भारत में प्रधान के चुनाव से लेकर प्रधान मंत्री के चुनाव में जिस तरह पैसा खर्च होता है वह एक लोक तंत्र के लिए शुभ नहीं हैं .
भारत में प्रधान के चुनाव से लेकर प्रधान मंत्री के चुनाव में जिस तरह पैसा खर्च होता है वह एक लोक तंत्र के लिए शुभ नहीं हैं . कई सांविधिक एजेंसियां चुनाव सुधार के बारे में यह मनन करती हैं कि इस में प्रयुक्त काले धन से कैसे छुटकारा मिले . जो विकट समस्या है वह है चुनाव दल जो चंदा लेते हैं उसे छिपाकर रखना चाहते हैं . अभी हाल में हुई बैठक में तकरार इस बात पर रही कि बीस हज़ार रुपए से अधिक राशि का चंदा देने वालों के नाम बताए जाएं .
सामाजिक अन्याय की जीवंत मिसाल ये है कि हाल में जब किसान संकट में थे , और अपनी जीविका को लेकर बाल बच्चों की चिंता में थे कि ये किसानी करें या कि न करे , तो एक वर्ग जिसे अब क्रीमी लेयर कहा जाए तो भी अतिशयोक्ति न होगी ,वह मौन ही रहा . वह संविधान में संशोधन करके प्रमोसन और नौकरी में आरक्षण को स्थाई बनाने के लिए प्रयासरत था अर्थात पिछडेपन के लिए( एम. नागराज केस में, बै न्च ने कहा कि बैकवर्डनेस पर अध्ययन करके फाइंडिंग देनी होगी, ) , इस रूलिंग को बाई पास करने की मंशा है , विधिक आयोग द्वारा तथ्यों का सर्वे कराया जाना तर्क की कसौटी पर खरा है , यह अध्ययन होना ही चाहिए लेकिन उससे पहले क्रीमी लेयर की परिभाषा भी घोषित की जाए और अमल उस पर हो . . ज़्यादा गौर तलब बात यह है कि सवर्णों में भी आर्थिक रूप से जो पिछडे हैं और किसानों को बुनियादी हकदारी से वंचित क्यों रखा जाए .
संसद सदस्य अपने वेतन बढा लेते हैं ( यह माना कि चुपके से नहीं ) , यह न्याय का तकाज़ा है कि इनके वेतन ये खुद कानून बनाकर न पास करें चूंकि व्यक्ति समूह में भी ,अपने मामले में निर्णय नहीं दे सकता( यह कानून या निर्णय एसा है जिससे उनको धन की प्राप्ति होती है ,कुछ लाभ मिलता है जो कि कर से पूरा होना है और यह विधि सम्मत है अथवा नहीं यह जांच व संवीक्षा कोई न्यायिक संस्था करे ,तो उचित रहेगा ) . फिर चुनाव चंदे के लिए ये मामले को देर क्यों कर करते हैं .इसी से सटा हुआ डी ए ( अकूत संपत्ति) का मामला हाल में कर्नाटक में निर्णीत हुआ है जिस में जानकार अर्थमेटिक एरर ( कमी ) बता रहे हैं और इस से पहले ताज़ कारीडोर मामले में टेक्नीकल एरर की बात सामने आई थी , इन सब पर मुझे सीजर की पत्नी के मामले में जुरी के दिए फैसले की याद आ जाती है जिसका निर्वचन सही -सही हो नहीं पाया.
तलवार बनाने और बेचने वाले का जो मकसद ( बचाव ) का होता है वह ( वार करने की नीयत वाले) उस खरीददार का नहीं होता . हमने विकास के लिए सीधे प्रधानों को दी गई राशि से दो चीज देखीं एक कि उनके पास शहर में कोठी हो गई और दूसरे दस बारह लाख की बडी कार हो गई . पहले जो प्रशासनिक अधिकारियों को दोष दिया जाता था वह अब जन प्रतिनिधि को दिया जाएगा भी तो कैसे ? ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की हालत किसी से छिपी नहीं हैं , मध्याह्न भोजन की सार्थकता पल्ले नहीं पडती , ये सब योजनाएं शुरू तो नेक भावना से हुईं लेकिन ज़मीन पर हकीकत कुछ और सामने आई वह यह कि ये अपने उद्दिष्ट में इन जन प्रतिनिधियों के कारण सफल न हुईं ,हालांकि एन जी ओ ने तब भी काम अच्छा किया . अब यह भी देखने में आया कि 24.11.14 को दिल्ली के एक अखबार में एक उद्योग स्वामी कुछ लिखता है तो वह दिल्ली की बडी पंचायत में अपना लिया जाता है . तो आप किस की गोद में बैठना चाहते हैं ,उद्योग स्वामियों की में ? बजाए सीधे कहने के मैं थोडा आड लेकर लिख रहा हूं .
क्षेत्रपाल शर्मा |
राजनीतिक दलों को चंदा 20 करोड से अधिक मिलने पर चंदा देने वालों के नाम उजागर करने पर कानून आयोग की सिफारिशों पर अमल करने के प्रस्ताव पर राजनीतिक दलों में कोई सहमति मार्च 15 के माह तक नहीं बन पाई है . प्रसार भारती के मुखिया ए सूर्य प्रकाश जी का राजनीतिक चंदे का गडबडझाला शीर्षक से जागरण में 30 अप्रेल15 को एक विचार प्रधान लेख छपा है जिसमें विशिष्ट लोकतंत्र में बाहुबल के बाद कलंकित करने वाले धन बल के कारण आ रही मुश्किलों की समीक्षा की गई है . अज्ञात स्रोत से प्राप्त चंदा कुल प्राप्ति के 75% के आसपास है , जिस पर लगाम लगाने के लिए निर्वाचन आयोग सक्रिय है . जिस की वेब साइट पर एसे चंदे की लेखा परीक्षा के लिए मार्ग दर्शी निर्देश भी प्रस्तावित किए है जो सनदी लेखाकार संस्था आदि के अध्ययन पर आधारित हैं . इस पर चुनाव आयोगके मुखिया श्री कृष्णमूर्ती जी ने तत्कालीन प्रधान मंत्री जी को डी ओ पत्र भी भेजा था .असल में यह वह समय और जगह है जहां 56 इंच का सीना सामने आना ही चाहिए.
एन जी ओ के चंदे की एफीकेसी के लिए सख्ती दिखाई जा सकती है तो लोकतंत्र को आंतरिक सुदृढ करने के लिए और 81 करोड 40 लाख मतदाताओं के साथ न्याय करने और उन में विश्वास जगाने , स्वच्छता के लिए यह अनिवार्य है .
यह रचना क्षेत्रपाल शर्मा जी, द्वारा लिखी गयी है। आप एक कवि व अनुवादक के रूप में प्रसिद्ध है। आपकी रचनाएँ विभिन्न समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है। आकाशवाणी कोलकाता, मद्रास तथा पुणे से भी आपके आलेख प्रसारित हो चुके है .
COMMENTS