हिंदी उच्चारण में सहयोग कीजिए

SHARE:

हर अभिभावक चाहेगा और उसे चाहना भी चाहिए कि उसके दिल का टुकड़ा आसमान की ऊंचाइयों को छुए. यदि उस मुकाम के लिए उसे हिंदी सीखनी या सिखानी ...

हर अभिभावक चाहेगा और उसे चाहना भी चाहिए कि उसके दिल का टुकड़ा आसमान की ऊंचाइयों को छुए. यदि उस मुकाम के लिए उसे हिंदी सीखनी या सिखानी पड़े तो लक्ष्य प्राप्ति के लिए वह हिंदी सीखेगा भी और सिखाएगा भी. अपने बच्चे को हिंदी के स्कूलों में भी पढ़ाएगा. तथ्यों की मेरी जानकारी के तहत भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है भाषा निरपेक्ष नहीं. इसलिए यहाँ आप किसी को भी, कोई भी धर्म अपनाने से रोक नहीं सकते, लेकिन भाषा के मामले में ऐसा नहीं है और भारतीयों को हिंदी सीखने लिए कहा जा सकता है. मेरी समझ में केवल इतना ही आता है कि राजनीतिक समीकरणों के लिए हमने हिंदी की यह हालत बना दी है.
हिंदी सीखने में थोड़ी कुछ कठिनाइयाँ हैं जैसे उच्चारण और लिंग भेद. जिनमें उच्चारण पर मैं यहाँ विचार करना चाहूंगा. विभिन्न भाषा भाषी हिंदी का उच्चारण सही तरीके से नहीं कर पाते. हिंदी के जानकारों को चाहिए कि उन्हें सही उच्चारण से अवगत कराएं, न कि उन पर हँसें. कई बार तो ऐसा समझ में आया है कि गलत उच्चारण के तर्कसंगत कारण हैं जिनका मैं यहाँ उल्लेख करना चाहूंगा.
दक्षिण भारतीय  “खाना खाया” का उच्चारण “काना काया” के रूप में करते हैं. वह इसलिए कि तामिल वर्णमाला में प्रत्येक वर्ग में दो ही अक्षर होते हैं जैसे क, ङ. वहाँ ख,, घ अक्षर नहीं होते. शब्दों के बीच में लिखने के लिए तीसरे अक्षर (ग) हेतु प्रावधान किया हुआ है.  इसालिए कमला व गमला शब्द कि लिपि तामिल में एक जैसी होगी. वैसे ही कागजगागर में प्रथम दो अक्षरों की लिपि एक ही होगी. लेकिन जब उसे पढ़ा जाएगा तो दोनों को कागज और कागर पढ़ा जाएगा. इसलिए तमिल भाषा अन्य भाषाओं के सापेक्ष कठिन भी है. वे गजेंद्र को कजेंद्र कहेंगे और लिखेंगे भी. कभी सारा दक्षिण मद्रास हुआ करता था, सो यह कमिय़ाँ (खूबियाँ) कम – ज्यादा पर सारे दक्षिण में मिलेंगी. कर्नाटक व आँध्र वासियों के साथ यह संभावना कम होती है. तमिलनाड़ू के अलावा बाकियों को हिंदी से लगान भले न हो पर नफरत तो नहीं है. तामिल में भी शायद इसलिए कि हिंदी, तमिल को पछाड़कर राजभाषा का दर्जा पाई है. यहाँ भी यह राजनीतिक कारणों से ज्यादा पनपी है अन्यथा लोगों को कारण भी मालूम न हो.
हमें लोगों की ऐसी समस्याओं को समझना चाहिए और हिंदी में उनकी रुचि का स्वागत करना चाहिए, न कि उनकी गलतियों पर हँसना चाहिए. लोग हँसेंगे ऐसी भावना आने के बाद कोई भी आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं कर पाएगा. यदि किसी उत्तर भारतीय को दक्षिणी भाषा के शब्दों का उच्चारण करना पड़े तो कठिनाइयाँ समझ में आ जाएँगी. दक्षिण भारतीयों की जुबान काफी लचकदार होती है. इसलिए क्लिष्ट से क्लिष्ट शब्दों का उच्चारण भी वे आसानी से कर लेते हैं.  और यही एक खास कारण है कि दक्षिण भारतीय उत्तर भारतीयों की अपेक्षा (खासकर अंग्रेजी के) उत्तम व सफल स्टेनोग्राफर होते हैं.
अब पूर्व की तरफ चलें. बंगाल साहित्य का बहुत ही धनी है. फिर भी वहाँ की भाषा में दो अक्षर एक जैसे हैं. क्या यह उचित माना जाए कि बंगाली जैसे समृद्ध भाषा के दो अक्षर एक से हों. अब देखिए “Biswas” शब्द को अपनी भाषा में विश्वास लिखते और बिश्वास उच्चरित करते हैं. उनके इस उच्चारण से साफ जाहिर होता है कि दोनों ‘’ के उच्चारण भिन्न हैं और ऐसा तब ही संभव होगा जब ये दो अलग अलग वर्ण रहे हों. अब अंग्रेजी के “b, w & v” वर्णों के लिए एक ही  अक्षर लिखा जाता है लेकिन उनका उच्चारण अलग अलग होता है. ऐसा नही है कि बंगाली भाषा में ‘’ का प्रयोग नहीं होता. यदि मेरी याददाश्त धोखा नहीं दे रही हो तो पहले को पेट कटा व बोला जाता था. सन् 1960 के दशक में बंगाली पत्रिका नवकल्लोल को अंतिम पृष्ठ पर अंग्रेजी में Navakallol लिखा जाता था लेकिन अब उसे Nabakallol लिखा जाता है.
बंगाली भाषा के उच्चारण के बारे में लोग मजाक करते थे कि मुँह में रसगुल्ला डालकर हिंदी बोलिए, आपका उच्चारण बंगाली भाषा की तरह हो जाएगा. इसी तरह का असर बंगभाषियों के हिंदी उच्चारण में मिलता है. कोई भाषाविद ही इसका पर्दे के पार की खबर दे पाएगा.
बंगभाषी अक्सर कहते मिलेंगे, आमि जॉल खाबो, मद खाबो, सिगारेट खाबो इत्यादि... यानी मैं पानी, शराब, सिगरेट पिऊंगा / पिऊंगी. पर उनके साहित्य पढ़िए - वे रसपान करते हैं, जलपान करते हैं, धूम्रपान करते हैं, मदपान करते हैं, यह शायद समय से आया फर्क है कि लोग सेवन को खाना कह जाते हैं.
आसाम में भाषा काफी कुछ बंग भाषा से मिलती जुलती है. इसलिए उनके उच्चारण में भी मिलती जुलती भिन्नताएँ है. असमी भाषा में और के लिए अलग अलग अक्षर हैं. आसाम में का उच्चारण जैसा च का उच्चारण स जैसा और का उच्चारण जैसा होता है. को भी जैसे उच्चरित किया जाता है. इससे यजमान का उच्चारण जजमान जैसा और चम्मच का उच्चारण सामोस सा होगा. बाहरी लोग सामोस को समोसा समझने की गलती कर देते हैं. गौहाटी निवास के शुरुआती दिनों में एक बार मुख्य डाक घर के सामने, मैंनें सिटी बस पर बंगाली भाषा में लिखा चिठी बस पढ़ लिया और समझ लिया कि यह पोस्ट ऑफिस कर्मचारियों की बस है. करीब दो घंटे बस के इंतजार में गँवा दिए. जब वहाँ के निवासियों से पूछा तो बताए कि आपके सामने कितनी बस जा चुकी हैं. आप चढ़े ही नहीं. जब अगली बस में उनने बताया, तो जाना कमीं कहाँ थी. मैं असमी लिपि को बंगाली लिपि समझ कर पढ़ रहा था.
इधर गुजरात के कच्छ इलाके में ‘’ को ‘’ सा उच्चरित किया जाता है. ऐसा लगता है कि इन्हीं-किन्हीं कारणों से सिंधी हिंदी, सिंधु हिंदू शब्द बने होंगे. सिंधु घाटी की सभ्यता से हिंदुओं का संबंध होने का यह भी एक असर या कारण हो सकता है. गुजराती लिपि हिंदी के काफी करीब है लेकिन हमारे बचपन में अपनाई गई हिंदी का उसमें अभी भी बाहुल्य मिलता है. अभी भी वहां अ पर ए की मात्रा से एक लिखा जाता है. हो सकता है कि भविष्य में हिंदी – गुजराती और भी ज्यादा करीब होंगे.
पंजाब में लिखी जाने वाली गुरुमुखी लिपि में आधा अक्षर लिखने का प्रवधान नहीं है. इसीलिए पंजाबी स्कूल को सकूल, स्त्री को सतरी या इस्तरी, इंद्र को इंदर, शब्द को शबद कहते हैं. लेकिन द्वयत्व की मात्रा होने की वजह से वे मम्मा, दद्दा चम्मच कथ्था, गय्या बच्चा,  धुत्त जैसे शब्दों का उच्चारण बड़ी आसानी से कर लेते हैं. हिंदी में द्वयत्व की मात्रा नहीं है. हिंदी ने अब तक गुरुमुखी से इस ताकतवर मात्रा को आत्मसात नहीं किया है. अब बिना देर किए इसे हिंदी में अपना लेना चाहिए.
महाराष्ट्र में ‘’ को ‘’ सा जोर देकर उच्चरित किया जाता है. मराठी भाषा में छोटे को तू व बड़ों को तुमी कहकर संबोधित किया जाता है, जो मराठी भाषा के तू एवं तुमी के पर्यायवाची के रूप में उनके द्वारा हिंदी के तु और तुम व्यवहरित होते हैं. मराठी भाषा में तुम्हारा और आपका के लिए तुमचा व तुमीचा शब्द प्रयोग किए जाते हैं. सो मराठी जनता अन्यों को तु, तुम, तुम्हारा शब्दों का प्रयोग बिना हिचक हिंदी में कर लेती है. अन्य इसे अपमान समझते हैं, जबकि उनका इरादा अपमान करने का नहीं होता है. हिंदी में तुमी शब्द नहीं होने तके कारण वे तुमी की जॉगह भी तुम का प्रयोग करते हैं जो हिंदी भाषियों को अपमान जनक लगता है. ऐसा होता है, पर इरादे गलत नहीं होते. इसलिए हिंदी भाषियों को समझना चाहिए इसके लिए नेहें समय और स्थान देना चाहिए. जहाँ संभव हो लोगों को जानकारी देनी चाहिए. आप शब्द शायद मराठी में काफी बाद में आया है इसलिए अब इसका प्रयोग होने लगा है। मराठी जानने वालों को समझ आ रहा होगा कि इसमें कोई गलत मानसिकता नहीं है. बल्कि जानकारी की कमी लोगों को आभास कराती है कि मराठी की तरह ही तू एवं तुम का प्रयोग हिंदी में भी हो रहा होगा. मराठी में ल के साथ ळ का प्रयोग होता है बल्कि ज्यादातर ळ का ही प्रयोग होता है इसलिए हिंदी में जहाँ ल उच्चरित होता है वहाँ मराठीजन ळ का उच्चारण करते हैं. इसे समझने की जरूरत है.
एक वाकया याद आया. एक बार मैं नागपूर में सुबह निकलकर एक सड़क पर चलता गया. मनमर्जी मुड़ता गया. करीब दिन के डेढ़ बजे मुझे भूख लगी और घर का रास्ता पता नहीं था. मैंने एक पान की दुकान पर पूछा तो उसने बताया – ये रोड पर जाओ. दो फर्लाँग  के बाद एक पेड़ गिरेगा. वहाँ से पलट जाना , संत्रा मार्केट मिल जाएगा. मेरी समझ में कुछ नहीं आया कि कैसे यह जान गया कि मेरे पहुँचते ही वहाँ पेड़ गिरेगा. दूसरा कि वहाँ से पलटने पर मां वापस यहाँ न आकर संत्रा मार्केट कैसे पहुँचूंगा. तब एक हिंदी के जानकार ने समझाया, लगता है आप बाहर से आए हैं. डरें नहीं यहां पेड़ गिरेगा का मतलब हा पेड़ दिखेगा या मिलेगा. पलटने का मतलब मुड़ने से है. बाँये-दाँए बताया नहीं जा रहा है यानी सड़क के साथ मुड़ना है. तब जाकर आत्मा शाँत हुई. य़ह इसलिए बताया गया है कि इलाके की भाषा का किल़सी दूसरे भाषा पर कितना असर होता है. इसीलिए मुझे कोई आश्चर्य नहीं होता जब लोग हमारी अँग्रेजी के उच्चारण का मखौल बनाते हैं. यदि हम उनकी हिंदी का मखौल बनाएं तो उन्हें समझ आएगा. लेकिन ऐसा करना अनुचित है. कुत्ता मुझे काटता है तो मैं उसे नहीं काटूँगा हाँ अगली बार न कॉटे ऐसी सावधानी लेकर चलूँगा.
इन तथ्यों को विचारने पर यह प्रतीत होता है कि जिस तरह ठंडे प्रदेशों में टाइट और गर्म प्रदेशों में ढीले पोशाक पहनना सामान्य है, जिस तरह ठंडे प्रदेशों में आमिष भोजन व मदिरा सेवन सामान्य सा बन गया है उसी तरह प्रदेशों की बोली में भी वहाँ के वातावरण व खानपान का समुचित असर आ गया है और दिखता भी है. ऐसा देखा गया है कि ठंडे प्रदेशों कि भाषा अपेक्षाकृत सरल उच्चारण वाली होती है और गर्म प्रदेशों की भाषा कठिन उच्चारण वाली होती है. इसीलिए दक्षिण भारतीय भाषाएं उत्तर भारतीयों के लिए काफी कठिन है. भौगोलिक कारणों से शायद दक्षिण भारतीयों के जुबान में ज्यादा लचीलापन होता है जो उन्हें कठिन शब्दों का सही उच्चारण करने में सहायक होती है. किसी उत्तरभारतीय को यदि केरल की मलयालम भाषा या तमिलनाडू का तामिल के शब्दों को उच्चरित करना पड़े तो कठिनाई का बोध होगा. यह जल-वायु को कारण बनी शारीरिक संरचना के कारण होता है. उत्तर ऊरत के खाने से दक्षिण भारतीय के कॉन्स्टिपेशन हो जाता है जबकि उत्तर भारतीय को दक्षिण भारतीय खाना खाकर मोशंस हो जाते हैं. एक जगह का खाना हल्की पाचन शक्ति के लिए है दूसरा कठोर पाचनशक्ति के लिए.उसा तरह भाषा पर भी असर है. नेपाल में को उच्चरित करते हैं.
एम.आर.अयंगर
एक और खासियत देखी गई है कि तटीय इलाकों की लिपि गोली लिए हुए होती है जबकि भूखंडों में कोने लिए हुए होती है. इसमें गुजराती और असमी कुछ हद तक अपवाद लगते हैं. कुछ हद तक बंगल भी इसी तरह का है. हो सकता है कि भारत के चौड़े इलाको में होने के कारण इन पर पास पड़ोस की भाषाओं का ज्यादा असर हुआ हो.
हिंदी वर्णमाला में भी अक्षरों का रूप स्वरूप परिवर्तन भी काफी हुआ है. वर्तनी के नियम भी बने व बदले हैं. अ, , , , , , , श्र, क्ष, अक्षर के यह रूप बाद की देन है पहले इन्हें अलग तरह से लिखा जाता था. अक्षर ळ मराठी भाषा से अपनाया गया. बड़ी ऋ, लृ और बड़ी लृ वर्ण तो लुप्त प्राय हो गए. चंद्र बिंदु व अर्ध चंद्र तो लुप्त ही हो गए. अब बच्चे हँस और हँस के फर्क को कम ही समझते होंगे. लेखनी की सुविधा, विशिष्ट शब्दों में अक्षरों अक्षरयुग्मों के बीच संशय ने इन की जरूरत को जन्म दिया. पहले ‘’ अक्षर ‘रव’ जैसा लिखा जाता था यदि इसे र और व  को अक्षर युग्म पढ़ें तो अर्थ ही अलग हो जाता था. जैसे रवा और खा में फर्क क्या होता होगा सेचिए यदि ख में वे आपस में जुड़े नहीं होते.  इसलिए इनके बीच जोड़ का प्रावधान देकर ख बनाया गया. वर्तनी की सुधार के लिए अ व ये की जगह ए का प्रयोग उचित माना गया.
पंचाँग को सही लिखना हो तो पञ्चाङ्ग लिखना होगा सरलीकरण ने इसे नया रूप दिया. हुआ का बहुवचन हुए तथा पाया का बहुवचन पाये यानि स्वर के बहुवचन में स्वर व व्यंजन के बहुवचन में व्यंजन को स्थान दिया गया. पंचमाक्षर नियम के अनुसार किसी भी शब्द में पूर्ण बिंदु ( अनुस्वार) के बदले उसके बाद आने वाले अक्षर के वर्ग का पंचमाक्षर ही लगाया जाना चहिए. या यों कहिए कि हर वर्ग के लिए एक अनुस्वार हमारी वर्ममाला में दिया गया है और उसे उस वर्ग के अक्षरों के साथ ही प्रयोग करना चाहिए. इसके उदाहरण हैं कङ्काल, पञचाङ्ग. भण्डार, चन्दन और कम्बल. लेकिन इस दुविधा से बचाने के लिए पूर्ण बिंदु (अनुस्वार) का सहारा लेकर हिंदी को सरलीकृत किया गया. अब ऊपर के शब्दों को आसानी से कंकाल, पंचांग, भंडार, चंदन व कंबल सा लिखा जा सकता है. इसके साथ वर्ण माला में अनुस्वारों की आवश्यकता खत्म हो गई है और कुछ ही समय में यह अपने आप ही लुप्त हो जाएगा. ऐसा ही हाल हुआ उऋण के साथ जहाँ पहले बडी ऋ की मात्रा लिखी जाती थी, वहाँ अब छोटी ऋ की मात्रा का प्रावधान हो गया और बड़ी ऋ लुप्त हो गई.
आज भी मैं इस दुविधा में हूं कि कौंन सी लिपि सही है हिमांशु हिमान्शु अथवा हिमाम्शु या हिमाँशु. विस्तार में यह कि पंचमाक्षर नियम ने तो वर्गों के तहत अनुस्वार का सम्सया का निदान कर दिया लेकिन वर्गांतर अक्षरों के लिए समस्या बनी ही रही.
संयुक्ताक्षर के लेखनी का तरीका भी समयानुसार बदला है. क् व ष जुड़कर  क्ष बना, ज् व न जुड़कर ज्ञ बना, त् व र जुड़कर त्र बना. बड़ों ने बताया भी था कि एक समय गीताप्रेस गोरखपुर से छपी हिंदी वर्णमाला की किताब में क्ष,त्र.ज्ञ अक्षर होते ही नहीं थे. वैसे ही श व र मिलकर श्र बना शिंगार लिखने का तरीका पहले और आज पूरी तरह से भिन्न है. कई अक्षर अपना रुप परिवर्तन कर गए. ख,ण,झ,ए के यह नए रूप हैं. वर्तनी के नियम से भाषा के सरलीकरण के दौर में चंद्रबिंदु (अनुनासिक) व पूर्ण बिंदु (अनुस्वार) में फर्क मिटाने की कोशिश की गई. जहाँ तक अर्थ का अनर्थ न हो वहाँ तक इसे स्वीकारा गया किंतु जहाँ अनर्थ की संभावना बन जाती है वहाँ इसे अस्वीकार कर दिया गया. जैसे प्रदेश और परदेश (अमान्य), क्रम और करम (अमान्य), हँस औकर हंस (अमान्य), गांजा और गाँजा (मान्य). लेकिन मुसीबत तो यही हैकि जिसे पतचा है कि अनर्थ गहोगा वह तो वैसे भी ऐसा प्रयोग नहीं करेगा. जिसे पता ही नहीं है सो करने में हिचकेगा भी नहीं.
चलिए अब फिर लौचें राजभाषा की तरफ. हमें यह उम्मीद तो करनी ही होगी कि हर व्यक्ति साहित्यिक व शुद्ध हिंदी के प्योग में समर्थ नहीं होगा. इसका प्रयोग केवल साहित्य के लिए किया जा सकता है. लेकिनसरल, सौम्य व जनसाधारण कोसमझ आने वाली भाषा ही मान्य है और उसका ही प्र.ग होना चाहिए. हिंदी को अन्य भाषाओं के प्रचलित शब्दों को बिना विलंब के आत्मसात कर लेना चाहिए. तभी लोग खुलकर हिंदी बोलने में खुशी महसूस करेंगे और राजभाषा में त्तरोत्तर प्रगति होगी. हमारा राजभाषा अधिनियम भी यही कहता है. हिंदी सीखने वालों की, भले ही कुछ गलत बोलें – सराहना व प्रोत्साहन करनी चाहिए कि वे भाषा के प्रति आकर्षित हैं. उनके उच्चारण व हिज्जों की गलतियों पर ताना मारना या मजाक करना (हँसना) उन्हें हिंदी सीखने में झिझक – हिचक उत्पन्न कर देता है. भाषा से उनकी दूरी बढ़ जाती है.

अंत में यह जरूर कहना चाहूंगा कि मैं कोई भाषाविद नहीं हूँ. इस लेख की सारी जानकारी मेरी अपनी पढ़ी (कम) और सुनी व अनुभव (ज्यादा) की है. सही कोशिशों के बावजूद भी हो सकता है उसमें कहीं कोई त्रुटि रह गई हो या कुछ सूचनाएं मेरी नजर में न आईं हों. यदि किसी पाठक की जानकारी में ऐसा कुछ आए तो जरूर सूचित कीजिएगा. संभव हो तो अपने संदेश में विस्तार से बता दीजिएगा. आपका आभार रहेगा.



यह रचना माड़भूषि  रंगराज अयंगर जी द्वारा लिखी गयी है . आप इंडियन ऑइल कार्पोरेशन में कार्यरत है . आप स्वतंत्र रूप से लेखन कार्य में रत है . आप की विभिन्न रचनाओं का प्रकाशन पत्र -पत्रिकाओं में होता रहता है .
संपर्क सूत्र - एम.आर.अयंगर. , इंडियन ऑयल कार्पोरेशन लिमिटेड,जमनीपाली, कोरबा.
मों. 08462021340

COMMENTS

Leave a Reply: 3
  1. हिंदी कुंज में प्रकाशित रचना को प्रिंट नहीं कर हा रहे हैं. न ही कापी हो रहा है न सेव...किसी को पता हो तो ज्ञानवर्धन करें.

    जवाब देंहटाएं
  2. आदरणीय रंगराज जी , हिंदीकुंज में प्रकाशित रचनाओं पर राईट क्लिक करना संभव नहीं हो पा रहा है, इसका कारण यह है कि हिंदीकुंज में प्रकाशित रचनाएं चोरी हो रही थी , इन्टरनेट पर विभिन्न नामों से प्रकाशित हो रही थी . इस चोरी से बचने के लिए HTML कोड डाला गया है . वैसे आप गूगल क्रोम ,या फायरफॉक्स पर प्रिंट आप्शन पर जाकर प्रिंट या सेव कर सकते है .
    आपकी असुविधा के लिए मुझे खेद है ,लेकिन रचनाएं चोरी होने से बचाने के लिए यही बेहतर विकल्प है .
    धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं
  3. आपसे प्रभावित हुआ.. ..धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ हमें उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !
टिप्पणी के सामान्य नियम -
१. अपनी टिप्पणी में सभ्य भाषा का प्रयोग करें .
२. किसी की भावनाओं को आहत करने वाली टिप्पणी न करें .
३. अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .

नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,37,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",7,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,4,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,8,आषाढ़ का एक दिन,22,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,5,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,19,कमलेश्वर,7,कविता,1474,कहानी लेखन हिंदी,17,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,6,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,38,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,3,केदारनाथ अग्रवाल,4,केशवदास,6,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,139,गजानन माधव "मुक्तिबोध",15,गीतांजलि,1,गोदान,7,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,3,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,6,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,35,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,76,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,6,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,28,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,4,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,11,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,25,नाटक,1,निराला,39,निर्मल वर्मा,4,निर्मला,42,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,202,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,139,प्रयोजनमूलक हिंदी,38,प्रेमचंद,47,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,88,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,8,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,9,भक्ति साहित्य,143,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,17,भीष्म साहनी,8,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,10,मलिक मुहम्मद जायसी,9,महादेवी वर्मा,20,महावीरप्रसाद द्विवेदी,3,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,14,मैला आँचल,8,मोहन राकेश,15,यशपाल,15,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,6,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,21,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,3,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,9,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,4,लघु कथा,124,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,34,विद्यापति,8,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,2,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,8,शमशेर बहादुर सिंह,6,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,6,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,57,शैलेश मटियानी,2,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,4,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,33,सआदत हसन मंटो,10,सतरंगी बातें,33,सन्देश,44,समसामयिक हिंदी लेख,269,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,20,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,86,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",10,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,23,सूरदास,16,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,11,हजारी प्रसाद द्विवेदी,4,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,432,हिंदी लेख,532,हिंदी व्यंग्य लेख,14,हिंदी समाचार,182,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,91,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aapka-banti-mannu-bhandari,6,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,chitra-varnan-hindi,3,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,11,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,20,hindi essay,424,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,105,hindi stories,679,hindi-bal-ram-katha,12,hindi-gadya-sahitya,8,hindi-kavita-ki-vyakhya,19,hindi-notes-university-exams,67,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,22,kavyagat-visheshta,25,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,11,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,raag-darbari-shrilal-shukla,7,Rimjhim Class 3,14,samvad-lekhan-in-hindi,6,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,skandagupta-natak-jaishankar-prasad,6,sponsored news,10,suraj-ka-satvan-ghoda-dharmveer-bharti,5,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,53,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: हिंदी उच्चारण में सहयोग कीजिए
हिंदी उच्चारण में सहयोग कीजिए
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiUMqQCAnJVOuzYu0oR7BlG4fQyszWHiW0AUswTuhBp3kp5r0HC5UCEOg95M1sX6TvX5PqKZpqo0pZlTA2K6oUbn-McRDrpRvdb-oscyBRF-i26rYKRvRmYvre8B45r9zY4y2S2-5hpFXdr/s1600/hindi-alphabet-background-texture-high-resolution-37944103.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiUMqQCAnJVOuzYu0oR7BlG4fQyszWHiW0AUswTuhBp3kp5r0HC5UCEOg95M1sX6TvX5PqKZpqo0pZlTA2K6oUbn-McRDrpRvdb-oscyBRF-i26rYKRvRmYvre8B45r9zY4y2S2-5hpFXdr/s72-c/hindi-alphabet-background-texture-high-resolution-37944103.jpg
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2014/07/hindi-pronunciation.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2014/07/hindi-pronunciation.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका