यह अभियान एक प्रतिकात्मक विरोध है। हमारा उद्देश्य किसी लेखक का अपमान नहीं है। हम इस अभियान के माध्यम से अपनी असहमति दर्ज कर रहे हैं। लेखकों के लेखन से नहीं उनके पूर्वाग्रह से भरे बयानों और पुरस्कार वापसी से हुई निराशा से उपजे अभियान का नाम किताब वापसी अभियान है।
अशोक वाजपेयी के घर, कर आए किताब वापसी...
किताब वापसी अभियान के तत्वावधान में दो दर्जन कवि, लेखक एवं कलाकारों का एक दल साहित्यकार
अशोक वाजपेयी के वसुंधरा इन्क्लेव, दिल्ली स्थित घर पर शनिवार को सुबह पहुंचा। अभियान की तरफ से तीन लोगों का एक प्रतिनिधि मंडल अशोक वाजपेयी से मिला। प्रतिनिधि मंडल में कवि रसिक गुप्त, विनीत पंांडेय और छायाकार आत्माराम शामिल थे। प्रतिनिधि मंडल ने किताब वापसी अभियान की तरफ से अशोक वाजपेयी की लिखी हुई एक किताब उनके द्वारा अकादेमी पुरस्कार वापसी के प्रतिकात्मक विरोध में उन्हें वापस की।
प्रतिनिधि मंडल में शामिल रसिक गुप्ता के अनुसार- साहित्य अकादेमी एक स्वायत संस्था है। ऐसे में अकादेमी अवार्ड को लौटाकर इसे राजनीतिक हथियार बनाकर लड़ने को हम कवि एवं साहित्यकार उचित नहीं मानते हैं। लेखक का काम लिखना है। उसे लिखकर अथवा प्रदर्शन के माध्यम से अपना विरोध प्रदर्शन करना चाहिए। वर्ना जिन लेखकों को कोई अवार्ड नहीं मिला, वे क्या लौटाकर अपना विरोध प्रदर्शन करेंगे? इसलिए हम अशोक वाजपेयी की लिखी हुई किताब वापस कर रहे हैं। लौटाने के लिए हमारे पास फिलहाल यही है। अभियान का मानना है कि जब लेखक दलगत राजनीति की दलदल में उतर जाता है, समाज की नजर में उसका कद छोटा हो जाता है। अब हम साहित्यकार और कवियों की नजर में अशोक वाजपेयी का कद वह नहीं रहा जो पहले था।
एक सवाल का जवाब देते हुए विनीत पांडेय ने कहा - किताब वापसी अभियान सभी लेखकों का सम्मान करती है, उनके लेखन का सम्मान करती है। किताब वापसी अभियान वास्तव में पाठकों एवं लेखकों का अभियान है। पुरस्कार वापसी करने वालों के सामने अपना विरोध दर्ज करने के लिए किताब वापसी एक माध्यम है। जिसके जरिए हम अपना विरोध पुरस्कार वापस करने वालों के सामने दर्ज कर रहे हैं। इतिहास में जब पुरस्कार वापसी की घटना का जिक्र होगा, इस बात का भी जिक्र करना होगा कि बड़ी संख्या में पाठक उस दौरान किताब भी लौटा रहे थे। किताब वापसी अभियान का समर्थन कर रहे थंे।
अशोक वाजपेयी या अन्य लेखकों को लौटाए जाने वाली किताब हम अपनी निजी दुराग्रह की वजह से नहीं लौटा रहे। आज वे अकादेमी से अपना पुरस्कार वापस लें लें। हम अपनी किताब वापस ले लेंगे।
जब किताब वापसी अभियान का प्रतिनिधि मंडल अंदर अशोक वाजपेयी से मिलने गया था, उस दौरान बाहर एक छोटा सा नुक्कड़ कवि सम्मेलन उन साहित्यकारों एवं कवियों द्वारा आयोजित किया गया, जो अभियान में शामिल रहे। नुक्कड़ कविं सम्मेलन में इब्राहिम अल्वी, यूनूस सद्दीकी, कुमार अनुज, विनोद बल ने अपनी कविताएं सुनाई। कवि सम्मेलन में अपार्टमेन्ट के आस पास के लोग बड़ी संख्या में शामिल हुए। अशोक वाजपेयी के घर के आस पास के जो लोग इस कवि सम्मेलन में शामिल हुए, उन्होंने यह कहते हुए किताब वापसी अभियान को समर्थन दिया कि अशोक वाजपेयी को अकादेमी पुरस्कार नहीं लौटाना चाहिए। उन्होंने पुरस्कार लौटाकर अपने साहित्यिक जीवन की सबसे बड़ी भूल की है।
किताब वापसी अभियान क्यों
देश के साहित्यकार, इतिहासकार और फिल्मकारों के साहित्य, इतिहास और फिल्म को एक दर्शक और पाठक के नाते हमने अपनाया। लेकिन दुख के साथ लिखना पड़ रहा है, उंगली पर गिने जाने वाले साहित्यकार, इतिहासकार और फिल्मकारों ने असहिष्णुता के नाम एक ऐसे दुष्प्रचार को हवा दी जिसे एक आम आदमी समझ नहीं पा रहा। उन्होंने एक राजनीतिक पार्टी की प्रेरणा से प्रधानमंत्री के अंध-विरोध में अपने पाठक और दर्शकों का अपमान किया है। जिनकी किताब एक पाठक के नाते खरीद कर पढ़ते हुए, जिनकी फिल्मों को दर्शक के नाते देखते हुए हम सबने कभी यह विचार नहीं किया कि अमुक किताब के लेखक विचारधारा के किस खांचे में खुद को टिकाते हैं। लेकिन अचानक केन्द्र की सरकार बदलते ही 2014-15 में ऐसा क्या बदल गया कि ऐसा माहौल बनाने की कोशिश हो रही है, मानों देश से सामाजिक सद्भाव और लोकतंत्र दोनों एक साथ विदा हो गए हों।
इन सारी स्थितियों से गुजरते हुए सवाल मन में आया कि क्या एक पाठक, लेखक, कलाकार और दर्शक के नाते हम इतने असहाय हैं कि अपना विरोध दर्ज ना कर पाएं। हमें लगा कि अपना विरोध दर्ज करना चाहिए। जिसके माध्यम से यह संदेश उन लेखक और फिल्मकारों तक जाए कि उनके पाठक और दर्शक अब जागरूक हो गए हैं। उनके बहकावे में आने को तैयार नहीं हैं।
इसी का परिणाम था कि मीडिया स्कैन पाठक मंच की तरफ से किताब वापसी अभियान का एक पेज फेसबुक पर युवा पत्रकार शिवानंद द्विवेदी सहर और सामाजिक कार्यकर्ता मनीष माही की देखरेख में बना। देखते ही देखते पांच हजार लोगों की संख्या पार हुई और छह दिनों में डेढ़ लाख से अधिक लोग इस पेज से होकर गुजरे। इस अभियान से जुड़ने वालों में उमेश चतुर्वेदी, पवन श्रीवास्तव, संजीव सिन्हा, अनिल पांडेय, सुरेश चिपलूनकर, लिली कर्मकार, अकांक्षा अनन्या, रविशंकर, अमरनाथ झा, संजय बेंगानी, पंकज झा, पृथक बटोही,, डॉ सौरभ मालवीय का नाम उल्लेखनीय है।
यह अभियान एक प्रतिकात्मक विरोध है। हमारा उद्देश्य किसी लेखक का अपमान नहीं है। हम इस अभियान के माध्यम से अपनी असहमति दर्ज कर रहे हैं। लेखकों के लेखन से नहीं उनके पूर्वाग्रह से भरे बयानों और पुरस्कार वापसी से हुई निराशा से उपजे अभियान का नाम किताब वापसी अभियान है।
अतिरिक्त जानकारी के लिए संपर्क कीजिएः- +91 9971598416
Yaha ek prashMsaneeya pahal hai aur bahut achhaa tareekaa bhee. Lekhakon dvaara Akademi puraskaar lautanaa hatasha bhara kadam hai. Koi aur tareeka apanana chahiye tha virodh pradarshan kaa . Akademy ko beech me ghasitana gair- jarooree hai.|
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