राष्ट्रीय भावना की कमी/विचार मंथन

SHARE:

राष्ट्रीय भावना की कमी

मनोज सिंह 
भारतीय उपमहाद्वीप, अर्थात विश्व की प्राचीनतम सभ्यता। एक राष्ट्र के रूप में हमारा इतिहास बेशक लंबा रहा हो मगर उसका रूप-स्वरूप सदा बदलता रहा, जो हमारी प्रवृत्तियों और कमजोरियों को बखूबी प्रदर्शित करता है। यही नहीं, हमारे भूतकाल का बड़ा कालखंड गुलामी में बीता। दुनिया की शायद ही कोई मनुष्य प्रजाति रही हो जिसने यहां आकर लूट-खसोट और अधिकार जमाते हुए हम पर शासन न किया हो। और हम विभिन्न विदेशी शासकों के अधीन खुशी-खुशी सालों-साल शासित रहे। कह सकते हैं कि इस दौरान हम गुलाम रहने के आदी बन चुके थे। यह धीरे से कब हमारा स्वभाव बन गया हमें पता ही नहीं चला। हमारी संस्कृति में भी शासकों के रंग घुलते-मिलते चले गये। हमारी अति प्राचीन वर्ण-व्यवस्था एवं जातिप्रथा में भी शासक-शासित की बू आती है। सच पूछा जाये तो अब हम एक ऐसी भीड़ में रूपांतरित हो चुके हैं जो समय-काल में धीरे-धीरे काफी हद तक स्वकेंद्रित व स्वार्थी हो चुकी है। इसका परिणाम यह हुआ कि हम बाहर के व्यक्ति से अपनी आत्मसुरक्षा के नाम पर भी संघर्ष नहीं करते, उलटा उसका स्वागत करते हैं, लेकिन आपस में वर्चस्व की लड़ाई खूब लड़ते हैं। हम अपने ही घर में ताल ठोंकते रहते हैं और एक-दूसरे को देख सीना फूलाने में कसर नहीं छोड़ते। फलस्वरूप हम पर शासन करना बहुत आसान है। हमने अपनी इन कमजोरियों को छिपाने के लिए अनेक शब्दों का आविष्कार किया, कई नई परिभाषाएं रचीं और उनके विशिष्ट अर्थों से स्वयं को अलंकृत किया। सांस्कृतिक, साहित्यिक, धार्मिक-जामा पहनाते हुए दर्शनशास्त्र की नयी-नयी विभिन्न विचारधाराओं से सुशोभित भी कर दिया लेकिन यह हमें किस हद तक नुकसान पहुंचा सकता है, हमें स्वयं नहीं पता। और अगर पता चल भी जाये तो हम अनजान बन जाते हैं। आज यह हमारे अस्तित्व के लिए चुनौती बन चुका है। इसने हमारे अंदर के स्वाभिमान को भी तोड़ा है, मरोड़ा है। हमें कोई एक थप्पड़ मारे तो हम दूसरा थप्पड़ खाने के लिए तैयार रहने की बात तक करते हैं। यह किसी विशिष्ट संदर्भ में तो उचित हो सकता है मगर हमने इसे एक विचारधारा के रूप में पूरे समाज पर थोप देने का प्रयास किया। सच तो यह है कि ऐसा कोई उदाहरण प्रकृति में भी दिखाई नहीं देता। यहां भी अस्तित्व की लड़ाई हर जीवित प्राणी को लड़नी पड़ती है। 
सहअस्तित्व सफल केवल आपसी सामंजस्य से हो सकता है, यह एकतरफा समर्पण से संभव नहीं। कमजोरी से तो कदापि नहीं। समर्पित, हारा हुआ या कमजोर कभी बराबरी नहीं कर सकता। वो अधिकारपूर्वक मांग नहीं कर सकता। उसे मात्र भीख मिल सकती है। उसे दोयम दर्जे का नागरिक कहा जाता है। दया व क्षमा शब्द सामर्थ्यशाली पर ही सुशोभित होते हैं वरना व्यक्ति स्वयं दया का पात्र बनकर रह जाता है। जीवन के इन मूल तथ्यों को हम नजरअंदाज तो कर सकते हैं मगर झुठला नहीं सकते। एक तरफ मानवीय इतिहास हिंसा से भरा हुआ है तो दूसरी तरफ इसे रोकने की तमाम बातें जरूर की जाती हैं, जो कभी पूरी तरह सफल हुई नहीं। क्या किया जाये? मनुष्य के स्वभाव का? यूं तो प्रकृति का संपूर्ण रचना-संसार भी कहीं न कहीं हिंसा पर निर्भर है। मगर सीमाओं में। बात है हिंसा में निहित मायनो, अर्थों व उद्देश्यों को समझने की। कहने को तो मानवीय विकासक्रम में, सामाजिकता के लिए अहिंसक होना आवश्यक है मगर वास्तविकता के धरातल पर यह दिखाई नहीं देता। मानव ने शारीरिक ही नहीं मानसिक हिंसा भी खूब कर रखी है। जो आज भी कई तरह से जारी है। चतुर-चालाक की दुनिया में स्वार्थवश की गयी हिंसा और आत्मसुरक्षा के लिए की गयी हिंसा के बीच लक्ष्मण-रेखा खींचना आसान नहीं। यहां शक्ति के बिना शासन नहीं। और मानव जाति बिना शासन व्यवस्था के समाज की परिकल्पना भी नहीं कर सकती। ऐसी परिस्थितियों के बीच भी हम शासित बने रहने के लिए तत्पर प्रतीत होते हैं। जबकि स्वाभिमान से समझौता कभी भी सराहा नहीं जा सकता। कमजोर हमेशा हंसी का पात्र बनता है। दुनिया में ऐसे लोगों की बहुत कमी है जो हमारे जैसी सोच रखते हैं। साहित्यिक प्रशंसा एवं मात्र वाहवाही के लिए कहने-सुनने और असल जीवन में इसे स्वीकार करके ढालने में फर्क होता है। यह सत्य है कि अति चाहे फिर हिंसा से हो या कायरता की, दुःख देती है। मगर यहां प्रश्न उठता है कि क्या विश्व इतिहास में व्यवस्था के नाम पर शासक की हिंसा को हमेशा जायज नहीं ठहराया गया? समय-समय पर विरोध भी हुये, परिवर्तन भी हुए। मगर क्या नये शासकों को भी हिंसा का सहारा लेना नहीं पड़ा? मगर हम यहां भी भिन्न हैं। यूं तो हमारे ऊपर की गयी ज्यादतियों का विरोध, अंग्रेजी शासनकाल के अतिरिक्त, कहीं पढ़ने-सुनने में भी नहीं आता, ऊपर से जो छिटपुट घटनाएं घटी भी हैं, उन्हें हम इतिहास के पन्नों से गायब करने में अपनी कुशलता का परिचय देने में लगे रहते हैं। हम अपने पुराने क्रूर शासकों के असली रूप को दिखाने में आज भी हिचकिचाते हैं। उलटा धीरे-धीरे उन्हें महिमामंडित करने में प्रयासरत प्रतीत होते हैं। हमारे यहां ऐसे उदाहरण भी कम नहीं जहां सत्‌कर्मी शासक को हमारे ही छल-कपट के कारण सत्ताविहीन होना पड़ा। मजेदारी तो यह देखकर होती है कि हम अपनी इन तमाम ऐतिहासिक असफलताओं को खूबसूरत मोड़ देकर, सीना चौड़ाये खुले में घूमते हैं।
उस समाज का कुछ नहीं हो सकता, जहां बुद्धिजीवी उपरोक्त विचारधारा को पालने में सहायक हों। हद तो तब हो जाती है जब हम दूसरे की दृष्टि से सब कुछ देखते हैं। दूसरों का सम्मान एवं अतिथि-सत्कार किस संस्कृति में नहीं है? लेकिन बाहरी आपके घर में घुसकर मालिक बन जाये यह किसी को स्वीकार्य नहीं। मगर हम इसे भी सहर्ष स्वीकार करते हैं। और फिर इसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश भी करते हैं। हमारी मानसिकता में इतनी कमजोरी है कि राष्ट्र-प्रेम और समाज-प्रेम से प्रेरित लोगों को इतना गुमराह कर दिया जाता है कि कई बार तो उन्हें भी अपनी सोच पर भ्रम होने लगता है। अपनी सभ्यता व संस्कृति की बात करना साम्प्रदायिक घोषित कर दिया जाता है जबकि दूसरे की कट्टरता और चालाकी को नजरअंदाज किया जाता है। इस तरह हमने अपने आपको पूरी तरह लाचार और कमजोर बना लिया है। चूंकि दुनिया इतनी सीधी और सरल नहीं है इसलिए इसका भुगतान भी हम करते रहे हैं। बहरहाल, ऐसी सोच अब हमारी आदत में शुमार हो चुकी है। किसी शहर में बड़े से बड़ा हादसा हो जाने के दूसरे दिन शहर की उन्हीं गलियों से भीड़ जब सब कुछ भुलाकर अपने स्वार्थ में पुरानी घटनाओं को रौंदती हुई निकलती है तो हमारे समाचारपत्र, मीडिया, राजनेता, लेखक, जय-जयकार करने लग उठते हैं। कहा जाता है कि देखिये जिंदगी रुकी नहीं। अरे, जिंदगी तो वैसे भी नहीं रुकती! उलटे यह इस बात को दर्शाता है कि हम कितने असंवेदनशील हैं। अपनो की बेवक्त बेवजह मौत पर दो पल आंसू भी नहीं बहाते, चिंता नहीं करते। हमारा समाज के प्रति कोई उत्तरदायित्व नहीं। हमारे साथ कुछ भी हो जाये हमें क्रोध नहीं आता। आक्रोश नहीं पनपता। और अगर आता भी है तो क्षणिक होता है, जो क्रिकेट के खेल की तरह हार-जीत के कुछ समय बाद ही खत्म भी हो जाता है। हम कागजी ही नहीं घर के एक-मिनटी शेर हैं। हमारे शहरों की भीड़ को देखकर कई बार प्रश्न उठता है कि हम किस तरह जीने के लिए पैदा हुए हैं? फिर भी हमें कुछ भी कहने का हक नहीं क्योंकि हमें हर काल में ऐसा न करने के लिए न जाने किस-किस तरह से गुमराह किया गया है। 
हमें विचारधाराओं से, शब्दों से, जीवनशैली से, सोचने की क्षमता से, इस तरह नियंत्रित कर दिया गया है कि हम अपना हित भी नहीं सोच पाते। हम वैचारिक रूप से पूरी तरह खोखले और सांस्कृतिक रूप से पंगु बन चुके हैं। जहां प्रजातंत्र के नाम पर शब्दों के साथ खेलते हुए हम रोज बेवकूफ बनाये जाते हैं, पग-पग प्रताड़ित होते हैं। हमें एक जागरूक और सफल प्रजातंत्र कहा जाता है और जनता की वाहवाही की जाती है। जबकि यह एक कुटिल शब्दों के साथ खेलने के समान है। असल में हमें जो शासक मिलते हैं उसके लिए हम ही जिम्मेवार हैं। उस देश का क्या हो सकता है जिस देश का एक बहुत बड़ा हिस्सा अपने पांच साल का राजनीतिक अधिकार मात्र चंद नोटों या शराब की बोतल या फिर धर्म-जाति के नाम पर डालकर किसी एक ऐसे व्यक्ति को सौंप देता है जो बाद में हमारा शोषण करना जानता है। उसे इस बात का अहसास नहीं कि अगर वो ढंग से राजनीतिक कर्तव्य का पालन करे तो उसका सामाजिक जीवन सम्मानपूर्वक हो सकता है। मगर उस संस्कृति का क्या किया जाये जो सिर्फ वर्तमान में जीती है। पहले बाहर के लोग हमें बांटकर हमारे ऊपर अपना वर्चस्व बनाये रखते थे अब हमारे अपने ही हमें रोज बांटते रहते हैं और हम समझ नहीं पाते। हमें इतना कमजोर कर दिया गया है कि हमारे सारे नैसर्गिक अधिकारों को पहले छीन लिया जाता है, हमें फटेहाल भूख से तड़पाया जाता है और फिर चंद टुकड़ों को डालकर हम पर दया दिखाई जाती है। और यह अहसास कराया जाता है कि आपके लिए कितना कुछ करने के लिए व्यवस्था आतुर है। मगर इसके लिए कौन दोषी हैं? हम स्वयं। सच तो यह है कि महाभारत में भी पांडवों को आत्मसम्मान और अधिकार के लिए लड़ना पड़ा था, नहीं तो सदियों तक दुर्योधन के अत्याचार को भोगना पड़ता। गुलाम रहना पड़ता। राम को भी रावण से युद्ध करना पड़ा था। राक्षसी प्रवृत्तियां समर्पण की भाषा नहीं जानती। आधुनिक युग में रावण के मायावी रूप में फंसना हमारी कमजोरी ही प्रदर्शित करता है। 
यह लेख मनोज सिंह द्वारा लिखा गया है.मनोजसिंह ,कवि ,कहानीकार ,उपन्यासकार एवं स्तंभकार के रूप में प्रसिद्ध है .आपकी'चंद्रिकोत्त्सव ,बंधन ,कशमकश और 'व्यक्तित्व का प्रभावआदि पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है.

COMMENTS

Leave a Reply: 1
  1. - वह कौन था? - अनिल धामा ”यश बादल“

    वह देखने में कैसा लगता था, बताना मुश्किल है, लेकिन इतना जरूर कह सकता हूँ कि वह काफी उदास और परेशान था।

    मैंने इंसान होने के नाते पूछ लिया क्या हुआ? बड़े परेशान दिखाई दे रहे हो। क्या मैं आप की कोई सहायता कर सकता हूँ?

    ‘हाँ, मैं उसके लिए काफी परेशान हूँ। जाने उस पर क्या बीत रही होगी...जाने वो कैसे हाल में होगी...’ उसने एक लम्बी सांस छोड़ते हुए कहा।

    ‘वो..वो कौन?’

    ‘वो जिससे मेरा विवाह होने वाला था। मैं उससे बहुत महौब्बत करता था और वह में मुझे दिलों-जान से चाहती थी।’ वह अपनी लवस्टोरी सुनाए चला जा रहा था और मुझे भी उसकी लवस्टोरी में आनंद आ रहा था।

    ‘उसके बाद क्या हुआ?’ मैं उसकी प्रेम कहानी आगे सुनने को बेचैन था।

    ‘फिर... उसके माता-पिता नहीं माने। लेकिन हम एक-दूसरे के बिना नहीं रह सकते थे। एक दिन सुना कि उसके माता-पिता ने ज़बरदस्ती उसका विवाह दूसरी जगह पक्का कर दिया।’

    ‘फिर?’

    ‘मैंने उससे मिलने के लिए दिन-रात एक कर दिए, लेकिन...’
    ‘लेकिन क्या.....‘ मैंने पूछा।

    ‘लेकिन मैं उससे मिल नहीं पाया।’ उसने गहरी साँस छोडते हुए कहा, ‘और मैंने खुदखुशी कर ली।’

    ‘...खुदखुशी....पर तुम तो....’

    ‘अब मैं जीवित नहीं हूँ।’
    ‘क् क्या..मेरी उत्सुकता डर में तब्दील गई थी।’

    ‘घबराओ मत, मैं तुम्हें किसी प्रकार की हानि नहीं पहुँचाऊंगा। बस तुम मेरी ज़रा-सी सहायता कर दो।’

    ‘हाँ बोलो’ मैंने राहत की साँस ली।

    ‘मैं उससे आज भी बहुत-अधिक प्रेम करता हूँ, उसका प्रेम ही मुझे इस रूप में भी यहाँ खींच लाया है। मैं बस यह जानना चाहता हूँ कि वो ठीक तो है! कहीं मेरे मरने की ख़बर सुनकर उसने भी ....और मेरे माता-पिता... क्या तुम मेरी सहायता करोगे?’

    ‘‘अरे आज इतनी देर तक सो रहा है! उठ चाय-नाश्ता तैयार है।’’ किचिन से मम्मी के तीखे स्वर ने मेरी आंखें खोल दीं।

    ‘ओह, आया मम्मी!’ मुझे उस दूसरी दुनिया के उस प्राणी से अपनी बातचीत अधूरी रह जाने का खेद था। काश! मम्मी ने 10 मिनट बाद जगाया होता तो कम से कम उसे इतना तो बता देता कि - ‘हे भाई, बेवजह टेंशन ले रहे हो। यहाँ सब ठीक ही होंगे. तुम्हारे माता-पिता भी ठीक-ठाक होंगे। और उसने भी तुम्हें भुला दिया होगा। क्योंकि तुम्हें पता होना चाहिए कि शादी के पश्चात औरत का एक तरह से दूसरा जन्म ही होता है। और वैसे भी हम धरती के प्राणी मृत प्राणी को याद नहीं करते हैं, क्योंकि मरे हुओं को याद करना अपशकुन समझते हैं। और भूले से भी अपने या उसके घर न चले जाना। जिनके लिए तुम इतने परेशान और दुःखी हो, वो ‘भूत-भूत’ चिल्लाएंगे तुम्हें देखकर और दूर भागेंगे तुमसे।’

    ‘अरे बेवकूफ, इस धरती के लोग यहीं के लोगों से प्यार निभा लें तो बहुत है! तुम तो बहुत दूर जा चुके हो।’ लेकिन मुझे अफसोस है कि ये सब बातें मैं उसे नहीं कह सका।

    जवाब देंहटाएं
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ हमें उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !
टिप्पणी के सामान्य नियम -
१. अपनी टिप्पणी में सभ्य भाषा का प्रयोग करें .
२. किसी की भावनाओं को आहत करने वाली टिप्पणी न करें .
३. अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .

नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,37,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",7,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,4,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,8,आषाढ़ का एक दिन,22,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,5,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,19,कमलेश्वर,7,कविता,1478,कहानी लेखन हिंदी,17,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,6,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,40,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,3,केदारनाथ अग्रवाल,4,केशवदास,6,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,139,गजानन माधव "मुक्तिबोध",15,गीतांजलि,1,गोदान,7,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,3,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,6,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,35,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,77,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,7,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,28,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,4,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,12,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,25,नाटक,1,निराला,39,निर्मल वर्मा,4,निर्मला,42,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,202,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,141,प्रयोजनमूलक हिंदी,38,प्रेमचंद,50,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,88,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,8,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,9,भक्ति साहित्य,143,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,18,भीष्म साहनी,9,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,10,मलिक मुहम्मद जायसी,9,महादेवी वर्मा,20,महावीरप्रसाद द्विवेदी,3,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,14,मैला आँचल,8,मोहन राकेश,16,यशपाल,19,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,6,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,21,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,3,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,9,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,4,लघु कथा,125,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,34,विद्यापति,8,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,3,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,8,शमशेर बहादुर सिंह,6,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,6,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,57,शैलेश मटियानी,3,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,4,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,34,सआदत हसन मंटो,10,सतरंगी बातें,33,सन्देश,44,समसामयिक हिंदी लेख,270,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,22,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,87,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",10,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,23,सूरदास,16,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,11,हजारी प्रसाद द्विवेदी,4,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,438,हिंदी लेख,536,हिंदी व्यंग्य लेख,14,हिंदी समाचार,186,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,91,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aapka-banti-mannu-bhandari,6,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,chitra-varnan-hindi,3,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,divya-upanyas-yashpal,5,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,12,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,20,hindi essay,430,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,105,hindi stories,682,hindi-bal-ram-katha,12,hindi-gadya-sahitya,8,hindi-kavita-ki-vyakhya,19,hindi-notes-university-exams,77,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,23,kavyagat-visheshta,26,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,12,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,raag-darbari-shrilal-shukla,8,Rimjhim Class 3,14,samvad-lekhan-in-hindi,6,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,skandagupta-natak-jaishankar-prasad,6,sponsored news,10,suraj-ka-satvan-ghoda-dharmveer-bharti,6,Syllabus,7,tamas-upanyas-bhisham-sahni,4,top-classic-hindi-stories,59,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: राष्ट्रीय भावना की कमी/विचार मंथन
राष्ट्रीय भावना की कमी/विचार मंथन
राष्ट्रीय भावना की कमी
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhDEPSdQCMYztGQ86VTNL_-RoeafWEKH36h33Q4RcIQMOi00Duski0Fl59bqj7XmR3RAug7Xb2u6U8ssa6Y8pTD2s2qAy-ztUuCfIyqP2W4acR5E5N7FDIsNO2dnDw3dHFv-yS6UiK5hHob/s200/9.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhDEPSdQCMYztGQ86VTNL_-RoeafWEKH36h33Q4RcIQMOi00Duski0Fl59bqj7XmR3RAug7Xb2u6U8ssa6Y8pTD2s2qAy-ztUuCfIyqP2W4acR5E5N7FDIsNO2dnDw3dHFv-yS6UiK5hHob/s72-c/9.jpg
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2012/05/rastriya-bhavana-ki-kami.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2012/05/rastriya-bhavana-ki-kami.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका