कल रात मुझे उस मस्से के बारे में सपना आया । ' मस्सा ' शब्द के ज़िक्र मात्र से तुम मेरा मतलब समझ गए होगे । कितनी बार तुमने उस मस्से की वजह से मुझे डाँटा है । वह मेरे दाएँ कंधे पर है या यूँ कहें कि मेरी पीठ पर ऊपर की ओर है ।
( यासुनारी कावाबाटा की जापानी कहानी " द मोल " का
अंग्रेज़ी से हिंदी में अनुवाद )
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# मस्सा
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--- मूल कहानी : यासुनारी कावाबाटा
--- अनुवाद : सुशांत सुप्रिय
कल रात मुझे उस मस्से के बारे में सपना आया । ' मस्सा ' शब्द के ज़िक्र मात्र से तुम मेरा मतलब समझ गए होगे । कितनी बार तुमने उस मस्से की वजह से मुझे डाँटा है । वह मेरे दाएँ कंधे पर है या यूँ कहें कि मेरी पीठ पर ऊपर की ओर है ।
" इसका आकार बड़ा होता जा रहा है । और खेलो इससे । जल्दी ही इसमें से अंकुर निकलने लगेंगे । " तुम मुझे यह कह कर छेड़ते , लेकिन जैसा तुम कहते थे , वह एक बड़े आकार का मस्सा था , गोल और उभरा हुआ ।
बचपन में मैं बिस्तर पर पड़ी-पड़ी अपने इस मस्से से खेलती रहती । जब पहली बार तुमने इसे देखा तो मुझे कितनी शर्मिंदगी महसूस हुई थी ।
मैं रोई भी थी और मुझे तुम्हारा हैरान होना याद है ।
" उसे मत छुओ । तुम उसे जितना छुओगी , वह उतना ही बड़ा होता
जाएगा । " मेरी माँ भी मुझे इसी वजह से अक्सर डाँटती थी । मैं अभी छोटी ही थी ,
शायद तेरह की भी नहीं हुई थी । बाद में मैं अकेले में ही अपने मस्से को छूती थी । यह आदत बनी रही , हालाँकि मैं जान-बूझकर ऐसा नहीं करती थी ।
जब तुमने पहली बार इस पर ग़ौर किया तब भी मैं छोटी ही थी , हालाँकि मैं तुम्हारी पत्नी बन चुकी थी । पता नहीं तुम , एक पुरुष , कभी यह समझ पाओगे कि मैं इसके लिए कितना शर्मिंदा थी , लेकिन दरअसल यह शर्मिंदगी से भी कुछ अधिक था । यह डरावना है -- मैं सोचती । असल में मुझे तब शादी भी एक डरावनी चीज़ लगती ।
मुझे लगा था जैसे तुमने मेरे रहस्यों की सभी परतें एक-एक करके उधेड़ दी हैं -- वे रहस्य , जिनसे मैं भी अनभिज्ञ थी । और अब मेरे पास कोई शरणस्थली नहीं बची थी ।
तुम आराम से सो गए थे । हालाँकि मैंने कुछ राहत महसूस की थी , लेकिन वहाँ एक अकेलापन भी था । कभी-कभी मैं चौंक उठती और मेरा हाथ अपने-आप ही मस्से तक पहुँच जाता ।
" अब तो मैं अपने मस्से को छू भी नहीं पाती । " मैंने इस के बारे में अपनी माँ को पत्र लिखना चाहा , लेकिन इसके ख़्याल मात्र से मेरा चेहरा लाल हो जाता ।
" मस्से के बारे में बेकार में क्यों चिंतित रहती हो ? " तुमने एक बार कहा था । मैं मुस्करा दी थी , लेकिन अब मुड़ कर देखती हूँ , तो लगता है कि काश , तुम भी मेरी आदत से ज़रा प्यार कर पाते ।
मैं मस्से को लेकर इतनी फ़िक्रमंद नहीं थी । ज़ाहिर है , लोग महिलाओं की गर्दन के नीचे छिपे मस्से को नहीं ढूँढ़ते फिरते । और चाहे मस्सा बड़े आकार का क्यों न हो , उसे विकृति नहीं माना जा सकता ।
तुम्हें क्या लगता है , मुझे अपने मस्से से खेलने की आदत क्यों पड़ गई ? और मेरी इस आदत से तुम इतना चिढ़ते क्यों थे ?
" बंद करो ," तुम कहते , " अपने मस्से से खेलना बंद करो । " तुमने मुझे न जाने कितनी बार इसके लिए झिड़का ।
" तुम अपना बायाँ हाथ ही इसके लिए इस्तेमाल क्यों करती हो ? " एक बार तुमने चिढ़ कर ग़ुस्से में पूछा था ।
" बायाँ हाथ ? " मैं इस सवाल से चौंक गई थी । यह सच था । मैंने इस पर कभी ग़ौर नहीं किया था , लेकिन मैं अपने मस्से को छूने के लिए हमेशा अपना बायाँ हाथ ही इस्तेमाल करती थी ।
" मस्सा तुम्हारे दाएँ कंधे पर है । तुम उसे अपने दाएँ हाथ से आसानी से छू सकती हो । "
" अच्छा ? " मैंने अपना दायाँ हाथ उठाया । " लेकिन यह अजीब है । "
" यह बिलकुल अजीब नहीं है । "
" लेकिन मुझे अपने बाएँ हाथ से मस्सा छूना ज़्यादा स्वाभाविक लगता
है । "
" दायाँ हाथ उसके ज़्यादा क़रीब है । "
" दाहिने हाथ से मुझे पीछे जा कर मस्से को छूना पड़ता है । "
" पीछे ? "
"हाँ । मुझे गर्दन के सामने बाँह लाने या बाँह इस तरह पीछे करने में से किसी एक को चुनना होता है । " अब मैं चुपचाप विनम्रता से तुम्हारी हर बात पर हाँ में हाँ नहीं मिला रही थी । हालाँकि तुम्हारी बात का जवाब देते-देते मेरे ज़हन में आया कि जब मैं अपना बायाँ हाथ अपने आगे लाई , तो ऐसा लगा जैसे मैं तुम्हें परे हटा रही थी , जैसे मैं खुद को आलिंगन में ले रही थी । मैं उसके साथ क्रूर व्यवहार कर रही हूँ , मैंने सोचा ।
मैंने धीमे स्वर में पूछा , " लेकिन इसके लिए बायाँ हाथ इस्तेमाल करना ग़लत क्यों है ? "
" चाहे बायाँ हाथ हो या दायाँ , यह एक बुरी आदत है । "
" मुझे पता है । "
" क्या मैंने तुम्हें कई बार यह नहीं कहा कि तुम किसी डॉक्टर के पास जा कर इस चीज़ को हटवा लो ? "
" लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकी । मुझे ऐसा करने में शर्म आएगी । "
" यह तो एक मामूली बात है । "
" अपना मस्सा हटवाने के लिए कौन किसी डॉक्टर के पास जाता है ? "
" बहुत से लोग जाते होंगे । "
" चेहरे के बीच में उगे मस्से के लिए जाते होंगे , लेकिन मुझे संदेह है कि कोई अपनी गर्दन के नीचे उगे मस्से को हटवाने के लिए किसी डॉक्टर के पास जाएगा । डॉक्टर हँसेगा । उसे पता लग जाएगा कि मैं उसके पास इसलिए आई हूँ , क्योंकि मेरे पति को वह मस्सा पसंद नहीं है । "
" तुम डॉक्टर को बता सकती हो कि तुम उस मस्से को इसलिए हटवाना चाहती हो , क्योंकि तुम्हें उससे खेलने की बुरी आदत है । "
" मैं उसे नहीं हटवाना चाहती । "
" तुम बहुत अड़ियल हो । मैं कुछ भी कहूँ , तुम खुद को बदलने की कोई कोशिश नहीं करती । "
" मैं कोशिश करती हूँ । मैंने कई बार ऊँचे कॉलर वाली पोशाक भी पहनी ताकि मैं उसे न छू सकूँ । "
" तुम्हारी ऐसी कोशिश ज़्यादा दिन नहीं चलती । "
" लेकिन मेरा अपने मस्से को छूना क्या इतना ग़लत है ? " उन्हें ज़रूर लग रहा होगा कि मैं उनसे बहस कर रही हूँ ।
" वह ग़लत नहीं भी हो सकता , लेकिन मैं तुम्हें इसलिए मना करता हूँ , क्योंकि मुझे तुम्हारा ऐसा करना पसंद नहीं ।"
" लेकिन तुम इसे नापसंद क्यों करते हो ? "
सुशांत सुप्रिय |
" मैंने कभी यह नहीं कहा कि मैं ऐसा करना बंद नहीं करूँगी । "
" और जब तुम उसे छूती हो , तो तुम्हारे चेहरे पर वह अजीब खोया-सा भाव आ जाता है । और मुझे उससे वाकई नफ़रत है । "
शायद तुम ठीक कह रहे हो -- कुछ ऐसा था कि तुम्हारी बात सीधे मेरे दिल में उतर गई । और मैं सहमति में सिर हिलाना चाहती थी ।
" अगली बार जब तुम मुझे ऐसा करते देखो , तो मेरा हाथ पकड़
लेना । मेरे चेहरे पर हल्की चपत लगा देना । "
" लेकिन क्या तुम्हें यह बात परेशान नहीं करती कि पिछले दो-तीन सालों से कोशिश करने के बाद भी तुम अपनी इतनी मामूली-सी आदत भी नहीं बदल सकी हो ? "
मैंने कोई जवाब नहीं दिया । मैं तुम्हारे शब्दों ' मुझे उससे वाकई नफ़रत है ' के बारे में सोच रही थी ।
मेरे गले के आगे से मेरी पीठ की ओर जाता हुआ मेरा बायाँ हाथ --
यह अदा ज़रूर कुछ उदास और खोई-सी लगती होगी । हालाँकि मैं इसके लिए
' एकाकी ' जैसा कोई शब्द इस्तेमाल करने से हिचकूँगी । दीन-हीन और तुच्छ -- केवल खुद को बचाने में लीन एक महिला की भंगिमा । और मेरे चेहरे का भाव बिल्कुल वैसा ही लगता होगा जैसा तुमने बताया था -- ' अजीब , खोया-सा ' ।
क्या यह इस बात की एक निशानी थी कि मैंने खुद को पूरी तरह तुम्हें समर्पित नहीं कर दिया था , जैसे हमारे बीच अब भी कोई जगह बची हुई थी । और क्या मेरे सच्चे भाव तब मेरे चेहरे पर आ जाते थे , जब मैं अपने मस्से को छूती थी और उससे खेलते समय दिवास्वप्न में लीन हो जाती थी , जैसा कि मैं बचपन से करती आई थी ?
लेकिन यह इसलिए होता होगा , क्योंकि तुम पहले से ही मुझसे असंतुष्ट थे , तभी तो तुम उस छोटी-सी आदत को इतना तूल देते थे । यदि तुम मुझसे खुश रहे होते , तुम मुस्कुरा देते और मेरी उस आदत के बारे में ज़्यादा सोचते ही नहीं ।
वह एक डरावनी सोच थी । तब मैं काँपने लगती , जब अचानक मुझे यह ख़्याल आता कि कुछ ऐसे मर्द भी होंगे , जिन्हें मेरी यह आदत मोहक लगती होगी ।
यह मेरे प्रति तुम्हारा प्यार ही रहा होगा जिसकी वजह से तुमने इस ओर पहली बार ध्यान दिया होगा । मुझे इसमें कोई संदेह नहीं , लेकिन यह ठीक उन
छोटी-मोटी खिझाने वाली चीज़ों की तरह होता है , जो बाद में बढ़कर विकृत हो जाती हैं और वैवाहिक सम्बन्धों में अपनी जड़ें फैला लेती हैं । वास्तविक पति और पत्नी के बीच इन व्यक्तिगत सनकी बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता , किंतु मुझे लगता है कि दूसरी ओर ऐसे पति और पत्नी भी होते हैं , जो हर बात पर खुद को एक-दूसरे के ख़िलाफ़ पाते हैं । मैं यह नहीं कहती कि वे दम्पति , जो आपस में समझौता करके चलते हैं , एक-दूसरे से प्यार ही करते हों । न ही ऐसा है कि जिनकी राय एक-दूसरे से भिन्न होती है , वे दम्पति एक-दूसरे से घृणा ही करते हों । हालाँकि मैं यह ज़रूर सोचती हूँ ( और यह सोचने से खुद को रोक नहीं पाती हूँ ) कि यह बेहतर होता , यदि तुम मस्से से खेलने की मेरी आदत की अनदेखी कर पाते ।
असल में तुम मुझे पीटने और ठोकरें मारने पर उतारू हो गए । मैं रोई और मैंने तुमसे पूछा कि तुम इतने हिंसक क्यों हो गए हो ? केवल अपना मस्सा छूने भर की मुझे ऐसी सज़ा क्यों मिले ? अपनी त्वचा ही तो छू रही थी मैं ।
" तुम्हारे इस रोग का उपचार क्या है ? " ग़ुस्से से काँपती हुई आवाज़ में तुमने पूछा था । मैं समझ गई कि तुम कैसा महसूस कर रहे थे । तुमने जो किया था , उस बारे में मेरी नाराज़गी भी जाती रही । यदि मैंने किसी और को इस के बारे में बताया होता तो वे तुम्हें हिंसक पति कहते , लेकिन चूँकि हमारे सम्बन्ध एक ऐसे मुक़ाम पर पहुँच गए थे जहाँ कोई मामूली बात भी हमारे बीच तनाव बढ़ा देती थी , जब तुमने मुझ पर हाथ उठाया , तो उसने असल में मुझे अचानक जैसे मुक्ति दे दी , छुटकारा दे दिया ।
" मैं इस आदत को कभी नहीं छोड़ पाऊँगी , कभी नहीं । मेरे हाथ बाँध दो । " मैंने अपने दोनों हाथ जोड़ कर तुम्हारी छाती की ओर बढ़ा दिए । गोया मैं खुद को पूरी तरह से तुम्हारे हवाले कर रही थी ।
तुम चकरा गए । तुम्हारे ग़ुस्से ने तुम्हें शिथिल बना दिया था , मनोभावों से रिक्त कर दिया था । तुमने मेरी कमरबंद में से डोरी ले कर उससे मेरे हाथ बाँध
दिए ।
मैं अपने बँधे हुए हाथों से अपने बालों को सँवारने की कोशिश करने लगी और मुझे ख़ुशी हुई , जब मैंने तुम्हें अपनी ओर ताकते हुए देखा । मैंने सोचा कि इस बार मेरी यह आदत छूट ही जाएगी ।
हालाँकि तब भी उस मस्से का हल्का-सा स्पर्श भी किसी के लिए ख़तरनाक था ।
क्या मेरी मस्सा छूने की आदत दोबारा लौट आने की वजह से ही अंत में
मेरे प्रति तुम्हारा बचा-खुचा स्नेह भी ख़त्म हो गया ? क्या तुम मुझे यह बताना चाहते थे कि तुम्हें अब मुझसे कोई उम्मीद नहीं थी और मैं जो चाहे कर सकती थी ? अब जब मैं अपने मस्से से खेलती , तुम ऐसा बहाना बनाते जैसे तुमने यह सब देखा नहीं । तुम कुछ नहीं कहते ।
फिर एक अजीब बात हुई । मेरी वह आदत , जो डाँटने और मारने से भी नहीं गई , एक दिन अपने-आप छूट गई । डराने-धमकाने वाला कोई भी इलाज काम नहीं आया । वह आदत खुद-ब-खुद चली गई ।
" क्या तुम जानते हो , अब मैं अपने मस्से से नहीं खेलती हूँ । " मैंने कहा जैसे मुझे इसके बारे में अभी पता चला हो । तुम घुरघुराए और तुमने अपना हाव-भाव ऐसा बनाया जैसे तुम्हें इस बात की कोई परवाह न हो ।
यदि तुम्हारे लिए इस बात की कोई अहमियत नहीं थी , तो फिर तुम मुझे इसके लिए डाँटते क्यों थे ? मैं चाहती थी कि तुम मुझसे इसके बारे में पूछो , लेकिन तुम थे कि मुझसे बात ही नहीं कर रहे थे ।
जैसे मस्सा छूने की मेरी आदत की तुम्हें कोई परवाह न हो , जैसे मैं जो चाहूँ करने के लिए स्वतंत्र हूँ -- तुम्हारे चेहरे के हाव-भाव से तो यही लगता था । मैंने खुद को निरुत्साही और उदास महसूस किया । तुम्हें चिढ़ाने के लिए ही सही , मैं अपने मस्से को तुम्हारे सामने दोबारा छूना चाहती थी , लेकिन अजीब बात यह हुई कि मेरे हाथों ने हिलने से इंकार कर दिया ।
मैंने खुद को अकेला महसूस किया । और मुझे ग़ुस्सा आया ।
जब तुम आस-पास नहीं थे , तब भी मैंने अपने मस्से को छूने के बारे में सोचा , लेकिन न जाने क्यों यह मुझे शर्मनाक और घृणास्पद लगा और एक बार फिर मेरे हाथों ने हिलने से इंकार कर दिया ।
मैंने फ़र्श की ओर देखा और अपने दाँतों से अपना होठ काटने लगी ।
" तुम्हारे मस्से को क्या हुआ ? " मैं प्रतीक्षा करती रही कि तुम मुझसे यह पूछोगे , लेकिन इसके बाद तो हमारी आपसी बातचीत से ' मस्सा ' शब्द ही ग़ायब हो गया ।
और शायद इसके साथ ही हमारे बीच कई और चीज़ें भी ग़ायब हो गईं ।
जब तुम मुझे डाँटा करते थे , उन दिनों मैं कुछ क्यों नहीं कर सकी ? मैं कितनी बेकार औरत हूँ ।
फिर मैं अपने मायके लौटी । उन्हीं दिनों जब मैं एक बार माँ के साथ स्नान कर रही थी , तो वह बोली , " अब तुम उतनी सुंदर नहीं रही जितनी पहले थी , सायोको ! शायद तुम बढ़ती उम्र को बेअसर नहीं कर सकती । "
मैंने चौंक कर माँ की ओर देखा । वे अब भी पहले जैसी ही दिखती
थीं --- गोल-मटोल , किंतु चमकीली त्वचा वाली ।
" और तुम्हारा वह मस्सा पहले बेहद आकर्षक हुआ करता था । "
उस मस्से की वजह से मुझे वाकई तकलीफ़ सहनी पड़ी थी -- किंतु मैं अपनी माँ से यह नहीं कह सकती थी । मैंने कहा -- " लोग कहते हैं कि शल्य-चिकित्सक आसानी से मस्से को हटा सकता है । "
" अच्छा ? डॉक्टर ! लेकिन दाग़ तो रह ही जाएगा । " मेरी माँ कितनी शांत और स्वाभाविक प्रकृति की थी । " हम तुम्हारे मस्से के बारे में बातें करके हँसा करते थे । हम कहते कि शादी के बाद भी सायोको अपने मस्से से खेलती होगी । "
" हाँ , मैं उससे खेलती थी । "
" हाँ , हमें लगता था कि तुम यह करती होगी । "
" यह एक बुरी आदत थी । मैंने अपने मस्से से खेलना कब शुरू किया होगा ? "
" पता नहीं , बच्चों की देह में मस्सा कब से दिखने लगता है ? नवजात शिशुओं के तो मस्सा नहीं होता । "
" मेरे बच्चों की देह पर कोई मस्सा नहीं । "
" अच्छा ? लेकिन जैसे-जैसे बच्चे बड़े होने लगते हैं , वे नज़र आने लगते हैं । और फिर वे ग़ायब नहीं होते , लेकिन तुम्हारी गर्दन के आकार का मस्सा आम तौर पर नहीं होता । जब तुम बहुत छोटी होगी , यह मस्सा तभी से वहाँ होगा । " मेरी माँ मेरी गर्दन और कंधे की ओर देख कर हँसी ।
मुझे याद आया , जब मैं छोटी थी , तो मेरी माँ और मेरी बहनें कभी-कभार उस मस्से को छूती थीं । वह मस्सा तब बेहद मोहक लगता था । क्या यही वह वजह नहीं थी , जिसके कारण मुझे भी उस मस्से से खेलने की आदत पड़ गई ?
मैं बिस्तर पर लेटे हुए अपने मस्से से खेलती रही । मैं याद करने की कोशिश करती रही कि जब मैं बच्ची थी , क्या तब भी मैं इस मस्से से खेलती थी ।
यह बहुत समय पहले की बात थी , जब मैं पिछली बार अपने मस्से से खेली थी । पता नहीं कितने साल पहले की बात थी ।
तुमसे दूर अपने मायके के उस घर में जहाँ मेरा जन्म हुआ था , मैं अपने मस्से के साथ जैसे चाहे खेल सकती थी । यहाँ मुझे रोकने वाला कोई नहीं था ।
किंतु यह भी सुखकर नहीं लगा ।
जैसे ही मेरी उँगली ने उस मस्से को छुआ , मेरी आँखों में आँसू आ गए ।
मैं बरसों पहले की बात सोचना चाहती थी , जब मैं छोटी थी , लेकिन जब मैंने मस्से को छुआ , तो मुझे केवल तुम याद आए ।
मुझे एक बुरी पत्नी के रूप में धिक्कारा गया है , और शायद मुझे तलाक़ भी दे दिया जाएगा , किंतु यह तो मैंने भी नहीं सोचा था कि यहाँ मायके में बिस्तर पर लेटे हुए मुझे केवल तुम्हारा ही ख़्याल आएगा ।
मैंने अपने गीले तकिये पर करवट बदली । मुझे झपकी आ गई और मुझे सपना भी उसी मस्से का आया ।
जब मैं जगी , तो मैं नहीं बता सकती थी कि वह कमरा कहाँ का था , लेकिन तुम वहाँ मौजूद थे । सम्भवत: हमारे साथ कोई और महिला भी थी । मैं शराब पी रही थी । यक़ीनन मैं नशे में थी । मैं न जाने किस चीज़ के लिए तुमसे निवेदन कर रही थी ।
मेरी बुरी आदत फिर उभर कर सामने आ गई । मैंने मस्से को छूने के लिए अपना बायाँ हाथ आगे बढ़ाया । हमेशा की तरह मेरी बाँह मेरी छाती के आगे से हो कर पीछे की ओर जा रही थी , लेकिन छूते ही मस्से को क्या हो गया ? क्या वह मेरी त्वचा पर से निकल कर मेरी उँगलियों में नहीं आ गया ? बिना किसी दर्द के वह त्वचा पर से ऐसे निकल आया जैसे यह दुनिया की सबसे स्वाभाविक बात हो । मेरी उँगलियों में वह मस्सा ठीक किसी भुनी हुई हुई सेम-फली के छिलके-सा लगा ।
किसी बिगड़ैल बच्ची की तरह मैंने तुमसे ज़िद की कि तुम मेरे उस मस्से को अपनी नाक के बगल में मौजूद अपने मस्से के पास वाले हल्के से गड्ढे में डाल
लो ।
मैंने अपनी उँगलियों में पकड़े उस मस्से को तुम्हारी ओर धकेला ! मैं हाथ-पैर पटक कर चिल्लाई । मैंने तुम्हारी क़मीज़ की आस्तीन पकड़ ली और तुम्हारी छाती से लटक गई ...
जब मेरी नींद खुली , मेरा तकिया तब भी गीला था । मैं अब भी रो रही
थी ।
हालाँकि मैं बेहद थकान महसूस कर रही थी , मुझे ऐसा भी लगा जैसे मैं हल्की हो गई हूँ , जैसे एक भारी बोझ मेरे सिर पर से उतर गया है ।
कुछ देर तक मैं मुस्कराते हुए लेटी रही , यह सोचते हुए कि क्या मेरा मस्सा वाकई ग़ायब हो गया था । उसे छूने में भी मुझे मुश्किल हो रही थी ।
मेरे मस्से की पूरी कहानी बस यही है । मैं अब भी उसे अपनी उँगलियाँ के बीच किसी बड़े काले दाने-सा महसूस कर सकती हूँ ।
तुम्हारी नाक के बगल में उगे उस छोटे-से मस्से के बारे में मैंने तो कभी ज़्यादा नहीं सोचा । न ही मैंने उसके बारे में कभी बात ही की । फिर भी मुझे लगता है कि तुम्हारा वह मस्सा मेरे अवचेतन में हमेशा रहा है ।
यह कितनी बढ़िया परी-कथा बन जाएगी , यदि तुम्हारा वह मस्सा इसलिए वाकई सूज जाए , क्योंकि तुमने उसके ऊपर मेरा मस्सा रख लिया हो । और इस बात से मैं कितनी खुश हो जाऊँगी यदि मुझे पता चले कि तुम्हें मेरे मस्से के बारे में सपना आया था ।
एक बात मैं भूल ही गई ।
" यही वह चीज़ है जिससे मुझे नफ़रत है " , तुम कहते थे । मैं इसके बारे में इतनी अच्छी तरह जानती थी कि मुझे लगता जैसे तुम्हारा यह उद्गार मेरे प्रति तुम्हारे स्नेह का सूचक है । मुझे भी लगने लगता कि जब मैं अपने मस्से को उँगलियों से छू रही होती , तो मेरे भीतर की सारी घटिया चीज़ें जैसे बाहर आ जातीं ।
लेकिन मुझे लगता है कि क्या वह एक तथ्य , जिसका ज़िक्र मैंने पहले भी किया है , मुझे पुनः प्रतिष्ठित नहीं कर देता ? शायद मेरी माँ और बहनें मेरे बचपन में जिस तरह से मेरे मस्से को पुचकारती थीं , यही वह वजह थी जिसके कारण मुझे अपने मस्से को छूने की आदत पड़ गई होगी ।
" मुझे लगता है , बचपन में जब मैं अपने मस्से से खेलती थी , तो तुम मुझे डाँटती थी " , मैंने माँ से कहा ।
" हाँ , लेकिन यह केवल बचपन की ही बात नहीं है । "
" तुम मुझे क्यों डाँटती थी , माँ ? "
" क्यों ? क्योंकि यह एक बुरी आदत थी , इसलिए । "
" लेकिन जब तुम मुझे अपने मस्से से खेलते हुए देखती थी , तो कैसा महसूस करती थी ? "
" देखो ..." , माँ अपना सिर एक ओर झुका कर बोली , " मुझे अच्छा नहीं लगता था । वह शोभनीय नहीं था । "
" सही कहा , लेकिन मेरे ऐसा करने पर क्या तुम्हें मेरे प्रति अफ़सोस होता था ? या तुम यह सोचती थी कि मैं घृणित कार्य करने वाली एक गंदी लड़की थी ? "
" इसके बारे में मैंने कभी ज़्यादा नहीं सोचा । तुम्हारे चेहरे का उनींदा भाव देख कर मुझे लगता था कि तुम अपने मस्से से न खेलो तो अच्छा है । "
" क्या तुम मेरी इस हरकत से चिढ़ती थी ? "
" हाँ , मुझे थोड़ी फ़िक्र होती थी । "
यदि यह सच है , तो क्या मेरा खोए हुए अंदाज़ में अपने मस्से को सहलाना बचपन में मेरे प्रति मेरी माँ और बहनों के प्यार को याद करने का मेरा एक तरीका नहीं था ?
जिन लोगों से मैं प्यार करती थी , क्या मैं उनके बारे में सोचते हुए ऐसा नहीं कर रही थी ?
यही वह बात है जो मुझे तुमसे ज़रूर कहनी है ।
क्या मेरे मस्से के बारे में तुम्हारी धारणा शुरू से अंत तक ग़लत नहीं थी ?
जब मैं तुम्हारे साथ होती थी , तो क्या मैं किसी और के बारे में सोच सकती थी ?
बार-बार मैं सोचती हूँ कि मेरी जिस हरकत से तुम्हें इतनी चिढ़ है क्या वह मेरे उस प्यार के इज़हार का एक तरीका नहीं था , जिसे मैं शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकती थी ।
मस्से से खेलने की मेरी आदत तो एक बेहद मामूली बात थी , और मैं इसके बचाव में कोई बहाना नहीं बना रही , लेकिन तुम्हारी निगाहों में मुझे एक बुरी पत्नी बना देने वाली वे सभी चीज़ें भी क्या इसी तरह शुरू नहीं हुई थीं ? क्या ऐसा नहीं था कि शुरू-शुरू में वे सब भी तुम्हारे प्रति मेरे प्यार की सूचक ही थीं , जो तुम्हारे लिए बाद में इसलिए अशोभनीय हो गईं , क्योंकि तुमने उनकी सच्चाई को स्वीकार करने से इनकार कर दिया ?
अब जब मैं यह सब लिख रही हूँ , तो क्या अपने साथ हुए अन्याय की बात करके मैं एक बुरी पत्नी जैसा व्यवहार कर रही हूँ ? जो भी हो , ये कुछ बातें हैं , जो तुम्हें बतानी ज़रूरी हैं ।
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प्रेषकः सुशांत सुप्रिय
A-5001 ,
गौड़ ग्रीन सिटी ,
वैभव खंड ,
इंदिरापुरम ,
ग़ाज़ियाबाद - 201014
( उ. प्र. )
मो: 8512070086
ई-मेल: sushant1968@gmail.com
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बहुत सुंदर कहानी और उतना ही उत्तम इसका अनुवाद है. आशा है आगे भी सुशांत जी द्वारा अनुवाद होते रहेंगे.
जवाब देंहटाएंपूनम अरोड़ा
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