हिंदी की वर्तनी के परिवर्तन. आज की हिंदी की वर्णमाला में परिवर्तन आया है . इस सन्दर्भ में रंगराज अयंगर का विशेष विवेचन हिंदीकुंज में प्रस्तुत किया जा रहा है .
हिंदी की वर्तनी के परिवर्तन
आज की हिंदी वर्णमाला निम्नानुसार है.
चित्र -1
इन वर्णमालाओं में अ,आ,ओ,औ,अं,अः,ख,छ,ण,ध,भ
अक्षरों पर गौर कीजिए, आज इन्हें उसी तरह लिखा जाता है. पुरानी हिंदी की
वर्णमाला कुछ भिन्न दिखाई देती है. थोड़ा बहुत फर्क तो ल,श,त्र में भी
दिखता है. दो तरह से लिखने की रीत से भ्रांति होती है और कुछ वर्णों में
जैसे - म व भ तथा घ व ध में शिरोरेखा के जुड़जाने से दुविधा होती है.
कुछेक
वर्ण हिंदी में प्रयोग किए जा रहे हैं किंतु अधिकारिक तौर पर उन्हें
वर्णमाला में शामिल नहीं किया गया है. कुछेक सुधारों की तरफ भी ध्यान देना
होगा. पंचमाक्षर अनुस्वार नियम में वर्गेतर वर्णों के लिए अनुस्वार तय नहीं
किया जाना संदेह का कारण बन पड़ा है. हिमांशु को कैसे सही लिखा जाए..
हिमाम्शु या हिमान्शु. सही की पहचान कैसे हो ? वैसे ही श+र=श्र हुआ और श+ऋ=शृ हुआ. अब प्रचलन में सिंगार के रुप शृंगार को श्रृंगार लिखा जाता है. सोचिए यह कितना उचित या अनुचित है.
पहले कभी हिंदी वर्णमाला कुछ इस तरह होती थी. (संदर्भ 5)
चित्र 2
साधारणतः
भारतीय भाषाओं में अक्षर के मस्तक पर लगी स्वर की मात्राओं का उच्चारण
अक्षर के बाद होता है. लेकिन अनुस्वार व रेफ इसमें अपवाद है. अनुस्वार जिस
अक्षर के ऊपर लगता है उसके बाद ही उच्चरित होता है. वैसे भी वह अगले अक्षर
के वर्ग का पंचमाक्षर (पञ्चमाक्षर) होता है. रेफ की तरह अनुस्वार भी पहले
उच्चरित करने से अगले अक्षर पर लग सकता है जिससे अपवाद नहीं रहेगा. जैसे
मयन्क को मयंक न लिख कर मयकं लिखा जाए और साधारण नियमानुसार अनुस्वार का
उच्चारण क के पहले आए तो यह “मयंक” सा ही पढ़ा जाएगा.
लेकिन अब यह अपवाद बनकर रह गया है. कुछ भारतीय भाषाओं (खासकर दक्षिणी
भाषाओं में अनुस्वार को अक्षर के बाद ही लिखा जाता है वहाँ मस्तक पर
अनुस्वार लगाने की प्रथा नहीं है. इसी कारण रेफ व अनुस्वार के प्रयोग में
विद्यार्थी (खासकर दक्षिणी)
गलतियाँ कर जाते हैं. व्यंजन अक्षरों की मात्राएं जो अक्षरों का ही अंश
होती हैं , उच्चारण की श्रेणी में ही लिखे जाते हैं. जहाँ दक्षिण भारतीय
भाषाओँ में व्यंजन वर्ण अक्षरों के नीचे लिखे जाते हैं और बाद मे उच्चरित
होते हैं .
प्रारंभ में देवनागरी लिपि में भी शिरोरेखा नहीं थी. किंतु अक्षरों के जुड़ने से उनके मस्तक, शिरोरेखा के रूप में उभरी (संदर्भ 6). हिंदी के कुछ और पुराने वर्ण चित्र 3 व चित्र 4 में देखिए.
चित्र 3
चित्र 4.
इस चित्र 4 में लृ अक्षर व मात्रा पर भी गौर फरमाएँ. बड़ी ऋ पर भी गौर फरमाएँ. जो आज हिंदी वर्णमाला में लुप्त हो चुकी हैं.
अब कुछ विवेचना करें.
जिस तरह –
क् + ष = क्ष
त् + र = त्र
ज् + न = ज्ञ - हैं
वैसे ही
द् + य = द्य (विद्यालय)
क् + त = क्त (नुक्ता)
प् + र = प्र (प्रमाण)
श + र = श्र (श्रम) भी हैं.
इनको
भी संयुक्ताक्षर के रूप में स्वीकार कर वर्णमाला में स्थान दे देना चाहिए.
हिंदी के सरलीकरण के तहत कई जगहों से हलन्त का प्रयोग हटा लिया गया है.
जैसे महान् को अब महान लिखा जाने लगा है. वैसे ही विसर्ग (:) का भी हाल है. दुःख को अब दुख ही लिखा जाता है और यह मान्य भी है. वैसे ही छः को छै भी लिखा जा रहा है
अब तक प्रस्तुत भिन्नताओं को एक जगह एकत्रित करने का प्रयास किया गया है जो नीचे प्रस्तुत है.
अब तक प्रस्तुत भिन्नताओं को एक जगह एकत्रित करने का प्रयास किया गया है जो नीचे प्रस्तुत है.
चित्र- 5
उर्दू का नुक्ता अभी भी पूर्णरूपेण हिंदी में नहीं समाया है. फिर भी कुछ लोग इसका प्रयोग कर रहे हैं. इन छोटे छोटे समाहितों से हमारी भाषा बहुत समृद्ध हो जाएगी. भाषाविदों से अनुरोध है कि वे इस तरफ ध्यान दें एवं विचारें.
अभी
भी हिंदी में अपनाने के लिए कई बातें है. जैसे गुरुमुखी का द्वयत्व, मराठी
का ळ, दक्षिण भारतीय भाषाओं में उपलब्ध ए व ऐ एवं ओ और औ के बीच के स्वर (तेलुगु भाषा के ఎ ఏ ఐ, ఒ ఓ ఔ),
ऍ का स्वर, इनमें से कुछ हैं. इन्हें अपनाने से बहुत तरह की ध्वनियों को
हिंदी में भी लिखा जा सकेगा जिन्हें अभी हिंदी में लिखना उपलब्ध वर्णमाला
से संभव नहीं हो पा रहा है
इंटरनेट
के कुछ पोर्टलों में हिंदी अक्षरों में इन उच्चारणों को दर्शाया जा रहा
है, किंतु किसी वर्णमाला में अब तक इनका समावेश नहीं है. नीचे की तालिका
देखें. इसमें ए - ऐ व ओ - औ के बीच के उच्चारण के अक्षर दिखाए गए हैं,
किंतु वर्णमाला में इनको दिखाया नहीं जाता.
चित्र 6
चित्र 7
इनके
अलावा कम्प्यूटरों के आने से लिप्यंतरण की सुविधा भी उपलब्ध हो गई है.
अंग्रेजी वर्णमाला के प्रयोग से हिंदी लिखने की नीचे दिए गई सुविधा उपलब्ध
है. (संदर्भ 2). इसके लिए आप ekalam.raftaar.in देख सकते हैं.
लिप्यंतरण ( Transliteration)
मात्राएं
◌ा ◌ ◌ी ◌ी ◌ु ◌ू ◌ू ◌े ◌ै ◌ो ◌ौ ◌ं ◌ः ◌ृ
aa i ee ii u uu oo e ai o au n h r
स्वर
अ आ इ ई ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं अः ऋ ॠ
a aa i ee ii u uu e ai o au n h r r
व्यंजन
क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण
ka kha ga gha nga cha chha ja jha ya ta tha da dha na
त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श
ta tha da dha na pa pha ba bha ma ya ra la va sha
ष स ह ळ क्ष त्र ज्ञ लृ ॡ
sha sa ha xa ksha tra ga L LL स्क्रीन में हलन्त (क्)बना है।
इस
तालिका में देखा जा सकता है कि दक्षिण भारतीय भाषाओं के ए,ऐ व ओ, औ के
उच्चारणों के बीच के अक्षर हिंदी वर्ण माला में अभी आए नहीं हैं. वैसे ही सिंधी वर्णमाला में का और कि के बीच दो वर्ण हैं जिनका स्वरूप हिंदी में अनुपलब्ध है. हिंदी
के कम्प्यूटरी करण से एक खास लाभ यह हुआ है कि अंग्रेजी वर्णमाला के
अक्षरों के समन्वय में परिवर्तन किए बिना वही उच्चारण सभी भारतीय भाषाओं
में लिखा जा सकता है. इससे आपसी भाषाई लिपि के फर्क उजागर हुए हैं. जिनसे
सुधार या उन्नति संभव है.
संदर्भ 6 में कम्प्यूटर पर दी जाने वाली हिंदी की बोर्ड उपलब्ध है
चित्र 8
एम रंगराज अयंगर |
इंटरनेट
के कुछ पोर्टलों से हिंदी के पुराने व नए लिपियों की छाप लेने की कोशिश की
गई है. मुख्यतः निम्न पोर्टलों से सामग्री का प्रयोग किया गया है. अतः मैं
इनके लेखकों के प्रति अपना सहृदय आभार प्रकट करता हूँ.
आभार –
1. मुक्त शिक्षाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय ( प्र पत्र 15 ) पृष्ठ 9 – वर्तनी और लिपि की मीनकीकरण डॉ. मीनाक्षी व्यास.
3. Latest Hindi Alphabet from,.
4. लेखमिक विश्लेषण क्रमाँक 1 व 2, पृष्ठ 240,हिंदी भाषा की संरचना – द्वारा श्री भोलानाथ तिवारी.
7. From oldest Hindi Alphabet - http://www.academia.edu/6532261/Alphabet_or_Abracadabra_-_Reverse_Engineering_The_Western_Alphabet_PDF_
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यह रचना माड़भूषि रंगराज अयंगर जी द्वारा लिखी गयी है . आप इंडियन ऑइल कार्पोरेशन में कार्यरत है . आप स्वतंत्र रूप से लेखन कार्य में रत है . आप की विभिन्न रचनाओं का प्रकाशन पत्र -पत्रिकाओं में होता रहता है . संपर्क सूत्र - एम.आर.अयंगर. , इंडियन ऑयल कार्पोरेशन लिमिटेड,जमनीपाली, कोरबा. मों. 08462021340
बहुत सुंदर धन्यवाद
जवाब देंहटाएंक्षेत्रपाल शर्मा शांतिपुरम अलीगढ
I don't know how I missed to respond to this. Thanks sir.
हटाएंBased on CHITRA-5 Gujanagari/Gujarati seems to be India's simplest nukta and shirorekha free script.So why not adopt this script in writing Hindi and free India from complex scripts and provide education to children in a simple script?
जवाब देंहटाएंDevanagari has modify classical Sanskrit script and Gujanagari is shirorekha free with few letters modifications.
I prefer nukta,anusvar,chandrabindu and danda/fullstop free Hindi for an easy Roman Transliteration.
Sir, Sorry I saw it today. We have discussed it umpteen number of times. repeating the same always will lose its importance.
हटाएंRegards,
iyengar
Bahut gyanvardhak lekh tha. Padh kar bahut accha laga. Dhanyavad.
जवाब देंहटाएंमनदीप जी, धन्यवाद
हटाएंयह लेख पढ़कर बहुत अच्छा लगा यदि इस संदर्भ में और भी जानकारी हो तो कृपया उपलब्ध करवाइएगा बहुत-बहुत धन्यवाद इस अदभुत जानकारी केलिए
जवाब देंहटाएंकुछ और जानकारी पाना चाहते हैं और अननोन (Unknown) बनकर टिप्पणी कर रहे हैं। समस्या क्या है। आप 7780116592 पर संदर्भ देकर कॉल कर सकते हैं
हटाएंसादर, आभार
फोन नंबर बदल गया
हटाएं8462021340 पर कोशिश करें।
अच्छा लेख । कुछ सुधार किया जाए । मात्राएँ सही रूप । मात्राएंX । श् +र=श्र, श् +ॠ=शृ , ज् +ञ=ज्ञ
जवाब देंहटाएंश्रीमान सहज साहित्य,
हटाएंमुझे लेख में आपके बताए सुझाव की कमी नहीं लगी। कृपया 7780116592 पर फोन या WA से संपर्क करें तो बेहतर.होगा।
सादर आभार।
मेरा विषय बिन्दु चन्द्र बिन्दु एवं अंग की मात्रा है प्रायः देखा गया है कि जब भी चाँद का उच्चारण किया जाता है इसका उच्चारण ऐसे सुनाई देता जैसे किसी ने चांद या चान्द बोला हो जबकि चन्द्र बिन्दु का प्रभाव वर्ण च के लिए है वह ऐसे बोला जाता है जैसे वह द के लिए लगाया गया हो उच्चारण करने पर इसे प्रायः चान्द बोलने का चलन है जबकि चन्द्रबिन्दु का प्रभाव केवल वर्ण "च" तक सीमित रहे और उसका उच्चारण भी "च" तक ही सीमित रहे ताकि वह शुद्ध चाँ उच्चारित किया जाए और फिर द पर चन्द्रबिन्दु का श्लेष मात्र भी प्रभाव सुनाई ना दे तब कहीं जाकर किचन्द्रबिन्दु का सही स्वरूप सुनाई देगा l
जवाब देंहटाएंइस सन्दर्भ में आपके क्या विचार हैं कृपया ज्ञानवर्धन कीजिए
उत्तरपेक्षी
अनुराग
अनुराग जी,
हटाएंसर्वप्रथम आपको बहुत-बहुत धन्यवाद कि आप ब्लॉग पर आए। फिर लेख पढ़ा और उस पर अपने विचार स्वैच्छिक ढंग से प्रेषित किया।
अब आपके सवाल पर आते हैं।
हिंदी वर्णमाला व / व्याकरण के अनुसार "ँ" चंद्र बिंदु है जिसे अनुनासिक भी कहा जाता है। इसमें जिस अक्षर पर अनुनासिक लगाया जाता है उसमें नासिका स्वर आ योग हो जाता है।
पूर्ण बिंदु "ं" को अनुस्वार कहा जाता है। हिन्दी वर्तनी के नियमानुसार हिन्दी वर्णमाला के हर वर्ग का पंचमाक्षर(ङ,ञ,ण,न,म) उस वर्ग के लिए अनुस्वार हैं । इसलिए चन्दन लिखना चाहिए। कालांतर में वर्तनी के नियमों को बदलकर पंचमाक्षर की जगह उसके पिछले वर्ण पर अनुस्वार "ं" लगाने कर दिया गया ।जिससे चन्दन बदलकर चंदन हो गया। इसी कारण जब किसी अक्षर पर अनुस्वार लगाया जाता है तब वह अगले वर्ण के वर्ग का अंतिम अक्षर का द्योतक होता है।
इससे जाना जा सकता है कि चाँद के साथ दिया गया आपका विस्तार त्रुटिपूर्ण है और आधा न या म को अनुनासिक से नहीं बल्कि अनुस्वार से बदला जाता है।
आशा है कि मैं आपके संशय का संतोषप्रद समाधान दे सका ।
यदि इसपर भी कुछ संशय या सवाल रह गए हों तो कृपया 7780116592 पर काल कर सकते हैं। आपके हर संशय का संतोषप्रद समाधान मेरा ध्येय होगा।
अ से ह तक वर्तनी क्या होगा बताईये ?
जवाब देंहटाएंबेनामी जी, आप ने लेख को सरसरी निगाह से.देखा सा लगता है। पढ़ा सा तो नहीं लग रहा। आप एक बार मन लगाकर लेख पढ़.लें तो आपके संशय का समाधान हो जाएगा। सवाल का जवाब लेख में ही है।
हटाएंकिसी भी उत्तर में हिंदी भाषा के अक्षर एवं मात्रा लिखने के लिए तीर डाल कर कलम चलाने की दिशा नहीं दर्शाई गयी है जो अत्यावशक है
जवाब देंहटाएंश्रीमान इस लेख मैं हिंदी वर्णमाला लिखना नहीं सिखाया गया है। उसके लिए बजार में पुस्तकें उपलब्ध हैं। यदि मुझसे सीखना हो तो 8462021340 पर काल करके संपर्क करें।
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