प्रिय मित्रों , हिन्दीकुंज में रणजीत कुमार के स्तम्भ ' मंगल ज्ञानानुभाव ' के अंतर्गत आज प्रस्तुत है - ' दोस्त " . आशा है कि...
प्रिय मित्रों , हिन्दीकुंज में रणजीत कुमार के स्तम्भ 'मंगल ज्ञानानुभाव' के अंतर्गत आज प्रस्तुत है - 'दोस्त" . आशा है कि आप सभी को यह लेख पसंद आएगा .
दोस्तकुछ एहसास रिश्तों की परिधि से परिभाषित नहीं होते जन्म लेते ही स्वतः रिश्ते बन जाते हैं जैसे पीता माता चाचा मामा इत्यादि पर एक रिश्ता है जो इंसान स्वयं बनाता है अपने होशोहवास में ये पावन रिश्ता है दोस्ती का. दोस्ती एक एहसास मात्र नहीं बल्कि हमारे जीवन का आधार है. माँ कहती थी दोस्त स्वतः बनते हैं और शब्द में निहित रहस्य ये है की जब दो व्यक्ति सत्य के पथ पर एकसाथ कदम बढ़ाते हैं तो ही वो सच्चे दोस्त हैं. तो दोस्ती इश्वर का वो वरदान है जहाँ हम अपने अहंकार को दरकिनार कर एक दूसरे के लिए जीते हैं.अक्सर हम ये सोंचने लगते हैं की हमारे सहकर्मी या सहपाठी ही हमारे दोस्त हैं पर यहाँ भूल हो जाती है इसलिए हमें ध्यान रखना चाहिए. मित्र मार्गदर्शक होता है वो हमेशा आपके हाँ में हाँ नहीं मिलाता बल्कि आपके विवेक को जागृत करने में सहयोग करता है. अगर आप गलत रास्ते पे हैं तो अधिकार पूर्वक वो अपनी बात आप से कहता है. आज सहकर्मी के भीड़ में सच्चे दोस्त की खोज मुश्किल अवस्य है नामुमकिन नहीं. दोस्त प्रतिस्पर्धा से परे होता है उसे आपका हित प्यारा होता है वो प्रतियोगी नहीं अपितु सहयोगी होता है. आपके सपने , आपके आदर्श और आपकी उन्नति का कोई सच्चा हितैक्षी है तो आपका दोस्त.कृष्ण और सुदामा की मित्रता जगजाहिर है. मित्रता मन की निश्चलता का विस्तार है यहाँ पर द्वेष एवं अहं का कोई प्रश्न ही नहीं. दोस्त आपके संकेत को भली भाँती भाँप लेता है वो आपके निः शब्द और मौन को भी सहजता से समझ लेता है. मित्रता नहीं देखता समाज के ढांचागत प्रतिबंधों को ये तो मन से परे हृदय सूत्र से संचालित होता है. सच्चे मित्र के आभाव में व्यक्तित्व विकास बाधक होता है और साथ ही स्थूल शरीर से जो अभिव्यक्ति मित्रता के माध्यम से प्रकाशित हो सकती थी वो अंदर कहीं काल कोठरी में दबी रह जाती है.मित्रता के इस पावन दिवस पर मैत्री भावना के अपार संभावनाओं को समर्पितदोस्ती के आयाम को समझने
के असहाय प्रयास में लगा में
जिसे दोस्त की तलाश है
माँ कहती थी बेटा दोस्त वो होता है
जब दो लोग सत्य की राह पर साथ चलते हैं
पर माँ दुःख है की अब ऐसे दोस्त कहा मिलते हैं
आज पाखंड ही दोस्ती की बुनियाद है
जो सहारा झूठ का ले वही आबाद है
ऐसे हिपोक्रेसी से मुझे घृणा है
अब बिना दोस्तों के ही जीना है
क्यूंकि ये वो दोस्त है जिनके लिए
सच और इमानदारी दो कौड़ी की चीज है
जो कभी अंकुरित न हो ये वही बीज़ हैं
माँ इनका नस्ल ही अनोखा है
क्यूंकि इनकी सच्चाई में भी धोखा है
मुझे ऐसे दोस्त मत देना माँ
जिनकी सफलता मेरी लाश हो
माँ एक मित्र ऐसा दे देना जिसे भी सत्य की तलाश हो...............
bahot hi bhav mayee rachana
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