राष्ट्र के जो बालक अपनी मातृभाषा के बजाय दूसरी भाषा में शिक्षा प्राप्त करते हैं , वे आत्महत्या ही करते हैं . यह उन्हें अपने जन्मसिद्ध अधिकार से वंचित करती है . विदेशी माध्यम से बच्चों पर अनावश्यक जोर पडता है . वह उनकी सारी मौलिकता का नाश कर देता है .
राजभाषा : कानूनी दाव पेंच , नियति से नीयत तक
मानस भवन में आर्य जन जिसकी उतारें आरती।
भगवान भारतवर्ष में गूंजे हमारी भारती। ।
------ मैथिली शरण गुप्त
यह एक गीत जिसे जानते तो सब हैं लेकिन सही सही यह पता नहीं कि रचयिता कौन हैं . मेरी भी पूछताछ कारगर ना रही तब मैंने डा कृष्ण दत्त जी पालीवाल ( अब स्व.) से पता किया और उन्होंने बताया कि इसे श्री शिशुपाल सिंह “ शिशु “ ने लिखा है .मेरा सब से आग्रह है कि इस तरह के स्रोतों का पता अवश्य रखें .
बिहरो 'बिहारी' की बिहार वाटिका में चाहे
'सूर' की कुटी में अड़ आसन जमाइए।
'केशव' के कुंज में किलोल केलि कीजिए या
'तुलसी' के मानस में डुबकी लगाइए॥
'देव' की दरी में दुरी दिव्यता निहारिए या
'भूषण' की सेना के सिपाही बन जाइए।
अन्यभाषाभाषियों मिलेगा मनमाना सुख
हिंदी के हिंडोले में ज़रा तो बैठ जाइए॥
राष्ट्र के जो बालक अपनी मातृभाषा के बजाय दूसरी भाषा में शिक्षा प्राप्त करते हैं , वे आत्महत्या ही करते हैं . यह उन्हें अपने जन्मसिद्ध अधिकार से वंचित करती है . विदेशी माध्यम से बच्चों पर अनावश्यक जोर पडता है . वह उनकी सारी मौलिकता का नाश कर देता है .
निर्वचन और अभिप्रेत -
हिंदी सरल और व्यवहार की भाषा रहे . इसे बोझिल नहीं बनाना है .भले ही विधि की भाषा हो ,लेकिन हो सरल . इन सब बातों को ध्यान में रखकर अभी हाल में श्री तरुण विजय ने लिखा है कि सत्यानाशी अनुवाद के कारण भी कठिनाई है .
संविधान का हिंदी अनुवाद :
दिसम्बर 1987 में 58 वें संविधान संशोधन पास हुआ . तब एक से एक हिंदी के जानकार रहने पर भी इतना समय लगा यह इतनी शिथिलता क्या अगली पीढी स्वीकार करेगी ? कुछ तो इस विवशता के कारण रहे होंगे .
गुजरात उच्च न्यायालय : दवाइयों के पैकेजिंग पर लेबल द्विभाषिकता पर ( इश्यू से बाहर ) जाकर 2011 में इस पर बहस का प्रारंभ किया कि हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं हैं . , 343 के साथ 351 पढने पर ध्वनि क्या कहती है ? राजभाषा के रूप में आप अपना नैतिक और विधिक दायित्व पूरा करें . तमिलनाडु में भी कारण राजनीतिक ज़्यादा थे , जजों के भी राजनीतिक आकांक्षाएं और मंसूबे होते हैं ,यह आप सब ने अनुभव किया है/ होगा .
अंतर्संबंध (राज भाषा, राष्ट्र भाषा ): भाषाओं के अंतर्संबंध इस तरह समझें कि राजगोपालाचारी जी ने कहा था कि हम को परिवार , गांव और शहर, देश के कर्तव्य अलग अलग रूप से पूरे करने चाहिए . राज्यों की भाषाएं उस राज्य के विकास के लिए हैं अनुसूची 8 में जो भाषाएं स्वीकार हैं वे केवल हिंदी की वृद्धि ( 351 को पढें ) के लिए मान्य हैं मूल धारा और अनुसूची ( दूसरा पायदान ) , विधेयन की मंशा ( क्या ध्वनि है ) , शब्दों पर न जाएं . परस्पर व्श्वास के लिए और समरसता के लुए हम एक दो भाषाएं जानते ही हैं . लिपि से जुडाव वाली भाषाओं में तो विरोध है ही नहीं .
शिक्षा क्षेत्र में कार्रवाई ( action , for punishing ) और कार्यवाही ( proceedings , minutes of a meeting ) में कोई अंतर नहीं समझ रहे?
कुछ दिन पहले कक्षा 8 का एक छात्र अंग्रेजी में एक पत्र लोखने के लिए जानने आया . तो सेंदर्स नेम के बाद दूसरे क्रम में रिसीवर नेम टीचर ने लिखा था , जिसे बताया गया कि यह एड्रेसी ( संबोधन ) होगा न कि पाने वाला . तो चीजें इतनी गिरावट में हैं .
हिंदुस्तानी क्या है :
क्षेत्रपाल शर्मा |
1935 के आसपास यह एक कुचक्र उर्दू परस्त लोगों का रहा जिसका कोई खास असर इसलिए नहीं हुआ कि ये लीग के साथ अलग राष्ट्र मांग/ बना बैठे , हिंदुस्तानी उर्दू से पृथक कोई भाषा नहीं हैं( इश्तहार , तनकीह तलब , मुबलिग आदि , भूमि विकास के ऋण उगाही के इश्तहार और कोर्ट में पेशी के समन ) सच यह है कि इन 65 साल में “ अल्प्संख्यक “ आदि जैसे शब्दों के अर्थ/ भाव बदल गए . . यह हिंदी की जातीयता को भ्रमित / कमजोर/ खंडित करने का कुचक्र है . इससे सावधान रहना चाहिए . संस्कृत से जन्मी सभी भारतीय बोलियों / भाषाओं को 1857 के पास भारतेन्दु युग में मिलाकर ही हिंदी बनी जिसका वर्णन 343 और धारा 351 में हैं .अन्यप्रांतवालों ने पूछा कि हम हिंदी पढते हिं आप हमारी भाषा क्यों नहीं पढते , इस का जवाब यह है कि जिस तरह उन लोगों न्ए हिंदी पढी सीखी ,मुझे भी उसी तरह हिंदी सीखनी और पढनी पडी , अब जिसे ब्रज कहूं तो उस से बात करूं तो बहित कम लोग जान पाएंगे कि क्या बिल रहा हूं . शब्दावली , उच्चारण और कई भिन्नताएं हैं . इसे सब समझ लें .
हिंदी एक मत से, आदि आदि : इस विषय में मैं बहुत गुमराह करने वाले लेख और बातें पढ और सुन चुका हूं। आप से भी विनती करूंगा कि इन लेखों की पडताल किए बिना इनको अस्वीकार करें , यह सब बातें छुद्र स्वार्थ से प्रेरित और एक विशेष वर्ग की ही हैं . फिल्म की जबान कोई भाषा नहीं , इनसे मनोरंजन तो हो सकता है , जीवन नहीं चलता . बाकी सब कुतर्क दे रहे होते हैं .सबसे सटीक बात श्री ब्रज किशोर शर्मा की पुस्तक ( जो को सर्वाधिक प्रामाणिक पुस्तक है ) introduction to the Constitution of India by published by Ashoke k. Ghosh , PHI learning pvt ltd At Kundali Sonepat ( Haryana ) . श्री शर्माजी राजभाषा विधायी आयोग , भारत सरकार में उच्च अधिकारी रहे हैं .
के अंश पैरा 27.3 में इस प्रकार हैं :
हिंदी के पक्ष में 63 और विपक्ष में 32( हिंदुस्तानी) वोट पडे थे
देवनागरी के पक्ष में 63 और विपक्ष में 18 पडे थे . ( पृष्ठ 352)
निष्कर्ष :
संस्कृत से जन्मी भारतीय भाषाओं में भला क्या होडा -होडी हो सकती है जब कि अनेक भारतीय भाषाएं लिपि से बंधी हैं . अब तो कुछ बिके हुए लोग हिंदी को भी रोमन में लिखने की हिमायत कर रहे हैं . हमारा कहना है कि हिंदी के सेवी स्वाभिमान और राष्ट्रीय अस्मिता के लिए ( अपने चाणक्य , शिवाजी जैसे छत्रपतियों के देश में ) संकल्पित होकर इस भारती के उत्थान के लिए अहर्निश लगें .
यह रचना क्षेत्रपाल शर्मा जी, द्वारा लिखी गयी है। आप एक कवि व अनुवादक के रूप में प्रसिद्ध है। आपकी रचनाएँ विभिन्न समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है। आकाशवाणी कोलकाता, मद्रास तथा पुणे से भी आपके आलेख प्रसारित हो चुके है .
शर्माजी,
जवाब देंहटाएंआपका लेख एक विशेष विषय पर है. अनूठा है. मैं आपसे इस बारे कुछ चर्चा करना चाहूँगा.
1. आप आज भी हिंदी को राष्ट्रभाषा और मातृभाषा लिखते हो. राष्ट्रभाषा तो यह है नहीं और मातृभाषा तो सारे भारतीयों की हो नहीं सकती. आप इसे किस प्रकार से समझाना चाहोगे.
2. आपने कहा - संविधान की धारा 343 व 351 के साथ अनुसूची 8 के तहत दी गई भाषाएं केवल हिंदी की वृद्धि के लिए मान्य हैं - कुछ और प्रकाश डालें तो समझ पाऊंगा.
3. आपने कहा - हिंदी के पक्ष में 63 और विपक्ष में 32 (हिंदुस्तानी) वोट पडे थे. देवनागरी के पक्ष में 63 और विपक्ष में 18 पडे थे . (पृष्ठ 352) - मैंने ही एक मत वाली बातें लिखी थीं - जो केंद्रीय हिंदी सचिवालय की पत्रिका राजभाषा भारती में पढ़ी थी. मैंने लोगों से अनुरोध भी किया है कि उसकी एक प्रति उपलब्ध कराएं. जहाँ तक मेरी जानकारी है संसदीय भाषा समिति में हिंदी के पक्ष-विपक्ष में नहीं बल्कि अंततः हिंदी व तमिल के बीच मतदान हुआ था. यदि संभव हो तो संसदीय राजभाषा समिति की कारर्यवाही प्राप्त करें ताकि संशय का निवारण हो सके.
4. जहाँ तक हम हिंदी पढ़ते हैं , आप हमारी भाषा क्यो नहीं पढ़ते का सवाल है कि मडजबूरी होगी तो कोई भी भाषा सीखनी पड़ेगी. जैसे हम भारतीय आज अंग्रेजी सीखते हैं. वैसे ही हालात हिंदी के लिए भी बना दिए जाएं तो लोग मजबूरी में ही सही - सीखेंगे. एक दूसरे की भाषा सीख कर कोई किसी पर एहसान नहीं कर रहा है.
इन बिंदुओं पर आपके विचार व राय जानना चाहूँगा.
अन्य पाठकों से भी अनुरोध है कि वे अपने ज्ञान भंडार से हमें शिक्षित करें.