मॉ स्कूल नहीं गई पर समझती है जिन्दगी को मास्टर जी से ज्यादा मॉ स्कूल नहीं गई पर पता है उसे न हो पेट में रोटी तो अक्षर भी ताना मा...
मॉ स्कूल नहीं गई
पर समझती है जिन्दगी को
मास्टर जी से ज्यादा
मॉ स्कूल नहीं गई
पर पता है उसे
न हो पेट में रोटी
तो अक्षर भी ताना मारते हैं
ताना जो तिलमिला देता है
अच्छे अच्छों के विश्वास को हिला देता है
मास्टर जी से ज्यादा
मॉ स्कूल नहीं गई
पर पता है उसे
न हो पेट में रोटी
तो अक्षर भी ताना मारते हैं
ताना जो तिलमिला देता है
अच्छे अच्छों के विश्वास को हिला देता है
नहीं रहा है कोई खाता
मॉ का
कभी किसी भी बैंक में
नहीं पता है मॉ को जी.डी.पी. का मतलब
नहीं गई मॉ
कभी किसी कन्सेलटेन्ट के पास
पर जीते जी
और मरने पर भी
कुछ न कुछ देती रही मॉ
उस बेटे को भी
जिसके पास हैं चार चार क्रेडिट कार्ड
मॉ का
कभी किसी भी बैंक में
नहीं पता है मॉ को जी.डी.पी. का मतलब
नहीं गई मॉ
कभी किसी कन्सेलटेन्ट के पास
पर जीते जी
और मरने पर भी
कुछ न कुछ देती रही मॉ
उस बेटे को भी
जिसके पास हैं चार चार क्रेडिट कार्ड
घबरा जाता है पति
घबरा जाता है बेटा
जरा सा मौसम बदलते ही
पर मॉ नहीं घबराती
पता है मॉ को
कोई भी मौसम जयादा दिन नहीं ठहरता
मॉ स्कूल नहीं गई
पर पता है उसे
आदमी जंग जीत का आए या हार कर
उसे रोटी चाहिए
मॉ स्कूल नहीं गई
पर पता है उसे
भूख का इलाज
न मन्दिर के पास है
न मस्जिद के पास है और न ही स्कूल के पास है
इसलिए सुबह सबसे पहले
वो मन्दिर नहीं रसोई में जाती है
पता है उसे
पेट की आग
नहीं बना सकती
किसी हैवान को इन्सान
पर बना सकती है इन्सानों को हैवान
मॉ स्कूल नहीं गई
पर पता है उसे
सारी कलाएं
सारा ज्ञान
सारी नैतिकताएं
लेती हैं जन्म
चूल्हे की आग से ही
पता है मॉ को
अब स्कूल में
हरिश्चन्द्र, श्रवण कुमार और गॉधी
बैठाए जाते हैं
बिलकुल अंतिम बेंच पर
रिजर्व हो गई हैं
सामने की बेंच
नेता पुत्र, अम्बानी और दाउद इब्रााहीम के लिए
मॉ क्यों जाए स्कूल
स्कूल के पास है ही क्या
जो मॉ को सीखा सके
गर्ज है तो आए स्कूल
बैठे मॉ के चरणों में
और ले मॉ का आशीर्वाद
घबरा जाता है बेटा
जरा सा मौसम बदलते ही
पर मॉ नहीं घबराती
पता है मॉ को
कोई भी मौसम जयादा दिन नहीं ठहरता
मॉ स्कूल नहीं गई
पर पता है उसे
आदमी जंग जीत का आए या हार कर
उसे रोटी चाहिए
मॉ स्कूल नहीं गई
पर पता है उसे
भूख का इलाज
न मन्दिर के पास है
न मस्जिद के पास है और न ही स्कूल के पास है
इसलिए सुबह सबसे पहले
वो मन्दिर नहीं रसोई में जाती है
पता है उसे
पेट की आग
नहीं बना सकती
किसी हैवान को इन्सान
पर बना सकती है इन्सानों को हैवान
मॉ स्कूल नहीं गई
पर पता है उसे
लक्षमी नारायण अग्रवाल |
सारा ज्ञान
सारी नैतिकताएं
लेती हैं जन्म
चूल्हे की आग से ही
पता है मॉ को
अब स्कूल में
हरिश्चन्द्र, श्रवण कुमार और गॉधी
बैठाए जाते हैं
बिलकुल अंतिम बेंच पर
रिजर्व हो गई हैं
सामने की बेंच
नेता पुत्र, अम्बानी और दाउद इब्रााहीम के लिए
मॉ क्यों जाए स्कूल
स्कूल के पास है ही क्या
जो मॉ को सीखा सके
गर्ज है तो आए स्कूल
बैठे मॉ के चरणों में
और ले मॉ का आशीर्वाद
ताकि स्कूल बन सके किसी लायक
यह रचना लक्ष्मी नारायण अग्रवाल जी द्वारा लिखा गयी है . आपकी मुक्ता,गृहशोभा,सरस सलिल,तारिका,राष्ट्र धर्म,पंजाबी संस्कृति,अक्षर ,खबर ,हिन्दी मिलाप पत्र -पत्रिकाओं आदि में प्रकाशन। कई कहानियाँ व व्यंग्य पुरस्कृत । कई बार कविताएं आकाशवाणी और दूरदर्शन से प्रसारित हो चुकी है ."आदमी के चेहरे'( कविता संग्रह ) 1997, "यही सच है'(कविता संग्रह) 1998 आदि आपकी प्रकाशित रचनाएँ हैं . सम्पर्क सूत्र - घरोंदा, 4-7-126, इसामियां बाजार हैदराबाद -500027 मोबाइल - 09848093151,08121330005, ईमेल –lna1954@gmail.com
चम्पू- पापा, मैं किस दिन पैदा हुआ था ?
जवाब देंहटाएंपापा- शनिवार को।
चम्पू-
और,
आप
किस
दिन
पैदा हुए
थे
पापा ?
पापा-
रविवार
को।
चम्पू-
नहीं, ऐसा नहीं हो सकता।
पापा- क्यों भला?
चम्पू- रविवार की तो छुट्टी होती है...।
सुन्दर प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएं