चित्तौड़गढ़। यथार्थ को संजोते हुए जीवन की वास्तविकता का चित्रण कर समाज की गतिशीलता को बनाये रखने का मर्म ही कहानी हैं। सूक्ष्म पर्यवेक...
चित्तौड़गढ़। यथार्थ को संजोते हुए जीवन की वास्तविकता का चित्रण कर
समाज की गतिशीलता को बनाये रखने का मर्म ही कहानी हैं। सूक्ष्म पर्यवेक्षण
क्षमता शक्ति एक कथाकार की विशेषता है और स्वयं प्रकाश इसके पर्याय बनकर
उभरे हैं। उनकी कहानियों में खास तौर पर कथा और कहन की शैली खासतौर पर
दिखती हैं। यही कारण है कि पाठक को कहानियों अपने आस-पास के परिवेश से मेल
खाती हुई अनुभव होती हैं। विलग अन्दाज की भाषा शैली के कारण स्वयं प्रकाश
पाठकों के होकर रह जाते हैं। चित्तौड़गढ़ में आयोजित समकालीन हिन्दी कथा
साहित्य एवं स्वयं प्रकाश विषयक राष्ट्रीय सेमीनार में मुख्यतः यह बात
उभरकर आयी।
दूसरे सत्र के मुख्य वक्ता युवा कवि अशोक कुमार पांडेय ने अपने
समकालीन कथा साहित्य की विभिन्न प्रवृतियों के कईं उदाहरण श्रोताओं के
सामने रखे। उन्होंने समय के साथ बदलती परिस्थितियों और संक्रमण के दौर में
भी स्वयं प्रकाश के अपने लेखन को लेकर प्रतिबद्ध बने रहने पर खुशी जाहिर
की। उन्होंने समकाल की व्याख्या करते हुए कहा कि यह सही है कि किसी भी काल
के विभिन्न संस्तर होते हैं. एक ही समय में हम आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक
सभी स्तरों पर इन संस्तरों को महसूस कर सकते हैं। लेकिन जहाँ उत्तर-आधुनिक
विमर्श इन्हें अलग-अलग करके देखते हैं वहीँ एक वामपंथी लेखक इन सबके बीच
उपस्थित अंतर्संबंध की पडताल करता है और इसीलिए उसे अपनी रचनाओं की
ब्रांडिंग नहीं करनी पडती। उसके लेखन में स्त्री, दलित, साम्प्रदायिकता,
आर्थिक शोषण सभी सहज स्वाभाविक रूप से आते हैं. स्वयं प्रकाश की कहानियाँ
इसकी गवाह हैं। उनकी दूसरी खूबी यह है कि वह पूरी तरह एशियाई ढब के
किस्सागो हैं, जिनके यहाँ स्थानीयता को भूमंडलीय में तब्दील होते देखा जा
सकता है. इस रूप में वह विमर्शों के हवाई दौर में विचार की सख्त जमीन पर
खडे महत्वपूर्ण रचनाकार हैं। सत्र की अध्यक्षता करते हुए कवि और चिंतक डाॅ.
सदाशिव श्रोत्रिय ने कहा कि कोइ भी व्यक्ति दूसरों की पीड़ा और व्यथा को
समझकर ही साहित्यकार बन सकता है और सही अर्थों में समाज को कुछ दे सकता
हैं। उन्होंने स्वयं प्रकाश के साथ भीनमाल और चित्तौड में व्यतीत दिनों पर
एक संस्मरण का वाचन किया जिसे श्रोताओं ने पर्याप्त पसंद किया। जबलपुर
विश्वविद्यालय की मोनालिसा और राजकीय महाविद्यालय मण्डफिया के प्राध्यापक
डाॅ. अखिलेश चाष्टा ने पत्रवाचन कर स्वयं प्रकाश की कहानियों का समकालीन
परिदृश्य में विश्लेषण किया। विमर्श के दौरान पार्टीशन, चैथा हादसा,
नीलकान्त का सफर जैसी कहानियों की खूब चर्चा रही। इस सत्र का संचालन माणिक
ने किया।
तीसरे सत्र के मुख्य वक्ता डॉ कामेश्वर प्रसाद सिंह ने समाकालीन
परिदृश्य में स्वयं प्रकाश की उपस्थिति का महत्त्व दर्शाते हुए कहा कि
पार्टीशन जैसी कहानी केवल साम्प्रदायिकता जैसी समस्या पर ही बात नहीं करती
अपितु संश्लिष्ट यथार्थ को सही सही खोलकर कर पाठक तक पहुंचा देती है।
उन्होंने क्या तुमने कभी कोई सरदार भिखारी देखा है? का उल्लेख करते हुए कहा
कि मध्यवर्ग का काइंयापन इस कहानी में जिस तरह निकलकर आता है वह इस एक खास
ढंग से देखने से रोकता है। इस सत्र में इग्नू दिल्ली की शोध छात्रा
रेखासिंह ने पत्र वाचन किया। अध्यक्षता कर रहे राजस्थान विद्यापीठ के
हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ मलय पानेरी ने कहा कि स्वयं प्रकाश की कहानियां
नींद से जगाने के साथ आँखें खोल देने का काम भी करती हैं। उन्होंने स्वयं
प्रकाश की एक अल्पचर्चित कहानी ढलान पर का उल्लेख करते हुए बताया कि अधेड
होते मनुष्य का जैसा प्रभावी चित्र इस कहानी में आया है वह दुर्लभ है। सत्र
का संचालन करते हुए डॉ रेणु व्यास ने कहा कि स्वयं प्रकाश की कहानी के
पात्रों में हमेशा पाठक भी शामिल होता है यही उनकी कहानी की ताकत होती है।
समापन सत्र में डाॅ. सत्यनारायण व्यास ने कहा कि जब तक मनुष्य और
मनुष्यता है जब तक साहित्य की आवश्यकताओं की प्रासंगिकता रहेगी। उन्होंने
कहा कि मानवता सबसे बड़ी विचारधारा है और हमें यह समझना होगा कि वामपंथी
हुए बिना भी प्रगतिशील हुआ जा सकता है। सामाजिक यथार्थ के साथ मानवीय पक्ष
स्वयं प्रकाश की कहानियों की विशेषता है एवं उनका सम्पूर्ण साहित्य, सृजन
इंसानियत के मूल्यों को बार-बार केन्द्र में लाता है। सत्र की अध्यक्षता
करते हुए प्रख्यात समालोचक प्रो. नवलकिशोर ने स्वयं प्रकाश की कहानियों के
रचना कौशल के बारीक सूत्रों को पकडते हुए उनकी के छोटी कहानी हत्या का
उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि मामूली दिखाई दे रहे दृश्य में कुछ विशिष्ट
खोज लाना और उसे विशिष्ट अंदाज में प्रस्तुत करना स्वयं प्रकाश जैसे लेखक
के लिए ही संभव है। चित्रकार और कवि रवि कुमार ने इस सत्र में कहा कि किसी
भी कहानी में विचार की अनुपस्थिति असंभव है और साहित्य व्यक्ति के अनुभव के
दायरे को बढ़ाता हैं। इस सत्र का संचालन कर रहे राजकीय महाविद्यालय
डूंगरपुर के प्राध्यापक हिमांशु पण्डया ने कहा कि गलत का प्रतिरोध प्रबलता
से करना ही स्वयं प्रकाश की कहानियों को अन्य लेखकों से अलग खड़ा करती है।
रावतभाटा के रंगकर्मी रविकुमार द्वारा निर्मित स्वयंप्रकाश की कहानियों के
खास हिस्सों पर केन्द्रित करके पोस्टर प्रदर्शनी इस सेमीनार का एक और मुख्य
आकर्षण रही। यहीं बनास जन, समयांतर, लोक संघर्ष सहित विभिन्न
पत्र-पत्रिकाओं की एक प्रदर्शनी भी लगाई गई। सेमीनार में प्रतिभागियों
द्वारा अपने अनुभव सुनाने के क्रम में विकास अग्रवाल ने स्वयंप्रकाश के साथ
बिताये अपने समय को संक्षेप में याद किया। आयोजन में गुजरात केन्द्रीय
विश्वविद्यालय के सहायक आचार्य डॉ गजेन्द्र मीणा प्रतिभागियों के प्रतिनिधि
के रूप में सेमीनार पर अपना वक्तव्य दिया। इस सत्र में विकास अग्रवाल ने
भी अपनी संक्षित टिप्पणी की। आखिर में आभार आकाशवाणी के कार्यक्रम अधिकारी
लक्ष्मण व्यास ने दिया।
आयोजन में उदयपुर विश्वविद्यालय से जुडे अध्यापकों एवं शोध छात्रों के
साथ नगर और आस-पास के अनेक साहित्य प्रेमी उपस्थित थे। आयोजन स्थल पर
चित्रकार रविकुमार द्वारा कथा-कविता पोस्टर प्रदर्शनी, ज्योतिपर्व प्रकाशन
द्वारा स्वयं प्रकाश की पुस्तकों की प्रदर्शनी एवं लघु पत्रिकाओं की
प्रदर्शनी को प्रतिभागियों ने सराहा।
डा. कनक जैन
संयोजक, राष्ट्रीय सेमीनार
म-16, हाउसिंग बोर्ड, कुम्भा नगर, चित्तौडगढ -312001
badhiya riport
जवाब देंहटाएंsodhparak aalekh swaym prakash sahab ji ko shriday naman
जवाब देंहटाएंRam Balak Roy
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