गतांक से आगे ... डॉ.रामविलास शर्मा सन् 1958 में, मेरा दूसरा स्केच-संग्रह / लघुकथा-संग्रह ‘विकृतियाँ’ प्रकाशित हुआ और सन् 1962 में नवा...
गतांक से आगे ...
डॉ.रामविलास शर्मा |
सन् 1958 में, मेरा दूसरा स्केच-संग्रह / लघुकथा-संग्रह ‘विकृतियाँ’ प्रकाशित हुआ और सन् 1962 में नवाँ कविता-संग्रह ‘जिजीविषा’। इन पर भी उनकी प्रतिक्रियाएँ प्राप्त हुईं :
30 नयी राजामंडी, आगरा / दि. 27-12-62
प्रिय भाई,
तुम्हारी प्रकृति-संबंधी कविताएँ मुझे बहुत अच्छी लगीं।
स्केच बहुत सुन्दर हैं। ख़ूब गद्य लिखो। अच्छे यथार्थवादी गद्य की बड़ी कमी है।
इधर समय न मिल पाने से आलोचना नहीं लिख पाता।
आशा है, प्रसन्न हो।
तु.
रामविलास शर्मा
फिर, सन् 1968 में मेरी कविताओं के अंग्रेज़ी-अनुवादों का एक विशिष्ट संकलन ‘Forty Poems Of Mahendra Bhatnagar’ प्रकाश में आया। डा. रामविलास शर्मा जी तो अंग्रेज़ी के प्रोफ़ेसर रहे। उन्हें यह संकलन भी प्रेषित किया। इस पर उनके विचार प्राप्त हुए :
30 नयी राजामंडी, आगरा / दि. 13-3-68
प्रिय भाई,
‘Forty Poems’ की प्रति मिली। आपका 8/3 का कार्ड भी। पुस्तक का मुद्रण नयनाभिराम, कविताएँ युग चेतना और कवि-व्यक्तित्व का प्रतिबिम्ब, अनुवाद सरल और सुबोध हैं।
आशा है, प्रसन्न हैं।
आपका,
रामविलास शर्मा
सन् 1977 में बारहवाँ कविता-संग्रह ‘संकल्प’ निकला। इसे देख कर भी उन्होंने अपनी प्रसन्नता व्यक्त की दि. 5-4-77
प्रिय डा. महेन्द्रभटनागर,
आपका कार्ड मिला, कविता-पुस्तिका भी।
आप निरन्तर कविता लिखते जा रहे हैं, यह प्रसन्नता की बात है। पुस्तिका प्रकाशन पर बधाई। उसे भेजने के लिए धन्यवाद।
आशा है, आप सदा की भाँति स्वस्थ और प्रसन्न होंगे।
आपका,
रामविलास शर्मा
सन् 1980 में रामविलास जी को अपने महाविद्यालय ‘कमलाराजा कन्या महाविद्यालय’, ग्वालियर में आमंत्रित किया। अपने पत्र के साथ प्राचार्य श्रीमती रमोला चैधरी का पत्र भी भेजा। पर, रामविलास शर्मा जी पारिवारिक कारणों से न आ सके :
दि. 5-12-80
प्रिय भाई,
बहुत दिनों बाद आपका पत्र पाकर मन प्रसन्न हुआ।
मेरी पत्नी अस्वस्थ रहती हैं। इस कारण कई वर्ष से यात्रा कार्य बंद है। आपसे मिल कर सुख पाता, पर यह सम्भव नहीं है।
आप प्राचार्य जी को मेरी विवशता बता दें।
सस्नेह,
रामविलास शर्मा
फिर, डा. रामविलास शर्मा जी नई दिल्ली रहने लगे। सन् 1986 में अपनी प्रतिनिधि कविताओं के संकलन के संदर्भ में रामविलास जी को लिखा; इस उम्मीद से कि उनके माध्यम से कोई प्रकाशक मिल जाए; ‘राजकमल’ या कोई और। ‘ताशकंद विश्वविद्यालय’ संबंधी सूचना भी उन्हें दी। उत्तर में डा. रामविलास जी ने लिखा:
नई दिल्ली / दि. 22-12-86
प्रिय डा. महेन्द्र,
महेंद्र भटनागर |
आपने ठीक लिखा है, कविता-संग्रहों के नये संस्करण छापने को प्रकाशक तैयार नहीं होते। कविता-संग्रह ही नहीं, गद्य पुस्तकों के नये संस्करणों के प्रति भी वे उदासीन रहते हैं। ‘निराला की साहित्य साधना’ (3) का पहला संस्करण तीन साल पहले समाप्त हो गया था। नया संस्करण अभी तक नहीं निकला। इससे आप कल्पना करलें, ‘राजकमल’ पर मेरा प्रभाव कितना होगा। आप अपनी प्रतिनिधि कविताओं के संकलन के बारे में सीधे उनसे बातें करें।
ताशकंद में आप कार्य करने नहीं जा सके, खेद की बात है। सोवियत संघ के लोगों से मेरा कोई सम्पर्क नहीं है। इस दिशा में शायद डा. नामवर सिंह कुछ कर सकें।
शेष कुशल।
सप्रेम,
रामविलास शर्मा
समय तेज़ी से गुज़रता गया। रामविलास जी 86 वर्ष के हुए; मैंने 73 वें में प्रवेश किया।
सन् 1997 में, पंद्रहवाँ कविता-संग्रह ‘आहत युग’ निकला। रामविलास जी को देर - सवेर से प्रेषित किया। काँपते हाथों से लिखा उनका पत्र मिला:
दि. 3-12-96
प्रिय महेन्द्र जी,
आपने ‘आहत युग’ छापी है, जान कर प्रसन्नता हुई।
आपने 72 पार किये; मैंने 86 पार किये।
शुभकामना सहित,
रा.वि. शर्मा
किसी-न-किसी बहाने डा. रामविलास जी से जुड़ा रहा। उन्होंने भी बराबर मेरा ध्यान रखा। उनका प्रेम मेरे साहित्यिक जीवन का सम्बल है। वे शुरू से ही मुझे ‘महेन्द्र’ कहते रहे। इस पीढ़ी के अन्य घनिष्ठ अग्रज साहित्यकारों ने भी; यथा श्री जगननाथ प्रसाद मिलिन्द, डा. हरिहरनिवास द्विवेदी, डा. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’, डा. नगेन्द्र, डा. प्रभाकर माचवे आदि ने सदैव ‘महेन्द्र’ ही कह कर पुकारा। ‘महेन्द्र’ अधिक आत्मीयता बोधक है। ऐसी आत्मीयता अब तो विरल है। ‘महेन्द्र’ कह कर पुकारने वाले मेरे जीते-जी अधिक-से अधिक बने रहें; ऐसी अभिलाषा, जब-तब जाग उठती है !
***समाप्त***
दो व्यक्तित्वों से परिचित करवाता एक भावपूर्ण आलेख !!!
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