जस्टिस आशुतोष मुखर्जी ( कोलकता ) एक सरल व्यक्ति थे . वे स्वयं अध्ययन रत रहते थे और देश के प्रसिद्ध विद्वानों को कोलकता विश्वविद्यालय बुलाते थे . एक बार एक अंग्रेज उनके घर आए . उसने मुखर्जी दा से पूछा कि क्या आप की मां शिक्षित हैं ,जवाब में उन्होंने जो कहा कि “ मेरी मां अशिक्षित हैं , लेकिन विद्वान हैं “ कहने का आशय यह है कि उनकी मां को दुनिया दारी की भारी समझ है .
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जस्टिस आशुतोष मुखर्जी ( कोलकता ) एक सरल व्यक्ति थे . वे स्वयं अध्ययन रत रहते थे और देश के प्रसिद्ध विद्वानों को कोलकता विश्वविद्यालय बुलाते थे . एक बार एक अंग्रेज उनके घर आए . उसने मुखर्जी दा से पूछा कि क्या आप की मां शिक्षित हैं ,जवाब में उन्होंने जो कहा कि “ मेरी मां अशिक्षित हैं , लेकिन विद्वान हैं “ कहने का आशय यह है कि उनकी मां को दुनिया दारी की भारी समझ है .
क्षेत्रपाल शर्मा |
कहते हैं ,एक बार एक शिकशक ने किसी से बंगाल टाइगर पर निबंध लिखने को कहा तो बच्चे के पिता ने कहा कि यह कौन बडा काम है , लेकिन बच्चे ने कहा कि ये वि शेर नहीं हैं जो आप सोच रहे हैं ये महान गणितज्ञ हैं . और ये थे अशुतोष बाबू ( ये बाबू शब्द किसी अधिकारी के लिए उ. प्र. में कहूं तो लड बैठेगा ) , जो अपनी पुस्तक लौ ओफ पर्पीचुइटी के लिए भी विख्यात हैं
आज हम न्याया लयों में देख रहे हैं कि पहले मारपीट के केस हुआ करते थे आज तलाक( सबंध विच्छेद ) के ज़्यादा हैं . या यों कहें कि दहेज कानून का दुरुपयोग हो रहा है है . कहीं किसी तौर पर तो कहीं किसी तौर पर . यदि आप पैसे वाले हैं तो परंपरागत तरीके से न खौंसकर आप को झांसे , ब्ल्र्क मेल करके , डरा कर पैसा एंठने का जुगाड ( इस लोभ के कारण पाप और अपराध कर बैठते ) बहुत लोग करते हैं . शादी संबंधों में तो अधिकांश मां बाप अपने बच्चे के एब छिपा लेते हैं और नव विवाहिता को सारी उमर बिसूरने और कोसने के लिए छोड देते हैं . अंग्रेज जिस तरह भारत के कानून को बदल या नष्ट कर देते थे उसी तरह कुछ काले ( या दिल के काले ) कुतर्कों से अर्थ का अनर्थ करके समाज में गंदगी फैलाते हैं .
कुछ अपने को चतुर और समझदार लोग जो समाज को अपने अनुसार हांकना चाहते हैं वे जो कहते हैं उसकी कोई प्रासंगिकता नहीं हैं . अब जब कि बाप बेटे को अलग कर रहा हो वहां यह कहने का तर्क क्या है कि :
“ ज़बान से बेटा बेटी पराए होते हैं ,
जैसा न्याय शास्त्र में वर्णन है कि हर केस की मेट्रिक्स अलग अलग होती है, और हर एक को न्याय आसन के समीप केवल और केवल स्वच्छ हाथों के साथ पहुंचना चाहिए .
जिस काल खंड का यह जुमला था वह समय नहीं रहा . यह जुमला ज़्यादातर किसी करार और शादी संबंध में प्रयोग होता है . यह भी तभी सिरे चढेगा जब ज़बान एक सी होगी . कहते हैं कि परिस्थितियां जब बदलेंगी तो ज़बान भी बदलेगी . यह भी कहावत शाश्वत है कि “ आदमी का पाप उसका पीछा नहीं छोडता . भूत , साक्षात बनकर उसके सामने भविष्य बन जाता है. और उसी के अनुसार निर्णय होते हैं . फुअरी तौर पर चीजें छिपाने से एक बहुत बडा अनर्थ लोग कर देते हैं वे वैमनस्य के विष के बीज बो देते हैं . खुद तो संताप के नरक को झेल रहे होते हैं और दूसरों को भी उस ओर खींच रहे होते हैं .
यह रचना क्षेत्रपाल शर्मा जी, द्वारा लिखी गयी है। आप एक कवि व अनुवादक के रूप में प्रसिद्ध है। आपकी रचनाएँ विभिन्न समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है। आकाशवाणी कोलकाता, मद्रास तथा पुणे से भी आपके आलेख प्रसारित हो चुके है .
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