बाल कहानियां ,भूपेंद्र कुमार दवे,कालीन ,बच्चों की कहानियां
कालीन |
बुनकर
जाति की तुलसी नाम की एक औरत
शहर के पास एक गाँव में झोपड़ी
बनाकर रहती थी। उसकी एक प्यारी-सी
चीना नाम की बिटिया थी। तुलसी
खूब सुन्दर कालीन बुनती थी
और उसे शहर में ले जाकर बेच आती
थी। उसकी झोपड़ी के सामने हरे-भरे
फलदार पेड़ लगे थे और छोटी-सी
एक बगिया थी। हर सुबह-शाम कई
रंग-बिरंगी चिड़ियाँ उस बगिया
में आती और खेला करती थीं। जिस
दिन उसकी कालीन बिक जाती उस
दिन तुलसी चिड़ियों के लिये
चाँवल के दाने शहर से खरीद लाती
और उन्हें चुगने के लिये देती।
धीरे-धीरे तुलसी और चिड़ियों
में दोस्ती हो गई। चीना भी चिड़ियों
के साथ खेला करती थी।
होते
होते तुलसी बूढ़ी और कमजोर हो
गई। उसके लिये कालीन शहर में
ले जाकर बेचना बहुत मुश्किल
काम हो गया। तब चिड़ियों ने कहा,
‘अम्मा! आप कालीन बुनकर हमें
दे दिया करो। हम सब मिलकर उसे
शहर में ले जाकर बेच दिया करेंगे।’
तुलसी मान गई और कालीन बुनकर
झोपड़ी के बाहर फैलाकर रख देती।
चिड़िया भुर्र से उड़कर आती और
चारों कोने से कालीन पकड़कर
उड़ती हुई शहर में ले जातीं।
कालीन बिक जाने पर हर इक चिड़िया
अपनी चोंच में पैसे दबाकर उड़ती
हुई वापस झोपड़ी में आती और तुलसी
को दे देतीं।
कुछ
समय बाद तुलसी इतनी कमजोर हो
गई कि कालीन बुनना उसके लिये
कठीन हो गया। तुलसी बिस्तर
से लग गई थी। चिड़ियाँ अब खेत
से अनाज के दाने चुनकर लाकर
झोपड़ी के सामने जमा कर देती
ताकि तुलसी और चीना भूखी न रह
पावें। एक दिन चीना ने अपनी
माँ से कहा, ‘माँ! चिड़ियाँ रोज
इतनी मेहनत करती हैं और अपन
यूँ ही बैठे रहते हैं। यह मुझे
अच्छा नहीं लगता। आप मुझे कालीन
बनना सिखा दो। मैं उसे लेकर
शहर में बेच आऊँगी।’
चीना
ने कालीन बनना कुछ-कुछ सीख लिया
परन्तु वह अपनी माँ के समान
सुन्दर कालीन नहीं बना सकती
थी। फिर भी उसने एक कालीन बनाया
और उसे लेकर बेचने शहर गई। लेकिन
उसका कालीन किसी ने भी नहीं
खरीदा। शाम को बेचारी चीना
रोती-रोती वापस आ गई।
उसको
रोता देख चिड़ियों ने कारण पूछा,
तो चीना ने रोते-रोते सारी बात
उन्हें बतायी। चिड़ियों ने कहा,
‘हमे बतावो कि तुमने कैसी कालीन
बनाई है।’ चीना ने कालीन झोपड़ी
के बाहर फैलाकर रख दी। चिड़ियों
ने कहा, ‘इसे यहीं बिछे रहने
दो। हम सब मिलकर कुछ करेंगे
ताकि कालीन बिकने लायक हो जावे।’
और रात भर सारी चिड़ियों ने अपने
रंग-बिरंगी पंखों को बुनाई
करे धागे में खोंसकर सुन्दर
बनाने की कोशिश की।
भूपेंद्र कुमार दवे |
सुबह
तक कालीन बन चुकी थी। चीना ने
देखा कि कालीन पर अद्भुत बगीचा
बना था, जिसमें अनेक सुन्दर
फूल की क्यारियाँ बनी थी। कई
तरह की चिड़ियाँ उस बगीचे में
उकेरी गईं थी। चीना बड़ी खुश
हुई और अपनी माँ को जाकर बताया।
माँ से आशीर्वाद लेकर वह उस
कालीन को शहर में बेचने ले गई।
वह कालीन इतनी सुन्दर थी कि
उसको देखने भीड़ जमा हो गई। सब
लोगों ने सोचा कि इतनी सुन्दर
कालीन बहुत मँहगी होगी और इसलिये
उसे खरीदने कोई भी आगे नहीं
बढ़ा। बेचारी चीना उदास बैठी
रही।
शाम
होते होते राजा की सवारी उधर
से गुजरी। भीड़ देखकर राजा अपने
घोड़े पर से उतरा और जब पास आकर
उसने कालीन देखी तो मंत्रमुग्ध
हो उसे देखने लगा। राजा ने अपने
मंत्री से कहा, ‘इस कालीन को
एक हजार मुद्रा में खरीद लो।
यह अपने सभाकक्ष की शोभा बढ़ायेगी।’
मंत्री
ने कहा, ‘हजूर! अभी तो इतनी मुद्रायें
पास में नहीं हैं।’
‘कोई
बात नहीं,’ राजा ने कहा, ‘इस
कालीन को ले चलो और उस लड़की से
कहो कि कल वह तुम्हारे पास आकर
एक हजार मुद्रायें ले जावे।’
चीना
ने कभी सोचा नहीं था कि उसकी
कालीन इतनी ऊँची कीमत में बिक
जावेगी। उसने खुशी-खुशी वह
कालीन राजा को दे दी।
लेकिन
जब दूसरे दिन चीना राजा से मिलने
गई तो मंत्री ने देख लिया और
अलग ले जाकर कहा, ‘काहे की एक
हजार मुद्रा माँग रही हो? वह
कालीन तो एकदम बेकार थी। रात
में ही उसकी सारी चिड़ियाँ उड़
गई और फूल भी मुरझाकर बिखर गये।
तुम चुपचाप वापस चली जावो, वरना
राजा को मालूम हुआ तो वह तुम्हें
कड़ी सजा देगा।’
बेचारी चीना
मुँह लटकाये वापस आ गई। चिड़ियों
को जब ये बात मालूम हुई तो उन्होंने
कहा, ‘चीना रानी उदास मत हो।
तुम अपना बनाया एक और कालीन
झोपड़ी के बाहर बिछा दो। हम सब
मिलकर आज रात उस कालीन को सुन्दर
बना देंगे। उसे तुम कल ले जाकर
शहर में बेच आना।’
चीना
ने दूसरे दिन देखा कि चिड़ियों
ने अपने पंखों से कालीन पर घने
जंगल में ऊँचे-ऊँचे पेड़ों के
बीच एक खूँखार शेर बना दिया
था। चीना उसे लेकर शहर गई। उस
सुन्दर कालीन को देखने पहले
से भी ज्यादा भीड़ जमा हो गई।
उस दिन पुनः राजा वहाँ आ गया।
वह वास्तव में यह देखने आया
था कि अब कौनसी कालीन बजार में
आनेवाली थी। जब उसने कालीन
देखी तो उसे भी खरीदने के लिये
लालायित हो उठा। परन्तु चीना
ने कहा, ‘हे राजा! यह कालीन मैं
आपको नहीं दे सकती, क्योंकि
इस कालीन से आपकी जान को खतरा
है।’
‘ए प्यारी
बच्ची! तुम ये क्या कह रही हो?’
राजा ने कहा, ‘भला इस कालीन से
मुझे क्या खतरा है?’
चीना
ने कहा, ‘हे राजन्! कल जो कालीन
आप ले गये थे उसपर बनी सारी चिड़ियाँ
जीवित हो गई और रात में उड़ गई
थीं और सारे फूल भी मुरझा गये
थे। आप चाहें तो मंत्री से पूछ
सकते हैं कि यह बात सच है या
नहीं। इस कालीन में शेर बना
है। वह रात में चिड़ियों की तरह
उड़ेगा तो नहीं पर हो सकता है
कि वह आप पर ही हमला कर आपको
मार डाले। मैं यह कालीन आपको
नहीं दे सकती क्योंकि आप सबके
प्यारे राजा हैं।’
राजा
ने जब मंत्री की तरफ देखा तो
वह डर के मारे थर-थर काँप रहा
था। राजा ने सचाई भाँप ली और
कहा, ‘दिखता है कि कल तुम्हें
झाँसा देकर एक हजार मुद्रायें
नहीं दी गईं हैं। मैं कल और आज
के कालीन के दस हजार मुद्रायें
दूँगा और मंत्री को उसके पद
से अलग भी कर दूँगा। तुम कल मुझसे
ही आकर मिलना।’
चीना
ने कहा, ‘राजन्! मुझे आप दो हजार
मुद्रायें ही दें। शेष आठ हजार
मुद्राओं की जगह मेरी एक इच्छा
की पूर्ति करे दें, यही विनंती
है।’
‘बोलो
तुम्हारी क्या इच्छा है?’ राजा
ने पूछा।
तो
चीना ने कहा, ‘आप मंत्री को क्षमा
कर दें। इस क्षमादान को पाकर
मंत्री कभी ऐसी गलती नहीं करेंगे
क्योंकि क्षमादान में ईश्वरीय
शक्ति होती है। यह शक्ति अगर
राजा के पास आ जावे तो वह उसे
श्रेष्ठ बना देती है।’
राजा
ने चीना की बात मान ली और जब
दूसरे दिन चीना राजमहल पहुँची
तो उसने देखा की चारों ओर अद्भुत
सजावट की गई थी। उसका स्वागत
करने सारे दरबारी द्वार पर
आये और ‘रानी की जय’ से सारा
वातावरण गूँज उठा।
यह रचना भूपेंद्र कुमार दवे जी द्वारा लिखी गयी है. आप मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल से सम्बद्ध रहे हैं . आपकी कुछ कहानियाँ व कवितायें आकाशवाणी से भी प्रसारित हो चुकी है . 'बंद दरवाजे और अन्य कहानियाँ' ,'बूंद- बूंद आँसू' आदि आपकी प्रकाशित कृतियाँ है .
nice website for hindi language .
जवाब देंहटाएंSundar kahani bahot pasand aai
जवाब देंहटाएंnice
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