आस्था के फूल - विचार मंथन

SHARE:

सुगंध और सौंदर्य फूलों की प्रकृति है। किसी का भी मन मोह सकते हैं। पुष्प, आदिकाल से मनुष्य द्वारा अपने इष्ट को अर्पित किए जाते रहे हैं। प्र...

सुगंध और सौंदर्य फूलों की प्रकृति है। किसी का भी मन मोह सकते हैं। पुष्प, आदिकाल से मनुष्य द्वारा अपने इष्ट को अर्पित किए जाते रहे हैं। प्रेमी-प्रेमिका के बीच प्रेम प्रदर्शन से लेकर अतिथि स्वागत में इनका प्रयोग हर सभ्यता में देखा जा सकता है। ये श्मशानघाट से लेकर जन्मदिन और शादी से सालगिरह के जश्न में भी प्रयोग में आते हैं। यहां फूल मानवीय भावना के प्रदर्शन का प्रतीक बनकर उभरते हैं। यह हमारे प्रेम में निरंतर आस्था का एक प्राकृतिक बिंब है। यह एक परंपरा है जो संस्कृति में रची-बसी है। इसमें देने वाले की श्रद्धा है जो लेने वाले का मान बढ़ाती है। यह एक ऐसा आत्मीय सत्य है जिसका कोई तथ्य या तत्व नहीं, बस खुशबू है जिसका आनंद सभी उठाते हैं।
पिछले दिनों 'आस्था' पर बहस चल पड़ी थी। समाचारपत्र-पत्रिकाएं से लेकर दृश्य मीडिया में लेख-वक्तव्य की भरमार थी। इंटरनेट की सोशल नेटवर्किंग साइट पर अचानक इस शब्द पर टिप्पणी को लेकर बाढ़ आ गयी। अधिकांश बुद्धिजीवियों को आस्था शब्द से चिढ़ मचने लगी थी। इस शब्द के सेक्यूलर होने पर संदेह व्यक्त किया जाने लगा था। यूं तो मैं पूर्णतः आस्थावादी नहीं हूं लेकिन इन लेखों को पढ़कर बुद्धि ही नहीं, जीव होने पर भी शक होने लगा था। संदर्भ और कारण चाहे जो हों मगर आस्था पर इतनी अनास्था! इतना अविश्वास! क्या यह ठीक है? दिल और दिमाग का द्वंद्व एक बार फिर चल पड़ा था। अब तक की समझ तो यही कहती रही थी कि जीवन का दूसरा नाम ही आस्था है। सारे धर्म का अस्तित्व भी तो आस्था से ही है। यहां तक कि राष्ट्र का निर्माण आस्था के बीज से ही अंकुरित होता है। कालांतर में राष्ट्र-प्रेम और राष्ट्रीयता के नींव में आस्था निरंतर विद्यमान होती है। देश को एकजुट व सुरक्षित रखते हुए समृद्धशाली, प्रगतिशील और विकसित बनाए रखने के लिए संविधान की आवश्यकता होती है और आवश्यकता होती है कि हर नागरिक की आस्था इसमें बनी रहे। संविधान से आस्था के हिलते ही राष्ट्रों का विघटन प्रारंभ हो जाता है। यही नहीं समाज-परिवार की आत्मा है आस्था। रिश्तों की डोर है आस्था। शुद्ध बाजारवाद में वैश्विक जगत के संगठनों तक में शक्ति भर देता है आस्था। आस्था की ओर देखने वाले की निगाह से थोड़ा धार्मिक चश्मा हटा दें तो यह 'विश्वास' शब्द दिखने लग पड़ता है। और डाक्टर पर विश्वास के बिना रोगी का इलाज संभव नहीं। लेकिन चिकित्सा विज्ञान भी एक सीमा के बाद ईश्वर को याद करने के लिए कहता है। और चमत्कार होते भी हैं। हर एक के जीवन में अलग-अलग रूप में। और यहीं से अंधविश्वास प्रारंभ होता है। यहां पर आकर मानवीय बौद्धिक शक्ति का साम्राज्य समाप्त होता है। यह आस्था का अनंत अपरिभाषित क्षेत्र है। इन अंधेरी गुफाओं का क्या विश्लेषण करें जहां दिखता तो कुछ नहीं मगर उजाला ही उजाला है। समझना तो दूर की बात है। यहां आस्था का एकछत्र राज्य है। यहां तर्क और प्रमाण काम नहीं करते। चूंकि यह भौतिकी का क्षेत्र नहीं। यह कल्पनाओं से परे की दुनिया है जहां संपूर्ण समर्पण है। ऐसे में आस्था पर बहस करना स्वयं के अस्तित्व पर संदिग्ध सवाल पूछने जैसा लगता है। फिर चाहे आस्था किसी की भी किसी के प्रति हो।
जोर-जोर से कहा जा रहा है कि देश पिछले वर्षों में आगे बढ़ा है। बिल्कुल बढ़ा है। बढ़ना चाहिए। मगर यह तो हर युग में आगे बढ़ता है। समय परिवर्तन को ही परिभाषित करता है। मगर यह कहना कहां तक सच है कि आस्था से नयी पीढ़ी आगे बढ़ चुकी है? एक पल के लिए भ्रम तो होता है। जीवनशैली में बदलाव और संवेदनशून्यता के तहत आदमी मशीन होता प्रतीत भी होता है। मगर यह उसका बाह्य रूप है। अंदर से तो वो वही है। पूर्णतः संवेदनशील और आस्थाओं का पुतला। कहने वाले शायद जीवन की सत्यता को नहीं देख रहे। धार्मिक स्थानों के बाहर बढ़ती लाइनें। पूजा-स्थलों की बढ़ती संख्या। क्या धार्मिक बाबाओं की बढ़ती लोकप्रियता को अनदेखा किया जा सकता है? अच्छे-बुरे से परे ये सब बढ़ती आस्था के कुछ जीते-जागते उदाहरण हैं। दर्शनाभिलाषी भक्तों में आधे से अधिक युवा वर्ग से होते हैं। बड़े-बड़े अधिकारी, व्यवसायी, उद्योगपति, खिलाड़ी, वैज्ञानिक और वकील, जीवन के हर क्षेत्र के लोगों की भरमार है। यहां तक कि तथाकथित बुद्धिजीवियों को भी कहीं न कहीं मत्था टेकते हुए देखा जा सकता है। यहां किसी का इतिहास नहीं पूछा जाता, प्रमाणपत्र नहीं देखे जाते। आस्था है तो है। यह सिर्फ हिन्दुस्तान में ही नहीं विश्व के हर धर्म, धर्मस्थलों व धार्मिक महान व्यक्तित्व से जुड़े भावनात्मक मुद्दे हैं जिन्हें तर्क और विज्ञान परिभाषित नहीं कर सकता। कोलाहल से भरी दुनिया में बाहर बैठकर चाहे जो कहें मगर आस्था के क्षेत्र में प्रवेश करते ही मनुष्य मौन रूप धारण कर लेता है, आंखें बंद हो जाती हैं और कान कुछ और सुनने को तैयार नहीं। यह भ्ाावना प्रधान क्षेत्र है जहां सिर श्रद्धा से झुका होता है।
वर्तमान आधुनिक युग में, जल्दबाजी और शार्टकर्ट के चक्कर में, अंधविश्वास बढ़ा है। एक ही जीवन में शून्य से अरबपति और रातोरात सितारा बनते देख अन्य लोगों में महत्वकांक्षा की भूख बढ़ी है। कम प्रतिभाशाली को अधिक सफल होते देख, ईर्ष्या के साथ-साथ जोड़तोड़ भी बढ़ी है। उधर, मेहनत के अतिरिक्त भाग्य को पूरी तरह कोई नहीं नकार पाया। फिर चाहे कोई भी क्षेत्र हो। जिसे सब कुछ मिल चुका है वह उसे खोना नहीं चाहता और उसके लिए अदृश्य सर्वशक्तिमान से विनती करता रहता है। और जिसे कुछ नहीं मिला वह उसे प्राप्त करने के लिए प्रयासरत है। उसके लिए कुछ भी करने के लिए तैयार है। इंसान स्वकेंद्रित हुआ है, स्वार्थी और अकेला हुआ है। ऐसे में उसका भय बढ़ा है। वो अधिक कमजोर हुआ है। वो भविष्य से आतंकित है। चाहत और इच्छा के न पूरी होने से असंतुलित है। ऐसी परिस्थिति में आस्था उसे सहारा देती है। इस नग्न सत्य को स्वीकार करना होगा। धर्म आस्था से ही फलता और फूलता है। यहां तक कि कई बार धर्म के बदलने से भी आस्थाएं नहीं परिवर्तित होती हैं। यूं तो नये धर्मों का आगमन कई कारणों से संभव हो पाया है। और फिर नये को पुराने की अपेक्षा अधिक कट्टर होना पड़ता है तभी वो स्वयं को सिद्ध और अस्तित्व में ला पाता है। पुराने को हटाकर नये को स्थापित करने में शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक हर तरह की ऊर्जा का व्यय होता है। मगर आस्थाएं फिर भी आसानी से नहीं छूटती। तभी तो एक धर्म के अनुयायी को दूसरे की आस्था पर सिर झुकाते देखा जा सकता है।
आस्था जीवन की आत्मा है जबकि कानून समाज की व्यवस्था। दोनों का अपना क्षेत्र है और अपनी महत्ता। आमने-सामने आने पर संतुलन की आवश्यकता है। कानून को सर्वोपरि मानने वालों के लिए, जब जीवन ही नहीं होगा तो व्यवस्थित समाज का क्या औचित्य? निर्मल आस्था को कानून के द्वारा नियमित और नियंत्रित नहीं किया जा सकता। हां, कई जगहों पर कानून इससे जरूर दिशा पाता है। और फिर कानून भी कहीं न कहीं आस्था पर जाकर टिकता है। और उसी के द्वारा क्रियान्वित और स्वीकृति होता है। शरीर आत्मा के बिना मृत है। कानून में अवाम की आस्था के बिना शासन व्यवस्था व्यर्थ है। विज्ञान स्वयं कहीं न कहीं आस्था से ही प्रारंभ होकर आस्था पर खत्म होता है। पिछले दिनों, आस्था शब्द को बुद्धिजीवियों द्वारा गरियाते हुए देखकर अटपटा लगा था। क्या उन्हें अपने विचारों और शब्दों पर आस्था नहीं? क्या उन्हें अपनी विचारधाराओं और गुरुओं पर आस्था नहीं? क्या उन्हें अपनी व्यवस्था पर आस्था नहीं? क्या प्रजातंत्र के मूल संस्थानों पर आस्था नहीं? आस्था को नकार कर तो हम सारी सभ्यता को ही नकार देते हैं। यहां आस्था के नाम पर जबरन प्रदर्शन या उसकी आड़ में असामाजिक कार्य करने वालों से हमें भ्रमित नहीं होना चाहिए। वो आस्था नहीं व्यापार है। राजनीति है। आस्था को तो शब्दों में परिभाषित नहीं किया जा सकता, न ही समय में सीमित किया जा सकता है। इसे इतिहास के किसी सीमित कालखंड को देख व पढ़कर समझा भी नहीं जा सकता। यह अनुभूति का मामला है। आस्था स्वयं में सेक्यूलर होती है। आस्था टूट तो सकती है दूषित नहीं होती। आस्था में अस्तित्वहीनता है फिर यहां प्रतिद्वंद्विता का कोई स्थान नहीं। यह अपने में ध्यानमग्न रहती है और दूसरे की आस्था में दखल नहीं देती। लेकिन दखल चाहती भी नहीं। यह बुद्धि का नहीं दिल का क्षेत्र है। इसलिए इसकी समझ मुश्किल है। मगर दिमाग को यह बात ध्यान से समझ लेना होगा कि किसी भी एक आस्था के पक्ष और दूसरे के विपक्ष में बेवजह प्रतिक्रिया करने पर आस्थाएं प्रतिक्रियात्मक हो जाती हैं जबकि वे तो मूल रूप में निष्क्रिय है। दो आस्थाएं कभी नहीं टकराती। यह उनकी प्रकृति नहीं। हां, दो आधे-अधूरे आस्था वाले अगर उलझे हैं तो उसे और सावधानी से सुलझाना होगा। वरना गांठों का न्यूटन लॉ उसे और उलझाता चला जाता है। यह यकीन मान लेना चाहिए कि किसी एक की आस्था पर किसी दूसरी की आस्था की तिलाजंलि दूसरे को और अधिक कट्टर बनाती है। दो भाई कभी नहीं लड़ सकते। जब तक कोई तीसरा स्वार्थी न हो। अतिरिक्त दखलंदाजी से ही संदेह उत्पन्न होता है। उधर, बच्चों में अपने से बड़ों पर आस्था तो होती है मगर बड़े अगर बड़ों की तरह व्यवहार न करें तो मुश्किलें बढ़ जाती है। एक ही परिवार में जब दो बच्चों का हित टकराने लगे तो बड़े-बुजुर्गों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। सच का साथ ध्यानपूर्वक देना जरूरी हो जाता है। ठीक है कि छोटे बच्चे पर अतिरिक्त ध्यान होना चाहिए, मगर बड़े की कीमत पर नहीं। इससे छोटा जिद्दी और बड़ा विद्रोही हो सकता है। हां, बड़े का अधिक साथ देने पर छोटा उपेक्षित हो सकता है।
यह सच है कि कानून के बिना समाज सही ढंग से नहीं चल सकता। मगर फिर उसका क्या करे जहां कानून की अंधी नजर पहुंच नहीं पाती। न्याय कैसे हो जहां तथ्य खुद भ्रमित करने लगें। ऐसे में विवेक का पदार्पण होता है मगर फिर विवेकवान न्यायाधीश पर भी दोनों पक्षों को आस्था तो रखनी ही होगी। आखिरकार न्यायालय भी तो गवाहों पर विश्वास करता है। न्याय पर आस्था, हारने और जीतने से नियंत्रित होना, किसी भी विकसित समाज के हित में नहीं। राष्ट्र और राष्ट्राध्यक्ष बदल जाते हैं। कानून बदल जाते हैं मगर आस्थाएं नहीं बदलती। आस्था को आस्था ही समझ सकती है, कानून नहीं। पत्थर को कानून नहीं आस्था ईश्वर बना देता है। आस्था के फूल को महकने दो। इसे तितलियों संग स्पंदित होने दो। आस्थाओं को तोड़ने से तो जीवन ही समाप्त हो जाएगा, और घर खंडहरों में तबदील हो जाएंगे। 
 

यह लेख मनोज सिंह द्वारा लिखा गया है जो कि वर्तमान में उपमहानिदेशक (डिप्टी डायरेक्टर जनरल) विजीलेंस एवं टेलीकॉम मॉनिटरिंग, पंजाब व चंडीगढ़ के प्रमुख के पद पर कार्यरत हैं। आप एक उपन्यासकार, स्तंभकार, कवि, कहानीकार आदि के रूप में प्रसिद्ध है।

COMMENTS

Leave a Reply
नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,37,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",7,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,4,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,8,आषाढ़ का एक दिन,22,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,5,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,19,कमलेश्वर,7,कविता,1474,कहानी लेखन हिंदी,17,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,6,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,38,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,2,केदारनाथ अग्रवाल,4,केशवदास,6,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,139,गजानन माधव "मुक्तिबोध",15,गीतांजलि,1,गोदान,7,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,3,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,6,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,35,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,76,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,6,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,28,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,4,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,10,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,25,नाटक,1,निराला,39,निर्मल वर्मा,4,निर्मला,42,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,202,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,139,प्रयोजनमूलक हिंदी,38,प्रेमचंद,47,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,88,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,8,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,9,भक्ति साहित्य,143,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,17,भीष्म साहनी,8,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,10,मलिक मुहम्मद जायसी,9,महादेवी वर्मा,20,महावीरप्रसाद द्विवेदी,3,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,14,मैला आँचल,8,मोहन राकेश,15,यशपाल,15,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,6,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,21,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,3,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,9,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,4,लघु कथा,124,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,34,विद्यापति,8,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,2,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,8,शमशेर बहादुर सिंह,6,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,6,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,57,शैलेश मटियानी,2,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,4,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,33,सआदत हसन मंटो,10,सतरंगी बातें,33,सन्देश,44,समसामयिक हिंदी लेख,269,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,20,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,86,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",10,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,23,सूरदास,16,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,11,हजारी प्रसाद द्विवेदी,4,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,431,हिंदी लेख,532,हिंदी व्यंग्य लेख,14,हिंदी समाचार,182,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,91,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aapka-banti-mannu-bhandari,6,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,chitra-varnan-hindi,3,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,11,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,20,hindi essay,423,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,105,hindi stories,679,hindi-bal-ram-katha,12,hindi-gadya-sahitya,8,hindi-kavita-ki-vyakhya,19,hindi-notes-university-exams,67,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,22,kavyagat-visheshta,25,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,11,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,raag-darbari-shrilal-shukla,7,Rimjhim Class 3,14,samvad-lekhan-in-hindi,6,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,skandagupta-natak-jaishankar-prasad,6,sponsored news,10,suraj-ka-satvan-ghoda-dharmveer-bharti,4,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,51,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: आस्था के फूल - विचार मंथन
आस्था के फूल - विचार मंथन
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6EXgFyNjIQ9WjW-TDxbp05_wDvAn2glXBS77pkKljOnR_DexzTyQGwoeEba2xbO2xpGkYMZM6Zl779daPA4iPkfhw1pTNTEnDfOk1PwlovJ5op2gyB3lJQJwgNwdm4r8cI_rhNs5JdsGo/s200/manoj+photo.JPG
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6EXgFyNjIQ9WjW-TDxbp05_wDvAn2glXBS77pkKljOnR_DexzTyQGwoeEba2xbO2xpGkYMZM6Zl779daPA4iPkfhw1pTNTEnDfOk1PwlovJ5op2gyB3lJQJwgNwdm4r8cI_rhNs5JdsGo/s72-c/manoj+photo.JPG
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2010/10/aastha-ke-phool.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2010/10/aastha-ke-phool.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका