अभी हाल में मैंने डाँ नीतू सिंघल जी की पद्य और गद्य ( उनके ब्लोग के द्वारा और उनके दोहे ) , उनके लेखन में ,पद्य में टी एस ईलियट के - से दर्शन की झलक है . नीति और उपनिषदों से भरे हुए.
साहित्य और जीवन
अभी हाल में मैंने डाँ नीतू सिंघल जी की पद्य और गद्य ( उनके ब्लोग के द्वारा और उनके दोहे ) , उनके लेखन में ,पद्य में टी एस ईलियट के - से दर्शन की झलक है . नीति और उपनिषदों से भरे हुए.
जैसे “ कल्चर और एनार्की “ निबंध , “ ट्रेडीसन और इंडिविजुअल टेलेंट “ “ वेस्ट लेंड “ जिनमें स्वयं कवि ने ही पहली बार फुट्नोट देकर समझाया और एफ एल लूकस की तीव्र आलोचना का वे ( ईलियट ) शिकार भी हुए . लेकिन बडे काम की बातें हैं . व्हिट्मेन , शैली और ईलियट पर वेदिक साहित्य की छाप गहरी है . संस्कृति के लिए दाराशिकोह द्वारा कराए पुस्तकों के फारसी उर्दू अनुवाद को भी नहीं भूलना चाहिए. संकट में देवी और वीर नारियों ने आगे बढकर कमान भी संभाली है . गंभीरता से देखें तो जब जब असुरों के त्रास से देवता इधर उधर भागे तब तब उन्होंने देवी की शरण ली . और श्री रमेश राज जी की पद्य पढने में अतिशय आनंद आया . दोंनों के साहित्य में समकालीन समस्याओं के प्रति चिंता मुखरित है . पता नहीं प्लेटो ने क्यों कवियों को यूटोपिया से बाहर करने की सोची , वाल्मीकि ने द्रवित होकर क्रोंच वध पर एक श्रेष्ठ साहित्य लिखा, “ स्वर्गादपि गरीयसी “ . साहित्य को हर हाल में जीवन में उछाल लाना ही चाहिए.
एक समय में एक व्यक्ति का ( कारण वश ) सोच कुंठित हो सकता है लेकिन अगर यह व्यक्ति अन्य का नियोजक है तो वह उन पर प्रभाव डाल सकता है . रमेश जी के तीन दोहे आप के समक्ष हैं
“ राजनीत के मोर का बस इतना सा सत्य , जब भारी सूखा पडे तब करता ये नृत्य “
“ काफी जैसे गर्म सोच को लस्सी होते देख रहे , बडे बडे व्यक्तित्वों को खस्सी होते देख रहे “
“ इतना जनता मान ले , कहती है तलवार ,करूं कसम खाकर करूं , अब गरदन से प्यार “
मक्खी
सादा मक्खी ,मोहारी मक्खी , लेकिन इधर दो तीन दिनों से अलीगढ में इस हुई बारिश के बाद एक एसी मक्खी देखी गई है जो पिछले पचास साल में नहीं देखी गई . आकार प्रकार में यह मोहारी जैसी ही है लेकिन काटती नहीं और गिरने के बाद फिर उडती नहीं हैं . कृषि कीट पतंगों पर अध्ययन करने वालों को ध्यान इस मक्खी पर ध्यान देना चाहिये .
लिटमस जांच
घरेलू चीजों में मिलावट और विष आदि की जांच के लिए रसायन अब कुटीर स्तर पर प्रयोग हों . अब जो पढे लिखे हैं वे यह काम चुनौती के रूप में लेकर करें तो उपाय बनेगा. यह बुद्धि के पैना करने से आएगा . मैंने कहीं पढा है कि बुद्धि को पैना एकाग्रता से किया जा सकता है . जैसे एकलव्य . इस दिशा में प्रयास होने ही चाहिए.
ऐसे उद्योग जिनमें आधे के आस पास यदि सरकारी धन या अंश है तो उसमें घाटा न हो और पोंजी उद्यम पर सट्टे की तरह बार बार धन लगाने की बजाए एसे ( संबंधित बी आई एफ आर ) प्रतिष्ठान को पहचान कर ( इसकी बाकी बची संपत्ति की रक्षा करके ) आगे मदद न देकर घाटे के कारणों की जांच कर , इसके कर्ता धर्ता को दंडित करना समय की मांग है .
यह रचना क्षेत्रपाल शर्मा जी, द्वारा लिखी गयी है। आप एक कवि व अनुवादक के रूप में प्रसिद्ध है। आपकी रचनाएँ विभिन्न समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है। आकाशवाणी कोलकाता, मद्रास तथा पुणे से भी आपके आलेख प्रसारित हो चुके है .
बे सिर पैर , बिना सन्दर्भ , बिना विषय स्पष्टता के व्यर्थ आलेख है ...
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