दंपति

SHARE:

कभी एन. के साथ मेरा काफ़ी अच्छा कारोबार चल रहा था , लेकिन पिछले कुछ सालों से यह ठप्प पड़ गया था । क्यों ? यह तो मुझे भी नहीं पता । ऐसी बात तो कभी बिना सचमुच के किसी कारण के भी घट सकती है । आजकल समय ही ऐसा है कि किसी का महज़ एक शब्द भी सारे मामले को उलट-पलट कर रख सकता है जबकि एक ही शब्द सब कुछ ठीक-ठाक भी कर सकता है । दरअसल एन. के साथ कारोबार करना बड़ा नाज़ुक मामला है । वह एक बूढ़ा आदमी है और बुढ़ापे के कारण काफ़ी अशक्त भी हो गया है , फिर भी वह अपने कारोबारी मामलों को अपने ही हाथ में रखना पसंद करता है । अपने ऑफ़िस में तो वह आपको शायद ही कभी मिले और उससे मिलने के लिए उसके घर जाना एक ऐसा काम है जिसे कोई भी भला आदमी टालना ही पसंद करेगा ।

( अनूदित जर्मन कहानी  )
                        ---------------------------
                               #  दंपति
                             ------------
                                                --- लेखक :  फ़्रैंज़ काफ़्का
                                                --- अनुवाद : सुशांत सुप्रिय

 व्यापार है ही बुरी चीज़ । मुझे ही लीजिए । दफ़्तर के काम से जब थोड़ी देर के लिए भी मुझे छुट्टी मिलती है तो मैं अपने नमूनों की पेटी उठाकर खुद ही अपने ग्राहकों से मिलने चल देता हूँ । बहुत दिनों से मेरी इच्छा एन. के पास जाने की थी ।
कभी एन. के साथ मेरा काफ़ी अच्छा कारोबार चल रहा था , लेकिन पिछले कुछ सालों से यह ठप्प पड़ गया था । क्यों ? यह तो मुझे भी नहीं पता । ऐसी बात तो कभी बिना सचमुच के किसी कारण के भी घट सकती है । आजकल समय ही ऐसा है कि किसी का महज़ एक शब्द भी सारे मामले को उलट-पलट कर रख सकता है जबकि एक ही शब्द सब कुछ ठीक-ठाक भी कर सकता है । दरअसल एन. के साथ कारोबार करना बड़ा नाज़ुक मामला है । वह एक बूढ़ा आदमी है और बुढ़ापे के कारण काफ़ी अशक्त भी हो गया है , फिर भी वह अपने कारोबारी मामलों को अपने ही हाथ में रखना पसंद करता है । अपने ऑफ़िस में तो वह आपको शायद ही कभी मिले और उससे मिलने के लिए उसके घर जाना एक ऐसा काम है जिसे कोई भी भला आदमी टालना ही पसंद करेगा ।
               फिर भी कल शाम छह बजे मैं उसके घर के लिए निकल ही पड़ा । यह किसी से मिलने के लिए जाने का समय तो नहीं था पर मेरा वहाँ जाना कारोबारी कारण से था , कोई सामाजिक सद्भाव नहीं । सौभाग्य से एन. घर पर ही था । अभी वह अपनी पत्नी के साथ सैर करके लौटा था । नौकर ने बताया कि साहब इस समय अपने बेटे के सोने के कमरे में हैं । बेटा बीमार था । नौकर ने मुझसे वहीं जाने का आग्रह किया । पहले तो मैं थोड़ा हिचका । फिर सोचा कि क्यों न इस अप्रिय मुलाक़ात को जल्दी निपटा दिया जाए । इसलिए मैं उसी हालत में , यानी ओवरकोट और टोपी पहने , हाथ में नमूनों की पेटी लिए एक अँधेरे कमरे को पार करके एक नीम अँधेरे कमरे में दाख़िल हुआ , जहाँ तीन-चार लोग पहले से ही मौजूद थे ।
               मेरी पहली नज़र जिस व्यक्ति पर पड़ी वह एक एजेंट था , जिसे मैं अच्छी तरह जानता था । एक तरह से वह मेरा कारोबारी प्रतिद्वन्द्वी था । मुझे लगा , वह मुझसे पहले ही बाज़ी मार ले गया । वह आराम से बीमार के बिस्तर के पास ही बैठा था , जैसे वह कोई डॉक्टर हो । अपने ओवरकोट के बटन खोले बैठा वह निर्लज्ज-सा लग रहा था । बीमार आदमी भी शायद अपने विचारों में खोया हुआ लग रहा था । उसके गाल बुखार से तप रहे प्रतीत हो रहे थे । वह बीच-बीच में उस आगंतुक की ओर भी देख लेता था । एन. का बेटा छोटी उम्र का नहीं था । वह लगभग मेरी ही उम्र का होगा । उसकी छोटी-सी दाढ़ी बीमारी के कारण छितरायी हुई थी ।
               बूढ़ा एन. लम्बा-तगड़ा आदमी था । उसके कंधे काफ़ी चौड़े थे । पर यह देखकर मुझे हैरानी हुई कि वह अब दुबला हो गया था । उसकी कमर भी झुक गयी थी । वह अशक्त हो गया था । उसने अभी तक अपना कोट नहीं उतारा था । वह अपने बेटे के कान में कुछ फुसफुसा रहा था । उसकी पत्नी छोटे क़द की दुबली और फुर्तीली महिला थी । ऊँचाई में काफ़ी फ़र्क़ होने के बावजूद वह अपने पति के कोट को उतारने में उसकी मदद करने लगी । हालाँकि शुरू में उसे दिक़्क़त हो रही थी , किंतु आख़िरकार वह इसमें सफल हो गयी । लेकिन असल दिक़्क़त तो एन. के अधैर्य के कारण थी । कोट अभी पूरा उतरा भी नहीं था कि वह अपने हाथों से आरामकुर्सी के हत्थे टटोलने लगा था । उसकी पत्नी ने कोट उतारते ही आरामकुर्सी जल्दी से उसके पास सरका दी और खुद उसका कोट उठा कर रखने चली गई । कोट उठाए हुए वह खुद उसके बीच में लगभग ढँक-सी गई थी ।

        ***                   ***                 ***               ***                 ***

              आख़िरकार मुझे लगा कि वह समय आ गया है या यूँ कहूँ कि अपने-अाप तो वह समय आता नहीं ।  मैंने सोचा कि जो कुछ करना है , मुझे जल्दी ही कर लेना चाहिए । मुझे लग रहा था कि कारोबारी बातचीत के लिए समय धीरे-धीरे प्रतिकूल होता जा रहा है । उस एजेंट के लक्षण तो मुझे ऐसे दिख रहे थे जैसे वह वहीं जमा रहना चाहता हो । यह मेरे हित में नहीं था , हालाँकि मैं वहाँ उसकी उपस्थिति को ज़रा भी अहमियत नहीं देना चाहता था । इसलिए मैंने बिना किसी भूमिका के झटपट अपने धंधे की बात शुरू कर दी , बावजूद इसके कि इस समय एन. अपने बीमार बेटे से बात करना चाह रहा था । दुर्भाग्य से यह मेरी आदत हो गई थी कि जब मैं अपनी असली बात पर आता हूँ -- जो कि आम तौर पर जल्दी ही होता है और इस मामले में तो समय और भी कम लगा -- तो मैं बात करते-करते खड़ा हो जाता हूँ और चहलक़दमी करने लगता हूँ । किसी दफ़्तर में तो यह हरकत बड़े ही स्वाभाविक तरह से हो सकती है , पर यहाँ बड़ा अटपटा लग रहा था । फिर भी मैं खुद को रोक नहीं पाया । इसका एक कारण और भी था । सिगरेट की बड़ी तलब लग रही थी । ठीक है , हर आदमी की कुछ बुरी आदतें होती ही हैं । दूसरी ओर , उस एजेंट की हालत देखकर मुझे बहुत राहत मिल रही थी । वह उद्विग्न लग रहा था । वह अचानक घुटने पर रखी अपनी टोपी उठा कर झटके से अपने सिर पर रख लेता था और फिर वहाँ उसे ऊपर-नीचे करता रहता । फिर अचानक उसे लगता कि उससे कोई ग़लती हो गई है । तब वह उस टोपी को अपने सिर से उतार कर वापस अपने घुटने पर रख देता । हर एक-आध मिनट में वह इन्हीं हरकतों को दोहराता जा रहा था । मुझे तो इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ रहा था , क्योंकि मैं तो चहलक़दमी करता हुआ अपने प्रस्तावों में पूरी तरह से खोया हुआ था और उसे अनदेखा कर रहा था , लेकिन उसकी ये हरकतें अन्य लोगों को ज़रूर आपे से बाहर कर रही होंगी ।
                 दरअसल मैं जब अपनी बात में पूरा रम जाता हूँ तो ऐसी हरकतों की ही क्या , किसी भी बात की परवाह नहीं करता । जो कुछ हो रहा होता है , उसे मैं देखता तो हूँ पर उस ओर तब तक कोई ध्यान नहीं देता , जब तक कि मैं अपनी बात पूरी न कर लूँ , या जब तक कोई दूसरा व्यक्ति किसी तरह की आपत्ति प्रकट न करे । इसलिए मैं सब कुछ देख रहा था । मसलन् एन. मेरी बात की ओर ज़रा भी ध्यान नहीं दे रहा था । कुर्सी के हत्थे को पकड़े वह बिना मेरी ओर देखे बेचैनी से कसमसाया । वह कहीं शून्य में टकटकी लगाए देख रहा था , जैसे कुछ ढूँढ़ रहा हो । उसके चेहरे को देखकर कोई भी समझ सकता था कि मेरे कहे हुए शब्दों से या सही कहें तो मेरी उपस्थिति से भी वह पूरी तरह अनभिज्ञ लग रहा था । उसकी और उसके बीमार बेटे की हालत मेरे लिए शुभ लक्षण नहीं थे , फिर भी मैंने स्थिति को क़ाबू में रख कर अपनी बात कहनी जारी रखी , जैसे मुझे विश्वास हो कि अपनी बात कह कर मैं सारा मामला फिर से ठीक कर लूँगा ।
                 मैंने एन. के सामने एक लाभकारी प्रस्ताव रखा , हालाँकि बिना माँगे ही जिस तरह की रियायतें देने की बात मैंने कह दी थी , उसने खुद मुझे ही चौंका दिया ।  इस बात से मुझे बड़ा संतोष मिला कि मेरे प्रस्ताव ने उस एजेंट को चक्कर में डाल दिया था । उस पर एक सरसरी निगाह डालते हुए मैंने देखा कि अपनी टोपी को जहाँ-का-तहाँ छोड़कर अब उसने अपने दोनो हाथ अपनी छाती पर बाँध लिए थे । मुझे यह स्वीकार करने में हिचक हो रही है कि मेरे इस कृत्य का उद्देश्य उसे धक्का पहुँचाना भी था । अपनी इस जीत के उत्साह में मैं काफ़ी देर तक अपनी बात कहता रहा , लेकिन तभी उसके बेटे ने , जिसे मैं अपनी इस योजना में फ़ालतू चीज़ समझे बैठा था , बिस्तर से उठ कर काँपते हाथों से मुझे धक्का दे दिया । हो सकता है वह कुछ कहना चाहता हो या किसी बात की ओर संकेत करना चाहता हो , लेकिन  उसमें इसकी ताकत न हो । पहले तो मुझे लगा जैसे उसका दिमाग़ घूम गया हो ,पर जब मैंने बूढ़े  एन. पर एक उबाऊ नज़र डाली तो सारी बात मेरी समझ में आ गई।
                 एन. की खुली हुई आँखें भावशून्य और सूजी हुई थीं । लग रहा था जैसे उसे बहुत कमज़ोरी महसूस हो रही हो । वह काँप रहा था और उसका शरीर आगे की ओर झुका जा रहा था , जैसे कोई उसके कंधों को ठोक रहा हो । उसका निचला होठ या यूँ कहें कि निचला जबड़ा लटक गया था और वहाँ से झाग-सा बाहर आ रहा था । वह बड़ी मुश्किल से साँस ले पा रहा था । फिर अचानक जैसे उसे सारे कष्ट से मुक्ति मिल गयी हो , उसने कुर्सी पर पीठ टिका कर आँखें बंद कर लीं । दर्द का एक गहरा अहसास उसके चेहरे पर से गुज़रा और लगा जैसे सब कुछ ख़त्म हो गया हो ।
मैं झटके से उसकी ओर गया और उसकी बेजान कलाई थाम ली । वह इतना ठंडा था कि एक बार तो ठंड की एक लहर मेरे पूरे शरीर में दौड़ गई । नब्ज़ थम गयी थी यानी सब ख़त्म हो गया था । कुछ भी हो , वह बहुत बूढ़ा हो गया था । काश हम सबको भी ऐसी मौत नसीब होती । लेकिन अब मैं क्या करूँ ? मैंने मदद के लिए आसपास देखा । उसके बेटे ने चादर सिर तक ओढ़ ली थी और उसकी सिसकियों की आवाज़ मैं साफ़ सुन रहा था । वह एजेंट तो किसी मछली की तरह ठंडा लग रहा था । वह एन. से दो क़दम दूर अपनी कुर्सी पर अचल बैठा था और लग रहा था कि वह कुछ नहीं कर पाएगा । इसलिए मैं ही वह एकमात्र व्यक्ति था , जो कुछ कर सकता था । बड़ा कठिन काम था उसकी पत्नी को उसकी मौत की ख़बर देना , और वह भी इस तरह कि वह उसे सहन कर सके । बगल के कमरे से मुझे उसकी पदचाप सुनाई देने लगी थी ।
          ***                ***                ***                ***                ***
                 
सुशांत सुप्रिय
वह अभी तक बाहर वाले कपड़ों में ही थी । उन्हें बदलने का उसे अभी तक समय ही नहीं मिला था । वह अपने पति को पहनाने के लिए आग के सामने गरम  करके घर के कपड़े लायी थी । हमें स्थिर बैठे देख उसने मुस्कराते और अपनी गर्दन हिलाते हुए कहा , " वे सो गए हैं ।" अपने अपरिमित निर्दोष विश्वास के साथ उसने अपने पति की वही कलाई पकड़ी जो कुछ देर पहले मैंने पकड़ी थी और बड़े प्रमुदित मन से उस पर एक चुम्बन अंकित कर दिया । हम तीनो आश्चर्य से देखते ही रह गए कि एन. हिला और उसने जम्हाई ली । पत्नी ने उसे घर की क़मीज़ पहनाई और इतनी लम्बी सैर के लिए , जिसने उसे थका दिया था , उलाहना देने लगी । वह उस उलाहने को खीझ और व्यंग्य के भाव से सुनता रहा और जवाब में उसने कहा कि वह उकताने लगा था और उसी वजह से उसे नींद आ गई थी । और फिर कुछ देर आराम करने के लिए उसे बीमार के बिस्तर पर ही लेटा दिया गया । सिर के नीचे रखने के सिए उसकी पत्नी जल्दी से दो तकिये ले आई और बीमार के पायताने की ओर रख दिए । अपने कमरे में उसे इसलिए जाने नहीं दिया गया , क्योंकि वहाँ जाने के लिए एक ख़ाली कमरे से गुज़रना पड़ता था और उसमें उसे ठंड लग सकती थी ।
                  जो कुछ पहले घटा था , अब उसमें मुझे कोई विचित्रता नहीं लग रही थी । फिर एन. ने शाम का अख़बार माँगा और बिना अपने मेहमानों की ओर ज़रा भी ध्यान दिए अख़बार खोल लिया । वह ध्यान से अख़बार नहीं पढ़ रहा था । यूँ ही सरसरी तौर पर इधर-उधर निगाह डाल रहा था । उसने हमारे प्रस्तावों पर कुछ अप्रिय टिप्पणियाँ भी कीं । दरअसल उसने अपने हाथ को बड़े तिरस्कारपूर्ण ढंग से हिलाते हुए जिस तरह की तीखी टिप्पणियाँ की थीं उसमें इस बात की ओर स्पष्ट संकेत था कि कारोबार करने के हमारे तरीक़ों ने उसके मुँह का स्वाद ख़राब कर दिया है । यह सब सुनकर उस एजेंट ने भी एक-दो अप्रिय टिप्पणियाँ कर ही दीं । बेशक , जो कुछ घटा था , उसकी क्षतिपूर्ति का यह सबसे घटिया तरीका था । जल्दी ही मैंने उनसे विदा ले ली । मैं उस एजेंट का आभारी था , क्योंकि यदि वह न होता तो मुझे वहाँ से खिसकने का इतना अच्छा मौक़ा न मिल पाता ।
       ***                    ***                  ***                ***                  ***
                   बाहर निकलते हुए बरामदे में मुझे श्रीमती एन. मिल गईं । उनकी करुण मूर्ति को देखकर मैंने कहा कि उन्हें देखकर मुझे अपनी माँ की याद आ गई । उन्हें चुप देखकर मैंने आगे कहा , " लोग जो भी कहें , पर वह चमत्कार कर सकती थीं । जिन चीज़ों को हम तोड़-फोड़ देते , वह उन्हें फिर से ठीक कर देतीं । जब मैं बच्चा था , तभी उनकी मृत्यु हो गई थी । " मैंने यह बात बड़े धीरे-धीरे और सुस्पष्ट ढंग से कही । मेरा ख़्याल था कि वह वृद्धा ज़रा ऊँचा सुनती है , पर वह तो बिल्कुल भी नहीं सुन पाती थी , क्योंकि मेरी बात को बिना समझे उसने पूछा था , "मेरे पति आपके प्रस्ताव पर क्या कह रहे हैं ? " विदाई के दो चार शब्दों के बीच मुझे यह भी लगा कि वह मुझे एजेंट समझ रही है , अन्यथा वह अधिक विनयी होती ।
                    फिर मैं सीढ़ियाँ उतर गया । उतरना चढ़ने से ज़्यादा थका देने वाला साबित हुआ , हालाँकि चढ़ना भी कोई आसान काम नहीं था । ओह , कितनी ही कारोबारी मुलाक़ातें ऐसी होती हैं जिनका कोई परिणाम नहीं निकलता है , पर इसके लिए हाथ पर हाथ धरे भी तो नहीं बैठा जा सकता और मुलाक़ातें करते रहना पड़ता है ।
                              ----------०----------


यह रचना सुशांत सुप्रिय जी द्वारा लिखी गयी है . आपकी कई कहानियाँ तथा कविताएँ पुरस्कृत तथा अंग्रेज़ी, उर्दू , असमिया , उड़िया, पंजाबी, मराठी, कन्नड़ व मलयालम में अनूदित व प्रकाशित हो चुकी हैं ।पिछले बीस वर्षों में आपकी लगभग 500 रचनाएँ देश की सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं ।हिन्दी में अब तक आपके  दो कथा-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं:'हत्यारे' (२०१०) तथा 'हे राम' (२०१२)।आपका पहला काव्य-संग्रह ' एक बूँद यह भी ' 2014 में  प्रकाशित हुआ है ।
संपर्क सूत्र - सुशांत सुप्रिय         मार्फ़त श्री एच. बी. सिन्हा ,
         5174, श्यामलाल बिल्डिंग ,
         बसंत रोड, ( निकट पहाड़गंज ) ,
         नई दिल्ली - 110055
         मो: 9868511282 / 8512070086
         ई-मेल: sushant1968@gmail.com

COMMENTS

Leave a Reply: 1
  1. बहुत बढ़िया ! आपका नया आर्टिकल बहुत अच्छा लगा www.gyanipandit.com की और से शुभकामनाये !

    जवाब देंहटाएं
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ हमें उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !
टिप्पणी के सामान्य नियम -
१. अपनी टिप्पणी में सभ्य भाषा का प्रयोग करें .
२. किसी की भावनाओं को आहत करने वाली टिप्पणी न करें .
३. अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .

नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,37,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",7,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,4,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,8,आषाढ़ का एक दिन,22,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,5,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,19,कमलेश्वर,7,कविता,1474,कहानी लेखन हिंदी,17,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,6,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,38,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,2,केदारनाथ अग्रवाल,4,केशवदास,6,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,139,गजानन माधव "मुक्तिबोध",15,गीतांजलि,1,गोदान,7,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,3,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,6,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,35,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,76,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,6,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,28,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,4,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,10,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,25,नाटक,1,निराला,39,निर्मल वर्मा,4,निर्मला,42,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,202,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,139,प्रयोजनमूलक हिंदी,38,प्रेमचंद,47,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,88,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,8,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,9,भक्ति साहित्य,143,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,17,भीष्म साहनी,8,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,10,मलिक मुहम्मद जायसी,9,महादेवी वर्मा,20,महावीरप्रसाद द्विवेदी,3,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,14,मैला आँचल,8,मोहन राकेश,15,यशपाल,15,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,6,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,21,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,3,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,9,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,4,लघु कथा,124,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,34,विद्यापति,8,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,2,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,8,शमशेर बहादुर सिंह,6,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,6,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,57,शैलेश मटियानी,2,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,4,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,33,सआदत हसन मंटो,10,सतरंगी बातें,33,सन्देश,44,समसामयिक हिंदी लेख,269,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,20,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,86,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",10,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,23,सूरदास,16,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,11,हजारी प्रसाद द्विवेदी,4,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,432,हिंदी लेख,532,हिंदी व्यंग्य लेख,14,हिंदी समाचार,182,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,91,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aapka-banti-mannu-bhandari,6,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,chitra-varnan-hindi,3,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,11,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,20,hindi essay,424,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,105,hindi stories,679,hindi-bal-ram-katha,12,hindi-gadya-sahitya,8,hindi-kavita-ki-vyakhya,19,hindi-notes-university-exams,67,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,22,kavyagat-visheshta,25,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,11,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,raag-darbari-shrilal-shukla,7,Rimjhim Class 3,14,samvad-lekhan-in-hindi,6,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,skandagupta-natak-jaishankar-prasad,6,sponsored news,10,suraj-ka-satvan-ghoda-dharmveer-bharti,4,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,51,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: दंपति
दंपति
कभी एन. के साथ मेरा काफ़ी अच्छा कारोबार चल रहा था , लेकिन पिछले कुछ सालों से यह ठप्प पड़ गया था । क्यों ? यह तो मुझे भी नहीं पता । ऐसी बात तो कभी बिना सचमुच के किसी कारण के भी घट सकती है । आजकल समय ही ऐसा है कि किसी का महज़ एक शब्द भी सारे मामले को उलट-पलट कर रख सकता है जबकि एक ही शब्द सब कुछ ठीक-ठाक भी कर सकता है । दरअसल एन. के साथ कारोबार करना बड़ा नाज़ुक मामला है । वह एक बूढ़ा आदमी है और बुढ़ापे के कारण काफ़ी अशक्त भी हो गया है , फिर भी वह अपने कारोबारी मामलों को अपने ही हाथ में रखना पसंद करता है । अपने ऑफ़िस में तो वह आपको शायद ही कभी मिले और उससे मिलने के लिए उसके घर जाना एक ऐसा काम है जिसे कोई भी भला आदमी टालना ही पसंद करेगा ।
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgEuv85iqfwC58u3CazJwoQMKen_hz5ObI_WuXCVNrbB9jIBFLOq0EtSbarb7lec2U8XQvUGysXNdz14wkJNh1BsgxLCM0P4_egjMP9jvp29mOzLCsozBRCnl-A0OVn2cw_KLCBKI35JGih/s1600/download.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgEuv85iqfwC58u3CazJwoQMKen_hz5ObI_WuXCVNrbB9jIBFLOq0EtSbarb7lec2U8XQvUGysXNdz14wkJNh1BsgxLCM0P4_egjMP9jvp29mOzLCsozBRCnl-A0OVn2cw_KLCBKI35JGih/s72-c/download.jpg
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2015/09/translated-german-story.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2015/09/translated-german-story.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका