विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय जहाँ कहीं भी जाते, जब भी जाते, अपने साथ हमेशा तेनालीराम को जरूर ले जाते थे। इस बात से अन्य दरबारियों को बड़ी ...
एक बार जब राजा कृष्णदेव राय वेष बदलकर कुछ गाँवों के भ्रमण को जाने लगे तो अपने साथ उन्होंने इस बार तेनालीराम को नहीं लिया बल्कि उसकी जगह दो अन्य दरबारियों को साथ ले लिया। घूमते-घूमते वे एक गाँव के खेतों में पहुँच गए। खेत से हटकर एक झोपड़ी थी, जहाँ कुछ किसान बैठे गपशप कर रहे थे। राजा और अन्य लोग उन किसानों के पास पहुँचे और उनसे पानी माँगकर पिया। फिर राजा ने किसानों से पूछा, ‘कहो भाई लोगों, तुम्हारे गाँव में कोई व्यक्ति कष्ट में तो नहीं है? अपने राजा से कोई असंतुष्ट तो नहीं है?’ इन प्रश्नों को सुनकर गाँववालों को लगा कि वे लोग अवश्य ही राज्य के कोई अधिकारीगण हैं। वे बोले, ‘महाशय, हमारे गाँव में खूब शांति है, चैन है। सब लोग सुखी हैं। दिन-भर कडी़ मेहनत करके अपना काम-काज करते हैं और रात को सुख की नींद सोते हैं। किसी को कोई दुख नहीं है। राजा कृष्णदेव राय अपनी प्रजा को अपनी संतान की तरह प्यार करते हैं, इसलिए राजा से असंतुष्ट होने का सवाल ही नहीं पैदा होता।
‘इस गाँव के लोग राजा को कैसा समझते हैं?’ राजा ने एक और प्रश्न किया। राजा के इस सवाल पर एक बूढ़ा किसान उठा और ईख के खेत में से एक मोटा-सा गन्ना तोड़ लाया। उस गन्ने को राजा को दिखाता हुआ वह बूढ़ा किसान बोला, ‘श्रीमान जी, हमारे राजा कृष्णदेव राय बिल्कुल इस गन्ने जैसे हैं।’ अपनी तुलना एक गन्ने से होती देख राजा कृष्णदेव राय सकपका गए। उनकी समझ में यह बात बिल्कुल भी न आई कि इस बूढ़े किसान की बात का अर्थ क्या है? उनकी यह भी समझ में न आया कि इस गाँव के रहने वाले अपने राजा के प्रति क्या विचार रखते हैं? राजा कृष्णदेव राय के साथ जो अन्य साथी थे, राजा ने उन साथियों से पूछा, ‘इस बूढ़े किसान के कहने का क्या अर्थ है?’ साथी राजा का यह सवाल सुनकर एक-दूसरे का मुँह देखने लगे। फिर एक साथी ने हिम्मत की और बोला, ‘महाराज, इस बूढ़े किसान के कहने का साफ मतलब यही है कि हमारे राजा इस मोटे गन्ने की तरह कमजोर हैं। उसे जब भी कोई चाहे, एक झटके में उखाड़ सकता है। जैसे कि मैंने यह गन्ना उखाड़ लिया है।’ राजा ने अपने साथी की इस बात पर विचार किया तो राजा को यह बात सही मालूम हुई। वह गुस्से से भर गए और इस बूढ़े किसान से बोले, ‘तुम शायद मुझे नहीं जानते कि मैं कौन हूँ?’ राजा की क्रोध से भरी वाणी सुनकर वह बूढ़ा किसान डर के मारे थर-थर काँपने लगा। तभी झोंपड़ी में से एक अन्य बूढ़ा उठ खड़ा हुआ और बड़े नम्र स्वर में बोला-‘महाराज, हम आपको अच्छी तरह जान गए हैं, पहचान गए हैं, लेकिन हमें दुख इस बात का है कि आपके साथी ही आपके असली रूप को नहीं जानते। मेरे साथी किसान के कहने का मतलब यह है कि हमारे महाराज अपनी प्रजा के लिए तो गन्ने के समान कोमल और रसीले हैं किंतु दुष्टों और अपने दुश्मनों के लिए महानतम कठोर भी।’ उस बूढ़े ने एक कुत्ते पर गन्ने का प्रहार करते हुए अपनी बात पूरी की। इतना कहने के साथ ही उस बूढ़े ने अपना लबादा उतार फेंका और अपनी नकली दाढ़ी-मूँछें उतारने लगा। उसे देखते ही राजा चौंक पड़े। ‘तेनालीराम, तुमने यहाँ भी हमारा पीछा नहीं छोड़ा।’ ‘तुम लोगों का पीछा कैसे छोड़ता भाई? अगर मैं पीछा न करता तो तुम इन सरल हृदय किसानों को मौत के घाट ही उतरवा देते। महाराज के दिल में क्रोध का ज्वार पैदा करते, सो अलग।’
‘तुम ठीक ही कह रहे हो, तेनालीराम। मूर्खों का साथ हमेशा दुखदायी होता है। भविष्य में मैं कभी तुम्हारे अलावा किसी और को साथ नहीं रखा करूँगा।’ उन सबकी आपस की बातचीत से गाँववालों को पता चल ही गया था कि उनकी झोंपड़ी पर स्वयं महाराज पधारे हैं और
भेष बदलकर पहले से उनके बीच बैठा हुआ आदमी ही तेनालीराम है तो वे उनके स्वागत के लिए दौड़ पड़े। कोई चारपाई उठवाकर लाया तो कोई गन्ने का ताजा रस निकालकर ले आया। गाँववालों ने बड़े ही मन से अपने मेहमानों का स्वागत किया। उनकी आवभगत की। राजा कृष्णदेव राय उन ग्रामवासियों का प्यार देखकर आत्मविभोर हो गए। तेनालीराम की चोट से आहत हुए दरबारी मुँह लटकाए हुए जमीन कुरेदते रहे और तेनालीराम मंद-मंद मुस्करा रहे थे।
मूर्खों का साथ हमेशा दुखदायी होता है।
जवाब देंहटाएंBahut baar anubhav kiya....satya paya !
Its a Good Story.
जवाब देंहटाएंi think in this 21 century,childrens have to get proticle knowlge through such type of stories.
जवाब देंहटाएंMurkh ke sath murkh wala budhhi aata hai
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