65 साल की शैलजा अपने दोस्तों और कुछ गिने चुने रिश्तेदारों के बीच बैठी ऐसी लग रही थी जैसे 16 साल के बच्ची से ऐसी गलती हो गई है कि पूरा कुनबा उसे सीख देने में लगा हुआ है। और सब माने हुए हैं कि वो सबसे ज्यादा समझदार हैं।
65 साल की शैलजा अपने दोस्तों और कुछ गिने चुने रिश्तेदारों के बीच बैठी ऐसी लग रही थी जैसे 16 साल के बच्ची से ऐसी गलती हो गई है कि पूरा कुनबा उसे सीख देने में लगा हुआ है। और सब माने हुए हैं कि वो सबसे ज्यादा समझदार हैं।
"तुम ऐसा कर कैसे सकती हो शैलजा"
"कर सकती हो पूछ रहे हो ????? ये कर चुकी हैं ... "
"शायद इसे ही सठियाना कहते हैं"
"इट्स रियली अमेजिंग, एक हजार गज का फ्लैट बेच कैसे दिया तुमने ...?"
"अरे यार अपने पति की निशानी समझ कर ही अपने पास रख लेतीं"
"पता है तुम्हें, लोग तरसते हैं आजकल, इतनी बड़ी प्रोपर्टी के लिए और तुम हो कि आसानी से बेच आईं"
"अरे बेचना भी था तो एक बार किसी से पूछ ही लेंती"
"आज तक पूछा है इसने, जो किसी से अब पूछती"
"मुझे तो ये समझ नहीं आता कि एक हजार गज का फ्लैट छोड़ कर ये दो कमरों की बरसाती में रहेगी कैसे"
"अरे दो दिन में वहां से भागे नहीं तो नाम बदल देना .... देखा है मैंने उस चूहे दानी को, जितना अभी खुश हो रही है न, बाद में उतना ही रोएगी की कहां आकर फंस गई "
शैलजा सिर झुकाए हुए बैठी थी। ये समझे बिना की कौन क्या कह रहा है।
शैलजा अपने पति के रहते सारी दुनिया की सुनती भी थी और कहती भी थी। पर जब से उसके पति ने उसे छोड़कर उसकी सहेली से शादी की थी तब से उसने सबसे कुछ भी कहना छोड़ दिया था वो सिर्फ सुनती थी क्योंकि वो जानती थी कि रिश्तेदार ऐसे ही होते हैं। और अकेली औरत को समझाना तो अपना परम कर्तव्य समझते हैं। क्योंकि उनका मानना है कि अकेली औरत तो अपने फैसले लेने के लायक ही नहीं होती। बेश्क के देश की प्रधानमंत्री एक महिला रहीं हो, बेशक स्पेश पर जाने वाली महिला हो, एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ने वाली महिला हो, बॉक्सिंग में वर्ल्ड में नाम कमाने वाली महिला रही हो। पर उसके अपने फैसले लेने का हक उसे नहीं है वो उसके माता-पिता लेते हैं। अगर वो नहीं हैं तो रिश्तेदार इस पद को खुशी-खुशी संभालने आ जाते हैं। हितेश ने जब दूसरी शादी का फैसला लिया था तो भी हितेश की बजाय सब उसे ही समझाने आए थे और तब भी शैलजा यूं ही चुपचाप सिर झुकाए बैठी रही थी।
"तू क्यों नहीं हितेश को समझाती"?
"कुछ तो ऐसा किया होगा तुमने कि उसे दूसरी शादी करनी पड़ी"
"कहा था मैंने मत घुसा अपने घर में अपनी सहेली को देख लिया, कहना न मानने का नतीजा ... अब भुगत"
शैलजा फिर भी कुछ नहीं बोली थी उसने सिर्फ हितेश से ये कहा था कि
"मैं इसी घर में रहना चाहती हूं क्योंकि बच्चों के स्कूल पास में हैं और कहीं और जाऊंगी तो थोड़ी मुश्किल हो जाएगी"
हितेश हैरान था कि शैलजा ने कोई रोना-धोना नहीं मचाया, न कुछ मांगा, न बेचारी बनी, आराम से तालाक के पेपर भी साइन करके दे दिए .... हितेश भी यही चाहता था। वो मन ही मन बहुत खुश था वैसे भी इसकी सारी किस्तें तो शैलजा ने ही दी थीं। उस सुबह के बाद शैलजा सकून में थी। शैलजा की जिंदगी में कुछ चेंज नहीं आया था बल्कि बहुत से काम कम हो गए थे। शैलजा को अपने घर में शांति मिलती थी। शैलजा कभी किसी कॉमन फैमिली फंक्शन में जाती तो हितेश और अपनी फ्रेंड को देखकर हंस पड़ती और वो किलस के रह जाती .... क्योंकि शैलजा जानती थी कि उसकी नाजुक मिजाज सहेली को हितेश को संभालने में कितनी मुश्किल हो रही होगी।
65 साल की उम्र में फिर कुछ लोग सो कॉल्ड अपने, उसे घेरे हुए बैठे थे। और शैलजा के फैसले पर उसे समझा रहे थे। शैलजा ने सब को खिलाया पिलाया और अगले दिन अपनी दो कमरे की बरसाती में शिफ्ट हो गई थी। शैलजा के दोनों बेटे एक अमेरिका एक इंग्लैंड में बैठा था और वो भी इसी बात पर नाराज थे। कि माँ ने किसी से पूछा भी नहीं और इतनी बड़ी प्रोपर्टी बेच दी। उन्होंने सोचा भी नहीं कि उस घर में हमारी इतनी यादें जुड़ी हुई हैं। दोनों ने ही एक लंबी सी मेल शैलजा को अपनी नाराज़गी जाहिर करते हुए लिख दी पर इस बात का जिक्र कहीं नहीं था कि उसने जो पैसे भेजे हैं वो इस नाराजगी के तहत रखेगें या वापिस भेज देगें। शैलजा दोनों की मेल पढ़कर मुस्कुराई और अपने बच्चों को उनकी मेल का जवाब लिखना शुरु किया।
प्रिय बच्चों .....
मुझे माफ करना, मैंने तुम्हारे उस घर को बेच दिया जिसमें तुम्हारी बहुत सारी यादें जुड़ी हुईं थीं। तुम्हें याद है कि तुम अपनी इन यादों को देखने, उन्हें संभालने में 15 साल में कितनी बार आए हो। कुल मिलाकर तीन बार, याद है मुझे। उसमें से दो बार ही तुम इस घर में रुके थे, जिसे तुम्हें बेचने का दुख है। उन दो बार में तुम्हारा अधिकतर समय अपने दोस्तों से मिलने में जाता था। और उन तीस दिनों में से 22 बार स्लिपओवर अपने दोस्तों के घर पर ही करते थे। मुझे एक दिन भी याद नहीं आता कि हमने बैठ कर पुरानी बातें, तुम्हारा बचपन कभी भी डिस्कस किया हो। याद है तुम्हें, तुम्हारे कमरे में पड़ा एक पुराना बक्सा जिसमें तुम्हारा फुटबाल खेलते हुए एक जूता कहां चला गया पता ही नहीं चला और वो दूसरा जूता मैंने उस याद को याद करने के लिए आज
तक संभाल कर रखा हुआ है। तुम्हारी वो गंदी सी टी शर्ट जिसपर तुम्हारे दोस्तों के काले-पीले रंग हैं, तुम्हारी वो ड्रांइग बुक जिसमें तुमने जो कुछ भी बनाया मेरे लिए वो नायाब था। उन सबको देखकर तुमने बहुत चिढ कर कहा था क्या मम्मा आपने तो अभी तक ये गंदा सा एक स्कूल शूज, हमारे बचपन के कपड़े यहां तक की हमारे नैपी भी रखें हुएं हैं। क्या करोगी इसका फेंक-फांक कर खत्म करो। पर फिर भी मैंने उन यादों को अभी तक संभाल कर रखा हुआ था, तुम्हारे बच्चों को दिखाने के लिए ... पर ... खैर उस घर में किन यादों को तुम संभालने की बात कर रहे थे मुझे याद नहीं आतीं।
तुम्हारे लिए ये घर बाबा आदम के जमाने का घर हो चुका था और मुझे तुम हमेशा यही कहते थे कि "माँ, क्यों नहीं इस घर का रेनोवेशन करवा लेतीं"। पर न जाने तुम्हें कैसे भ्रम था कि एक सरकारी नौकरी करने वाली माँ के पास इतना पैसा होगा जो एक हजार गज के घर का रेनोवेशन करवा दे। मेरी पेंशन तो इस घर का बिल और मेंट्नस के लिए ही पूरी नहीं पड़ती थी। तो इस घर का रिनोवेशन कैसे कराती। इसलिए तुम अपने दोस्तों के घर में रहते और आ-आकर उनकी बढ़ाईयां करते कि क्या बढ़िया घर है मम्मा एक दम फाइवस्टार होटल की तरह, मजा तो ऐसे घर में रहने में आता है। ये तो बस .... घर कम अजायबखाना ज्यादा लगता है। इसे बेच क्यों नहीं देती मम्मा, कोई दूसरा घर क्यों नहीं ले लेतीं जहां आप आराम से रह सको। मैंने कई बार सोचा कि तुम लोग ये कहोगे पर तुम ने कभी नहीं कहा लोगों। मुझे लगा कि इस आजायबखाने की चौकीदारी करते-करते मैं कहीं मर ही न जाऊं पर अब मैं जीना चाहती हूं। कुछ साल अपनी जिंदगी ... आराम से अपने छोटे से छत के गार्डन मैं बैठकर चाय पीना चाहती हूं। अपने बेड पर बैठकर आराम से किताबें पढ़ना चाहती हूं। अपनी छोटी सी किचन मैं अपनी पसंद का खाना बनाकर खाना चाहती हूं। मैं अब आराम चाहती थी। और मैं आज आराम में हूं अपनी इस दो कमरों की बरसाती में। जहां मुझे रात को रोज भयानक सा सपना तो आता है कि मैं एक के बाद एक कमरा साफ करने मैं लगी हूं क्योंकि काम वाली ने इतने कम पैसों में काम करने को मना कर दिया है। पूरे दलान और पौधों की देखभाल करते-करते मैं औंधी हो गईं हूं पर जब आँख खुलती है कि मैं अपनी इस दो कमरों की छोटी सी बरसाती में हूं तो सुकून मिलता है। पूरी जिंदगी में पहली बार मैं इस घर में बिना चिंता के सोकर उठी क्योंकि मुझे ना सफाई कि टेंशन थी और न इस बात की चिंता की काम वाली नहीं आई तो क्या होगा? क्योंकि मैं जानती हूं कि अब ये घर मेरे हिसाब से इतना है कि मैं देखभाल अकेले कर सकती हूं। छोटे-छोटे प्यारे से गमलो में लगे पौधे। प्यारी सी हर आरामदायक कम समान की मेरी किचन। मेरी किताबें और मेरा आरामदायक बेड और बाथरुम तो देखोगो तो एकदम फाइवस्टार होटल जैसा है। मेरी इस दो कमरों की बरसाती में मेरे सुख की हर एक चीज़ है। ड्राइंग रुम भी इतना सुंदर है कि मैं इसे अपना ड्रीम हाऊस कहूं तो गलत नहीं होगा। एक बात बताऊं बच्चों मुझे लगा कि कोई भी इंसान जब तक अपने सुख के बारे में ना सोचे तो कोई भी नहीं सोचता। मैंने भी कभी नहीं सोचा और यही सोचती रही कि अगर इस घर को मैंने बेच दिया तो तुम दोनों क्या कहोगे और लोग क्या कहगें पर जिस दिन मुझे लगा कि किसी दिन इस घर में मर भी गई तो किसी को पता भी नहीं चलेगा। और उस दिन मैंने इसे बेच दिया अगर इन यादों का बोझ तुम लोगों पर भी होता तो शायद मैं ये कदम न उठाती पर ये यादें मेरे दिल-दिमाग और आर्थिक हालत को बदतर कर रहीं थीं तो मैंने इन यादों को अपने जेहन में रखकर, इसे बेच दिया। और मुझे लगता है कि वो पैसा जो तुम लोगों को मैंने भेजा है तुम्हें बुरा नहीं लगा होगा और जो पैसा मेरे पास है वो मेरे मरने के बाद तुम्हारे पास ही तो जाना है। मेरा तो गुजारा सिर्फ उसके इंटरस्ट से हो जाता है। जानते हो बच्चों उम्र के साथ-साथ अपने मोह-माया और समान को जितना कम कर सको कर देना चाहिए। ईश्वर ने भी इस शरीर को इसी तरह बनाया है जब बच्चे से बड़े होते हैं तो वो दांत, बोलने की शक्ति, एनर्जी, दिमाग, सब चीज़े बढ़ाता चलता है और जैसे उम्र घटने लगती है तो ईश्वर सारी चीज़े गिराने लगता दांत, बाल, शरीर । ये ईशारा होता है कि अब समान कम करो तो किस बात के मोह के साथ हम इतने बड़े-बड़े घर संभाले रहते हैं। और बुढ़ापे की दहलीज पर इतने बड़े घरों के चौकीदार बनकर रह जाते हैं। और एक दिन अखबारों की सुर्खियों में अपनी लाश को पाते हैं और लोग ऐसे बूढों पर तरस खाते हैं और उनकी संतानों को गालियां देते हैं। पर मैं खुश हूं कि मैंने ऐसा मौका ही किसी को नहीं दिया। मैं अपने घर में खुश हूं, तुम लोग कभी इंडिया आओ तो मेरे छोटे से घर में तुम्हारा स्वागत है।
तुम्हारी माँ
"तुम ऐसा कर कैसे सकती हो शैलजा"
"कर सकती हो पूछ रहे हो ????? ये कर चुकी हैं ... "
"शायद इसे ही सठियाना कहते हैं"
"इट्स रियली अमेजिंग, एक हजार गज का फ्लैट बेच कैसे दिया तुमने ...?"
"अरे यार अपने पति की निशानी समझ कर ही अपने पास रख लेतीं"
"पता है तुम्हें, लोग तरसते हैं आजकल, इतनी बड़ी प्रोपर्टी के लिए और तुम हो कि आसानी से बेच आईं"
"अरे बेचना भी था तो एक बार किसी से पूछ ही लेंती"
"आज तक पूछा है इसने, जो किसी से अब पूछती"
"मुझे तो ये समझ नहीं आता कि एक हजार गज का फ्लैट छोड़ कर ये दो कमरों की बरसाती में रहेगी कैसे"
"अरे दो दिन में वहां से भागे नहीं तो नाम बदल देना .... देखा है मैंने उस चूहे दानी को, जितना अभी खुश हो रही है न, बाद में उतना ही रोएगी की कहां आकर फंस गई "
शैलजा सिर झुकाए हुए बैठी थी। ये समझे बिना की कौन क्या कह रहा है।
शैलजा अपने पति के रहते सारी दुनिया की सुनती भी थी और कहती भी थी। पर जब से उसके पति ने उसे छोड़कर उसकी सहेली से शादी की थी तब से उसने सबसे कुछ भी कहना छोड़ दिया था वो सिर्फ सुनती थी क्योंकि वो जानती थी कि रिश्तेदार ऐसे ही होते हैं। और अकेली औरत को समझाना तो अपना परम कर्तव्य समझते हैं। क्योंकि उनका मानना है कि अकेली औरत तो अपने फैसले लेने के लायक ही नहीं होती। बेश्क के देश की प्रधानमंत्री एक महिला रहीं हो, बेशक स्पेश पर जाने वाली महिला हो, एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ने वाली महिला हो, बॉक्सिंग में वर्ल्ड में नाम कमाने वाली महिला रही हो। पर उसके अपने फैसले लेने का हक उसे नहीं है वो उसके माता-पिता लेते हैं। अगर वो नहीं हैं तो रिश्तेदार इस पद को खुशी-खुशी संभालने आ जाते हैं। हितेश ने जब दूसरी शादी का फैसला लिया था तो भी हितेश की बजाय सब उसे ही समझाने आए थे और तब भी शैलजा यूं ही चुपचाप सिर झुकाए बैठी रही थी।
"तू क्यों नहीं हितेश को समझाती"?
"कुछ तो ऐसा किया होगा तुमने कि उसे दूसरी शादी करनी पड़ी"
"कहा था मैंने मत घुसा अपने घर में अपनी सहेली को देख लिया, कहना न मानने का नतीजा ... अब भुगत"
शैलजा फिर भी कुछ नहीं बोली थी उसने सिर्फ हितेश से ये कहा था कि
"मैं इसी घर में रहना चाहती हूं क्योंकि बच्चों के स्कूल पास में हैं और कहीं और जाऊंगी तो थोड़ी मुश्किल हो जाएगी"
हितेश हैरान था कि शैलजा ने कोई रोना-धोना नहीं मचाया, न कुछ मांगा, न बेचारी बनी, आराम से तालाक के पेपर भी साइन करके दे दिए .... हितेश भी यही चाहता था। वो मन ही मन बहुत खुश था वैसे भी इसकी सारी किस्तें तो शैलजा ने ही दी थीं। उस सुबह के बाद शैलजा सकून में थी। शैलजा की जिंदगी में कुछ चेंज नहीं आया था बल्कि बहुत से काम कम हो गए थे। शैलजा को अपने घर में शांति मिलती थी। शैलजा कभी किसी कॉमन फैमिली फंक्शन में जाती तो हितेश और अपनी फ्रेंड को देखकर हंस पड़ती और वो किलस के रह जाती .... क्योंकि शैलजा जानती थी कि उसकी नाजुक मिजाज सहेली को हितेश को संभालने में कितनी मुश्किल हो रही होगी।
65 साल की उम्र में फिर कुछ लोग सो कॉल्ड अपने, उसे घेरे हुए बैठे थे। और शैलजा के फैसले पर उसे समझा रहे थे। शैलजा ने सब को खिलाया पिलाया और अगले दिन अपनी दो कमरे की बरसाती में शिफ्ट हो गई थी। शैलजा के दोनों बेटे एक अमेरिका एक इंग्लैंड में बैठा था और वो भी इसी बात पर नाराज थे। कि माँ ने किसी से पूछा भी नहीं और इतनी बड़ी प्रोपर्टी बेच दी। उन्होंने सोचा भी नहीं कि उस घर में हमारी इतनी यादें जुड़ी हुई हैं। दोनों ने ही एक लंबी सी मेल शैलजा को अपनी नाराज़गी जाहिर करते हुए लिख दी पर इस बात का जिक्र कहीं नहीं था कि उसने जो पैसे भेजे हैं वो इस नाराजगी के तहत रखेगें या वापिस भेज देगें। शैलजा दोनों की मेल पढ़कर मुस्कुराई और अपने बच्चों को उनकी मेल का जवाब लिखना शुरु किया।
प्रिय बच्चों .....
मुझे माफ करना, मैंने तुम्हारे उस घर को बेच दिया जिसमें तुम्हारी बहुत सारी यादें जुड़ी हुईं थीं। तुम्हें याद है कि तुम अपनी इन यादों को देखने, उन्हें संभालने में 15 साल में कितनी बार आए हो। कुल मिलाकर तीन बार, याद है मुझे। उसमें से दो बार ही तुम इस घर में रुके थे, जिसे तुम्हें बेचने का दुख है। उन दो बार में तुम्हारा अधिकतर समय अपने दोस्तों से मिलने में जाता था। और उन तीस दिनों में से 22 बार स्लिपओवर अपने दोस्तों के घर पर ही करते थे। मुझे एक दिन भी याद नहीं आता कि हमने बैठ कर पुरानी बातें, तुम्हारा बचपन कभी भी डिस्कस किया हो। याद है तुम्हें, तुम्हारे कमरे में पड़ा एक पुराना बक्सा जिसमें तुम्हारा फुटबाल खेलते हुए एक जूता कहां चला गया पता ही नहीं चला और वो दूसरा जूता मैंने उस याद को याद करने के लिए आज
सुनीता अग्रवाल |
तुम्हारे लिए ये घर बाबा आदम के जमाने का घर हो चुका था और मुझे तुम हमेशा यही कहते थे कि "माँ, क्यों नहीं इस घर का रेनोवेशन करवा लेतीं"। पर न जाने तुम्हें कैसे भ्रम था कि एक सरकारी नौकरी करने वाली माँ के पास इतना पैसा होगा जो एक हजार गज के घर का रेनोवेशन करवा दे। मेरी पेंशन तो इस घर का बिल और मेंट्नस के लिए ही पूरी नहीं पड़ती थी। तो इस घर का रिनोवेशन कैसे कराती। इसलिए तुम अपने दोस्तों के घर में रहते और आ-आकर उनकी बढ़ाईयां करते कि क्या बढ़िया घर है मम्मा एक दम फाइवस्टार होटल की तरह, मजा तो ऐसे घर में रहने में आता है। ये तो बस .... घर कम अजायबखाना ज्यादा लगता है। इसे बेच क्यों नहीं देती मम्मा, कोई दूसरा घर क्यों नहीं ले लेतीं जहां आप आराम से रह सको। मैंने कई बार सोचा कि तुम लोग ये कहोगे पर तुम ने कभी नहीं कहा लोगों। मुझे लगा कि इस आजायबखाने की चौकीदारी करते-करते मैं कहीं मर ही न जाऊं पर अब मैं जीना चाहती हूं। कुछ साल अपनी जिंदगी ... आराम से अपने छोटे से छत के गार्डन मैं बैठकर चाय पीना चाहती हूं। अपने बेड पर बैठकर आराम से किताबें पढ़ना चाहती हूं। अपनी छोटी सी किचन मैं अपनी पसंद का खाना बनाकर खाना चाहती हूं। मैं अब आराम चाहती थी। और मैं आज आराम में हूं अपनी इस दो कमरों की बरसाती में। जहां मुझे रात को रोज भयानक सा सपना तो आता है कि मैं एक के बाद एक कमरा साफ करने मैं लगी हूं क्योंकि काम वाली ने इतने कम पैसों में काम करने को मना कर दिया है। पूरे दलान और पौधों की देखभाल करते-करते मैं औंधी हो गईं हूं पर जब आँख खुलती है कि मैं अपनी इस दो कमरों की छोटी सी बरसाती में हूं तो सुकून मिलता है। पूरी जिंदगी में पहली बार मैं इस घर में बिना चिंता के सोकर उठी क्योंकि मुझे ना सफाई कि टेंशन थी और न इस बात की चिंता की काम वाली नहीं आई तो क्या होगा? क्योंकि मैं जानती हूं कि अब ये घर मेरे हिसाब से इतना है कि मैं देखभाल अकेले कर सकती हूं। छोटे-छोटे प्यारे से गमलो में लगे पौधे। प्यारी सी हर आरामदायक कम समान की मेरी किचन। मेरी किताबें और मेरा आरामदायक बेड और बाथरुम तो देखोगो तो एकदम फाइवस्टार होटल जैसा है। मेरी इस दो कमरों की बरसाती में मेरे सुख की हर एक चीज़ है। ड्राइंग रुम भी इतना सुंदर है कि मैं इसे अपना ड्रीम हाऊस कहूं तो गलत नहीं होगा। एक बात बताऊं बच्चों मुझे लगा कि कोई भी इंसान जब तक अपने सुख के बारे में ना सोचे तो कोई भी नहीं सोचता। मैंने भी कभी नहीं सोचा और यही सोचती रही कि अगर इस घर को मैंने बेच दिया तो तुम दोनों क्या कहोगे और लोग क्या कहगें पर जिस दिन मुझे लगा कि किसी दिन इस घर में मर भी गई तो किसी को पता भी नहीं चलेगा। और उस दिन मैंने इसे बेच दिया अगर इन यादों का बोझ तुम लोगों पर भी होता तो शायद मैं ये कदम न उठाती पर ये यादें मेरे दिल-दिमाग और आर्थिक हालत को बदतर कर रहीं थीं तो मैंने इन यादों को अपने जेहन में रखकर, इसे बेच दिया। और मुझे लगता है कि वो पैसा जो तुम लोगों को मैंने भेजा है तुम्हें बुरा नहीं लगा होगा और जो पैसा मेरे पास है वो मेरे मरने के बाद तुम्हारे पास ही तो जाना है। मेरा तो गुजारा सिर्फ उसके इंटरस्ट से हो जाता है। जानते हो बच्चों उम्र के साथ-साथ अपने मोह-माया और समान को जितना कम कर सको कर देना चाहिए। ईश्वर ने भी इस शरीर को इसी तरह बनाया है जब बच्चे से बड़े होते हैं तो वो दांत, बोलने की शक्ति, एनर्जी, दिमाग, सब चीज़े बढ़ाता चलता है और जैसे उम्र घटने लगती है तो ईश्वर सारी चीज़े गिराने लगता दांत, बाल, शरीर । ये ईशारा होता है कि अब समान कम करो तो किस बात के मोह के साथ हम इतने बड़े-बड़े घर संभाले रहते हैं। और बुढ़ापे की दहलीज पर इतने बड़े घरों के चौकीदार बनकर रह जाते हैं। और एक दिन अखबारों की सुर्खियों में अपनी लाश को पाते हैं और लोग ऐसे बूढों पर तरस खाते हैं और उनकी संतानों को गालियां देते हैं। पर मैं खुश हूं कि मैंने ऐसा मौका ही किसी को नहीं दिया। मैं अपने घर में खुश हूं, तुम लोग कभी इंडिया आओ तो मेरे छोटे से घर में तुम्हारा स्वागत है।
तुम्हारी माँ
यह रचना सुनीता अग्रवाल जी द्वारा लिखी गयी है . आप, बीबीसी मी़डिया एक्शन में एक लेखक के तौर पर कार्यरत है तथा आपने विभिन्न विषयों पर डाक्यूमेंटरी और लघु फिल्म बनाई हैं।
बहुत सुंदर प्रभावशाली कहानी, लेखिका सुनीता जी को हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंएक बेहतरीन कहानी पढ़वाने के लिए धन्यवाद। भावुक कर देने वाले आपके लेखन कौशल से अभिभूत हूँ।
जवाब देंहटाएंकल्पना जी और प्रतुल जी आपके प्रोत्साहन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंघर घर की और हर घर की सच्चाई बखानती रचना...
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति के लिए धन्यवाद.
कहानी बहुत ही राेचक है बदलते समय के साथ नारी के विचारों में हाेने वाले परिवर्तन को बताती है़
जवाब देंहटाएंGili aankhein... main bhi kho gaya un yaadon me jo mere pitaji ke apne bade se ghar me hain.... kaise mushkilon se bana wo ghar, aur aaj door hain hum...
जवाब देंहटाएंAb samajh me aata hai maa kyun aaj bhi mere purane kapde rakhi hain.....
मेरी कहानी से आपकी यादें ताजा हुई इसका मतलब है कि मेरा कहानी लिखना सार्थक हुआ। धन्यवाद..
हटाएंI like your story and it touched my heart and jo aapne likha h wo bilkul sahi h aajkal aisa hi hota h aapne to hakeekat ko apni kalam k support se bilkul sahi sahi likha h very good.Thank You very much I want to meet You and congrats you personally I am a big fan of you.Thanks Once again.
हटाएंबहुत सुंदर प्रभावशाली कहानी
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