हो गए, बोले-क्या कहा?

भवानंद ने इसका कोई जवाब न देकर पैर बढ़ाया।

अंत में महेंद्र भी साथ-साथ आने लगे, साथ ही मन-ही-मन सोचते जाते थे-यह सब कैसे डाकू हैं?….

उस चांदनी रात में दोनों ही जंगल पार करते हुए चले जा रहे थे। महेंद्र चुप, शांत, गर्वित और कुछ कौतूहल में भी थे।

सहसा भवानंद ने भिन्न रूप रूप धारण कर लिया। वे अब स्थित-मूर्ति, धीर-प्रवृत्ति सन्यासी न रहे- वह रणनिपुण वीरमूर्ति, अंग्रेज सेनाध्यक्ष का सिर काटने वाला रुद्ररूप अब न रहा। अभी जिस गर्वित भाव से वे महेंद्र का तिरस्कार कर रहे थे, अब भवानंद वह न थे- मानो ज्योत्सनामयी, शांतिमयी पृथिवी की तरु-कानन-नद-नदीमय शोभा निरखकर उसके चित्त में विशेष परिवर्तन हो गया हो। चन्द्रोदय होने पर समुद्र मानों हंस उठा। भवानंद हंसमुख, मुखर, प्रियसंभाषी बन गए और बातचीत के लिए बहुत बेचैन हो उठे। भवानंद ने बातचीत करने के अनेक उपाय रचे, लेकिन महेन्द्र चुप ही रहे। तब निरुपाय होकर भवानंद ने गाना शुरू किया-

वन्दे मातरम्!
सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्
शस्यश्यामलां मातरम्……।

महेंद्र गाना सुनकर कुछ आश्चर्य में आए। वे कुछ समझ न सके- सुजलां, सुफलां, मलयजशीतलां, शस्यश्यामला माता कौन है? उन्होंने पूछा-यह माता कौन है?

कोई उत्तर न देकर भवानंद गाते रहे-

शुभ्रज्योत्सना पुलकित यामिनीम्
फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्
सुहासिनीं सुमधुरभाषिणीम्
सुखदां वरदां मातरम्। …

महेंद्र बोले-यह तो देश है, यह तो मां नहीं है।

भवानंद ने कहा -हमलोग दूसरी किसी मां को नहीं मानते। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी- हमारी माता, जन्मभूमि ही हमारी जननी है- हमारे न मां है, न पिता है, न भाई है- कुछ नहीं है, स्त्री भी नहीं, घर भी नहीं, मकान भी नहीं, हमारी अगर कोई है तो वही सुजला, सुफला, मलयजसमीरण-शीतला, शस्यश्यामला…

अब महेंद्र ने समझकर कहा -तो फिर गाओ!

भवानंद फिर गाने लगे-

वन्दे मातरम्!
सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम
शस्यश्यामलां मातरम्……।
शुभ्र ज्योत्सना-पुलकित यामिनीम्
फुल्लकुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्
सुहासिनीं सुमधुरभाषिणीम्
सुखदां, वरदां मातरम्।।
वन्दे मातरम्…..
सप्तकोटिकण्ठ-कलकल निनादकराले,
द्विसप्तकोटि भुजैधर्ृत खरकरवाले,
अबला केनो मां तुमि एतो बले!
बहुबलधारिणीम् नमामि तारिणीम्
रिपुदलवारिणीम् मातरम्॥ वन्दे….
तुमी विद्या, तुमी धर्म,
तुमी हरि, तुमी कर्म,
त्वं हि प्राण : शरीरे।
बाहुते तुमी मां शक्ति,
हृदये तुमी मां भक्ति,
तोमारई प्रतिमा गड़ी मन्दिरे-मन्दिरे।
त्वं हि दुर्गा दशप्रहरण धारिणीं,
कमला कमल-दल-विहारिणीं,
वाणी विद्यादायिनीं नमामि त्वं
नमामि कमलां, अमलां, अतुलाम,
सुजलां, सुफलां, मातरम्
वन्दे मातरम्॥
श्यामलां, सरलां, सुस्मितां, भूषिताम्
धरणी, भरणी मातरम्॥ वन्दे मातरम्..

COMMENTS

Leave a Reply: 2
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ हमें उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !
टिप्पणी के सामान्य नियम -
१. अपनी टिप्पणी में सभ्य भाषा का प्रयोग करें .
२. किसी की भावनाओं को आहत करने वाली टिप्पणी न करें .
३. अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .

नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,37,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",7,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,4,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,8,आषाढ़ का एक दिन,22,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,5,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,19,कमलेश्वर,7,कविता,1474,कहानी लेखन हिंदी,17,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,6,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,38,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,2,केदारनाथ अग्रवाल,4,केशवदास,6,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,139,गजानन माधव "मुक्तिबोध",15,गीतांजलि,1,गोदान,7,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,3,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,6,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,35,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,76,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,6,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,28,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,4,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,10,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,25,नाटक,1,निराला,39,निर्मल वर्मा,4,निर्मला,42,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,202,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,139,प्रयोजनमूलक हिंदी,38,प्रेमचंद,47,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,88,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,8,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,9,भक्ति साहित्य,143,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,17,भीष्म साहनी,8,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,10,मलिक मुहम्मद जायसी,9,महादेवी वर्मा,20,महावीरप्रसाद द्विवेदी,3,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,14,मैला आँचल,8,मोहन राकेश,15,यशपाल,15,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,6,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,21,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,3,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,9,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,4,लघु कथा,124,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,34,विद्यापति,8,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,2,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,8,शमशेर बहादुर सिंह,6,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,6,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,57,शैलेश मटियानी,2,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,4,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,33,सआदत हसन मंटो,10,सतरंगी बातें,33,सन्देश,44,समसामयिक हिंदी लेख,269,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,20,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,86,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",10,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,23,सूरदास,16,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,11,हजारी प्रसाद द्विवेदी,4,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,432,हिंदी लेख,532,हिंदी व्यंग्य लेख,14,हिंदी समाचार,182,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,91,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aapka-banti-mannu-bhandari,6,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,chitra-varnan-hindi,3,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,11,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,20,hindi essay,424,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,105,hindi stories,679,hindi-bal-ram-katha,12,hindi-gadya-sahitya,8,hindi-kavita-ki-vyakhya,19,hindi-notes-university-exams,67,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,22,kavyagat-visheshta,25,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,11,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,raag-darbari-shrilal-shukla,7,Rimjhim Class 3,14,samvad-lekhan-in-hindi,6,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,skandagupta-natak-jaishankar-prasad,6,sponsored news,10,suraj-ka-satvan-ghoda-dharmveer-bharti,4,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,51,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: आनन्दमठ (भाग ३ ) - बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय
आनन्दमठ (भाग ३ ) - बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2010/07/anandmath_19.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2010/07/anandmath_19.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका