“ हम हिंदी क्यों पढ़ते हैं ” हिंदी दिवस पर हिंदीकुंज.कॉम की विशेष प्रस्तुति हम हिंदी क्यों पढ़ते हैं ? यह एक अहम सवाल है और हर भ...
“हम हिंदी क्यों पढ़ते हैं”
हिंदी दिवस पर हिंदीकुंज.कॉम की विशेष प्रस्तुति
हम हिंदी क्यों पढ़ते हैं ? यह एक अहम सवाल है और हर भारतीय ( या कहें हिंदुस्तानी ?) के मन में स्वभावतः उठना चाहिए.
पहली
कारण यह कि जिन लोगों की यह मातृ भाषा है, उन्हें हिंदी इसलिए सीखना चाहिए
कि वह उनकी मातृ भाषा है. मातृ भाषा को जानना जरूरी है – केवल इसलिए नहीं
कि वह मातृभाषा है. बल्कि इसलिए भी कि सारे रिश्तेदार उसी भाषा में संपर्क
करते हैं. हो सकता है कि परिवार में पत्राचार आदि भी इसी भाषा में किए जाते
हैं.
दूसरा
कारण यदि आप हिंदी भाषी प्रदेश में रहते हैं तो आप के चारों ओर हिंदी का
माहौल होता है. निश्चित ही वहां की संपर्क भाषा भी हिंदी होगी. इसलिए हिंदी
भाषी इलाके में रहने वाले को हिंदी सीखनी पड़ती है. अन्यथा वह आस - पास के
लोगों से ( दोस्तों से भी) अलग-थलग रह जाएगा. कई सरकारी व इलाके के
संस्थानों की सूचनाएं व जानकारी हिंदी में ही दी जाती होंगी – आप उन्हे
समझने जानने से वंचित रह जाओगे.
तीसरा
कारण यह कि हिंदी का साहित्य बहुत ही धनी है. हिंदी जानने से आप हिंदी
साहित्य पढ़ पाओगे और उसमें समाहित जानकारी हासिल कर पाओगे. हाँ इसके लिए
आपका साहित्य में रुचि होना आवश्यक है. यदि आप साहित्य में रुचि नहीं रखते
तो यह कारण आपके लिए हिंदी सीखने को प्रेरित नहीं करता. साहित्य का मतलब
हिंदी संबंधी लेख ही नहीं वरना कविता, कहानी नाटक, उपन्यास, कार्टून ,
सिनेमा, गाने इत्यादि भी है.
रंगराज अयंगर |
आगे
बढ़ते हैं – पाँचवाँ कारण - इन सबके अलावा एक और प्रमुख कारण है कि हिंदी
हमारे देश की राज भाष। है ( Official Language of our Nation ऑफिशियल
लेंग्वेज ऑफ अवर नेशन). इसलिए भी हम हिंदी सीखते हैं. देश के प्रति अभिमान
जताने करने का यह एक प्रशस्त तरीका लगता है. यह मेरी विचार है.
अब
कुछ और बातें – अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आप निहारें तो जान पाएंगे कि विश्व
के अक्सर देशवासी अपनी देश की भाषा में संवाद करने में रुचि रखते हैं ,
अपनी देश की भाषा को महत्व देते हैं और इसमें वे अपना गौरव समझते हैं.
उन्नत, उन्नति-शील या प्रगतिशील व अप्रगतिशील के तीन विभागों में विश्व के
देशों को बाँटा गया है. पहले दोनों तरह की श्रेणी के देश अपनी भाषा पर बहुत
गौर करते हैं. पर हमारा भारत इसमें पिछड़ा है, क्योंकि हमारे पास कहने
मात्र के लिए राजभाषा है. इसमें आज भी कई तरह के विरोध हैं. देश के नेताओं
ने तो भाषा को राजनीति का विषय बना दिया है. दक्षिण भारत में खास तौर पर
तमिलनाड़ू में, हिंदी का पुरजोर विरोध है. अभी हाल में ही एक लेख पढ़ा
जिसमें विद्यार्थियों ने तमिलनाड़ू में भी हिंदी के शिक्षा के लिए अभियान
छेड़ा है. नेताओं को चाहिए कि अतर्युद्ध छोड़कर देश की विश्वस्तरीय स्थिति
पर भी विचारें और देश में राजभाषा के स्थान को सुदृढ़करें.
अब
आती है बात कि ऐसा क्या किया जा सकता है कि लोग हिंदी के प्रति रुचि लें.
इस पर मेरे कुछ सुझाव हैं. इसका सर्वप्रथम मुद्दा उजागर करने के लिए मैं एक
सवाल करता हूँ कि हमारे देश की राजभाषा हिंदी होते हुए भी और बहुत सी
दक्षिणी भारत व पश्चिमी भारत की भाषाएँ समृद्ध होते हुए भी, लोग अंग्रेजी
क्यों सीखते हैं. कुछ सोच कर बोलने वाले ज्यादातर लोग यही कहेंगे कि –
- अंग्रेजी के बिना विदेशों में न पढ़ाई हो सकती है और न ही नौकरी.
- अंग्रेजी के बिना IT Sector में काम करना या धंधा करना देश के किसी व्यक्ति या संस्थान के लिए संभव नहीं होगा.
- ज्ञान का भंडारण जो अँग्रेजी में हो रखा है वह विश्व के (शायद) किसी भाषा में नहीं है. सो उस ज्ञान के अर्जन के लिए भी अंग्रेजी जानना जरूरी है. इससे कई शोध कार्यों में सहायता मिलती है. पढ़ाई में सहायक होती है. ज्ञान वृद्धि तो होती ही है.
इनके अलावा भी बहुत से मुद्दे उभरेंगे पर वे सभी इन तीनों की अपेक्षाकृत कम महत्व के होंगे.
यदि
हम इन तीनों उत्तरों को ध्यान में रखकर सोचें, तो साफ नजर आएगा कि हमें
हिंदी को शिखर पर लाने के लिए क्या करना होगा. यदि हम इन विधाओं को हिंदी
में भी अपना लें या हिंदी के लिए भी इन बातों को कहने लायक हो जाएं तो किसी
से कुछ कहने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी. लोग अपने आप अपने लिए हिंदी
सीखेंगे. उन्हें ज्ञान और धन चाहिए.
अब
जवाब तो मिला पर उसे कर दिखाना क्या आसान है. हिंदी भाषियों को और वे लोग
जो हिंदी को “देश के ललाट की बिंदी” जैसी सर्वनाम देते हैं या फिर जो देश
की भाषा के प्रति संवेदनशील हैं, या वे जो देश व विश्व की भाषा के रूप में
हिंदी को देखना चाहते हैं - वे सब एकजुट होकर इस दिशा में कार्य करें और
अन्य लोगों को जो साथ दे सकते हैं प्रोत्साहित करें कि इस दिशा में समग्र
कार्य हो तो कुछ वर्षों में हिंदी का स्थान देश में और विशव में माननीय हो
सकता है. आज हिंदी के नाम पर विश्व हिंदी सम्मेलन तो होता है किंतु सही
दिशा में कितना काम हो रहा है यह तो वे ही बता पाएंगे जो इस विश्व सम्मेलन
में भागीदार होते है.
अब यह समय बात करने का नही काम करने का है. कुछ काम हो तो आगे बढ़ें वरना जहाँ पड़े वहाँ सड़े...चरितार्थ होने जा रही है.
यह रचना माड़भूषि रंगराज अयंगर जी द्वारा लिखी गयी है . आप इंडियन ऑइल कार्पोरेशन में कार्यरत है . आप स्वतंत्र रूप से लेखन कार्य में रत है . आप की विभिन्न रचनाओं का प्रकाशन पत्र -पत्रिकाओं में होता रहता है .संपर्क सूत्र - एम.आर.अयंगर. , इंडियन ऑयल कार्पोरेशन लिमिटेड,जमनीपाली, कोरबा.मों. 08462021340
एक कोत आँग्ल भाषी, दुज हिंदी के जानि ।
जवाब देंहटाएंदोनों के जो तोल किए, पैइहु दुज अधिज्ञानि ।१८४२।
भावार्थ : -- एक और आंग्ल भाषी है दूसरी और ओर हिंदी भाषी है । यदि दोनों के ज्ञान की तूलना की जाए तो हिंदी भाषी को आप अधिक ज्ञानी पाएंगे ||
यदि एक ही कक्षा के, समान आयु वर्ग एवं समान अंकधारी दो छात्रों को लिया जाए। जिसमें एक हिंदी भाषी हो दूसरा केवल अङ्गलभाषी हो दोनों को यदि एक ही विषय पर निबंध लेखबद्ध करने दिया जाए तब आप पाएंगे कि हिंदी भाषी छात्र का ज्ञान आँग्लभाषी छात्र की अपेक्षा अधिक विस्तृत है.....कारण स्पष्ट है, अंग्रेजी की तुलना में हिंदी-भाषा अधिक जिज्ञासित है.....
भाखा आपनी बोलिए, लिये पराई सीख ।
जवाब देंहटाएंरंग रस घोरें आपने, ले दूजन की लीख |226|
भावार्थ : -- "पराए की सिखाई नहीं बोलनी चाहिए" या पराए से सीख(ज्ञान)लेकर, अपनी भाषा ही बोलनी चाहिए या पराई भाषाएँ तो सिखनी चाहिए और बोलनी अपनी चाहिए । यदि लिपि भी पराई हो तो अपनी ही सभ्यता और संस्कृति के रंग भरने चाहिए क्योंकि भारत की संस्कृति एवं सभ्यता सबसे प्राचीन और सबसे श्रेष्ठ है ॥
नीतू जी,
जवाब देंहटाएंबड़े ही उत्तम विचार बताए हैं आपने.
अपनी भाषा से अपने अस्तित्व का पता चलता है. लोग कहते हैं अपनी भाषा में सोचिए लेकिन सोच की सायद कोई भाषा नहीं होती. विचार व्यक्त करने के लिए सबसे सरल माध्यम अपनी भाषा होती है क्योंकि यह मान लिया गया है कि अपनी भाषा पर ही पकढ़ सबसे सुदृढ़ होती है. उदाहरणतः मेरी लीजिए नाम का मद्रासी, मातृभाषा तेलुगु लेकिन पकड़ हिंदी में क्योंकि पला -बढ़ा आज के छत्तीसगढ़ में ( पहले के म.प्र.में) . मेरे लिए तो भले मातृभाषा कुछ और है किंतु पकड़ की वजह से मुझे हर बात हिंदी में कहने लिखने में आसानी होती है. वैसे और भी भाषाएं बोल -पढ़- लिख लेता हूँ लेकिन हिंदी सा नहीं हो पाता.
नीतू जी,
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणियाँ भावप्रद हैं.
धन्यवाद.