आज अनायास मन विचलित है और कुछ सवाल मानस पटल पर उभर आये हैं. एक ओर जहाँ हम अर्थव्यवस्था के मजबूत होने के सबूत पेश करते हैं वहीँ दूसरी ओर हमा...
आज अनायास मन विचलित है और कुछ सवाल मानस पटल पर उभर आये हैं. एक ओर जहाँ हम अर्थव्यवस्था के मजबूत होने के सबूत पेश करते हैं वहीँ दूसरी ओर हमारे ही प्रतिनीधि देश को खोखला करने में लगे हैं. भ्रष्टाचार हमारी राष्ट्रीय मूलमंत्र बन चुकी है और इस मामले में सभी पार्टी सेकुलर हैं अर्थात हमाम में सभी नंगे हैं ऐसे में सवाल ये है की सभी बिल्ली ही हैं तो घंटी बाँधने का दायित्व किसे दिया जाए. सरकारी संस्थाओं का दुरूपयोग जारी है अनाज गोदामो में सड़ने के लिए छोड़ दिए गए और हम विकास का गीत गाते रहे. खेल से लेके रेल तक कुछ भी अछुता नहीं रहा बंदरबांट जारी है और हमारे देश के पुरुषत्व की ये पराकाष्ठा ही है की पड़ोसी हमे घर में घुस कर मारता है और हम उसमे भी निर्णय लेने में असमर्थ हैं.
समस्याओं से घिरा भारत को युग द्रष्टा चाहिए हम आवादी का बहाना लेके सारी समस्या से मुह नहीं मोड़ सकते आज आवश्यक ये है की हम अपने इसी आवादी को मानव संसाधन में बदलें हमें चाइना से सीखना चाहिए.एक व्यापक उद्यमिता क्रान्ति की आवश्यकता है हमने साठ वर्ष नेहरु के विकास पद्धति का अनुसरण किया और फलस्वरूप जो संरचना तैयार हुई वो सुनियोजित विकास की नहीं अपितु एक असंतुलित विकास का ढांचा मात्र बन कर रह गयी. आज गांधी के विकास अवधारणा की आवश्यकता है जहाँ शिक्षा आत्मविश्वास को सुदृढ़ करे न की बेरोजगारों की जमात. क्या गरीब व्यक्ति सृजनात्मक नहीं हो सकता कोई ऐसा सोंचे न सोंचे हमारी सरकार ये बात मान कर नीति निर्धारित करती है “Minds below margins are not marginal minds” और ऐसे में पत्थर तोड़ना, मजदूरी करना, सड़क बनाना क्या उसके मौलिक सृजनात्मक अधिकारों का हनन नहीं. भूमंडलीकरण और बाजारीकरण के नाम पर हमारे घरेलू उद्योग, कला एवं संस्कृति को पूर्णतः रोंदा गया है आज आवश्यकता है नए शिक्षा पद्धति नयी सोंच एवं लंबी रणनीति की.
सरकार को पहल करनी चाहिए की हर नागरिक को एक व्यक्तिगत पहचान संख्या दी जाए और सुचना क्रांति के इस युग में उनका पूरा विवरण रखा जाए. ये संख्या ही मात्र पहचान होनी चाहए और शिक्षा स्वास्थ व्यवसाय बैंकिंग एवं कर की सारी जानकारी एक ही संख्या से जोड़ी जाए. स्वतः भ्रष्टाचार पर अंकुश लग जाएगा. विकास को नयी दिशा देने के लिए आवश्यक है पारदर्शिता एवं जवाबदेही. वर्तमान परिवेश में ये दोनों मूल अवधारणा विकास के ढाँचे में नहीं है. प्रतिभा का पलायन रोकना आवश्यक है. देश को अनेको भागीरथ की प्रतीक्षा है जो सुनियोजित विकास की गंगा को अवतरित होने के लिए प्रयाप्त वातावरण का निर्माण कर सकें.
मन में अनेको विचार आ रहे हैं पर आपके विचारों को झंकृत करने के लिए ये प्रयास व्यर्थ न हो ऐसी इक्षा रखता हूँ. अपनी बात को रखने का अवसर दिया इसके लिए धन्यवाद. आपका सहयात्री सत्यान्वेषी.
यह रचना रणजीत कुमार मिश्र द्वारा लिखी गयी है। आप एक शोध छात्र है। इनका कार्य, विज्ञान के क्षेत्र में है . साहित्य के क्षेत्र में इनकी अभिरुचि बचनपन से ही रही है . आपका उद्देश्य हिंदी व अंग्रेजी लेखनी के माध्यम से अपने भाव और अनुभवों को सामाजिक हित के लिए कलमबद्ध करना है।
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