गनपत राव हमारे इलाके के जाने-माने समाजसेवी हैं। उनकी सेवाभाव से अविभूत हो लोगों ने उन्हें 'गन्नू भैया' जैसा प्यारा नाम दे डाला और अब सब उन्हें इसी नाम से जानते हैं। आनेवाले चुनाव में जब उन्हें टिकिट मिलने की बात चल पड़ी तो इलाके की हर गली में उनके इसी नाम की धूम-सी मच गई। गन्नू भैया भी अब जोर-शोर से समाजसेवा में अग्रणी बन, नित नई सोच के साथ दिखाई देने लगे।
एक दिन वे मंदिर के द्वार पर खड़े दिखे जहाँ एक अंधा भिखारी प्रायः कटोरा लिये बैठा रहता था। गन्नू भैया उसके सामने खड़े हो गये। बस क्या था, गन्नू भैया को वहाँ देख लोग जमा होने लगे। अच्छी-खासी भीड़ जमा होते ही गन्नू भैया संबोधित करने लगे .....
'भाईयों और बहनों! मैं कल इस मंदिर में भगवान के दर्शन के लिये आया था। आप भी यहाँ आते होंगे और इस वयोवृद्ध भिखारी को देखते होंगे और आपके मन में दया जाग्रत होती होगी। आप सहृदय से कुछ दान इसके भिक्षापात्र में डाल देते होंगे। मैंने भी यही किया। तभी एक मनचला वहाँ आया और दान देने आगे बढ़ा। उसने अपने पास का दस का नोट इसके पात्र में डाला और मेरा दिया सौ का नोट उठा ले चला। मैं कुछ करता उसके पहले वह अपनी बाइक पर सवार हो भाग खड़ा हुआ।
'भाईयों और बहनों! मैं जानता हूँ कि आप अनंत श्रद्धा से इसके पात्र में दान देते हैं। पर कई उच्चके खोटे सिक्के इसके पात्र में डालकर असली सिक्के उठा ले जाते हैं। ये कुछ लोगों का धंधा बन गया है। कुछ लोग दान तो देते नहीं, बल्कि इस बेचारे के पात्र से ही पैसे बटोर ले भागते हैं। बेचारा अंधा न तो कुछ समझ पाता है, न देख पाता है।
'इसलिये भाईयों और बहनों! मैं आज से यहाँ खड़ा होकर उसके लिये भीख माँगूगा। '
भूपेन्द्र कुमार दवे |
इतना कह गन्नू भैया ने अंधे भिखारी का पात्र अपने हाथ में ले लिया और भीड़ की तरफ आगे बढ़े। लोग 'गन्नू भैया की जय' का नारा लगाते हुए पात्र में रुपये-पैसे डालने लगे। देखते ही देखते पात्र सिक्कों व नोटों से लबालब भर गया। मैंने देखा कि एक सयाने आदमी ने पाँच सौ का नोट तक दान में दे दिया था।
गन्नू भैया ने तब इन सिक्कों व नोटों को गिना और अंधे भिखारी को देते हुए कहा, 'बाबा! तीन सौ अस्सी रुपये जमा हुए हैं। यह लो और इस कड़ी धूप अब मत खड़े रहो। मैं कल फिर तुम्हारी मदद करने आऊँगा। '
भीड़ ने ताली बजाते हुए गन्नू भैया की जयकार से आसमान को गुंजायमान कर दिया।
दूसरे दिन गन्नू भैया मुझे उसी मंदिर के सामने दिखे। उस दिन उन्होंने और भी प्रभावी भाषण दिया और भिक्षा पात्र हाथ में धरे भीड़ की तरफ बढ़े। मैंने भी उत्साहित होकर एक हजार का नोट पात्र में डाल दिया।
दान की पूरी प्रक्रिया के बाद गन्नू भैया ने सिक्कों व नोटों को गिना और अंधे भिखारी को देते हुए कहा, 'बाबा! आज तो कल से भी ज्यादा रुपये जमा हुए हैं। सात सौ पैसठ रुपये हैं। यह लो। '
तभी मैंने कहा, 'गन्नू भैया! मेरा दिया एक हजार का नोट कहाँ गया? उसका नंबर है ... 'पर मैं नंबर बताता इसके पहले गन्नू भैया ने कहा,' हाँ, लगता है वह नीचे गिर पड़ा है। 'और वे झुककर तलाशते हुए भीड़ में घुस गये।
भीड़ हड़बड़ा गई और गन्नू भैया को नदारद होने का मौका मिल गया।
गन्नू भैया ने तब इन सिक्कों व नोटों को गिना और अंधे भिखारी को देते हुए कहा, 'बाबा! तीन सौ अस्सी रुपये जमा हुए हैं। यह लो और इस कड़ी धूप अब मत खड़े रहो। मैं कल फिर तुम्हारी मदद करने आऊँगा। '
भीड़ ने ताली बजाते हुए गन्नू भैया की जयकार से आसमान को गुंजायमान कर दिया।
दूसरे दिन गन्नू भैया मुझे उसी मंदिर के सामने दिखे। उस दिन उन्होंने और भी प्रभावी भाषण दिया और भिक्षा पात्र हाथ में धरे भीड़ की तरफ बढ़े। मैंने भी उत्साहित होकर एक हजार का नोट पात्र में डाल दिया।
दान की पूरी प्रक्रिया के बाद गन्नू भैया ने सिक्कों व नोटों को गिना और अंधे भिखारी को देते हुए कहा, 'बाबा! आज तो कल से भी ज्यादा रुपये जमा हुए हैं। सात सौ पैसठ रुपये हैं। यह लो। '
तभी मैंने कहा, 'गन्नू भैया! मेरा दिया एक हजार का नोट कहाँ गया? उसका नंबर है ... 'पर मैं नंबर बताता इसके पहले गन्नू भैया ने कहा,' हाँ, लगता है वह नीचे गिर पड़ा है। 'और वे झुककर तलाशते हुए भीड़ में घुस गये।
भीड़ हड़बड़ा गई और गन्नू भैया को नदारद होने का मौका मिल गया।
यह कहानी भूपेंद्र कुमार दवे जी द्वारा लिखी गयी है। आप मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल से सम्बद्ध रहे हैं। आपकी कुछ कहानियाँ व कवितायें आकाशवाणी से भी प्रसारित हो चुकी है। 'बंद दरवाजे और अन्य कहानियाँ', 'बूंद- बूंद आँसू' आदि आपकी प्रकाशित कृतियाँ है।संपर्क सूत्र - भूपेन्द्र कुमार दवे, 43, सहकार नगर, रामपुर,जबलपुर, म.प्र। मोबाइल न. 09893060419.