हॉस्टल के पन्नों से - विचार मंथन

SHARE:

मनोज सिंह म नुस्मृति में आदिकाल से जीवन को चार आश्रम में बाँटा जाता रहा है। ब्रह्मचर्र्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ एवं संन्यास। लेकिन पिछली शत...

मनोज सिंह
नुस्मृति में आदिकाल से जीवन को चार आश्रम में बाँटा जाता रहा है। ब्रह्मचर्र्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ एवं संन्यास। लेकिन पिछली शताब्दी में जीवन का स्वरूप बदला और विविधताएं बढ़ी हैं। समाज में मूलभूत परिवर्तन हुए हैं। विज्ञान ने सब कुछ उलटा-पुलटा कर दिया है। ऐसे में उपरोक्त वर्गीकरण पर भी पुनर्विचार होना चाहिए। नये ज़माने की नयी परिभाषाएं गढ़नी होंगी।
वर्तमान शिक्षा-पद्धति लंबी चलती है। ऐसे में ब्रह्मचर्य का पालन संपूर्ण छात्र जीवन में संभव नहीं। ठीक इसी तरह से नौकरी लगने के उपरांत एवं शादी के पूर्व का समय अन्य काल से भिन्न और कई मामलों में यादगार बन पड़ता है। आर्थिक रूप से स्वतंत्र मगर नौकरी की ज़िम्मेदारियाँ प्रारंभ हो जाती हैं। छात्र जीवन को भी, स्कूल व कॉलेज के समयकाल के अंतर्गत दो अलग-अलग भागों में बाँटा जाना चाहिए। जो हॉस्टल में रहकर स्कूली शिक्षा प्राप्त करते हैं, उनकी संख़्या नगण्य होने के कारण उन्हें अपवाद मानकर छोड़ा जा सकता है। मगर उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए घर से बाहर जाना ही पड़ता है। आज के युग में यह संख़्या निरंतर बढ़ रही है। यही छात्र भविष्य में इंजीनियर, डॉक्टर, मैनेजर व प्रशासनिक एवं अन्य सेवाओं में जाते हैं। अर्थात प्रबुद्ध वर्ग जो समाज को नेतृत्व भी प्रदान करता है, हॉस्टल-कॉलेज से होकर निकलता है। इसीलिए हॉस्टल का जीवन सीधे-सीधे महत्वपूर्ण हुआ। गुरु का आश्रम गुरुकुल, कालांतर में विश्वविद्यालय बना तो अँगरेज़ों के शासनकाल में भी रहने का स्थान 'छात्रावास' बना रहा, लेकिन स्वतंत्र भारत में यह कब 'हॉस्टल' कहा जाने लगा, पता ही नहीं चला। बहरहाल, कई बिंदु इस दौरान अपने चरम पर होते हैं। शरीर में ऊर्जा होती है। जोश, जुनून, सपने, महत्वाकांक्षा सब कुछ सातवें आसमान पर। सेक्स की भूख 'कामेच्छा' सर्वाधिक तो करिअर की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण। अर्थात व्यक्तिगत दृष्टिकोण से भी देखें तो यह जीवन का उल्लेखनीय काल होता है।
हॉस्टल में रहकर पढ़ने वाले युवा छात्र-छात्राओं के बीच यौन आकर्षण का चरम पर होना प्राकृतिक है। ऐसे में प्यार के लिए कुछ भी करेगा वाला सिद्धांत प्रिय होना स्वाभाविक है। परिपक्वता कितनी आती है, यह एक तर्क-वितर्क का विषय है। बहरहाल, भारतीय संविधान के अनुसार इस दौरान राजनीतिक अधिकारों का प्रयोग करने योग्य मान लिया जाता है। विदेशों में, विशेष रूप से पश्चिमी देशों में, एक उम्र के बाद माँ-बाप का तथाकथित नियंत्रण समाप्त माना जाता है। शराब और सिगरेट भी ख़रीदी जा सकती है। खुला सेक्स तो पहले से ही वहाँ उपलब्ध है। लेकिन पूर्णतः स्वतंत्रता इसी दिन मिलती है। इसीलिए कई लोग अठारह वर्ष के जन्मदिवस को 'ग्रेट फ्रीडम-डे' के रूप में मनाते हैं। भारतीय युवा परिवर्तन के दौर से गुज़र रहा है। वो पश्चिम की राह पर चलते हुए स्वतंत्र होने की नयी परिभाषा रच रहा है। मगर फिर भी अभी सभ्यता और संस्कृति की पकड़ महसूस की जा सकती है। ये मजबूत बेड़ियाँ टूटने के कगार पर हैं। अच्छा है या बुरा, यह दीग़र बात है। लेकिन मूल में कहीं-कहीं यही प्रश्न उभरता है।
पहले इस उम्र में आते-आते भारतीय समाज में अधिकांश लड़के-लड़कियों की शादी हो जाती थीं। अर्थात सेक्स का सामाजिक इंतज़ाम हो जाया करता था। छात्र पढ़ाई के दौरान अपनी पत्नियों को प्रेमपत्र लिखा करते थे। युवतियाँ पढ़ने के लिए कम आगे आ पाती थीं और कई इस उम्र तक आते-आते बच्चों की मां बन चुकी होती थीं। तो क्या यह मान लिया जाए कि कम से कम स्त्री-पुरुष संबंध के लिए, पश्चिमी संस्कृति पारंपरिक भारतीय सभ्यता का अनुसरण करती प्रतीत होती है? बहुत हद तक। यह ज़रूर कहा जा सकता है कि भारत में इस पर बाक़ायदा सामाजिक मोहर लगी हुई थी। वैसे तो पश्चिम में भी उनके खुले संबंधों को मान्यताप्राप्त है। फ़र्क़ सिर्फ़ इतना है कि यहाँ के संबंधों में बंधन थे तो पश्चिमी रिश्ते बहुत हद तक बंधन-मुक्त। बहरहाल, दोनों ही स्वरूप में अपनी-अपनी अच्छाइयाँ थीं और हैं, और कमियाँ भी, जिसका भुगतान समकालीन पीढ़ी को करना होता है।
भारत ने पश्चिम के औद्योगिकीकरण का अनुसरण किया। व्यावसायिकता बढ़ी है। विज्ञान पढ़ाया जाने लगा। खेती के अतिरिक्त भी संसाधन विकसित हुए। पश्चिम की तरह नौकरी लगने के बाद ही परिवार बसाने की प्रथा प्रारंभ हुई। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के दौरान अधिकांश छात्र-छात्राएं अविवाहित पाये जाने लगे। पूरब ने पश्चिम से बाकी सब तो सीख लिया लेकिन व्यक्तिगत संबंधों में जो स्वतंत्रता वहाँ है, यहाँ नहीं आ पाई। समाज ने अपने शिकंजे को बनाए रखा। परिणामस्वरूप भारतीय युवा वर्ग सेक्स के क्षेत्र में भूखा रह गया। यहाँ के हॉस्टल जीवन को ध्यान से देखें तो यौन विकृति कई रूपों में मिलेगी। आज भी अधिकांश लड़के और लड़कियों के हॉस्टल अलग-अलग ही नहीं दूर-दूर भी होते हैं जहाँ लड़के तो स्वतंत्र और लड़कियों को पहरेदारी व किलेनुमा हॉस्टलों में बंद कर रखा जाता है।
उपरोक्त परिस्थिति अब धीरे-धीरे अपने स्वरूप को स्वयं ही बदल रही है। विगत दशक में भारतीय समाज की सोच में भी परिवर्तन आया है। छात्राओं की संख़्या बढ़ने, घर से बाहर निकलने, नौकरी में बराबर से प्रतिस्पर्द्धा के कारण वे और अधिक स्वतंत्र हुई हैं। लड़के-लड़कियों के आपस में मिलने की संभावनाएं बढ़ी हैं। इस दौरान हॉस्टल के जीवन में भी एक बहुत बड़ा अंतर महसूस किया जा सकता है। अब यह बहुत कुछ पश्चिमी सभ्यता के नजदीक दिखाई देता है। लड़के-लड़कियाँ स्वतंत्र रूप से घूमते हुए दिखाई दे सकते हैं। उनकी अपनी कहानियाँ हैं, अपने दर्द हैं, अपना अहसास है, अपना जीवन।
विडम्बना ही है कि इस उम्र में एक तरफ़ यौन-इच्छा प्रबल होती है तो दूसरी ओर भविष्य की नींव इसी दौरान रखी जाती है। ऊपर से कुछ नया करने का जोश। मानसिक परिपक्वता कितनी आ पाती है, एक अलग मुद्दा है। मगर राजनीतिक शक्ति और स्वतंत्रता मिल जाने से यह वर्ग राजनीति में सबसे अहम हो जाता है। जुझारू सक्रिय कार्यकर्ता यहीं से मिलते हैं। आंदोलन के लिए भी युवा वर्ग ही चाहिए। अर्थात ये राजनीतिज्ञों की निगाह में भी होते हैं।
यही सब कारण है जो यह जीवन का अमूल्य काल बन जाता है। इस दौरान संतुलन और अधिक सतर्कता की आवश्यकता है। जो इसे बनाए रखते हैं वे सफल हो जाते हैं। जिस समाज में ये वर्ग विकसित और उन्नत होगा वही राष्ट्र अग्रणी होता है। इस उम्र में भावनाएं भी पूरे वेग और अपने तीव्रतम रूप में होती हैं। घर से बच्चा नया-नया निकलता है इसीलिए खुले आकाश में विचरण का आनंद ही कुछ और होता है। कल्पनाओं की ऊँची उड़ान, चाहतों का अनंत सागर, अंतहीन इच्छाएं, महत्वाकांक्षा की मृगतृष्णा, ऐसे में कई पंछी आकाश में भटक जाते हैं तो कई अपनी मंज़िल पर भी पहुंचते हैं। यह जीवन की सबसे कठिन परीक्षा का समय भी है। बढ़ती जनसंख़्या से उपजी प्रतिस्पर्द्धाओं एवं सब को सब कुछ चाहिए, ने इसे और मुश्किल बना दिया है। आधुनिक काल में गति महत्वपूर्ण हो गयी है। खाने-पीने से लेकर सफलता, लोकप्रियता, पॉवर, पैसा तुरंत चाहिए। रातोंरात चांद पर पहुँचना है। आनंद नहीं मस्ती चाहिए। ये पूरी न होने पर अवसाद, क्रोध, पीड़ा व आक्रोश की तीव्रता भी तेज़ होती है। प्रतिशोधात्मक हिंसा में दूसरों को हानि पहुंचाने के साथ-साथ स्वयं को भुलाने व मिटाने वाली नशे की तीव्रता भी बढ़ी है। लड़कियाँ भी अब इससे बची नहीं। आज का युवा वर्ग 'स्पीड' की चपेट में है ओर वह अकेला हुआ है। मुश्किल इस बात की है कि स्वयं के जीवन के साथ-साथ समाज के जीवन की रूपरेखा भी इस युवा वर्ग के द्वारा ही खींची जाती है।
संक्षिप्त में कहें तो हॉस्टल का जीवन घटना प्रधान काल है। अति सक्रिय जीवन खंड। ये यादें जीवनपर्यंत उद्वेलित करती रहती हैं। इस उम्र की दोस्ती निश्छल और निःस्वार्थ, और शायद इसीलिए स्थायी और मज़बूत होती है। आदमी एक-दूसरे को, उसके मूल रूप में कह सकते हैं, देखता है। कोई आडम्बर नहीं, आवरण नहीं। यही कारण है जो ये रिश्ते सरल और सहज होते हैं।
इस क्रियाशील कालखंड पर आधारित उपन्यास 'हॉस्टल के पन्नों से' लिखने के लिए सहपाठियों ने मुझे प्रेरित किया था। इस दौरान कॉलेज के न जाने कितने साथियों ने मदद की। मैंने भी इसका भरपूर आनंद उठाया। पुरानी यादों को ताजा करते ही जीवन ठहर जाता है और आप अपने आपसे तर्क-वितर्क करने लग पड़ते हैं। समय इस पर धूल की मोटी परत ज़मा देता है जिसे हटाने पर चित्र धुंधले पड़ जाते हैं। यह कभी मन को कचोटती है तो कभी ठंडी हवा के झोंकों-सी निकल जाती है और दे जाती है एक मुस्कुराहट। कहीं-कहीं आँसू के बूंद भी, जिनकी अपनी कहानी है। मैं दोस्तों का शुक्रगुजार तो नहीं हो सकता क्योंकि यह हमारे अपरिभाषित प्रेमपूर्वक संबंधों में रुकावट पैदा करेगा। और फिर इसी बहाने वे स्वयं भी पीछे मुड़कर, अपने सुनहरे पलों को एक बार फिर देख पाए होंगे, यह क्या कम है? कइयों ने रुककर पुराने दिनों को याद किया। अधिकांश के चेहरे पर गर्व था तो कुछ एक ने पश्चाताप के भाव को दबाया होगा। कुछ एक के मन में ख़्याल आया होगा कि काश! वो ये कर पाते...। मगर जीवन की गाड़ी में बैक गियर नहीं होता। भूतकाल मिटाया नहीं जा सकता। कुछ यादगार लम्हें स्वर्णिम अक्षरों से अंकित होते हैं तो कुछेक से इंसान सदैव पीछा छुड़ाने के चक्कर में रहता है। लेकिन यह हॉस्टल के पन्नें जो एक बार लिख दिए गए, सिर्फ़ पढ़े जा सकते हैं। उन्हें ठीक नहीं किया जा सकता। हाँ, आने वाली पीढ़ी इसमें से अपने रास्ते ज़रूर चुन सकती है।
युवा वर्ग मूल रूप से विद्रोही होता है। पारंपरिक व्यवस्था का विरोध उसका नैसर्गिक स्वभाव बन जाता है। वो स्वयं परिवर्तन का प्रतीक है और उसका माध्यम और कारक दोनों बनने के लिए उत्साही रहता है। उसके विद्रोह को दिशा न दी जाए तो वो विध्वंसकारी और आत्मघाती भी हो सकता है। प्रोत्साहित न किया जाए तो निष्क्रिय भी हो सकता हैं लेकिन इसी विद्रोह की ऊर्जा को क्रांति में परिवर्तन करने के लिए विचार, नेतृत्व और प्रेरणा की आवश्यकता होती है।
आज भारतीय समाज संक्रमण काल से गुज़र रहा है। सपने और हक़ीक़त के बीच खाई गहरी हुई है। असंतोष अपने चरम पर है। व्यवस्था की जड़ता युवाओं को तंग करती है तो तथाकथित विकास जनित परिवर्तन उसे भ्रमित कर रहा है। उसका मौन मुखर नहीं हो पा रहा और वो कुंठित होकर भटक रहा है। नयी पीढ़ी को उच्छृंखलता व संस्कारविहीन करार देने वाली पुरानी पीढ़ी इसके लिए ख़ुद ज़िम्मेदार हैं। समय का कालखंड तोप के मुहाने पर बैठा है। ज़रा-सी चूक सर्वनाश कर देगी। हमें एक संपूर्ण क्रांति की आवश्यकता है और वो युवा वर्ग ही ला सकता है। ऐसे में अनुभवी लोगों को आगे आना होगा। अगली पीढ़ी के पास पहुँचना होगा। उन्हें रास्ता और मंजिल दोनों दिखाना होगा। और फिर बुजुर्गों को इन्हीं रास्तों पर प्रकाश की व्यवस्था करनी चाहिए। उन्हें हर मोड़ पर साइनबोर्ड बनकर लटक जाना चाहिए। ये उनका कर्तव्य है और शायद अधिकार क्षेत्र भी।

यह लेख मनोज सिंह द्वारा लिखा गया है.मनोजसिंह ,कवि ,कहानीकार ,उपन्यासकार एवं स्तंभकार के रूप में प्रसिद्ध है .आपकी'चंद्रिकोत्त्सव ,बंधन ,कशमकश और 'व्यक्तित्व का प्रभाव' आदि पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है.

COMMENTS

Leave a Reply: 1
  1. ..."युवा वर्ग मूल रूप से विद्रोही होता है। पारंपरिक व्यवस्था का विरोध उसका नैसर्गिक स्वभाव बन जाता है..."------क्या यह एक स्थापित सत्य है, नही, यह दोषारोपण है पाश्चात्य प्रभाव में, अव्यवस्था का विरोध युवा अवश्य ही करते हैं व करना चाहिये, सुव्यवस्था का नहीं...विद्रोह का अर्थ कुव्यवस्था व अव्यवस्था का विरोध होता है ।
    ----आश्रमो के पुनर्मूल्यान्कन की आवश्यकता नहीं....आप जो युवाओं की बात कह रहे हैं वह अन्ग्रेज़ी -मुगल काल की है( जो सान्स्क्रिति भ्रष्टता का काल था)--वास्तव में पुरा-काल में विध्या अध्ययन काल, आज के समान ही लम्बा होता था, अन्तेवासी- गुरुकुल, आज के विश्वविध्यालय व होस्टल की भान्ति थे...उस समय भी वि वि क्षात्र राजनीति में भाग लेते थे....बस अन्तर सदाचरण के पालन का था जो आज विदेशी नकल के कारण कदाचरण में बदल गया है.....
    ----आज भी चारों आश्रमों की उतनी ही संदर्भिता है....हां आपने यह सच कहा कि बुज़ुर्गों को प्रकाश दिखाना चाहिये न कि युवाओं के साथ प्रवाह में बह जाना ....

    जवाब देंहटाएं
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ हमें उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !
टिप्पणी के सामान्य नियम -
१. अपनी टिप्पणी में सभ्य भाषा का प्रयोग करें .
२. किसी की भावनाओं को आहत करने वाली टिप्पणी न करें .
३. अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .

नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,37,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",7,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,4,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,8,आषाढ़ का एक दिन,22,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,5,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,19,कमलेश्वर,7,कविता,1480,कहानी लेखन हिंदी,17,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,6,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,40,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,3,केदारनाथ अग्रवाल,4,केशवदास,6,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,53,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,140,गजानन माधव "मुक्तिबोध",15,गीतांजलि,1,गोदान,7,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,3,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,6,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,35,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,77,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,7,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,28,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,4,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,12,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,25,नाटक,1,निराला,39,निर्मल वर्मा,4,निर्मला,42,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,202,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,142,प्रयोजनमूलक हिंदी,38,प्रेमचंद,50,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,88,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,8,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,9,भक्ति साहित्य,143,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,18,भीष्म साहनी,9,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,10,मलिक मुहम्मद जायसी,9,महादेवी वर्मा,20,महावीरप्रसाद द्विवेदी,3,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,14,मैला आँचल,8,मोहन राकेश,16,यशपाल,19,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,6,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,21,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,3,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,9,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,4,लघु कथा,125,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,34,विद्यापति,8,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,3,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,8,शमशेर बहादुर सिंह,6,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,6,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,57,शैलेश मटियानी,3,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,4,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,34,सआदत हसन मंटो,10,सतरंगी बातें,33,सन्देश,44,समसामयिक हिंदी लेख,271,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,22,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,88,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",10,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,23,सूरदास,16,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,11,हजारी प्रसाद द्विवेदी,4,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,438,हिंदी लेख,537,हिंदी व्यंग्य लेख,14,हिंदी समाचार,188,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,91,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aapka-banti-mannu-bhandari,6,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,chitra-varnan-hindi,3,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,divya-upanyas-yashpal,5,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,12,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,20,hindi essay,430,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,105,hindi stories,682,hindi-bal-ram-katha,12,hindi-gadya-sahitya,8,hindi-kavita-ki-vyakhya,19,hindi-notes-university-exams,79,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,24,kavyagat-visheshta,26,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,12,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,raag-darbari-shrilal-shukla,8,rangbhumi-upanyas-munshi-premchand,2,Rimjhim Class 3,14,samvad-lekhan-in-hindi,6,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,skandagupta-natak-jaishankar-prasad,6,sponsored news,10,suraj-ka-satvan-ghoda-dharmveer-bharti,6,Syllabus,7,tamas-upanyas-bhisham-sahni,4,top-classic-hindi-stories,59,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: हॉस्टल के पन्नों से - विचार मंथन
हॉस्टल के पन्नों से - विचार मंथन
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6EXgFyNjIQ9WjW-TDxbp05_wDvAn2glXBS77pkKljOnR_DexzTyQGwoeEba2xbO2xpGkYMZM6Zl779daPA4iPkfhw1pTNTEnDfOk1PwlovJ5op2gyB3lJQJwgNwdm4r8cI_rhNs5JdsGo/s200/manoj+photo.JPG
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6EXgFyNjIQ9WjW-TDxbp05_wDvAn2glXBS77pkKljOnR_DexzTyQGwoeEba2xbO2xpGkYMZM6Zl779daPA4iPkfhw1pTNTEnDfOk1PwlovJ5op2gyB3lJQJwgNwdm4r8cI_rhNs5JdsGo/s72-c/manoj+photo.JPG
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2011/01/vichar-manthan.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2011/01/vichar-manthan.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका