hindi day, vishwa hindi sammelan, hindi diwas, English is a bit difficult. राह चलते कुछ ऐसे साथी ज़रूर मिल जाएंगे जो यह कहते हुए नज़र आएंगे कि, ‘इंग्लिश को बिट करना मुश्किल है।‘ कोई अपनी शान बधारते हुए यह कहते हुए भी मिल जाएगा कि, ‘मैंने तो अपने बेटे का एडमिशन शहर के सबसे बढ़िया इंग्लिश मीडियम स्कूल में करा दिया है।‘
हिंदी को संवारों ,इसे सम्भालो नहीं
राह चलते कुछ ऐसे साथी ज़रूर मिल जाएंगे जो यह कहते हुए नज़र आएंगे कि, ‘इंग्लिश को बिट करना मुश्किल है।‘ कोई अपनी शान बधारते हुए यह कहते हुए भी मिल जाएगा कि, ‘मैंने तो अपने बेटे का एडमिशन शहर के सबसे बढ़िया इंग्लिश मीडियम स्कूल में करा दिया है।‘ यहां यह सवाल उठता है कि इंग्लिश कोई प्रतियोगिता है क्या कि उसमें असफल और सफल होने पर ज़ोर दिया जा रहा है। या फिर यह कि केवल अंग्रेज़ी मीडियम स्कूल में पढ़कर ही डॉक्टर, इंजीनियर या कलेक्टर बना जा सकता है। हम इस बात को क्यों अनदेखा करते हैं कि मन के हारे हार है और मन के जीते जीत। अंग्रेज़ी पढ़ना अच्छी बात है लेकिन यह कहना कि केवल अंग्रेज़ी जानने वाला ही विद्वान है या उसका पांडित्य अन्य की अपेक्षा श्रेष्ठ है तो मन में थोड़ा सा संशय आना स्वाभाविक है।
एक मोची की बेटी आईआईटी कर जाए और गुगल जैसी मल्टी नेशनल कम्पनी में काम करने लग जाए तो आश्चर्य होना स्वाभाविक है। लेकिन यहां यह प्रश्न उठता है कि क्या केवल अंग्रेज़ी ने उसे आईआईटी संस्थान में प्रवेश दिलाया या उसके आसपास के वातावरण ने। उस वातावरण ने जहां इंग्लिश से शायद एक-दो जन ही परिचित हों। यहां इंग्लिश का मखौल नहीं उड़ाया जा रहा बल्कि सच्च से रू-ब-रू कराया जा रहा है। भाषा कोई भी हो वह अपने में सशक्त होती है उसे सहारा देने की आवश्यकता नहीं होती। अगर ख़ुदा-न-ख़ास्ता ऐसी बात होती तो हिंदी आज चीनी भाषा के बाद सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा न होती। साफ सी बात है कि हिंदी भी अपने आप में सशक्त है, किसी के सहारे की इसे आवश्यकता नहीं है।
हिंदी बोलने वालों की तादाद अच्छी ख़ासी है। मुझे ध्यान नहीं पड़ता कि कोई ऐसा चौराहा है जहां केवल और केवल अंग्रेज़ी बोलने वाले मिल जाएं। हर तरफ हिंदी ही बोलती नज़र आती है। भले ही वह कोई भीड़ वाला इलाक़ा हो या ढाबा पर खाना खाते लोगों की चौपाल। मैं यह बात इसलिए नहीं कह रहा कि मैं हिंदी भाषी प्रदेश का निवासी हूं और मेरी पैदायश से लेकर शिक्षा-दिक्षा और मुझे रोज़गार यहीं पर मिला। देश के उत्तर क्षेत्र के अलावा भी मैंने बहुत से अन्य प्रदेशों का भ्रमण किया है जहां हिंदी भाषी जमात ऐसी नहीं है जैसे उत्तर भारत में है, फिर भी हिंदी समझने वाले मुझे मिले और अच्छी हिंदी बोलते हुए मिले। फिर मैं यह कैसे कह दूं कि उन्हें केवल अंग्रेज़ी ही आती है। सच तो यह है कि उन्हें हिंदी भी आती है। यही कुछ मुझे वहां के पर्यटन स्थलों का भ्रमण करते हुए अनुभव हुआ।
ख़ैर,अन्त भला सो सब भला। मुझे लगता है कि भाषा के द्वंद्व से हमें थोड़ा ऊपर उठना चाहिए। इतना ऊपर भी नहीं कि आसमान पर जा बैठे। इतना ऊपर कि चर्चा की जा सके। विचारों का आदान-प्रदान किया जा सके। विचार-विमर्श किया जा सके। वैसे भाषा को आगे बढ़ाने में विचारों का भी योगदान होता है। अगर ऐसा न हो तो भाषा मृत हो जाती है। वह केवल इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाती है। अपनी भाषा से हमें प्रेम है। शायद इसीलिए हम इसे जीवित रखना चाहते हैं। इसे ही क्यों अन्य भाषाओं को भी हम जीवित रखना चाहते हैं। यह सबसे अच्छी बात है। हम शब्दों के साथ हिंसक नहीं होना चाहते। इसके लिए हम सभी साधुवाद के पात्र हैं।
यह आम धारणा है कि अंग्रेज़ी श्रेष्ठ है। चलिए मान लेते हैं कि अंग्रेज़ी श्रेष्ष्ठ है। लेकिन जिस भाषा के साथ हम पले-बड़े हुए हैं वह भाषा भी तो श्रेष्ठ है। ज़ाहिर सी बात है हिंदी प्रदेश में पैदा हुआ व्यक्ति हिंदी से ही प्यार करेगा। लेकिन यह भी सच है कि वह अन्य भाषाओं से भी कम प्यार नहीं करता। अंग्रेज़ी इसका अपवाद नहीं है। यह नहीं भूलना चाहिए कि अंग्रेज़ी एक सशक्त भाषा है। इस भाषा का हमें सम्मान करना चाहिए। मगर ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि अन्य भाषाएं इससे अलग-थलग हो जाएं। भाषाओं को संभाल कर रखने की आवश्यकता है। ऐसे में खिचमतानी की आवश्यकता नहीं है कि भाषा अंग्रेज़ी है, हिंदी है या कोई और। भाषा, भाषा है, उसकी अपनी परिधि है, अपनी सीमा है। किसी भी समाज को पराकाष्ठा पर ले जाने वाली महत्वपूर्ण इकाई भाषा है।
हिंदी भाषा हमारी राजभाषा है। सरकारी कामकाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए हिंदी को राजभाषा बनाया गया। हालांकि जब व्यवहार की बात आती है तो हिंदी कुछ पिछड़ी सी नज़र आती है। केवल आंकड़ों में ही वह सुशोभित लगती है लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है। इसके लिए भाषा से अधिक भाषायी अधिक ज़िम्मेदार हैं। अब ऐसा क्यों है यह सभी को पता है इसके लिए किसी टिप्पणी की आवश्यकता नहीं है। कहावत है कि मन चंगा तो कठौती में गंगा। अगर मन में ठान लिया जाए कि भाषा को आगे बढ़ाना है, भाषा का सम्मान करना है तो रास्ता कितना भी कठिन हो उसको आसान बनाया जा सकता है। कश्मीर में उर्दू और कश्मीरी भाषा का वर्चस्व है। फिर भी हिंदी वहां फल-फूल रही है। वहां के हिंदी कवि निदा नवाज़ का कहना है कि, ‘मैं कश्मीर के दुख दर्द को ऐसी भाषा में बयान करता हूं जिसे देश के अधिकांश लोग समझते हैं।‘ हिंदी कविता को आम आदमी तक पहुंचाने में निदा नवाज़ का महत्वपूर्ण योगदान है। हालांकि वो उर्दू और कश्मीरी भाषा के ज्ञाता हैं फिर भी हिंदी का मोह उनसे छूटा नहीं है। साफ सी बात है कि यह चाह हमारे मन की है कि हम हिंदी को कितना सुशोभित कर पाते हैं।
राजीव शर्मा “मासूम” |
यह कहना कि हिंदी को प्रचारित करने में अंग्रेज़ी आड़े आती है तो यह हिंदी भाषा का उपहास करना है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक हिंदी भाषा समझी और बोली जाती है। ऐसे में यह कहना कि हिंदी ताक़तवर नहीं है या हिंदी की पहचान नहीं है तो यह हमारा खोखलापन दर्शाती है। हिंदी सबल है। सदियों से इस भाषा को आगे बढ़ाने में लोगों का योगदान रहा है। संत, महात्मा, कवियों आदि ने इस भाषा को संवारने का काम अच्छे से किया है। सम्राटों, राजाओं, वायसरायों तथा उनके अधीनस्थों ने इस भाषा को फलने-फूलने का अवसर प्रदान किया। हिंदी इन युगों में सुशोभित रही है। उन युगों में हिंदी का अपना स्थान था, अपना वर्चस्व था। उन युगों में भी हिंदी को संवारा गया। कहने का तात्पर्य यह है कि हिंदी को संभालने की आवश्यकता नहीं है अपितु इसे संवारने की आवश्यकता है। हिंदी भाषा को उच्च स्थान देने में अखिल भारतीय हिंदी अकादमियां, संस्थान और संगठन इस दिशा में प्रयासरत हैं। नवोदित से लेकर स्थापित साहित्यकारों को इस दिशा में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए हर वर्ष सम्मानित किया जाता है। इसमें भी कुछ लोग यह कहते हुए नज़र आ जाएंगे कि फला अकादमी भाई-भतीजावाद को बढ़ावा दे रही है। या फिर कि अकादमी की ओर से हिंदी को प्रोत्साहन देने की दिशा में उचित क़दम नहीं उठाए गए हैं। यानि भाषा का इसमें कोई दोष नज़र आता अपितु भाषायियों का ही इसमें विरोध नज़र आता है।
हिंदी भाषा आज विश्व में पहचानी जाने लगी है। अब यह ख़ाली भारत की भाषा नहीं है। इस पर हम भारत वासियों को गर्व होना चाहिए। इस भाषा ने हज़ारों विदेशी शब्दों को अपने में समाहित किया हुआ है। इन शब्दों के शामिल होने से इस भाषा का सौंदर्य बढ़ा है। भाषा में निखार आया है। हमें चाहिए कि अपनी भाषा को इतना संवारें कि पूरा विश्व मुग्ध हो जाए। ऐसा हो रहा है और होता जा रहा है। विश्व मंच पर हिंदी अपना विस्तार कर रही है।
यह रचना राजीव शर्मा “मासूम” जी द्वारा लिखी गयी है . आप नई दिल्ली के राजभाषा विभाग में वरिष्ठ अनुवादक के पद पर कार्यरत हैं . संपर्क सूत्र - वरिष्ठ अनुवादक, राजभाषा विभाग, उत्तर रेलवे, प्रधान कार्यालय, बड़ौदा हाउस, नई दिल्ली। मोबाइल - 09810472957
keywords - hindi day, vishwa hindi sammelan, hindi diwas, English is a bit difficult, IIT.
राजीव शर्मा जी,
जवाब देंहटाएंआपसे वार्तालाप काफी अच्छी रही.
संभव हो तो कृपया अपना ईमेल पता दें.
केंद्रीय हिंदी सचिवालय से संसदीय भाषा समिति की कार्रवाई वाली राजभाषा भारती के प्रकाशन की प्रति यदि मिल सके तो बहुत आभारी रहूँगा.
सादर,
अयंगर,
8462021340
laxmirangam@gmail.com
शर्मा जी, धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंकल हिंदी दिवस पर आयोजित होने वाले वेबिनारों के लिए कुछ सामिग्री देख रही थी । कई आर्टिकल पढ़े...आपका आर्टिकल सबसे बेहतर लगा । मुझे काफी कुछ मिला । आपका आभार व्यक्त करती हूं और भविष्य के लिए मेरी शुभकामनाएं हैं ,🙏
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