महिला सशक्तिकरण

SHARE:

Women Empowerment,महिला सशक्तिकरण,Women Empowerment in india.


16 वीं शताब्दी के रिनायसां सुधारों के मूल में चर्च की सत्ता को चुनौती देना था,मानवता तथा मानव को चर्च के शिकंजे से मुक्त करा कर गरिमा प्रदान करना था,समाज को चंद स्वार्थी और परभक्षी धर्म गुरूओं के शिकंजे से निकालकर बुद्धिजीवियों के चिंतन मनन से जोड़ना था।कालान्तर में ये सुधार राजनीतिक क्षेत्र में भी पहुंचे जिससे प्रजातंत्र जैसी व्यवस्था का जन्म हुआ जोकि मानव इतिहास की अदभुत घटना थी।किन्तु उस समय के बुद्धिजीवियों ने शायद ही सोचा हो कि उनके चिंतन से जन्में समता,सशक्तिकरण,सामाजिक न्याय जैसी अवधारणाएं एक दिन बाजार के हाथ में जाकर नारेबाजी का रूप धर लेंगी और जिस समाज के हित के लिए उन्होंने ये सोच विकसित की थी उसी समाज के लिए कफन बन जाएंगी।

आज स्त्री सशक्तिकरण के नाम पर भारत जो भी कहा जा रहा है,जिस तरह पुरूषों को नीच बताया जा रहा है उससे लगता है भरत में भी नारेबाजी नारेबाजी ही हो रहीहै।भारत के बुद्धिजीवियों में अधिकांश तो कृतिम(क़ॠख़्क)हैं,उनके पास अपनी कोई सोच नहीं है वो लंदन,न्यूयार्क में छपे लेखों को पैकिंग बदल कर पेश कर देते हैं।मौलिक सोच के अभाव में ये बुद्धिजीवी देश और समाज को उसी तरह नुकसान पहुंचा रहं हैं जैसे नकली डाक्टर मरीजों को।रिकार्डेड संदेश की तरह बजते रहना ही इनका धर्म बन गया है।पश्चिम के बाजारवाद ने मीडिया तथा अनेकों सौंदर्य प्रतियोगिताओं के माध्यम से नारी को विस्तार का माध्यम बना लिया है और हमारे बुद्धिजीवी भी उसके सुर में सुर मिला रहे हैं।पश्चिमी देशों की राजनीति,धर्म ओर संस्कृति आज पूरी तरह से बाजारवाद का अंग बनकर रह गए हैं।पाकिस्तानी लड़की मलाला यूसूफजई को ही ले लीजिए,ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान में अकेली मलाला ही तालिबान से लड़ रही है।आज नहीं 1947 से भी पहले से ऐसे बहुत से लोग मुस्लिम समाज में हुए हें जिन्होने तालिबानी इस्लाम का विरोध किया है।आज भी पाकिस्तान में बहुत से मुस्लिम हैं जो तालिबान के विरूद्ध न केवल मुसलमानों के लिए लड़ रहे हें बल्कि हिन्दू,शिया,अहमदिया आदि के लिए भी संघर्ष रहे हैं,मलाला ने तो उनकी तुलना में कुछ भी नहीं किया है।लेकिन मलाला जैसे ही इलाज के लिए लंदन पहुंची बाजार ने उसको हथिया लिया उसकी आत्म कथा छाप दी और रातो रात लाखों प्रतियां बेचकर करोड़ों कमा लिए।

हैरानी की बात है कि नारी सशक्तिकरण के ये नारेबाज स्त्री की बात क्यों करते हैं साथ में पुरूष की भी बात क्यों नहीं करते।स्त्री-पुरूष मिलकर समाज बनता है,समाज न अकेला पुरूष बना सकता है न अकेली स्त्री।स्त्री की सभी समस्याऐ पुरूषों और पुरूषों की सभी समस्याएं स्त्रीयों से जुड़ी हुई हैं या यो कहें कि एक दूसरे के कारण हैं।जिस तरह इलेक्ट्रान और प्रोटान मिलकर अणु बनाते हैं उसी तरह स्त्री-पुरूष मिलकर ही सब कुछ हैं अलग अलग तो दोनों भी कुछ नहीं हैं,इस बात का सबसे बड़ा सबूत यही हैं कि दोनों की बराबरी की बात कही जाती है न कि अलगाव की।बहुत से लोग नारी मुक्ति की बात करते हैं।मुक्ति शब्द तो बिलकुल ही अनुपयुक्त है क्योंकि इससे ये संदेश जाता है कि शायद नारी पुरूष से मुक्ति मॉग रही है जबकि बात अधिकारों की है।

मुझे ये बात अटपटी लगती है कि जब कहीं स्त्री सशक्तिकरण पर चर्चा होती हे तो स्त्री ओर पुरूषों की बराबरी की बात कही जाती है,समान अवसर समान अधिकार की बात कही जाती है।मैं विनम्रता पुर्वक इन लोगों को चुनौती देना चाहता हूं कि अगर उनके दिमाग में इसकी साफ अवधारणा है तो एक ऐसी किताब लिख कर दिखाएं जिसमें स्त्री और पुरूष के बीच के हर व्यवहार और हर स्थिति को आचार संहिता में ढाला जा सकता हो।जिस दुनिया में स्त्री-स्त्री बराबर नहीं है पुरूष-पुरूष बराबर नहीं है उस दुनिया में स्त्री पुरूष की बराबरी की बात करना कहॉ तक तर्क संगत है।जिनको ईश्वर ने बराबर नहीं बनाया उनको ये सुपर गाड बराबर बनाने पर क्यो तुले हैं।आज के भारत में किसी एक स्त्री का नाम बताएं जो सोनिया गॉधी के बराबर है।और तो और उसकी अपनी बेटी प्रियंका वडेरा भी क्या उसके बराबर है।नारों में सुनना और कहना बहुत अच्छा लगता है पर इस दुनिया का इतिहास उठा कर देख लीजिए राम से लेकर गॉधी तक कभी किसी युग में दो इन्सान बराबर नहीं रहे हैं।संजय दत्त जेल में भी दूसरे कैदियों से अलग है।दुनिया की बात जाने दीजिए दो पुरूष या दो स्त्रीयां भी अगर साथ रह रहें हों तो निभती तभी तक है जब तक कभी एक तो कभी दूसरा दब जाता है,दोनों के बराबर होन का मतलब है साथ का टूटना।समान अवसर की बात करने वालों से पूछना चाहता हूं कि ओलम्पिक खेलों में समान अवसर होता है फिर क्यों महिला धावक पुरूष के बराबर समय में दौड़ पूरी नहीं कर पाती।आज तक किसी ने ये प्रश्न नहीं उठाया कि विम्बलडन में फाइनल मुकाबला स्त्रीयों के लिए तीन मैचों और पुरूषों के लिए पॉच मैचों का क्यों होता है।इस बात का किसी के पास क्या उत्तर है कि ईश्वर ने महिलाओं को केवल लड़की पैदा करने वाले वाई क्रमोसोम दिए है पर पुरूष को एक्स तथा वाई दोनों क्रमोसोम दिए है।बड़ा साफ इशरा है कि ईश्वर ने दोनों को एक दूसरे का पूरक बनाया है न कि प्रतिद्धंदी।

आज समाज का जो भी रूप है रातों रात नहीं बना है,हजारों वर्षों के विनाश और विकास इसके पीछे है,समय की आवश्यकता के अनुरूप बनता और बदलता आया है।इस धरती पर जब नारेबाज नहीं थे तब भी दुनिया बदलती रही थी और जब नारेबाज नहीं होगें तब भी बदलती रहेगी।इतिहास के कोई भी दो कालखंड उठा कर देख लीजिए स्थितियां एक सी नहीं रही हें चाहे वो नारी के लिए हो या पुरूषों के लिए।आधुनिक विज्ञान के आने के बाद तो दस दस साल में समाज और स्त्री की स्थिति बदल रही है।वैसे भी समाज का निर्माण में स्त्री का योगदान ज्यादा है,औपचारिकताएं,परम्पराएं आदि स्त्री के कारण ही ज्यादा हैं इसलिए समाज में अच्छाई हो या बुराई दोनों का श्रेय स्त्री को ही ज्यादा जाता है।जिस दिन स्त्री अपने बेटे को वैसा बनाने पर ध्यान देगी जेसा वो पति को बनाना चाहती है उस दिन आधी समस्याएं दूर हो जाएंगी किन्तु समस्या ये हे कि वो बेटे को कृष्ण कनैहया और पति को राम बनाना चाहतीं हैं।जिन पुरूषों को ताने मारे जा रहे हैं कि उन्होने औरतों को गुलाम बना कर रखा ये वही पुरूष हें जिन्होंने सन् 712 में सिंध पर मुहम्मदबिन कासिम के हमले से लेकर अंग्रेजों के आने तक मुसलमानों से स्त्रीयों को बचाने के लिए अपने प्राण दिए हैं वरना भारत में भी आज अफगानिस्तान की तरह बुर्का राज होता,हर स्त्री बुर्के में नजर आती और तीन तीन सौतनों के साथ रह रही होती।आज भारतीय समाज में स्त्री की जो भी स्थिति है उसमें इतिहास का बहुत योगदान है।लेकिन तमाम कड़वी सच्चाईयों के बावजूद समाज में पीरवर्तन आ रहा है आता रहेगा,परिवर्तन प्रकृति का नियम है।आज लड़कियां घर से बाहर निकल कर कुछ कर रहीं हैं तो क्या ये केवल उनकी मॉ,बहन,दादी नानी के कारण है क्या इसमें पुरूषों का कोई योगदान नहीं है।समाज बदल रहा है स्थितियां बदल रहीं हैं किन्तु ये नारेबाज चाहते हैं कि रातों रात सब कुछ बदल जाए भले ही 80ऽ के लिए सार्थक शिक्षा का इन्तजाम हो न हो,मुझे इनकी इसी बात से परेशानी है,जो जंगल हजारों साल में उगा है उसे रातो रात नहीं काटा जा सकता।वेसे भी अनुभव बताता हे कि द्रुत गति से आया परिवर्तन समाज में विषमताओं को भयावह बनाता है।याद रहे कि शरीर विज्ञान और मनोविज्ञान किन्हीं नारे बाजों का गुलाम नहीं है।क्या किया जाए अगर ये सत्य है कि जो पुरूष घर में खाना बनाने,बच्चे पालने,पोतड़े धोने में दक्ष हो जाते हैं वो बच्चे पैदा करने में कम सक्षम हो जाते हैं।

यदि ग्राफ बनाया जाए तो स्पष्ट देखा जा सकता है कि जैसे जैसे तथा कथित नारी सशक्तिकरण आगे बढ़ा है पुरूषों में प्रजनन छमता कम हुई है,पुरूषों के वीर्य में शुक्राणुओं का घनत्व लगातार कम होता जा रहा है,लेकिन इसका अर्थ ये नहीं है कि नारी की स्थिति में सुधार नहीं होना चाहिए,इसका अर्थ ये है कि नारी सशक्तिकरण की दिशा गलत है।मानवीय मूल्यों,संवेदना के विकास में घर का योगदान अतुलनीय है।आज घर के टूटने के कारण संवेदनहीनता बढ़ती जा रही है जिसका परिणाम हैं पूरी दुनिया में बढ़ती हिंसा।ये घर ही था जिसके कारण मानव जंगली से पालतू बना,नारी का महत्व भी घर के कारण ही बढ़ा इसलिए अगर घर को बचाकर सशक्तिकरण किया जाता तो ये नौबत नहीं आती,घर को नीलाम करके होटल में रहना कितनी समझदारी है ये नारेबाज ही बता सकते हैं।विडम्बना ये भी हे कि जिस घर को नारी ने ही बनाया था आज नारी ही उस घर को तोड़ रही है पुरूष तो इसमें बस एक तमाशबीन या मॉ,पत्नी बेटी के बीच फुटबाल बनकर रह गया है।न सास बहु में पटती है न भाभी ननद में,पुरूष किसको छोड़े किसको नहीं के तनाव में जी रहा है नतीजा ये कि शुक्राणु कम होते जा रहे हैं।घर टूटने के बाद जो बचता है वो बाजार है और बाजार सिर्फ पैसे का यार होता है इसलिए वो बेघर करके नारी और पुरूष दोनों का शोषण कर रहा है।दोनों को पैसा कमाने की मशीन बनाकर रख दिया है समलैंगिकता बढ़ती जा रही है क्योंकि पति और पत्नी के बीच अब संवाद कम कानून ज्यादा बोलता है।कानून है कि बिना सहमति के पत्नी के साथ सम्भोग करना बलात्कार माना जाएगा,शायद बहुत जल्द ये कानून भी आ जाए कि पत्नी को ऑख मारने पर अगर पत्नी शिकायत कर देती है तो पति को जेल हो जाएगी।मैं पुन: चुनौती देता हूं कि है कोई जो पति पत्नी के रिश्तो को आचार संहिता में ढाल सके जिसमें हर स्थिति शामिल हो।

कहा जा रहा है कि पुरूष के वीर्य में शुक्राणुओं की कमी का कारण पर्यावरण प्रदूषण तथा आधुनिक जीवन शैली है।दोनों का सम्बंध फैलते बाजार वाद से है और कितना कड़ुआ सच है कि दोनों की जनक स्त्री है।तथा कथित स्त्री सशक्तिकरण तथा बाजार का सशक्तिकरण पूरी तरह से समानान्तर है,बाजार अटे पड़े हैं धरती खाली होती जा रही है।आज जिस तरह पैसा आने के बाद फैशन और विलासिता बढ़ी है उसका सबसे बड़ा कारण स्त्री की सामंती मानसिकता है,उसकी साड़ी मेरी साड़ी से सफेद क्यो,क्या ये सच नहीं है कि एक स्त्री दूसरी स्त्री को नीचा या छोटा दिखा कर बड़ी आनन्दित होती है।कहीं कहीं तो सगी बहनो और मॉ बेटी में भी कम्पटीशन चलता है।अगर पुरूषों की बात करे तो आज भी बाजार वाद तो क्या बाजार ही नहीं होता।विडम्बना देखिए कि जिस बाजार की मदद से नारी ने सशक्तिकरण की राह पकड़ी थी वही बाजार उसकी देह को वस्तु बनाकर बेच रहा है और आरोप पुरूषों पर है।क्या कोई सम्पादक लेखिका के घर जाता है,क्या कोई फिल्म निर्माता किसी लड़की के घर जाकर फिल्म में काम करने के लिए बुलाता है,कौन मजबूर करता है बिस्तर गर्म करके काम लेने के लिए।सबको मालूम है कि वहॉ गंदगी है फिर भी क्यों मॉ अपनी बेटी को लेकर पहुंच जाती है।बात निकली है तो पुरूषों पर आरोप लगाने वाले जवाब दे कि क्या हेमा मालिनी बच्ची थी या गॉव की अनपढ़ गंवार लड़की जो उसने अपने से 15 साल बड़े धर्मेंन्द्र से शादी करके दूसरी औरत का घर तोड़ दिया।क्या हेमा मालिनी की स्थिति तब एक सशक्त नारी वाली नहीं थी और क्या किसी महिला संगठन ने विरोध किया।हेमा मालिनी,श्रीदेवी करे तो कोई बात नहीं पर एक पुरूष अगर अपने से छोटी लड़की से व्याह करना चाहे तो हाय तौबा मच जाती है।वैसे तो 50 साल के आदमी के लिए हर लड़की अंकल कहती है और उम्मीद करती है कि उसको बेटी जैसा सम्मान दे पर वही लड़की जब 50 साल के सलमान,शाहरूख खान के सामने आती है तो शादी कर प्रस्ताव रखने में गर्व महसूस करती है।

कहा जाता है कि नारी किसी भी तरह पुरूषों से कम नहीं है,पर मैं तो ये मानता हूं के चतुराई में वो पुरूषों से मीलों आगे है ये बात अलग है कि चतुराई कहॉ प्रयोग होती है।आज से केवल तीन चार सौ साल पहले जब न सड़कें थी,न कारें,न होटन,न एयर कंडीशन होटल और दफ्तर,घर से बाहर थी तो केवल धूल,धूप,बरसात और कीचड़ तब पुरूष घर से बाहर जाकर क्या करता था।मजदूरी करता था,लुहार का काम काता था,बढ़ई का काम करता था,सर पे रख कर घर घर सामान बेचता था हाट लगाता था अर्थात जो भी करता था सबमें श्रम था।इस दौर में घर से बाहर जाकर तीन समय का भोजन कमाने से घर में रहकर तीन समय का भोजन बनाना कहीं ज्यादा सुरक्षित और सुविधा जनक था तब अगर कोई अगर किसी लड़की से कहता कि घर से बाहर निकल कर पहचान बनाओ तो वो घर से बाहर जाकर क्या करती, कौन सी पहचान बनाती,बढ़ई की लुहार की या फेरी वाले की।तब किसी नारी ने नहीं कहा कि स्त्री और पुरूषों में बराबरी होनी चाहिए,तब तो स्त्री ने पुरूष के अहंकार पर हाथ फेर कर कहा""क्या मर्द होकर भी घर में घुसे रहते हो''।अर्थात जब घर ज्यादा सुरक्षित और सुविधा जनक था तब नारी ने घर चुन लिया और अब बाहर की दुनिया में मजे करने के मौके आए तो वो घर को कैद खाना बता रही है।मुझे इस बात से आपत्ति नहीं है कि नारी घर को त्यागना चाहती है,मुझे आपत्ति है इसके लिए पुरूषों पर शोषण का आरोप लगा कर बहाना ढ़ूढ़ने पर।स्त्री की चतुराई का प्रमाण इस बात से भी मिलता है कि उस युग में भी आनन्द के अवसरों जैसे मेले,शादी व्याह,मन्दिर आदि में वो तब भी जाती थी।विडम्बना ये देखिए कि एक वर्ग ऐसा भी था जिसकी स्त्रीयां भी बाहर निकल कर श्रम करतीं थी लेकिन उस वर्ग को आज भी शिकायत नहीं है।मान लीजिए अगर निरोध का आविष्कार नहीं हुआ होता तो क्या स्थिति होती क्या ये सम्भव था कि नारी घर से बाहर निकल पाती,क्या ये सत्य नहीं है कि आज नारी की शक्ति में निरोध की शक्ति का भी योगदान है।मैं कोई व्यंगय नहीं कस रहा हूं मैं केवल इतना कहना चाहता हूं कि स्थितियों की समीक्षा काल सापेक्ष हो सैंकड़ो साल पहले जो हुआ उसको आज के मूल्यों और धारणाओं के आधार पर परख कर समाज में बेमतलब कड़ुवाहट न पैदा करें।

नारी सशक्तिकरण की रट रात दिन लगाने वाले इन सुपर गाडों को मैं ये भी बताना चाहता हूं के सशक्तिकरण शब्द एक तुलनात्मक शब्द है इसलिए इसको परिभाषित नहीं किया जा सकता।ये एक स्थिति है जो लगाता बदलती रहती है,अलग अलग देश,जातियों,धर्मों तथा समाजों के लिए अलग अलग परिभाषा हो सकती है।स्वतंत्र रूप में सशक्तिकरण को परिभाषित करना किसी के बस की बात नहीं है इसलिए मेरा दावा है कि कोई भी ये नहीं बता सकता कि ऐसी कौन सी स्थिति है जिसको प्राप्त करके नारी मुक्त या सशक्त कहलाएगी।ऐश्वर्या राय की कहानी ले लीजिए जब उसका सलमान खान से नाम जुड़ा हुआ था तब कई बार सलमान खान से उससे निन्दनीय व्यवहार किया लेकिन ऐश्वर्या कुछ नहीं कर सकी।हाल में ही जान अब्रााहम ने विपाषा बसु को कई साल तक अपने घर में रख कर अचानक बाहर फेंक दिया और एक कम उम्र की लड़की के साथ निकाह कर लिया।क्या कहेंगें कि ये दोनों नारीयां अशक्त थीं।नहीं नारीयां तो आजकल के हिसाब से बहुत सशक्त थीं पर उनका शोषण करने वाले उनसे कहीं ज्यादा सशक्त हैं इसलिए तुलना में वो असशक्त साबित हुर्इं।प्रकृति का नियम है कि एक जगह कुछ जमा(अ) होता है तो दूसरी तरफ कुछ घटता(-) भी है,अर्थात सशक्तिकरण और असशक्तिकरण साथ साथ चलते हैं।तथा कथित नारी सशक्तिकरण की सच्चाई भी बिल गेटस तथा अम्बानी की कहानी है जिसमें मुठ्ठी भर लोगों का सशक्तिकरण होता है और उसके बदले में बहुत बड़ी जनसंख्या का अशक्तिकरण हो जाता है,मध्यम वर्ग का सफाया हो रहा है मुठ्ठी भर लोग स्वीट्जरलैंड में बैठकर दुनिया चलाते हैं और पूरी दुनिया उनके लिए काम करती है।ये कुछ और नहीं जमीदारी का नया रूप है।इसी प्रकार की कहानी है महिला सशक्तिकरण की भी,मुठ्ठी भर औरतें अखबारों में छाई हुई हैं और करोड़ों स्त्रीयां जो पहले सिर्फ घर सम्भालती थी अब घर नौकरी दोनों में खप रही हैं,पहले सिर्फ घर में शोषड़ होता था अब बाहर भी हो रहा है।मुठ्ठी भर महिलाएं विज्ञापन से सामान बेचकर शोहरत और करोड़ों की दौलत कमा रहीं हैं और करोड़ो औरतें सामान खरीद कर उनकी मौज मस्ती का इन्तजाम कर रहीं है,बनियों और बैंको की किस्त भर रही हैं।बाजार,मीडिया में हजार में से एक की सफलता की कहानी दिखाकर 999 को हताशा की ओर ढकेल रहा है जिससे आत्महत्याएं बढ़ रहीं हैं।बूढ़े मॉ बाप बेसहारा हो गए न उनकी देखभाल हो पा रही है न ही बच्चो की परिणाम ये है कि बच्चों में संवेदहीनता और हिंसा बढ़ती जा रही है।नारी सशक्तिकरण की गलत दिशा के कारण पूरे समाज तथा मानवीय मूल्यों का असशक्तिकरण हो रहा है जिसका परिणाम भयावह होने जा रहा है।

सबसे बड़ा सवाल तो ये हे कि आखिर इस नारी सशक्तिकरण का उद्देश्य क्या है।नारी को समाज तथा घर में सम्मान जनक,न्यायोचित स्थान दिलाना या वो अधिकार दिलाना जो अब तक केवल पुरूषों के पास थे,अर्थात पुरूष चार शादी कर सकता है तो नारी को भी छूट होनी चाहिए,पुरूष रखैल रखता था तो अब नारी भी रखेगी,पुरूष शराब पीता था तो नारी का भी पीना जरूरी है,पुरूषों ने नारी को कोठे पर बिठाया तो अब नारी पुरूषों को कोठे पर बिठाकर उनका मुजरा देखेगी।पुरूषों में डान बनते थे इसलिए अब लेडी डान का होना भी जरूरी है आदि आदि,अर्थात पहले आधी आबादी व्यसन करती थी अब सौ प्रतिशत को करना चाहिए।पश्चिम को ये स्वीकार हो सकता है पर भारत में जैसी आज की स्थिति है ये बात कभी स्वीकार नहीं होगी मुठ्ठी भर अंग्रेजी पढ़े लिखे पेंज 3 के लोग जितना चाहे चिल्ला ले।

बुद्धिजीवी होने का सही अर्थ होता है समस्त मानव जाति के हित को ध्यान में रखकर किसी वर्ग विशेष के उत्थान की बात सोचे।मेरे देश के बुद्धिजावियों को बताना चाहता हूं के अमरीका आदि में जो नारी की मुक्ति हुई है जिसे वो नारी सशक्तिकरण का पर्याय मान रहे हैं वो पूरे समाज के आर्थिक,राजनैतिक,प्रशासनिक सशक्तिकरण का हिस्सा है,न कि भारत की तरह नारी,मुस्लिम दलित,पिछड़ो आदि अलग अलग सशक्तिकरण का।वो सब कुछ तो देखते हे पर वहॉ नयाय व्यस्था का कितना सशक्तिकरण हुआ है इसे नहीं देखते।लेकिन इसके बावजूद वहॉ भयावह समस्याएं पैदा हो रही हें अपराध की दर इतनी ज्यादा है कि जेलों में कैदियों को रखने की जगह नहीं है,सजा पूरी होने से पहले कैदी छोड़े जा रहे है।अधिकतर देशों में मूल निवासियों की संख्या तेजी से कम होती जा रही है सदी के अंत तक उनके विलुप्त हो जाने का खतर पैदा हो गया है क्या भारत के बुद्धिजीवी भी यही चाहते हैं।

लक्षमी नारायण अग्रवाल
अब प्रश्न उठता है कि नारी सशक्तिकरण की दिशा क्या होनी चाहिए।सबसे पहले तो बाजार के इस प्रचार को रोकना चाहिए कि पढ़ लिख कर गृहणी होना कोई पहचान नहीं है या हीनता की निशानी है।जिस तरह पुरूषों से कहा जाता है कि शिक्षित होने का ये मतलब नहीं है कि श्रम के काम छोड़ दें,उसी तरह नारी से भी ये बात कही जा सकता है कि पढ़ने लिखने का मतलब ये नहीं है कि नौकरी करना जरुरी है।4000-5000 रू0 महीने के लिए पूरे दिन घर से बाहर रहने से घर में ही रहकर बच्चों की देखभाल और साथ में कुछ काम घर से ही कर लेना ज्यादा अच्छा है।हमें ये स्वीकार करना ही होगा कि वैज्ञानि और मनोवैज्ञानिक रूप से नारी और पुरूष दो वर्ग हें प्रकृति ने उनकी संरचना पूरक के रूप में की है न कि प्रतिद्धंदी के रूप में।नारी सशक्तिकरण के केन्द्र में नारी नहीं घर होना चाहिए और घर नारी का होना चाहिए क्योंकि घर ही उसकी सबसे बड़ी शक्ति है।प्राथमिक और उच्च शिक्षा दोनों के लिए एक हो सकती है पर भारत में जिस तरह विभिन्न कारणों से अधिकतर लड़कियों को बीच में ही शादी करके घर सम्भालना पड़ता है उसके लिए माध्मिक शिक्षा लड़कियों के लिए कुछ अतिरिक्त भाग भी होना चाहिए जिसमें घर गृहस्ती के ज्ञान का समावेश हो ताकि वो कम पैसे में पौष्टिक भोजन,स्वास्थ और शिक्षा अपने परिवार को दे सके।घर से बाहर नौकरी में भी उनके लिए ऐसी नौकरियों में 100% आरक्षण हो जिनमें घर से तालमेल रह सकता है।कहने का मतलब ये है कि नारी सशक्तिकरण कि दिशा ऐसी होनी चाहिए कि घर बचा रहे,नारी और पुरूष के बीच के सम्बंध मैकेनिकल न हों।

यह रचना लक्ष्मी नारायण अग्रवाल जी द्वारा लिखा गयी है.आपकी मुक्ता,गृहशोभा,सरस सलिल,तारिका,राष्ट्र धर्म,पंजाबी संस्कृति,अक्षर ,खबर ,हिन्दी मिलाप पत्र -पत्रिकाओं आदि में प्रकाशन। कई कहानियाँ व व्यंग्य पुरस्कृत । कई बार कविताएं आकाशवाणी और दूरदर्शन से प्रसारित हो चुकी है ."आदमी के चेहरे'( कविता संग्रह ) 1997, "यही सच है'(कविता संग्रह) 1998 आदि आपकी प्रकाशित रचनाएँ हैं . सम्पर्क सूत्र - घरोंदा, 4-7-126, इसामियां बाजार हैदराबाद -500027 मोबाइल - 09848093151,08121330005, ईमेल –lna1954@gmail.com

COMMENTS

Leave a Reply
नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,37,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",7,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,4,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,8,आषाढ़ का एक दिन,22,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,5,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,19,कमलेश्वर,7,कविता,1474,कहानी लेखन हिंदी,17,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,6,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,38,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,2,केदारनाथ अग्रवाल,4,केशवदास,6,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,139,गजानन माधव "मुक्तिबोध",15,गीतांजलि,1,गोदान,7,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,3,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,6,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,35,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,76,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,6,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,28,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,4,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,10,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,25,नाटक,1,निराला,39,निर्मल वर्मा,4,निर्मला,42,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,202,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,139,प्रयोजनमूलक हिंदी,38,प्रेमचंद,47,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,88,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,8,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,9,भक्ति साहित्य,143,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,17,भीष्म साहनी,8,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,10,मलिक मुहम्मद जायसी,9,महादेवी वर्मा,20,महावीरप्रसाद द्विवेदी,3,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,14,मैला आँचल,8,मोहन राकेश,15,यशपाल,15,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,6,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,21,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,3,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,9,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,4,लघु कथा,124,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,34,विद्यापति,8,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,2,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,8,शमशेर बहादुर सिंह,6,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,6,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,57,शैलेश मटियानी,2,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,4,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,33,सआदत हसन मंटो,10,सतरंगी बातें,33,सन्देश,44,समसामयिक हिंदी लेख,269,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,20,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,86,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",10,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,23,सूरदास,16,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,11,हजारी प्रसाद द्विवेदी,4,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,432,हिंदी लेख,532,हिंदी व्यंग्य लेख,14,हिंदी समाचार,182,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,91,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aapka-banti-mannu-bhandari,6,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,chitra-varnan-hindi,3,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,11,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,20,hindi essay,424,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,105,hindi stories,679,hindi-bal-ram-katha,12,hindi-gadya-sahitya,8,hindi-kavita-ki-vyakhya,19,hindi-notes-university-exams,67,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,22,kavyagat-visheshta,25,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,11,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,raag-darbari-shrilal-shukla,7,Rimjhim Class 3,14,samvad-lekhan-in-hindi,6,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,skandagupta-natak-jaishankar-prasad,6,sponsored news,10,suraj-ka-satvan-ghoda-dharmveer-bharti,4,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,51,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: महिला सशक्तिकरण
महिला सशक्तिकरण
Women Empowerment,महिला सशक्तिकरण,Women Empowerment in india.
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgoPqokPdd5sC7MpbbuMFsfAiJyLFKQCmRnv48zhFH_38pW6ODPVyAACCF7gDydd-bB07uoLyjCbahdIWuzYRoz2I6DcgP_54Jm-k0DAi7C-NC9mKM2Al4lmop5cGDr1s2v5C9Cb65a-fNx/s1600/women_empowerment.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgoPqokPdd5sC7MpbbuMFsfAiJyLFKQCmRnv48zhFH_38pW6ODPVyAACCF7gDydd-bB07uoLyjCbahdIWuzYRoz2I6DcgP_54Jm-k0DAi7C-NC9mKM2Al4lmop5cGDr1s2v5C9Cb65a-fNx/s72-c/women_empowerment.jpg
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2014/11/women-empowerment.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2014/11/women-empowerment.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका