20 और 21 सितंबर 2013 को ‘‘बैरकपुर राष्ट्रगुरु सुरेन्द्रनाथ महाविद्यालय प.बं.’ में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग’ के तत्वाधान में ‘‘वैश्व...
20 और 21 सितंबर 2013 को ‘‘बैरकपुर
राष्ट्रगुरु सुरेन्द्रनाथ
महाविद्यालय प.बं.’ में विश्वविद्यालय
अनुदान आयोग’ के तत्वाधान में
‘‘वैश्वीकरण की आँधी में हिन्दी
कहानी से गायब होता मनुष्य’’
विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी
भव्यतापूर्वाक संपन्न हुई।
गोष्ठी का शुभारंभ प.बं. राज्य
विश्वविद्यालय के उपाचार्य
एवं महाविद्यालय के प्राचार्य
ने दीप प्रज्वलित करके आये
हुए विद्वान अतिथियों के स्वागत
से किया।
उद्घाटन सत्र में बीज व्याख्यान
देते हुए प्रसिद्ध कथाकार
प्रो0 काशीनाथ सिंह ने कहा कि
सच्चे अर्थों में मनुष्य आज
वैश्वीकरण के जाल में उलझा
हुआ है किन्तु उसके बाद भी वह
संघर्षरत है। उन्होंने कहा
कि जब भी कहानी में आम आदमी की
बात की जायेगी तो सर्वप्रथम
हमें प्रेमचंद याद आयेगें।
गोष्ठी के प्रथम तकनीकी
सत्र में अध्यक्ष प्रो0
ऋषभदेव शर्मा ने अपने विचार
रखे। उन्होंने कहा कि वैश्वीकरण
से लड़ने में हमारी कुटुंब संस्कृति
के मूल्य बहुत सहायता कर सकते
हैं. लोक और स्थानीयता के सहारे
वैश्वीकरण का सामना करने में
दलित, आदिवासी और महिला कथाकारों
की अग्रणी भूमिका की उन्होंने
सराहना की। हिन्दी कहानी और
दलित साहित्य के आधिकारिक विद्वान
डॉ0 बजरंग बिहारी तिवारी ने
देश की आर्थिक और राजनीतिक
व्यवस्था पर बात करते हुए हिन्दी
कहानी में गायब होते हुए आम
आदमी की पीड़ाओं को उद्घाटित
किया। काशी से आये हुए विद्वान
प्रो0 राजमणि शर्मा ने ‘विश्व
बैंक’ और ‘अंतर्राष्ट्रीय
मुद्रा कोष’ की व्यवस्था विरोधी
नीतियों पर विचार करते हुए
हिन्दी कहानी पर बहस की।
अन्य सत्रों में प.बं. राज्यविश्वविद्यालय
के हिन्दी विभाग के विभागाध्यक्ष
प्रो0 अरुण होता ने कहा कि आज
हमें अपने युवा रचनाकारों को
एक प्रेरणादायी परिवेश उपलब्ध
कराना होगा जिससे वे बाजारवाद
से लड़ सकें। महात्मा गाँधी
अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय
के क्षेत्रीय निदेशक एवं मशहूर
पत्रकार कृपाशंकर चौबे ने काशीनाथ
सिंह, ज्ञानरंजन और अखिलेश
की कहानियों के आलोक में वैश्वीकरण
की अमानुषिकता को उजागर किया।
बाँदा उ0 प्र0 से आये हुए विद्वान
डॉ0 देवलाल मौर्य ने कहा कि समूचे
साहित्य और समाज के सामने बाजार
सुरसा की तरह मुँह बाये खड़ा
है। इस दृष्टि से उन्होंने
काशीनाथ सिंह जी की कहानी ‘कौन
ठगवा नगरिया लूटल हो’ को एक
महत्वपूर्ण कहानी बताया।
‘लेखक से मिलिए’ कार्यक्रम
में वरिष्ठ कथाकार डॉ0 काशीनाथ
सिंह ने सुधी श्रोताओं के शताधिक
प्रश्नों का उत्तर देते हुए
साहित्य के प्रति उनकी संवेदनाओं
को सराहा।
संगोष्ठी के समापन सत्र
में मुख्य अतिथि के रूप में
संबोधित करते हुए प्रो0 ऋषभदेव
शर्मा ने कहा कि संतोष का विषय
है कि भारतीय भाषाओँ का साहित्य
वैश्वीकरण और बाजार के प्रतिपक्ष
में खड़ा हुआ है। समापन सत्र
के अध्यक्ष प्रो0 अरुण होता
ने कहा कि भारतीय कहानी में
पहाड़ी जीवन के ऊपर लिखी गयी
कहानियाँ उस संवेदना से परिचित
कराती है जो आज भी आम आदमी में
बची हुई हैं।
विभिन्न सत्रों का संचालन
प्रो0 अरुण होता, डॉ0 नीरज शर्मा,
डॉ0 रमा मिश्र, डॉ0 विवेक साव,
श्रीपर्णा तरफदार और काजू कुमारी
साव ने किया। धन्यवाद प्रस्ताव
में डॉ. नीरज शर्मा ने सुदूर
अंचलों से आये हुए गणमान्य
विद्वानों को साधुवाद देते
हुए कहा कि उन्होंने अपने लोकोन्मुखी
चिंतन से राष्ट्रीय संगोष्ठी
को ऊर्जावान बनाया।
-प्रस्तुति : डॉ. नीरज
शर्मा, बैरकपुर (पश्चिम बंगाल)
आज कहानियों से आम आदमी गायब होता जा रहा है, मैं कहना चाहूंगा कि यह पूरा सच नहीं है। सच तो यह है कि आज कहानियों से आदमी ही गायब हो गया नजर आता है। कहानियों में आदमी की शक्ल में यदि कोई नजर आता भी है तो या तो वह पूंजी और बाजार का कोई प्रतिरूप होता है, जो दुनिया की हर चीज को खरीदने या बेचने निकला है क्योंकि ऐसा करके ही वह स्वयं को दुनिया का नियंता साबित कर सकता है; या फिर वह पूंजी और बाजार के इस प्रतिरूप के हाथों बिकता जींस की शक्ल में पूंजी विहीन आदमी है। आज की कहानी इन दोनों के बीच के संबंधो की समीक्षा और उन परिस्थितियों की पड़ताल करती नजर आती है जिसके कारण आदमी को आज जींस बनने और बिकने के लिये बाध्य होना पड़ा है। कहानी से मनुष्य गायब हो सकता है परंतु मनुष्यता गायब नहीं हो सकता, ऐसा मेरा विश्वास है?
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