दुनिया में कोई भी घटना इसलिए नहीं घटती कि भगवान चाहता है या भाग्य या ग्रह चाहते हैं,
नसीब का तर्कशास्त्र परजीवियों को भाता है। लोकतंत्र नसीब तंत्र नहीं है। लोकतंत्र में भाग्य को श्रेय देना जनता का अपमान करना है। जनता से किए गए वायदों से मुँह मोड़ना है.प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कल जब दिल्ली में एक आमसभा में बोल रहे थे तो अपने नसीब यानी भाग्य को श्रेय दे रहे थे। लोकतंत्र को भाग्यतंत्र कहना सही नहीं है। राजसत्ता यदि भाग्य का ही खेल होता, कुंडली के ग्रहों का ही खेल होता तो राजाओं का पराभव कभी नहीं होता। राजतंत्र की विदाई नहीं होती।
मोदी वोट की राजनीति में भाग्य का सिक्का उछालकर असल में आम जनता की पिछड़ीचेतना का दोहन करना चाहते हैं। वे यह भी चाहते हैं कि आम जनता अब भाग्य के भरोसे रहे! उनकी सरकार अब वायदे पूरे करने नहीं जा रही!
लोकतंत्र में भाग्य की हिमायत के कई आयाम हैं जिन पर गौर करने की जरुरत है। लोकतंत्र को भाग्य का खेल मानने का अर्थ है संविधान का अपमान करना। संविधान हमारे नागरिक और शासकों को अंधविश्वास फैलाने की अनुमति नहीं देता.नसीब तो अंधविश्वास का हिस्सा है। मोदी पीएम इसलिए नहीं बने कि उनका भाग्य अच्छा था बल्कि इसलिए बने कि जनता ने उनको वोट दिया। तेल के दाम इसलिए कम नहीं हुए कि मोदी का भाग्य अच्छा है बल्कि विश्व राजनीति के उतार-चढ़ाब के कारण कम हुए। विकसित पूंजीवादी मुल्कों और ओपेक के अंतर्विरोधों के कारण तेल के दाम सारी दुनिया में कम हुए हैं।
दुनिया में कोई भी घटना इसलिए नहीं घटती कि भगवान चाहता है या भाग्य या ग्रह चाहते हैं, बल्कि हर घटना का अपना कार्य-कारण संबंघ होता है, प्रक्रिया होती है.नसीब की इसमें कोई भूमिका नहीं होती। मोदी के पीएम बनने में नसीब की कोई भूमिका नहीं है। आम जनता के वोट, कारपोरेट लॉबी की मदद, आक्रामक मीडिया रणनीति और वायदों के अम्बार ने उनको प्रघानमंत्री बनाया है। मोदी यदि अपने वायदों को पूरा नहीं करेंगे तो आम जनता उनके खिलाफ जा सकती है।
लोकतंत्र यदि भाग्य का खेल होता तो मोदी ने इतने बड़े पैमाने पर मीडियाप्रचार क्यों किया? अरबों रुपये खर्च करके प्रौपेगैण्डा क्यों किया? नसीब ही महान होता तो वे किरनबेदी के लिए वोट मांगने क्यों निकले हैं? क्यों उनके 200 सांसद और 22 केन्द्रीय मंत्री और वे स्वयं दिल्ली की जनता के घर -घर जाकर वोट मांग रहे हैं? इससे पता चलता है कि लोकतंत्र भाग्यतंत्र नहीं है, ग्रहतंत्र नहीं है। ग्रहतंत्र होता तो फिर प्रचार की जरुरत ही न होती, ईश्वर या संतों के आशीर्वाद से ही लोकतंत्र में जीत मिल जाती तो राजनीतिक वायदे न करने पड़ते, प्रचार न करना पड़ता, महाभाग्यवान संत हारते नहीं, रामराज्य पार्टी का तो चारों ओर जय-जयकार होता , क्योंकि करपात्रीजी महाराज जैसे संत उसके नेता थे।
लोकतंत्र में हुई हार-जीत का नसीब और बदनसीब के वर्गीकरण से कोई लेना-देना नहीं है। लोकतंत्र तो राजनीति है, इसके राजनीतिक तर्क और प्रक्रियाएं है। लोकतंत्र में नसीब, भगवान, संत-महंत आदि की राजनीति अंततः परजीवीपन को बढ़ावा देगी। इससे मोदी के 'मेक इन इंडिया' के नारे का अंतर्विरोध है। इस नारे को या आम नागरिक को अपने जीवन में सफलता हासिल करनी है तो यह काम नसीब के भरोसे नहीं कर्म के आधार पर ही हो सकता है। नसीब पर जोर देने का अर्थ है कर्म का निषेध करना। कर्म का निषेध करके मोदी भारत के युवाओं में अंधविश्वास फैलाने की कोशिश कर रहे हैं।
लोकतंत्र में नसीब-बदनसीब की बातें करने का अर्थ है गरीबों और स्त्रियों का अपमान करना। बहुरंगी, बहुस्तरीय भेदभाव को अपरिवर्तनीय मानना। मोदी जी जब आप नसीब-बदनसीब के मुहावरे में बोल रहे थे तो सीधे कह रहे थे अमीर इसलिए अमीर है क्यों कि वह नसीब में लिखाकर लाया है, गरीब इसलिए गरीब है क्योंकि नसीब में लिखाकर लाया है। यानी अमीर हमेशा अमीर रहेंगे क्योंकि पूर्वजन्म में पुण्य करके आए हैं, गरीब हमेशा गरीब रहेंगे क्योंकि पूर्वजन्म में पाप करके आए हैं। इसका अर्थ यह भी है कि अमीर-गरीब की स्थिति को बदला नहीं जा सकता है, जो जैसा है वैसा ही रहेगा, क्योंकि यह तो नसीब में लिखा है!
नसीब -बदनसीब का समूचा तर्कशास्त्र स्वभावतः लोकतंत्र विरोधी और अविवेकवादी है। इसमें सामाजिक जिम्मेदारी से भागने की भावना निहित है।
मोदीजी आपने नसीब-बदनसीब की बहस को उठाकर अपने राजनीतिक लक्ष्य को साफ कर दिया है, इस अर्थ में आप ईमानदार भी हैं। आप ईमानदार हैं इसलिए मन की बात साफ शब्दों कह देते हैं। नसीब-बदनसीब की अवधारणा में आपने ईमानदारी के साथ कह दिया है कि आप अपना चुनाव घोषणापत्र या जनता से किए गए वायदे लागू करने नहीं जा रहे। मैं आपकी इसी साफगोई का कायल हूं!
मोदी वोट की राजनीति में भाग्य का सिक्का उछालकर असल में आम जनता की पिछड़ीचेतना का दोहन करना चाहते हैं। वे यह भी चाहते हैं कि आम जनता अब भाग्य के भरोसे रहे! उनकी सरकार अब वायदे पूरे करने नहीं जा रही!
लोकतंत्र में भाग्य की हिमायत के कई आयाम हैं जिन पर गौर करने की जरुरत है। लोकतंत्र को भाग्य का खेल मानने का अर्थ है संविधान का अपमान करना। संविधान हमारे नागरिक और शासकों को अंधविश्वास फैलाने की अनुमति नहीं देता.नसीब तो अंधविश्वास का हिस्सा है। मोदी पीएम इसलिए नहीं बने कि उनका भाग्य अच्छा था बल्कि इसलिए बने कि जनता ने उनको वोट दिया। तेल के दाम इसलिए कम नहीं हुए कि मोदी का भाग्य अच्छा है बल्कि विश्व राजनीति के उतार-चढ़ाब के कारण कम हुए। विकसित पूंजीवादी मुल्कों और ओपेक के अंतर्विरोधों के कारण तेल के दाम सारी दुनिया में कम हुए हैं।
दुनिया में कोई भी घटना इसलिए नहीं घटती कि भगवान चाहता है या भाग्य या ग्रह चाहते हैं, बल्कि हर घटना का अपना कार्य-कारण संबंघ होता है, प्रक्रिया होती है.नसीब की इसमें कोई भूमिका नहीं होती। मोदी के पीएम बनने में नसीब की कोई भूमिका नहीं है। आम जनता के वोट, कारपोरेट लॉबी की मदद, आक्रामक मीडिया रणनीति और वायदों के अम्बार ने उनको प्रघानमंत्री बनाया है। मोदी यदि अपने वायदों को पूरा नहीं करेंगे तो आम जनता उनके खिलाफ जा सकती है।
लोकतंत्र यदि भाग्य का खेल होता तो मोदी ने इतने बड़े पैमाने पर मीडियाप्रचार क्यों किया? अरबों रुपये खर्च करके प्रौपेगैण्डा क्यों किया? नसीब ही महान होता तो वे किरनबेदी के लिए वोट मांगने क्यों निकले हैं? क्यों उनके 200 सांसद और 22 केन्द्रीय मंत्री और वे स्वयं दिल्ली की जनता के घर -घर जाकर वोट मांग रहे हैं? इससे पता चलता है कि लोकतंत्र भाग्यतंत्र नहीं है, ग्रहतंत्र नहीं है। ग्रहतंत्र होता तो फिर प्रचार की जरुरत ही न होती, ईश्वर या संतों के आशीर्वाद से ही लोकतंत्र में जीत मिल जाती तो राजनीतिक वायदे न करने पड़ते, प्रचार न करना पड़ता, महाभाग्यवान संत हारते नहीं, रामराज्य पार्टी का तो चारों ओर जय-जयकार होता , क्योंकि करपात्रीजी महाराज जैसे संत उसके नेता थे।
लोकतंत्र में हुई हार-जीत का नसीब और बदनसीब के वर्गीकरण से कोई लेना-देना नहीं है। लोकतंत्र तो राजनीति है, इसके राजनीतिक तर्क और प्रक्रियाएं है। लोकतंत्र में नसीब, भगवान, संत-महंत आदि की राजनीति अंततः परजीवीपन को बढ़ावा देगी। इससे मोदी के 'मेक इन इंडिया' के नारे का अंतर्विरोध है। इस नारे को या आम नागरिक को अपने जीवन में सफलता हासिल करनी है तो यह काम नसीब के भरोसे नहीं कर्म के आधार पर ही हो सकता है। नसीब पर जोर देने का अर्थ है कर्म का निषेध करना। कर्म का निषेध करके मोदी भारत के युवाओं में अंधविश्वास फैलाने की कोशिश कर रहे हैं।
जगदीश्वर चतुर्वेदी |
लोकतंत्र में नसीब-बदनसीब की बातें करने का अर्थ है गरीबों और स्त्रियों का अपमान करना। बहुरंगी, बहुस्तरीय भेदभाव को अपरिवर्तनीय मानना। मोदी जी जब आप नसीब-बदनसीब के मुहावरे में बोल रहे थे तो सीधे कह रहे थे अमीर इसलिए अमीर है क्यों कि वह नसीब में लिखाकर लाया है, गरीब इसलिए गरीब है क्योंकि नसीब में लिखाकर लाया है। यानी अमीर हमेशा अमीर रहेंगे क्योंकि पूर्वजन्म में पुण्य करके आए हैं, गरीब हमेशा गरीब रहेंगे क्योंकि पूर्वजन्म में पाप करके आए हैं। इसका अर्थ यह भी है कि अमीर-गरीब की स्थिति को बदला नहीं जा सकता है, जो जैसा है वैसा ही रहेगा, क्योंकि यह तो नसीब में लिखा है!
नसीब -बदनसीब का समूचा तर्कशास्त्र स्वभावतः लोकतंत्र विरोधी और अविवेकवादी है। इसमें सामाजिक जिम्मेदारी से भागने की भावना निहित है।
मोदीजी आपने नसीब-बदनसीब की बहस को उठाकर अपने राजनीतिक लक्ष्य को साफ कर दिया है, इस अर्थ में आप ईमानदार भी हैं। आप ईमानदार हैं इसलिए मन की बात साफ शब्दों कह देते हैं। नसीब-बदनसीब की अवधारणा में आपने ईमानदारी के साथ कह दिया है कि आप अपना चुनाव घोषणापत्र या जनता से किए गए वायदे लागू करने नहीं जा रहे। मैं आपकी इसी साफगोई का कायल हूं!
यह लेख जगदीश्वर चतुर्वेदी जी द्वारा लिखा गया है . आप कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्रोफेसर हैं . संपर्क ईमेल - jcramram@gmail.com
poorvagrah se prerit lekh.
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